________________ धम्मि- नीचैर्न चाहति // ध्यात्वेति तं वनादूरी-कृत्य स्वाट्टे न्यवेशयत् // 45 // जग्राह ग्राहकादेष / मा मृदुवाग्दानतो धनं // श्रकोपनो गोप श्व / धेनुग्धं तृणार्पणात् // 46 // कलावत्युदिते नित्यं / / तस्मिन्नमृतवर्षिणि // मुखमुद्राजवलेष-हट्टेषु कुमुदेष्विव // 4 // महर्म्यमपि तस्याद्राद्-ग्रा. 46 | हका वस्तु गृहुते // पुनर्मुधापि नान्येन्यः / प्रजारागो हि दुर्खनः // 4 // श्रुत्योर्नस्त्वं निजं ना मो-तंसयेत्यर्थितो जनैः // स स्वस्याकलयन्नाम / विनीत इति सान्वयं // 4 // कलाकौशलतः रोने पोतानी दुकाने बेसाड्यो. // 45 // गुस्सो नहि करनारो गोवाळ गायने घास यापीने जेम दुध ग्रहण करे तेम ते त्यां मिष्ट वचनो आपीने ग्राहकोपासेथी धन लेवा लाग्यो. // 46 // ए. वी रीते अमृत वर्षनारो ते कलावान समुद्रदत्त हमेशां नदय पामवाथी कुमुदोनीपेठे बाकीनी द. कानोपर मुखमुद्रा थर एटले ग्राहकोविना ताला देवाश् गया. // 4 // मोंघी मळवा उतां पण ग्राहको तेनी दुकानेथी वस्तु लेवा लाग्या, धने बीजी दुकानेथी तो मफत पण लेता नहि, के. मके प्रजाराम दर्शन होय . // 4 // तारा नामथी अमारा कर्णो शोगाव? एम लोकोए प्रा. | र्थना कर्याथी तेणे पोतानुं विनीत एवं सार्थक नाम प्राप्यु. // 45 // कलाकौशलथी ख्याति पा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust