________________ 43 धाम्म-। तन्न चिरस्थिति // श्रामेष्टिककृतौकोव-न्मुंडमौलिस्थपुष्पवत् // 70 // अपश्यं चतुरो वर्णा-नवमं यसीं भुवं / पुनः सर्वत्र नारीषु / हलिष्विव कुशीलता // 7 // वाग्मार्दवं सुरूपत्वं / लीलासुजगता यथा // तथा स्थैर्यमपि स्त्रीषु / धातस्तात न किं कृतं // 70 // ध्यात्वेत्युपवने धाम्नः / शय्यां सजीचकार सः / / नवमासवमानीया-जुहावारदकं ततः // 71 // अथारदः कृतस्नानः / सर्वालंकारजासुरः // श्वशुरोक श्वाशोक-कनिकामार मारलः // 2 // तदावदातशृंगारा / तत्रा तुं नथी, घने कदाच होय तो पण ते काची इंटोथी बनावेला घरनीपेठे तथा मुंमां मस्तकपर रहेला पुष्पनीपेठे घणो काळ टकतुं नथी. // 70 // में चारे वर्णो जोया, तथा घणी नमीपर हुं नम्यो, परंतु सर्व जगोए खेमुतोनीपेठे स्त्री-मां तो कुशीलपणुंज (कोशज ) जोयु. // 7 // हे विधातारूप पिताजी! स्त्रीनमा जेम ते वचनोनी कोमळता, सुरूपपणुं, लीला तथा सौनाग्यप एं बनाव्युं , तेम ते मां तें स्थिरपणुं शामाटे न बनाव्युं ? // 70 // एम विचारीने तेणे घरना बगीचामां शय्या तैयार करी, तथा पछी तेणे नवो दारु लावीने कोटवालने त्यां बोलाव्यो. // 1 // हवे ते कोटवाल पण स्नान करी सर्व बाजूषणोथी शोनितो तथा कामातुर थश्ने जेम ससराने Jun Gun Aaradhak Trust P.P.Ac Gunratnasuri M.S. .