________________ धम्मि- थग्देहाश्रयाः प्राणाः / श्यामदत्ता हि मे ध्रुवं // 4 // लुजानस्य शयानस्य / व्रजतस्तिष्टतोऽपि | वा // हृदो न दूरीनवति / श्यामा हारलतेव मे // 5 // तब वत्सले सजी-कृत्य तां चानंय पुतं // सोऽहमस्मि प्रतिष्टासुः / प्रातरुऊयिनीप्रति // 76 // तयाय बोधितोदंता / श्यामदत्ता प्र. मोदिनी // श्रादाय रथमायासी हासीकृतमरुऊवं // 7 // ततः पिनसर्वांग-पुलकबलक चुकः // तामालिंग्य सुधासिंधु-स्नानं स स्वममन्यत // 7 // श्यामां च शस्त्रपंक्तिं च / परमारोबे, अने मने दुःखीने शामाटे नपेक्षे ? / / 73 / / ते सांनळीने अगलदत्त बोब्यो के अरे! तं आ शुं बोली? श्यामदत्ता तो खरेखर जुदा शरीरमा रहेला मारा प्राणसरखी जे. // 4 // ते श्यामदत्ता तो हारनीपेठे नोजन करतां, सुतां, चालतां तथा उनतां पण मारा हृदयमांथी दूर थती नथी. // 5 // माटे हे वत्सलं ! तुं जा? अने तेणीने तैयार करीने तुरत लाव? केमके प्रभातमां हैं उज्जयिनीतरफ जवानो बु. // 6 // हवे ते दासीए जश्ने ते वृत्तांत कहेवाथी श्यामढ. तो पण खुशी थक्ने पवनना वेगने जीतनारो स्थ लेश्ने त्यां आवी पहोंची. / / / / पजी सर्वश| पर रोमांचित थयेलो ते अगलदत्त तेणीनुं आलिंगन करीने पोताने अमृतना समुडमां स्ना. P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust