________________ 355 धम्मि- / वेश्यापरिचवावधि // 17 // अथ दंतांशुनिसतां / मुनिर्वाचमुपाददे // सेहे कष्टं मयाऽनिष्टं। यत्तदुत्तम संशृणु // 17 // यस्यपामिव पायोधि-स्त्विषामिव दिनाधिपः // श्रवती नाम निःशे. प-श्रियां जनपदः पदं // 1 // पुरी तत्रास्युऊयिनी / जयिनी मरुतां पुरः // त्रिवर्गसाधनफला। पुष्णंती शर्मकेवलं / / 15 / / मंत्रपूर्व प्रतापानौ / हुत्वा माषानिव द्विषः // कृतेतिशांतिकस्त त्र। जितशत्रुरसन्नृपः / / 20 // करे करं प्रयतो / यस्य पौरुषधारिणः // पुरंध्रय वाजवन् / पा. मिले वेश्याएं परानव कर्यो त्यांसुधी पोतानुं समस्त वृत्तांत कही संगलायु. // 17 // हवे ते मु. निराज पोताना दांतोना किरणोथी धोएली वाणी बोल्या के, हे उत्तम ! में जे विकट कष्ट सहन क्यु ने ते तुं सांगळ ? // 17 // जलनो जेम महासागर तथा तेजनो जेम सूर्य तेम सर्व लक्ष्मीना स्थानसरखो अबंती नामे देश जे. // 17 // त्यां देवनगरीने जीतनारी त्रणे वर्गो साधवाना फलवाळी अने केवळ सुखनेज पोषनारी नायिनी नामे नगरी जे. // 15 / / मंत्रपूर्वक ( विचारपूर्वक ) श्रमदनीपेठे शनने प्रतापरूपी अमिमां होमीने नपऽवनी शांति करनारो त्यां जित शत्रु नामे सजा हतो. // 20 // ते बळवान राजाना हाथमा कर आपता एवा अन्य राजानने PP.AC.Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust...