________________ धम्मि- अस्य व्याजपरिवाजः / पाखंझ खफशोऽस्तु ही // विनाशं स्वाश्रयस्यैव / विदधाति शिखीव यः॥ // 4 // बोधयिष्यत्यसौ किं नः / स्वयं मोहवशं गतः // सरित्पूरे स्वयं मऊं-स्तारयत्यपरं कथं // // 75 // अयं गुरुरियं माता / मम पूज्यावुनावपि // अनयोरनयो वक्तुं / जनकस्यापि नार्हति 471 // 16 // असाविव दुराचारा / मन्ये सर्वा अपि स्त्रियः॥ यथैकाब्धेश्चला वीचिः। शेषा अप्य खिलास्तथा // 39: // विद्याविवेकवैशद्य-दारकं दारकर्म तत् // करिष्ये नाहमेवं स / निश्चिका. पण मर्यादा गेडीने नचां स्थिर तथा विशाल कुलने पण कणवारमा तोमी पाडे जे. // 3 // श्रा कपटी तापसनुं पाखंड पण टुकडे टुकडा थर जान ? केमके ते अमिनीपेठे पोताना आश्रयनोज विनाश करे . // 14 // पोतेज मोहने वश थयेलो था तापस अमोने शुं प्रतिबोध थापी शकशे! केमके पोतेज नदीना पुरमां बुझतो माणस बीजाने शीरीते तारी शके ? // 7 // आ गुरु ने, धने था माता ने, एम ए बन्ने मने तो पूज्य , माटे या बन्नेनो अन्याय पिताने कहेवो ते पण युक्त नथी. // 16 // पानीपेठे हुं सर्व स्त्रीनने दुराचारीज मानुं , केमके सम। उनं एक मोजु ज्यारे चंचल होय त्यारे बीजा मोजां पण शुं स्थिर होश् शके ? // 9 // मा P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust