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________________ सार्थ धम्मि- य तदा हृदा // 9 // नद्यौवनोऽथ योगीव / गुणरत्नखनीः कनीः // अन्वेषयंत जनकं / वयस्यैः सन्यषेधयत् // 7 // सोऽपि तं स्माह वत्स त्वां / पितृनत्यंबुपवलं // कदा कदाग्रहग्राहः / प्र विश्यायमदषयत् // 70 // पुत्रमुत्पाद्य संवर्य / समध्याप्य विवाह्य च // यांत्यनृण्यं पूर्वजानां / म. 472 | नुजा नान्यथा पुनः // 1 // त्वं सुपुत्रोऽसि नतोऽसि / पितृणान्मां विमोचय // मन्यस्व वति. विद्या अने विवेकना माहात्म्यने नाश करनारो विवाह हुं करीश नहि एम तेणे पोताना हृदयमां निश्चय कर्यो. // 70 // हवे ज्यारे ते यौवनवयनो थयो त्यारे तेनामाटे गुणोरूपी रत्नोनी खाणसरखी कन्यानी शोध करता एवा पोताना पिताने तेणे मित्रोमारफते ना कहेवरावी. // // // त्यारे तेना पिताए तेने कह्यु के हे वत्स! पितानी जक्तिरूपी जलना तळावसरखो एवो जे तं तेमां कदाग्रहरूपी मगरमचे प्रवेश करीने तने क्यारे दूषित कर्यो के ? // 70 // माणसो पुत्रने नत्पन्न करीने, पोषीने, नणावीने तथा परणावीने पूर्वजोना करजथी रहित थाय , बीजी रीते थता नथी. // 1 // वली तुं तो जक्तिवान सुपुत्र बगे, माटे मने पितृनना करजथी मुक्त कर? अने मानी जा? केमके विवाह तो मुनिनेज ला करनारो ने. // 2 // त्यारे तेणे P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036432
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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