________________ धाम्म नामेव / बीमाकृत्पाणिपीमनं // 2 // प्रत्यूचे सोऽपि वीवाहा-द्यदस्म्येष पराङ्मुखः // तत्ताताः / तश्रुतान्यास-रसान्न तु कदाग्रहात् / / 73 // श्रुतान्याशु विलीयंते / वशाव्यासंगतो नृणां // यथा, | रंनाफलान्येला-चूर्णादभ्यर्णवर्तिनः // 4 // किंच वैषयिके नावे / तात ते. प्रेरणा वृया / / न H73 | हि नीचर्बजहारि / शिदा कस्याप्यपेदते // 5 // निरुत्तरीकृतः पुत्रेणैवं दुःख वहन हृदि / सागरस्तविवाहाथै / बंधुवर्गमशिदयत् / / 76 // तदत्यर्थनयाप्यस्मिन / स्खनिश्चयमनुष्नति / / घना | कह्यु के हे पिताजी! विवाहमाटे जे हुँ निषेध करुं बुं ते फक्त शास्त्रान्यासना रसथी करुं , प. रंतु कदाग्रहथी करतो नथी. / / 73 // जेम नजीक रहेल एलचीना चूर्णयी केळनां फलो तेम स्त्रीना संगथी माणसोनो शास्त्राच्यास नाश पामे . // 4 // वळी हे पिताजी! वैषयिक सुखमाटे आपनी प्रेरणा फोकट में, केमके नीचे जतुं जल कई कोश्नी शिखामणनी थपेदा राखतुं नथी. // 5 // एवी रीते पुत्रे निरुत्तर करेलो ते सागरदत्त हृदयमां दुःख धारण करतोथको तेने विवाहमाटे बंधुवर्गमारफत समजाववा लाग्यो. // 6 // ते बंधुवर्गनी प्रार्थनाथी पण ज्यारे तेणे |पोतानो निश्चय गेड्यो नहि त्यारे. ते सागरदत्त शेठ एक वखते घणो लाज मेलववानी साथी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust