________________ सार्थ धम्मि-| त्तावचिंत्यमिदं त्वया / इत्यवस्थाप्य तं तत्र / स्वयं चौरश्वचाल सः // 7 // लोनायित्वोधुरस्कंधान / धीवंध्यान् वृषनानिव // कापि देवकुले सुप्ता-नानैषीदुर्विधानरान् // ए // तैरुपाट्याखिलं लो. त्र-नारं लोनवशंवदैः // स पुरान्निर्ययो चंडः / करंमादिव पन्नगः // 10 // क यात्येष क वा | धत्ते / धनं कोऽस्य परिबदः // ति बोधुं स्थी नाथ-मिव भृत्यस्तमन्वगात् // 11 // गतो जीक्रोध शिथिल कर्यो. // 7 // हवे हुँ जेटलामां मजुरोने बोलावी लावू त्यांसुधी तारे थानी खबर राखवी, एम कही अगलदत्तने त्यां बेसाडी ते परिव्राजक पोते त्यांथी चालतो थयो. // 7 ॥प. जी ते कोश्क देवमंदिरमा सुतेला मजबूत बांधावाळा बलदसरखा निर्बुधि तथा निर्जागी एवा पु. रुषोने ललचावीने त्यां तेडी खाव्यो. // // लोनने वश थयेला एवा ते पुरुषोपासे चोरीनो ते सघळो माल नपडावीने करंमीयामांथी जेम सर्प तेम ते नगरमांथी बहार निकली गयो. / / // 10 // हवे था क्यां जाय ? अथवा था धन ते क्या राखे ? तेनो परिवार कोण ? ते संघवं जाणवामाटे शेठनी पाग्ल जेम नोकर तेम अगलदत्त तेनी पाउल गयो. // 11 // पड़ी ते चोरोनो सरदार जीर्ण वनमां जश्ने ते मजुरोने कहेवा लाग्यो के अरे! शुं बाजे रात्रि स्थिर Jun.Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.