________________ धम्मि- पर्णवनं चौर-चक्री वैवधिका जगौ // नोः किमद्य स्थिरीच्या-ऽवतीर्णेयं विनावरी // 15 // / माई अद्यापि पुष्कला रात्रि-स्तदिह स्वपित दणं // पदं वदंति निःशेष-रुजां रजनिजागरं // 13 // | . इति बंधोखिास्योक्त्या / वाहीका विप्रतारिताः / / मुक्तभारा वटस्याधो / लंबपादा अशेरत / / 354 // 14 // नास्ति जागरिणो जीति-रिति नीति स्मरनथ // रथिकः सुस्थिरं काष्टं / श्रस्तरे स्वे प्रत स्तरे // 15 // अप्रमत्तः स्वयं पश्य-नस्य चौरस्य चेष्टितं // न्यग्रोधस्कंधमाश्रित्य / करवालकरः स्थितः // 16 // चौरः सुप्त्वा दाणं विश्वान् / विश्वासयितुमुखितः // निद्रामुग्तिचैतन्यान् / वाही. थइनेज उतरी ! // 12 // ढजु घणी रात बाकी ने, माटे दाणवार यहीं सूइ जान ? केमके रातनो उजागरो सर्व रोगोना कारणरूप . // 13 // .... . एवी रीते जेम नाश्ना तेम तेना वचनथी उगायेला ते मजुरो चार जतारीने वमनीचे लांबा. पग करीने सूझ गया. // 14 // जागताने मर नथी, एवी नीतिने याद करीने ते अगलदत्ते पोताना बीगनापर पोताने बदले एक लांबु काष्ट मेली राख्यु. // 15 // बने पोते सावधानपणे चोरनी हालचाल तपासतोयको हाथमां तलवार लेश्ने वमना थडनी पाउल बुपा बेठो. // 16 // / P.P.AC. Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust