________________ धम्मि- नेतः सर्वस्वमप्येत-त्वदायत्तमतः परं // प्राग् मां विवाह्य भुंदव त्व-मत्र जोगान् यथारुचि // 41 // | जाने तव परिम्लाने / चक्षुषी वीक्ष्य दक्षिण // अल्पमप्यद्य यामिन्यां / न निखासुखमन्वनः / / | // 42 // पुनातु प्रथमं प्राण-प्रिय शय्यां जवानिमां // दणं गृह्णातु विश्रामं / श्रमं हंतुं सुखदिषं 400 // 53 // अहो अवसरझत्वं / तवेत्युच्चैः पठन शठः // पल्यंके परितो दीप-प्रदीपे सोऽस्वपीन्मृ. दौ // 44 // त्वदंगशैत्यदं स्वामि-नानयामि विलेपनं // इत्युक्त्वा विद्युदंनोदा-दिव सा निर्ययौ बापर्नुज ने, माटे प्रथम तमो मारीसाथें विवाह करीने यहीं नामुजब जोगो जोगवो ? // 41 // वळी हे चतुर! तमारी था घेराती यांखो जोश्ने हुँ एम धारं बं के बाजे रात्रिए तमोए जरा प. ण निद्रासुख अनुजव्यु नथी. // 42 // माटे हे प्राणनाथ! प्रथम आप आ विगर्नु पवित्र करो? तथा सुखना देषी एवा श्रमने दूर करवामाटे आप दणवार विश्राम ब्यो? // 43 // अहो! तुं तो नारे अवसरनी जाण लागे ! एम मोटेथी कहीने ते चतुर अगलदत्त चोफेरथी दीपकना बजवाळांवाला कोमळ पलंगपर सूतो. // 4 // हे स्वामी! हवे आपना शरीरे ठंडक करवामाटे हुं विलेपन लावू, एम कहीने वादळांमांथी जेम वीजळी तेम ते त्यांथी निकली गइ. // 45 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust