________________ धम्मि- ततः // 45 // अपश्यंस्तां पुरो नीति-चतुरः स व्यचिंतयत् // जडोऽहं यदिपोर्गेहे / स्वपन्न स्मि खवेश्मवत // 6 // ये गत्वा वैरिणो गेहं / विश्वसंति कुबुध्यः // निरौषधवलाः सर्प-बिले ते ख खु शेरते // 4 // जामिः क्रूरस्य चौरस्य / क्रूरैवेयं. जविष्यति // न सर्पसोदरी कापि / सर्पत्व४०१ | ब्यभिचारिणी // 4 // मुखे मधुरमंते च / कुपथ्यमिव दारुण // ये स्त्रीणां बहु मन्यते / वचस्तेषां कुतः सुखं // 4 // ध्यात्वेति मंछ वध्यो:-कल्पं तल्पं मुमोच सः // तत्र स्वपटमास्तीर्यो-पधानदयमंडिते // 10 // ढवे तेणीने पोतानी पासे नहि जोवाथी ते नीतिचतुर अगलदत्त विचारखा लाग्यो के, अरे हं | तो शुं मूर्ख बन्यो बुके या शत्रुना घरमां पण पोताना घरनीपेठे सूतो लुः // 46 // जे मूखों | वैरीने घेर ज तेनो विश्वास करे , तेज औषधना सामर्थ्य विना सर्पना बिलमां सुए . // 4 // ते निर्दय चोरनी या बहेन पण निर्दयज होवी जोश्ये, केमके सर्पनी बहेन कई सर्पपणाथी जदीपाती नथी. // 4 // कुपथ्यनीपेठे प्रारंजमां मधुर तथा अंते भयंकर एवं स्त्रीननु वचन जे. जमाने में, तेजने सुख क्याथी होय ? | HQ || Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.