________________ धाम्म नश्रियं // 60 // नमित्युक्त्वा रहोऽवादीत् / तत्सर्व स धनश्रियः // सान्यधाभृकुटीजीष्म-जाला / | ज्वालाकिर गिरं // 6 // कोऽप्यन्यो वक्ति यद्येवं / तं कृतांतालये नये // मान्यत्वात्त्वं तु मुक्तो. | ऽसि / तन्मा पुनरिंदं ब्रवीः // 70 // निषिद्योऽपि तयात्रार्थे / पृबत्यारदके पुनः // असिष्मपि 471 | सिहं तत् / कार्य तस्मै जगाद सः // 11 // सोऽथावसथमागत्य / विमना मलिनाननः // गमपो. ते श्व स्तेन-गृहीत व तस्थिवान // 12 // तदवस्थं तमालोक्य / बजाषे धननंदिनी // विने |त्तांत तेणे गुप्त रीते धनश्रीने कह्यो, त्यारे भृकुटीथी जयंकर ललाटवाळी ते धनश्रीए तेने अमि नी ज्वालासर वचन कह्यु के, // 65 // जो को बीजो मने भावी रीते कहे तो तेने तो यमने, घेर मोकली यापुं, परंतु तुं मारे माननीक होवाथी हुँ तने नोमी देवं बु, माटे फरीने पा. वू न बोलजे. // 70 // एवी रीते तेणीए ते कार्यमाटे निषेध कर्या तां पण पाबु ज्यारे कोटवाळे तेने पूज्यु त्यारे कार्य पार पड्या विना पणं तेणें तेने कां के तारुं कार्य में पार पाडी था. प्यं जे. // 31 // पजी ते विनीत घेर यावीने विलखां मुखवाळो बेचेन थइने जाणे पोतानुं वहा. ण जांगी गयुं होय नहि तेम जाणे चोरोए खुंटी लीधो होय नहि तेम तें बेठो. // 12 // हवे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust