________________ सार्थ धम्मि- यं // 24 // अनटपमीति जल्पंती / खजखाटकारभीषणः // जग्राह ग्राहवत्केश-पाशे तां रथि- / कांगजः // 25 // अरेरे गोमुखव्याधि / मानुषीरूपरादसि // विश्वरदादमः किं स्वं / नाहं गो. पायितुं दमः // 27 // लपंत्यसि यथा जातु-स्तथा पंथानमीदासे // तेनेति तर्जिता साचू-द्भ. 403 यत्रांतविलोचना // 27 // अनन्यजीवनोपाया / साऽपतत्तस्य पादयोः // त्वमेव शरणं देव / स. दैन्यमिति चाषिणी // 50 // वीरेषु प्राप्तरेखोऽसौ / स्त्रीहत्यायामरोचकी // तां जीवंती सहादाय जना खादकारथी जयंकर थयेला ते अगलदत्ते. मगरनीपेठे चोटलो मालीने पकडी. // 55 // अरे गायना मुखवाळी वाघण! तथा मनुष्यरूपी रादासी! समस्त जगतनुं रदाण करवाने समर्थ एवो हं शुं मारा आत्मानुं पण रक्षण करूं तेम नथी ? / / 27 // तुं जे था बबडाट करे ने, तेथी जेवा तारा नाश्ना हाल थया ने तेवाज तारा पण हाल थशे, एवी रीते तेणे तर्जना कखादी ते नयनांत आंखोवाळी थ. // 27 // पनी जीववानो को बीजो श्लाज न मलवायी ते तेने पगे पमी, तथा दीनतापूर्वक कहेवा लागी के, हे देव! हवे तो बापज मारे शरणरूप को // 50 // परी वीरशिरोमणि एवो ते अगलदत्त स्त्रीहत्यानो अनिबक थयोथको तेणीने जीव P.P.AC. Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust