Book Title: Bruhad Gaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
Catalog link: https://jainqq.org/explore/004033/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास मिमा भीम डॉ० शिवप्रसाद Jyow.jainetbjary.oogle Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर ग्रंथावली क्रमांक - ७२ बृहद्गच्छ का इतिहास डॉ. शिवप्रसाद प्रकाशक ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर सुभाषचौक, गोपीपुरा, सुरत For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहदगच्छ का इतिहास वि.सं. : २०७० ई. स. : २०१३ मूल्य : २००-०० प्राप्तिस्थान प्राप्तिस्थान : • आ. ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर सुभाष चौक, गोपीपुरा, सूरत-३९५००१ E-mail : [email protected] [email protected] (मो.) ९८२४१५२७२७ (सेवंतीभाई महेता) • ॐकार साहित्य निधि विजयभद्र चेरिटेबल ट्रस्ट हाईवे, भीलडीयाजी (बनासकांठा) फोन : ०२७४४-२३३१२९, २३४१२९ • सरस्वती पुस्तक भंडार हाथीखाना, रतनपोल, अहमदाबाद-१., दूरभाष : २५३५६६९२ • मोतीलाल बनारसीदास 40-UA, बंगलो रोड, जवाहरनगर, दिल्ली-११०००७. दूरभाष : ०११-२३८५८३३५ मुद्रक : किरीट ग्राफिक्स - अहमदाबाद (फोन) ०७९-२५३३००९५ E-mail : [email protected] For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय पू.आ.भ. अरविंदसूरि म.सा. पू.आ.भ. यशोविजयसूरि म.सा., पू.आ.भ. मुनिचन्द्रसूरि म.सा. आदिना मार्गदर्शन मुजब अमारी ग्रंथमाळामां विविध पुस्तको प्रगट थतां रहे छे. इतिहासना पण अगत्यना ग्रंथो प्रकाशित करवा अमे सद्भागी बन्या छीए. जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास भाग १-२-३, पाइय (प्राकृत)भाषाओ अने साहित्य (श्री हीरालाल र. कापडिया), जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास ( मोहनलाल द. देसाइ), जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास भाग १-२ (डो. शिवप्रसाद) आदि ताजेतरमा प्रगट थया छे. एज कडीमां डॉ. शिवप्रसाद लिखित 'बृहदगच्छ का इतिहास' प्रगट करतां आनंद थाय छे. बृहद्गच्छनो इतिहास विस्तृत होवाथी एनो समावेश (जैन. श्वे. गच्छों का इतिहास) न करतां अलग प्रकाशन करवामां आवे छे. इतिहास आपणी संस्कृतिनुं मूळ छे. अनी जाणकारी मेळववी जरुरी छे. बृहद्गच्छ (वडगच्छ )मां घणां विद्वानो थया छे. घणी प्रतिष्ठाओ आ गच्छना आचार्यो व.ना हस्ते थइ छे. प्रस्तुत ग्रंथमां अनुं सुरेख चित्रण मले छे. इतिहासमुं ज्ञान मेळवी महापुरुषो प्रत्ये आदरभावमां वृद्धि थाय एज मंगल कामना. ली. प्रकाशक For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दो शब्द निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से अस्तित्व में आये प्राचीन गच्छों बृहद्गच्छ या वडगच्छ भी एक है । इस गच्छ की मान्यतानुसार चन्द्रकुल के आचार्य उद्योतनसूरि ने अर्बुदगिरि की तलहटी में स्थित धर्माण ( वरमाण) सन्निवेश में वटवृक्ष के नीचे श्री सर्वदेव सहित आठ मुनिजनों को एक साथ आचार्य पद प्रदान किया, जिससे उनकी शिष्य-संतति बडगच्छीय कहलायी । वटवृक्ष की भांति इस गच्छ की अनेक शाखायेंप्रशाखायें हुईं, अतः इसका एक नाम बृहद्गच्छ भी प्रचलित हुआ । इस गच्छ में सर्वदेवसूरि, देवसूरि 'विहारुक', नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम', उद्योतनसूरि 'द्वितीय', आम्रदेवसूरि ‘प्रथम’, देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, वादिदेवसूरि, चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ के आदि पुरुष ), शांतिसूरि (पिप्पलगच्छ के प्रवर्तक), प्रसिद्ध ग्रन्थकार हरिभद्रसूरि, सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रज्ञाचक्षु रामचन्द्रसूरि, उनके शिष्य जयमंगलसूरि, सोमचन्द्रसूरि, ज्ञानकलशमुनि, हेमचन्द्रसूरि, सोमप्रभसूरि, मुहम्मद तुगलक के उत्तराधिकारी फिरोज तुगलक द्वारा सम्मानित विद्याकर गणि, यन्त्रराज के रचनाकार महेन्द्रसूरि ( इनका भी सम्मान फिरोज तुगलक द्वारा किया गया था), उनके शिष्य मलयचन्द्र, वाचक विनयरत्न, भावदेवसूरि, विभिन्न कृतियों के रचनाकार मुनि मालदेव आदि कई प्रभावक और विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं । इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में सलेख जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १९८३ से वि० सं० १६५८ तक अविच्छिन्न रूप से जुडी हुई हैं । स्थानकवासी परम्परा के उद्भव और विकास के फलस्वरूप खरतरगच्छ, तपागच्छ और अंचलगच्छ को छोड़कर प्रायः सभी गच्छों के प्रभाव में तीव्रगति से ह्रास होने लगा। बृहद्गच्छ भी इस प्रभाव से अछूता न रहा । यद्यपि आज यह गच्छ अस्तित्त्व में नहीं है, तथापि इससे उद्भूत नागपुरीयतपागच्छ आज पार्श्वचन्द्रगच्छ के रूप विद्यमान है । तपागच्छ, अंचलगच्छ और खरतरगच्छ की विभिन्न शाखाओं के इतिहास के पश्चात् बृहद्गच्छ के इतिहास के लेखन की स्वतः प्रेरणा प्राप्त हुई और स्वनामधन्य प्रो० एम०ए० ढांकी, महोपाध्याय विनयसागर और प्रो० सागरमलजी जैन से समय-समय पर इस सम्बन्ध में दिशानिर्देश प्राप्त होता रहा । प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम अध्याय में इस गच्छ के इतिहास के स्त्रोत सामग्री की चर्चा की गयी है । द्वितीय अध्याय मे इस गच्छ के प्राचीन इतिहास का संक्षिप्त विवरण है। For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय अध्याय में इस गच्छ के प्रमुख मुनिजनों और इस गच्छ से उद्भूत विभिन्न गच्छों का उल्लेख है । चतुर्थ अध्याय में आचार्य वादिदेवसूरि और उनके विशाल शिष्य-प्रशिष्य सन्तति की संक्षेप में चर्चा है । पंचम अध्याय में बृहद्गच्छीय समस्त अभिलेखीय साक्ष्यों को एक सारिणी के रूप में प्रस्तुत करते हुए उनसे प्राप्त विभिन्न मुनिजनों की गुरु-परम्परायें प्रस्तुत की गयी हैं । ६ठे अध्याय में बृहद्गच्छीय मुनिजनों के साहित्यावदान को एक तालिका के रूपमें प्रस्तुत किया गया है । सातवें और अन्तिम अध्याय में बृहद्गच्छ से उद्भूत विभिन्न गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत है । पुस्तक के अन्त में दो परिशिष्ट भी दिये गये है। परिशिष्ट प्रथम के अन्तर्गत बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों का मूल पाठ और द्वितीय परिशिष्ट में बृहद्गच्छीय आचार्य जयमंगलसूरि द्वारा रचित चामुण्डा प्रशस्ति लेख की मूल वाचना है और अन्त में सहायक ग्रन्थ सूची दी गयी है ।। प्रस्तुत शोधकार्य को पूर्ण करने के लिये भारतीय अनुसंधान इतिहास परिषद की ओर से आर्थिक सहायता प्राप्त हुई । पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के पुस्तकालयों से समय-समय पर सहायता प्राप्त हुई । आचार्य मुनिचन्द्रसूरि ने भी विभिन्न दुर्लभ ग्रन्थों को समय-समय पर उपलब्ध करा कर इस कार्य में प्रत्यक्ष सहयोग प्रदान किया है । लेखक अन्त में उन सभी विद्वानों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता है जिनकी अमूल्य कृतियों से इस सन्दर्भ में लाभान्वित हुआ है । आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की प्रेरणा से ॐकारसूरि आराधना भवन, सुरत ने इसके प्रकाशन का भार उठाया तथा किरीट ग्राफिक्स, अहमदाबाद के अधिष्ठाता श्री किरीटभाई और उनके सुपुत्र श्रेणिकभाई और पीयूषभाई ने इसके अक्षर संयोजन एवं मुद्रण की सुचारु रूप से व्यवस्था की, जिसके लिये लेखक उनका हृदय से आभारी है । -शिवप्रसाद For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतलाभ प्रस्तुत ग्रन्थ प्रकाशननो लाभ श्री सुड़गाम श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन संघे अनुमोदना... ज्ञानद्रव्यमांथी लीधो छे. अनुमोदना ... अनुमोदना... For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयसूची प्रकाशकीय । ३ दो शब्द । ४ अध्याय १ : बृहद्गच्छ के इतिहास के मूल स्रोत .. अध्याय २ : बृहद्गच्छ का प्रारम्भिक इतिहास ........... .......................७ अध्याय ३ : बृहद्गच्छ के प्रमुख आचार्य एवं इस गच्छ से उद्भूत विभिन्न गच्छ ......... १९ अध्याय ४ : वादिदेवसूरि और उनकी शिष्य-परम्परा .. ........... ३४ अध्याय ५ : बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की सारिणी उनसे प्राप्त एवं विभिन्न मुनिजनों की गुरु-परम्परायें. ............... ५३ अध्याय ६ : बृहद्गच्छीय मुनिजनों का साहित्यावदान ......... .......................... १०१ अध्याय ७ : बृहद्गच्छ से उद्भूत विभिन्न गच्छों का ऐतिहासिक अध्ययन ...... ११६-२०९ i जीरापल्लीगच्छ का इतिहास / ११६ ii नागपुरीयतपागच्छ का इतिहास / १२५ iii पिप्पलगच्छ का इतिहास / १४१ iv पूर्णिमागच्छ का इतिहास / १५७ v पूर्णिमागच्छ - प्रधानशाखा का इतिहास / १७० vi पूर्णिमागच्छ - भीमपल्लीयाशाखा का इतिहास / १८८ vii सार्धपूर्णिमागच्छ का इतिहास / १९२ viii मडाहडागच्छ का इतिहास । २०० परिशिष्ट १ बृहद्गच्छीय लेखसमुच्चय ........ २११ बृहद्गच्छीय अभिलेखों का मूल पाठ......................... चामुंडा प्रशस्ति लेख .... २६६ सम्बधित लेखों के वर्तमान प्राप्तिस्थान .................. ...... २७५ लेखस्थ आचार्य व मुनिजनों के नाम ... ...... २७८ ६ लेखस्थ ज्ञाति सूची . २८१ ७ लेखस्थ गोत्र सूची . .... २८१ संवत् सूचा (विक्रमीय) .................... .... २८३ ९ संदर्भग्रन्थनाम संकेत-विवरण .............. ...... २८५ r .... २६४ m "5 . For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवकार - डॉ. शिवप्रसादना गच्छोंना इतिहासनी सामग्री ग्रंथस्थ करवाना प्रयास तरीके आ ग्रंथ प्रकाशित थाय छे. विद्वान लेखके पोतानी रीते काळजी पूर्वक सामग्रीन संकलन कर्यु छे. छतां क्षतिओ रहेवी संभवित छे. क्षतिओ तरफ ध्यान दोरवा विद्वानोने विनंती. For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - १ बृहद्गच्छ के इतिहास के स्रोत किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय के इतिहास के अध्ययन के स्रोत के रूप में साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्यों का अध्ययन अपरिहार्य है। प्राक् मध्य युग में निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय में समय-समय पर उद्भूत विभिन्न गच्छों और उनसे निःशृत (उत्पन्न) शाखाओं-उपशाखाओं के इतिहास के अध्ययन के सम्बन्ध में भी यही बात कही जा सकती है। गच्छों के इतिहास से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम ग्रन्थ या पुस्तक प्रशस्तियाँ और द्वितीय विभिन्न गच्छों के मुनिजनों द्वारा समय-समय पर रची गयी अपने-अपने गच्छों की पट्टावलियाँ। प्रशस्तियाँ पुस्तकों के साथ सम्बन्ध रखने वाली प्रशस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं। इनमें से एक तो वे हैं जो ग्रन्थों के अन्त में उनके रचयिताओं द्वारा बनायी गयी होती हैं। इनमें मुख्य रूप से रचनाकार द्वारा गण-गच्छ तथा अपने गुरु-प्रगुरु आदि का उल्लेख होता है। किन्हीं प्रशस्तियों में रचनाकाल और रचनास्थान का भी निर्देश होता है। किसीकिसी प्रशस्ति में तत्कालीन शासक या किसी बड़े राज्याधिकारी का नाम और अन्यान्य ऐतिहासिक सूचनायें भी मिल जाती हैं। कुछ प्रशस्तियाँ छोटी-दो-चार पंक्तियों की और कुछ बड़ी होती हैं। इन प्रशस्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न गण-गच्छों के जैनाचार्यों की गुरुपरम्परा, उनका समय, उनका कार्यक्षेत्र और उनके द्वारा की गयी समाजोत्थान एवं साहित्य सेवा का संकलन कर उनकी परम्पराओं का अत्यन्त प्रामाणिक इतिहास तैयार किया जा सकता है। For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास दूसरे प्रकार की प्रशस्तियाँ वे हैं जो प्रतिलिपि किये गये ग्रन्थों के अन्त में लिखी होती हैं। ये भी दो प्रकार की होती हैं। प्रथम वे जो किन्हीं मुनिजनों या श्रावक द्वारा स्वयं के अध्ययनार्थ लिखी गयी प्रतियों में होती हैं और दूसरी वे जो श्रावकों द्वारा स्वयं के अध्ययनार्थ या किन्हीं मुनिजनों को भेंट देने हेतु दूसरों से (लेहिया से) द्रव्य देकर लिखवायी जाती हैं। २ गच्छों के इतिहास की सामग्री की दृष्टि से ये प्रशस्तियाँ राजाओं के दानपत्रों और मन्दिरों के शिलालेखों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं। तथ्य की दृष्टि से इनमें कोई अन्तर नहीं होता; अन्तर केवल यही है कि एक पाषाण या ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण होता है तो दूसरा ताड़पत्र या कागजों पर। गुजरात के पाटण, खम्भात, अहमदाबाद, बड़ोदरा, लिम्बडी, राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, कोटा आदि तथा भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पुणे के ग्रन्थ भण्डारों में जैन ग्रन्थों का विशाल संग्रह विद्यमान है। पीटर पीटर्सन, मुनि पुण्यविजय जी, मुनि जिनविजय जी, श्री चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, पं० लालचन्द भगवानदास गाँधी, प्रो० हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, श्रीमती विधात्री बोरा, श्री जौहरीमल पारेख आदि के सद्प्रयत्नों से उक्त ग्रन्थ भण्डारों के विस्तृत सूचीपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इनका विवरण इस प्रकार है - 1. P. Peterson, Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, Vol. I-VI, Bombay 1882-1898 A.D. C.D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandaras at Pattan, Vol. I, G.O.S. No. LXXVI, Baroda 1937. 2. 3. 4. 5. 6. 7. H.R. Kapadia, Descriptive Catalogue of the Government Collection of Manuscripts deposited at the Bhandarakar Oriental Research Institute, Vol. XVIIXIX, Poona 1935-1977 A.D. Muni Punya Vijaya, Catalogue of Palm Leaf Mss. in the Shanti Natha Jain Bhandar, Combay, Vol. I, II, G.O.S. No. 139, 149, Baroda 1961-1966 A.D. A. P. Shah, Catalogue of Sankrit & Prakrit Mss. Muni Shree PunyaVijayaJi's Collection, Vol. I, II, III, L.D. Series No. 2, 6, 15, Ahmedabad 1962, 1965, 1968 A.D. A.P. Shah, Catalogue of Sankrit & Prakrit Mss. Ac. Vijayadevasuris and Ac. Ksantisuris Collection, Part IV., L.D. Series, No. 20, Ahmedabad 1968 A.D. Muni Punya Vijaya, New Catalogue of Sanskrit & Prakrit mss: Jesalmer Collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad 1972 A.D. For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय- १ ३ 8. Vidhatri Vora, Catalogue of Gujarati Mss in the Muniraj Shree Punya VijayaJi's Collection, L.D. Series No. 71, Ahmedabad 1978 A.D. ९. अमृतलाल मगनलाल शाह, सम्पा० श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैन साहित्य प्रदर्शन, श्री देशविरति धर्माराजक समाज, अहमदाबाद वि०सं० १९९३. - १०. मुनि जिनविजय, सम्पा०- जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १८, भारतीय विद्या भवन, मुम्बई १९४३ ई०. पट्टावलियाँ इतिहास लेखन में अन्यान्य साधनों की भाँति पट्टावलियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्वेताम्बर जैन मुनिजनों ने इनके माध्यम से इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। शिलालेख, प्रतिमालेख और प्रशस्तियों से केवल हम इतना ही ज्ञात कर पाते हैं कि किस काल में किस मुनि ने क्या कार्य किया ? अधिक से अधिक उस समय के शासक एवं मुनि के गुरु-परम्परा का भी परिचय मिल जाता है; किन्तु पट्टावली में अपनी परम्परा से सम्बन्धित पट्ट- परम्परा का पूर्ण परिचय होता है। इनमें किसी घटना विशेष के सम्बन्ध में अथवा किसी आचार्य विशेष के सम्बन्ध में प्रायः अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण भी मिलते हैं, अत: ऐतिहासिक महत्त्व की दृष्टि इनकी उपयोगिता पर पूर्णरूपेण विश्वास नहीं किया जा सकता। चूँकि इनके संकलन या रचना में किम्बदन्तियों एवं अनुश्रुतियों के साथ-साथ कदाचित् तत्कालीन रास - गीत - सज्झाय आदि का भी उपयोग किया जाता है। इसीलिए इनके विवरणों पर पूर्णत: अविश्वास भी नहीं किया जा सकता है और इनके उपयोग में अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ती है। पट्टावलियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं। प्रथम शास्त्रीय पट्टावली और दूसरी विशिष्ट पट्टावली । प्रथम प्रकार में सुधर्मा स्वामी से लेकर देवर्धिगणि क्षमाश्रमण तक का विवरण मिलता है। कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की पट्टावलियाँ इसी कोटि में आती हैं । गच्छभेद के बाद की विविध पट्टावलियाँ विशिष्ट पट्टावली की कोटि में रखी जा सकती हैं । इनकी अपनी-अपनी विशिष्टतायें होती हैं । पट्टावलियों द्वारा ही आचार्य - परम्परा अथवा गच्छ का क्रमबद्ध पूर्ण विवरण प्राप्त होता है, जो इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। श्वेताम्बर - परम्परा में विभिन्न गच्छों की जो पट्ट- परम्परा मिलती है, उसका श्रेय पट्टावलियों को ही है । For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास अन्य गच्छों की जहाँ समय-समय पर रची गयी विभिन्न पट्टावलियाँ मिलती हैं। वहीं बृहद्गच्छ की मात्र एक पट्टावली मिलती है और वह भी १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण के प्रारम्भ में रची गयी है। इसके रचनाकार हैं मुनिमाल। मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह और मुनि कल्याणविजय द्वारा सम्पादित पट्टावलीपरागसंग्रह में यह प्रकाशित है। अभिलेखीय साक्ष्य ४ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विभिन्न गच्छों से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्य मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं १. प्रतिमालेख, २. शिलालेख । - धातु या पाषाण की अनेक जिनप्रतिमाओं के पृष्ठभाग या आसानों पर लेख उत्कीर्ण होते हैं। इसी प्रकार विभिन्न तीर्थस्थलों पर निर्मित जिनालयों से अनेक शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। इन लेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक या प्रतिमा की प्रतिष्ठा हेतु प्रेरणा देने वाले मुनि का नाम होता है तो किन्हीं - किन्हीं लेखों में उनके पूर्ववर्ती दो-चार मुनिजनों के भी नाम मिल जाते हैं। किन्हीं - किन्हीं लेखों में तत्कालीन शासक का भी नाम मिल जाता है। इतिहास लेखन में उक्त साक्ष्यों का बड़ा महत्त्व है। शिलालेखों में सामान्य रूप से जिनालयों के निर्माण, पुनर्निर्माण, जीर्णोद्धार आदि कराने वाले श्रावक का नाम, उसके कुटुम्ब एवं जाति आदि का परिचय, प्रेरणा देने वाले मुनिराज का नाम, उनके गच्छ का नाम, उनकी गुरु-परम्परा में हुए पूर्ववर्ती दोचार मुनिजनों का नाम, शासक का नाम, तिथि आदि का सविस्तार परिचय दिया हुआ होता है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध अभिलेखों के विभिन्न संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनका विवरण इस प्रकार है जैनलेखसंग्रह, भाग १ - ३, सम्पा० १९२९ ई०. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग १ -२, सम्पा० भावनगर १९२१ ई०. प्राचीनलेखसंग्रह, सम्पा० यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, पूरनचन्द नाहर, कलकत्ता १९१८, १९२७, - मुनि जिनविजय, जैन आत्मानन्द संभा, आचार्य विजयधर्मसूरि, सम्पा० भावनगर १९२९ ई०. For Personal & Private Use Only - मुनि विद्याविजय, Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय- १ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १ - २, सम्पा० ज्ञान प्रचारक मण्डल, पादरा १९२४ ई०. अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, (आबू भाग २), सम्पा० मुनि जयन्तविजय, विजयधर्मसूरि ज्ञान मन्दिर, उज्जैन वि०सं० १९९४. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, ( आबू - भाग ५), सम्पा० यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर वि०सं० २००५. ५ आचार्य बुद्धिसागरसूरि, श्री अध्यात्म - जैनधातुप्रतिमालेख, सम्पा० मुनि कान्तिसागर, श्री जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार, सूरत १९५० ई०. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, सम्पा० महोपाध्याय विनयसागर, भाग १, कोटा १९५३ ई०, भाग २, जयपुर २००३ ई०. - - बीकानेर जैनलेखसंग्रह, सम्पा० श्री अगरचन्द नाहटा एवं श्री भँवरलाल नाहटा, नाहटा ब्रदर्स, ४ जगमोहन मल्लिक लेन, कलकत्ता १९५५ ई० बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख, सम्पा० चम्पालाल सालेचा, बाड़मेर १९८७ ई०. नाकोड़ा पार्श्वनाथतीर्थ, लेखक महो० विनयसागर, जयपुर १९८८ ई०. श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा० श्री दौलत सिंह लोढा 'अरविन्द', धामणिया, मेवाड़, १९५५ ई०. शत्रुंजयगिरिराजदर्शन, सम्पा० मुनि कंचनसागर, कपडवंज १९८३ ई०. शत्रुंजयवैभव, सम्पा० मुनि कान्तिसागर, कुशल संस्थान, पुष्प ४, जयपुर १९९० ई०. Jain Image Inscriptions of Ahmedabad, Ed. Praveen Chandra Parekha & Bharti Shelet, Ahmedabad 1997 A.D. मालवांचल के जैनलेख, सम्पा० नन्दलाल लोढ़ा, उज्जैन १९९५ ई०. अर्बुदपरिमण्डल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मन्दिरावलि, सम्पा० सोहनलाल पटनी, सिरोही २००२ ई०. पाटणजैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० लक्ष्मणभाई भोजक, दिल्ली २००२ ई०. - - - For Personal & Private Use Only मुनि जयन्तविजय, - Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास आगामी अध्यायों में उक्त सभी ग्रन्थों में उल्लिखित बृहद्गच्छ से सम्बन्धित ग्रन्थ प्रशस्तियों, पुस्तक प्रशस्तियों, पट्टावलियों एवं अभिलेखीय साक्ष्यों का बृहद्गच्छ के इतिहास के प्रस्तुतीकरण में सम्यक् उपयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त बृहद्गच्छीय मुनिजनों द्वारा रचित और अद्यावधि प्रकाशित ग्रन्थों जैसे आख्यानकमणिकोश, पुहवीचंदचरिय (पृथ्वीचन्द्रचरित) आदि के सम्पादकों द्वारा लिखी गयी प्रस्तावनाओं, मोहनलाल दलीचन्द देसाईकृत जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पं० लालचन्द भगवानदास गांधी द्वारा लिखित ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पं. हीरालाल कापडिया द्वारा लिखित जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग-१-३, द्वितीय छंदरण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि तथा विभिन्न अभिनन्दन ग्रन्थों, शोध-पत्रिकाओं आदि में विद्वानों द्वारा बृहद्गच्छ के आचार्यों के सम्बन्ध में लिखे गये लेखों से भी आवश्यक सहायता गयी For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - २ बृहद्गच्छ का प्रारम्भिक इतिहास निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय का प्राक् मध्ययुग व मध्ययुग का इतिहास मुख्य रूप से चन्द्रकुल की अनेक शाखाओं-प्रशाखाओं के रूप में उद्भूत विभिन्न गच्छों का ही इतिहास है। इन गच्छों में बृहद्गच्छ भी एक है। चौलुक्य नरेश दुर्लभराज (वि०सं० १०६७-७८/ई०स० १०१०-२१) की राजसभा में चैत्यवासियों और सुविहितमार्गीय मुनिजनों के मध्य जो शास्त्रार्थ हुआ था, उसमें सुविहितमार्गियों की विजय हुई। इन सुविहितमार्गियों में बृहद्गच्छ के भी आचार्य थे। आज प्रवर्तमान सभी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक गच्छ- खरतरगच्छ, अंचलगच्छ और तपागच्छ तथा पार्श्वचन्द्रगच्छ (जो चन्द्रकुल की एक शाखा बृहद्गच्छ से ही अस्तित्व में आया है) चन्द्रकुल से ही अपनी उत्पत्ति बतलाते हैं। बृहद्गच्छ में विभिन्न प्रभावक और विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं जिनमें देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, वादिदेवसूरि, रामचन्द्रसूरि, आम्रदेवसूरि, प्रवचनसारोद्धार आदि ग्रन्थों के कर्ता नेमिचन्द्रसूरि, हरिभद्रसूरि, हेमचन्द्रसूरि, सोमप्रभसूरि, शांतिसूरि, जयमंगलसूरि, सुल्तान मुहम्मद तुगलक द्वारा सम्मानित गुणभद्रसूरि तथा फिरोज तुगलक द्वारा सम्मानित उनके शिष्य मुनिभद्रसूरि आदि उल्लेखनीय हैं । जैसा कि प्रथम अध्याय में हम देख चुके हैं बृहद्गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिए हमारे पास दो प्रकार के साक्ष्य हैं - १. साहित्यिक और २. अभिलेखीय। साहित्यिक साक्ष्यों को भी दो भागों में बाँटा जा सकता है, प्रथम तो ग्रन्थों एवं पुस्तकों की प्रशस्तियाँ और द्वितीय पट्टावलियाँ और गुर्वावलियाँ। For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास बृहद्गच्छ के उल्लेख वाली प्राचीनतम प्रशस्तियाँ विक्रम सम्वत् की १२वीं शताब्दी के मध्य की हैं। इस गच्छ के उत्पत्ति के विषय में चर्चा करने वाली सर्वप्रथम प्रशस्ति वि०सं० १२९१/ई०स० १२३४ में बृहद्गच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति? की है, जिसके अनुसार आचार्य उद्योतनसरि ने अबूंद गिरि की तलहटी में स्थित धर्माण नामक सन्निवेश में न्यग्रोध वृक्ष के नीचे सात ग्रहों के शुभ लग्न को देखकर सर्वदेवसूरि सहित आठ मुनिजनों को एक साथ आचार्य पद दिया। सर्वदेवसूरि इस गच्छ के प्रथम आचार्य हुए। तपागच्छीय आचार्य मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली (रचनाकाल वि०सं० १४६६/ई०स० १४१०); इसी गच्छ के आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य धर्मसागर उपाध्याय द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली३ (रचनाकाल वि०सं० १६४८/ई०स० १५९१) और मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छ गुर्वावली (रचनाकाल वि०सं० १६१०/ई०स० १५५४ के आसपास) के अनुसार “वि० सं० ९९४ में अर्बुदगिरि की तलहटी में टेली नामक ग्राम में स्थित एक वटवृक्ष के नीचे आचार्य उद्योतनसूरि द्वारा सर्वदेवसूरि सहित आठ मुनिजनों को आचार्य पद प्रदान किया गया। इस प्रकार निर्ग्रन्थ श्वेताम्बर संघ में एक नये गच्छ का उदय हुआ जो वटवृक्ष के नाम को लेकर वटगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।" चूँकि वटवृक्ष की शाखाओं-प्रशाखाओं के समान इस गच्छ की भी अनेक शाखायेंप्रशाखायें हुईं, अत: इनका एक नाम बृहद्गच्छ भी पड़ा । ___गच्छ निर्देश सम्बन्धी धर्माण सन्निवेश के सम्बन्ध में दो दलीलें पेश की जा सकती _प्रथम यह कि उक्त मत एक स्वगच्छीय आचार्य द्वारा उल्लिखित है और दूसरे १५वीं शताब्दी के तपागच्छीय साक्ष्यों से लगभग दो शताब्दी प्राचीन भी है। अत: उक्त मत को विशेष प्रामाणिक माना जा सकता है। ___ जहाँ तक धर्माण सन्निवेश का प्रश्न है, आबू के निकट उक्त नाम का तो नहीं बल्कि वरमाण नामक स्थान है, जो उस समय भी जैन तीर्थ के रूप में मान्य रहा। अतः यह कहा जा सकता है कि लिपिदोष से वरमाण की जगह धर्माण हो जाना असम्भव नहीं। सबसे पहले हम इस गच्छ के आचार्यों की गुर्वावली को, जो ग्रन्थ प्रशस्तियों, पट्टावलियों एवं अभिलेखों से प्राप्त होती है, एकत्र कर विद्यावंशवृक्ष तैयार करने का For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय- २ ९ प्रयास करेंगे। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम हम बृहद्गच्छीय देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रचित आख्यानकमणिकोश' (रचनाकाल वि०सं० की १२वीं शताब्दी का द्वितीय चरण) की उत्थानिका में उल्लिखित इस गच्छ के आचार्यों की वंशावली ६ का उल्लेख करेंगे, जो इस प्रकार है उद्योतनसूरि 'प्रथम' सर्वदेवसूरि देवसूरि नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम' उद्योतनसूरि ‘द्वितीय’ आम्रदेवसूरि 'प्रथम' I देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि (वि० सं० १२वीं शताब्दी के द्वितीय चरण के आसपास आ०म०को० के रचनाकार) देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रचित आत्मबोधकुलक, उत्तराध्ययनसूत्रसुखबोधावृत्ति (रचनाकाल वि०सं० ११२९ / ई०स० १०७६), महावीरचरित ( रचनाकाल वि०सं० ११४०/ई०स० १०८५) और रत्नचूड़कथा नामक कृतियाँ भी मिलती हैं। नेमिचन्द्रसूरि को अजितदेवसूरि के शिष्य आनन्दसूरि ने अपने पट्ट पर स्थापित किया था। अजितदेवसूरि उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन ५ आचार्यों में से एक For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० बृहद्गच्छ का इतिहास थे। शेष ४ आचार्य हैं - यशोदेवसूरि, प्रद्युम्नसूरि, मानदेवसूरि और सर्वदेवसूरि। इसे तालिका के रूप में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है - उद्योतनसूरि 'प्रथम' सर्वदेवसूरि देवसूरि 'विहारुक' नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम' उद्योतसूरि ‘द्वितिय' के समकालीन ५ आचार्य उद्योतनसूरि 'द्वितीय' यशोदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि (सर्व) देवसूरि अजितदेवसूरि आम्रदेवसूरि 'प्रथम' आनन्दसूरि देवेन्द्रगणि अपरनाम देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि अब हम देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि के इस वक्तव्य की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे जिसमें उन्होंने कहा है कि उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधावृत्ति की रचना उन्होंने अपने ज्येष्ठ गुरुभ्राता मुनिचन्द्रसूरि के अनुरोध पर की - देवेन्द्रगणिश्चेमामुद्धृतवान् वृत्तिकां तद्विनेयः। गुरुसोदर्यश्रीमन्मुनिचन्द्राचार्यवचनेन ।।११।। शोधयतु बृहनुग्रहबुद्धिं मयि संविधाय विज्ञजनः। तत्र च मिथ्यादुष्कृतमस्तु कृतमसंगतं यदिह ।।१२।। उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रशस्ति For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय- २ ११ मुनिचन्द्रसूरि ने स्वरचित विभिन्न ग्रन्थों की प्रशस्तियों के अन्तर्गत अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है जिसके अनुसार उनके प्रगुरु का नाम सर्वदेवसूरि और गुरु का नाम यशोभद्रसूरि एवं नेमिचन्द्रसूरि था । ९ यशोभद्रसूरि से उन्होंने दीक्षा ग्रहण की और नेमिचन्द्रसूरि से आचार्य पद प्राप्त किया । सर्वदेवसूरि यशोभद्रसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के दीक्षागुरु) - मुनिचन्द्रसूरि ऊपर उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन जिन ५ आचार्यों का नाम आया है उनमें चौथे आचार्य देवसूरि मुनिचन्द्रसूरि के प्रगुरु सर्वदेवसूरि से अभिन्न मालूम होते हैं। देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि के सम्बन्ध में हम देख चुके हैं कि वे अपने प्रगुरु उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन ५ आचार्यों में से अन्तिम अजितदेवसूरि के शिष्य आनन्दसूरि के पट्टधर बने। इस प्रकार देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि और मुनिचन्द्रसूरि परस्पर सतीर्थ्य सिद्ध होते हैं, साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित हो जाता है कि बृहद्गच्छ की एक ही शाखा में प्राय: एक साथ ही नेमिचन्द्रसूरि नामक दो आचार्य हुए हैं एक सर्वदेवसूरि के शिष्य और मुनिचन्द्रसूरि को आचार्य पद प्रदान करने वाले और दूसरे मुनिचन्द्रसूरि के कनिष्ठ गुरुभ्राता देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि । इन्हें क्रमश: नेमिचन्द्रसूरि 'द्वितीय' और नेमिचन्द्रसूरि 'तृतीय' कह सकते हैं। इसे तालिका के रूप में निम्न प्रकार से समझा जा सकता है उद्योतनसूरि 'प्रथम' I सर्वदेवसूरि नेमिचन्द्रसूरि (मुनिचन्द्रसूरि को आचार्य पद देने वाले) - For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ बृहद्गच्छ का इतिहास देवसूरि 'विहारुक' नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम' उद्योतनसूरि ‘द्वितीय' यशोदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि (सर्व)देवसूरि अजितदेवसूरि आम्रदेवसूरि 'प्रथम' यशोभद्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) आनन्दसूरि देवेन्द्रगणि अपरनाम मुनिचन्द्रसूरि देवेन्द्रगणि नेमिचन्द्रसूरि 'तृतीय' अपरनाम (शिष्य) नेमिचन्द्रसूरि 'तृतीय' (पट्टधर) देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि 'तृतीय' द्वारा रचित महावीरचरियं (रचनाकाल वि०सं० ११४१/ई०स० १०८४) की प्रशस्ति१० में बृहद्गच्छ को चन्द्रकुल से उत्पन्न माना गया है, अत: समसामयिक चन्द्रकुल (जो पीछे चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ) की आचार्य-परम्परा पर भी एक दृष्टि डालना आवश्यक है। चन्द्रकुल में प्रख्यात वर्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, बुद्धिसागरसूरि, नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि आदि विभिन्न प्रभावक आचार्य हुए हैं। आचार्य जिनेश्वरसूरि, जिन्होंने चौलुक्य नरेश दुर्लभराज (वि०सं० १०६७-१०७८/ई०स० १०१०-१०२१) की राजसभा में चैत्यवासियों को शास्त्रार्थ में परास्त कर गुर्जरधरा में विधिमार्ग का बलतर समर्थन किया था, वर्धमानसूरि के शिष्य थे।११ आबू स्थित विमलवसही के प्रतिष्ठापकों में वर्धमानसूरि का भी नाम लिया जाता है।१२ इनका समय विक्रम सम्वत् की ११वीं शती सुनिश्चित है। ये वर्धमानसूरि कौन थे ? इस प्रश्न का भी उत्तर ढूंढ़ना अत्यन्त आवश्यक है । __ खरतरगच्छीय आचार्य जिनदत्तसूरि द्वारा रचित गणधरसार्धशतक १३ (रचनाकाल वि०सं० बारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध) और जिनपालोध्याय द्वारा रचित खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली१४ (रचनाकाल - विक्रम सम्वत् तेरहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण) से ज्ञात होता है कि वर्धमानसूरि पहले एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे, For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-२ परन्तु बाद में उनके मन में चैत्यवास के प्रति विरोध की भावना जागृत हुई और उन्होंने अपने गुरु से आज्ञा लेकर सुविहितमार्गीय आचार्य उद्योतनसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की। गणधरसार्यशतक की गाथा ६१-६३ में देवसूरि, नेमिचन्द्रसूरि और उद्योतनसूरि के बाद वर्धमानसूरि का उल्लेख है१५ । पूर्व प्रदर्शित देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि की गुरु-परम्परा की तालिका में देवसूरि, नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम', उद्योतनसूरि ‘द्वितीय' के पश्चात् आम्रदेवसूरि 'प्रथम' का उल्लेख हैं१६। इस प्रकार उद्योतनसूरि ‘द्वितीय' के दो शिष्यों - वर्धमानसूरि और आम्रदेवसूरि 'प्रथम' – का अलग-अलग साक्ष्यों से उल्लेख प्राप्त होता है। इस आधार पर वर्धमानसूरि और आम्रदेवसूरि 'प्रथम' परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं। किन्तु जहां एक और वर्धमानसूरि और उनके शिष्य जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि विक्रमसम्वत् की ११वीं शती के अंतिमचरण और १२वीं शती के प्रथम दशक के आचार्य हैं वहीं दूसरी और आम्रदेवसूरि 'प्रथम' तथा उनके शिष्य देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि ‘तृतीय'का सत्ता समय विक्रम सम्वत् की १२वीं शती का प्रथमद्वितीय चरण सुनिश्चित है । इस प्रकार दोनों गुरु भ्राताओं-वर्धमानसूरि और आम्रदेवसूरि 'प्रथम' तथा उनके शिष्यों के मध्य लगभग ४० वर्षों का दीर्घ अन्तराल भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है जो कि सामान्य रूप से अति कठिन प्रतीत होता है किन्तु ऐसा होना नितान्त असम्भव भी नहीं माना जा सकता । आम्रदेवसूरि 'प्रथम' की शिष्य-परम्परा, जिसमें देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि ‘तृतीय' हुए, की ऊपर चर्चा की जा चुकी है। अब वर्धमानसूरि की शिष्य-परम्परा पर भी प्रसंगवश प्रकाश डालना आवश्यक है। वर्धमानसूरि के शिष्य के रूप में जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि का उल्लेख प्राप्त होता है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि जिनेश्वरसूरि ने चौलुक्यनरेश दुर्लभराज की राजसभा में चैत्यवासियों को शास्त्रार्थ में परास्त कर विधिमार्ग का समर्थन किया था। जिनेश्वरसूरि के ख्यातिनाम शिष्यों में नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि, सुरसुंदरीचरियं के रचनाकार जिनभद्र अपरनाम धनेश्वरसूरि और जिनचन्द्रसूरि के उल्लेख प्राप्त होते हैं।१७ इनमें से अभयदेवसूरि की शिष्य-परम्परा आगे चली। ___ अभयदेवसूरि के प्रमुख शिष्यों में प्रसन्नचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि, जिनवल्लभसूरि और वर्धमानसूरि 'द्वितीय' के उल्लेख मिलते हैं।१८ देवभद्रसूरि ने जिनवल्लभसूरि और जिनदत्तसूरि को आचार्य पद प्रदान किया।१९ For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ बृहद्गच्छ का इतिहास जिनवल्लभसूरि भी प्रारम्भ में एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे, परन्तु बाद में अपने चैत्यवासी गुरु की आज्ञा लेकर अभयदेवसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की । २० खरतरगच्छीय परम्परा एक स्वर से सुविहितमार्गीय आचार्य वर्धमानसूरि, उनके पट्टधर और दुर्लभराज की राजसभा में वाद विजेता जिनेश्वरसूरि, प्रसिद्ध रचनाकार जिनचन्द्रसूरि, नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि आदि को अपने गच्छ का घोषित करती है, किन्तु इन रचनाकारों जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि ने अपनी कृतियों में कहीं भी अपने को खरतरगच्छीय नहीं कहा है और न ही कहीं इस गच्छ का नामोल्लेख ही किया है अपितु वे स्वयं को चन्द्रकुल का बतलाते हैं। ऐसी परिस्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि किसके कथन को प्रामाणिक माना जाये । वस्तुतः वर्धमानसूरि और जिनेश्वरसूरि द्वारा प्रवर्तित सुविहितमार्गीय आन्दोलन को उनकी शिष्य सन्तति ने ही आगे बढ़ाया। इसी क्रम में अभयदेवसूरि के कई शिष्यों में से एक जिनवल्लभसूरि एवं उनके पट्टधर जिनदत्तसूरि आगमसम्मत अपने कठोर आचरण के कारण विशेष रूप से विख्यात हुए और इनका शिष्य- समुदाय खरतरगच्छीय कहलाने लगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सुविहितमार्गीय चन्द्रकुलीन आचार्य वर्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि आदि खरतरगच्छीय तो नहीं अपितु इस गच्छ के आदिपुरुष जिनवल्लभसूरि एवं जिनदत्तसूरि के पूर्वज अवश्य थे। चूँकि अभयदेवसूरि के एक शिष्य जिनवल्लभसूरि का समुदाय खरतरगच्छ के नाम से विख्यात हुआ, अतः इस गच्छ की उत्तरकालीन परम्परा द्वारा उनके पूर्वपुरुषों को भी स्वाभाविक रूप से इसी नाम से अभिहित किया जाने लगा। अभयदेवसूरि के तीसरे शिष्य और पट्टधर वर्धमानसूरि हुए । इन्होंने वि०सं० ११४०/ ई०स० १०८४ में मनोरमाकहा, वि०सं० ११६०/ ई०स० ११०४ में आदिनाथचरित और धर्मरत्नकरण्डक की रचना की । २१ वि०सं० ११८७ एवं वि०सं० १२०८ के अभिलेखों में बृहद्गच्छीय चक्रेश्वरसूरि को वर्धमानसूरि का शिष्य कहा गया है। इन लेखों की वाचना निम्नानुसार है सं (वत्) ११८७ (वर्षे) फागु (ल्गुणवदि ४ सोमे रुद्रसिणवाडास्थानीय प्राग्वाटवंसा (शा) वये श्रे० साहिलसंताने पलाद्वंदा ( ? ) श्रे० पासल संतणाग देवचंद्र आसधर आंबा अंबकुमार श्रीकुमार लोयण प्रकृति श्वासिणि शांतीय रामति गुणसिरि प्रडूहि तथा पल्लडीवास्तव्य अंबदेवप्रभृतिसमस्तश्रावकश्राविकासमुदायेन अर्बुदचैत्यतीर्थे श्रीरि - For Personal & Private Use Only - Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-२ (ऋषभदेवबिंबं निःश्रेयसे कारितं बृहद्गच्छीय श्रीसंविग्नविहारि श्रीवर्धमानसूरिपादपद्मोप (सेवि) श्रीचकेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठित। । मुनि जयन्तविजय, सम्पा० - अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ११४. ॐ संवत् १२०८ फागुण सुदि १० रवौ श्रीबृहद्गच्छीयसंविग्नबिहारी (रि) श्रीवर्धमानसूरिशिष्यैः श्रीचक्रेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठितं प्राग्वाट वंशीय... मुनि विशालविजय, संग्राहक, सम्पा० - श्रीआरासणातीर्थ, लेखांक ११. इसी प्रकार वि०सं० १२१४ के वडगच्छ से ही सम्बन्धित एक अभिलेख में बृहद्गच्छीय परमानन्दसूरि के गुरु का नाम चक्रेश्वरसूरि और प्रगुरु का नाम वर्धमानसूरि दिया गया है। लेख का मूलपाठ निम्नानुसार है : संवत् १२१४ फाल्गुन वदि शुक्रवारे श्रीबृहद्गच्छोद्भवसंविग्नविहारि श्रीवर्धमानसूरीयचक्रेश्वरसूरिशिष्य ......... श्रीपरमानंदसूरिसमेतैः ......... प्रतिष्ठितं। मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक १४. बृहद्गच्छीय चक्रेश्वरसूरि के गुरु और परमानन्दसूरि के प्रगुरु वर्धमानसूरि को समसामयिकता और नाम साम्य के आधार पर अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। जहाँ तक दोनों के गच्छ सम्बन्धी समस्या का प्रश्न है, उसका समाधान यह है कि चन्द्रगच्छ और बृहद्गच्छ – दोनों का मूल एक ही होने से इस समय तक आचार्यों में परस्पर प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं दिखायी देती है। गच्छीय प्रतिस्पर्धा के युग में भी एक गच्छ के आचार्य दूसरे गच्छ के आचार्यों के शिष्यों को विद्याध्ययन कराना अपारम्परिक नहीं समझते थे। अत: बृहद्गच्छीय चक्रेश्वरसूरि एवं परमानन्दसूरि के गुरु चन्द्रगच्छीय वर्धमानसूरि हों तो यह तथ्य प्रतिकूल नहीं लगता। इस प्रकार चन्द्रकुल (बाद में चन्द्रगच्छ) और बृहद्गच्छ के मुनिजनों का संयुक्त वंशवृक्ष बनता है, वह इस प्रकार है । For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्योतनसूरि 'प्रथम' सर्वदेवसूरि देवसूरि 'प्रथम' नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम' उद्योतनसूरि ‘द्वितीय' के समकालीन ५ आचार्य यशोदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि देवसूरि अजितदेवसूरि उद्योतनसूरि ‘द्वितीय' वर्धमानसूरि आम्रदेवसूरि 'प्रथम' आनन्दसूरि जना नेमिचन्द्रसूरि प्रद्योतनसूरि जिनचन्द्रसूरि For Personal & Private Use Only (द्वितीय) आम्रदेवसूरि श्रीचन्द्रसूरि जिनेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि नेमिचन्द्रसूरि ‘तृतीय' (बृहद्गच्छीय .... जिनचन्द्रसूरि अभयदेवसूरि जिनभद्र अपरनाम धनेश्वरसूरि जिनवल्लभसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि वर्धमानसूरि ‘द्वितीय' जिनदत्तसूरि देवभद्रसूरि चक्रेश्वरसूरि (वि०सं० ११८७-१२०४) प्रतिमालेख परमानन्दसूरि (वि०सं० १२१४) प्रतिमालेख .खरतरगच्छीय..... .चन्द्रगच्छीय... ....बृहद्गच्छीय..... बृहद्गच्छ का इतिहास Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ अध्याय-२ सन्दर्भ १. श्रीमत्यर्बुदतुंगशैलशिखच्छायाप्रतिष्ठास्पदे धर्माणाभिधसन्निवेशविषये न्यग्रोधवृक्षो वभौ। यत्शाखाशतसंख्यपत्रबह्नच्छायास्वपायाहतं सौख्येनोषितसंघमुख्यशकटश्रेणीपंचकम्।।। लग्ने क्वापि समस्तकार्यजनके सप्तग्रहालोकेन ज्ञात्वा ज्ञानवशाद् गुरुं ... देवाभिधः। आचार्यान् रचयांचकार चतुरस्तस्मात् प्रवृद्धो बभौ । वंद्रोऽयं वटगच्छनाम रुचिरो जीयाद् युगानां शतीम्।।२।। Muni Punya Vijaya, Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandara, Cambay, Part II, pp. 284-286. मुनि दर्शनविजय, सम्पा० - पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृ० ३४. वही, पृ० ५२-५३. वही, भाग २, पृ० १८८. मुनि जिनविजय, सम्पा० - विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृ० ५२-५५. आख्यानकमणिकोश, सम्पा० - मुनि पुण्यविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, ग्रन्थांक ७, वाराणसी १९६२ ई०. ६-७. वही, सम्पादकीय प्रस्तावना, पृ० ६-७. Muni Punya Vijaya, Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandara, Cambay, Part I, p. 114. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कण्डिका ३३२. सिरि जंवुणामसिरिपभवसूरिसेज्जंभवाइसूरीणं। ____परिवाडीए जाओ चंदकुले वड्डगच्छंमि।। सिरि उज्जोयणसूरी उत्तमगुणरयणभूसियसरीरो। वेहारुयमुणिसंताणगयणवर पुनिमाइंदो।। Muni Punya Vijaya, Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandara, Cambay, Part II, p. 339. ११. कथाकोषप्रकरण, सम्पा० - मुनि जिनविजय, प्रस्तावना, पृ० २ और आगे. १२. अगरचन्द नाहटा, “विमलवसही के प्रतिष्ठापकों में वर्धमानसूरि भी थे", जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ५, अंक ५-६, पृ०२१२-१४. ८. For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. बृहद्गच्छ का इतिहास अपभ्रंशकाव्यत्रयी, सम्पा० पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, परिशिष्ट, पृ० ८७ - १०६. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, सम्पा० मुनि जिनविजय, प्रस्ताविक वक्तव्य, पृ० १-३. अगरचन्द नाहटा, “खरतरगच्छ गुर्वावली का ऐतिहासिक महत्त्व", वही, पृ० ६-१२. तयणंतरदुत्तरभवसमुद्दमज्जंतभव्वसत्ताणं । पोयाण व्व सूरीणं जुगपवराणं पणिवयामि ॥ ६१ ॥ गयराग-दोसदेवो देवायरिओ य नेमिचंदगुरु । उज्जोयणसूरि गुरुगुणोहगुरुपारतंतगओ ।। ६२ ।। सिरिवद्धमाणसूरि पवद्धमाणाइरित्तगुणनिलओ । चियवासमसंगयमवगमित्तु वसहीइ जो वसिओ ॥ ६३ ॥ अपभ्रंशकाव्यत्रयी, संपा० पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, परिशिष्ट, पृ० ९५. - - द्रष्टव्य संदर्भ क्रमांक ६. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कण्डिका २८४. वही, कण्डिका, २९९. कथाकोशप्रकरण, प्रस्तावना, पृ० १५. वही, पृ० ५, जिनरत्नकोश, पृ० ३०१. वही, पृ. १४. For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय ३ बृहद्गच्छ के प्रमुख आचार्य एवं इस गच्छ से उद्भूत विभिन्न गच्छ बृहद्गच्छ में समय-समय पर अनेक प्रबुद्ध मुनिजन हुए, जिनके द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ प्राप्त होती हैं। आख्यानकमणिकोश, जिसका प्रारम्भ में उल्लेख आ चुका है, पर वि०सं० १९९१ई० सन् १९२५ में बृहद्गच्छ के ही आम्रदेवसूरि ने वृत्ति की रचना की, १ जिसकी प्रशस्ति इस प्रकार है : ज्ञानदिरत्नवसतिर्जनमान्यलक्ष्मीजन्माग्रभूमिरभितो बहुसत्त्वसेव्यः । निर्धौतकर्ममलनिर्मलधर्मनीरः, क्षोणीभृदाश्रितगरिष्ठगभीरमध्यः ॥१॥ अच्युतप्रवणावासो, मर्यादाऽनतिवर्तकः । अस्ति स्वच्छो बृहद्गच्छ, श्रीमान् नाथ इवाम्भसाम् ॥२॥ इति नीरधितुल्यगुणे, दयासुधापास्तजन्म-रुग्-मरणे । कचिदतिशायिनि समये, शिष्टाः ! निशमयत यज्जातम् ॥३॥ मुनिविबुध (वि) धृतजिनमतमन्दरमथिमथ्यमानतन्मध्यात् । स्फूर्जन्महाप्रभाव:, प्रादुरभूद् रम्यरत्नचयः || ४ || तथा हि - — श्रीदेवसूरिः सुमनःसमृद्धः, समुल्लसत्सत्फलपत्रशाखः । कुतोऽप्यथो अविरभूदमुष्मात्, सुरावगीतोपचिपारिजातः ॥५॥ अनेकविकृतिक्रियाकुटिलकर्मरूपामया ऽपहारकरणक्षमः श्रुतिविचारदक्षः शुचिः । प्रवृद्धकरुणामृतस्समुदपादि धन्वन्तरिः, श्रियां पदमनागसामजितसूरिरर्यः सताम् ॥६॥ For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास रुचिरचरणयोगाद् दुर्धरैरावतोऽभूदनुपममदवारिप्रोल्लसत्कीर्तिघण्टः । प्रकटितसकलाङ्गो मोहसैन्याप्रधृष्यो, विबुधपतिनिषेव्यः श्रीमदानन्दसूरिः ॥७॥ समुन्नत्याधारः स्वरगतलसल्लक्षणधरः, श्रुतिश्रेयानंशिर्दधदपरचिह्नानि नितराम् । विनिर्यत्सद्धेतौ सुविषममहावादिसमरे, स्फुरत्तेजोदृप्यत्तरलनयनोऽश्वश्च निरगात् ॥८॥ श्रीनेमिचन्द्रसूरियः कर्ता प्रस्तुतप्रकरणस्य । सर्वज्ञागमपरमार्थवेदिनामग्रणीः कृतिनाम् ॥९॥ अन्यां च सुखावगमां, यः कृतवानुत्तराध्ययनवृत्तिम् । लघुवीरचरितमथ रत्नचूडचरितं च चतुरमतिः ॥१०॥ शश्वत्पण्डितमण्डलीकुमुदिनीकान्ताप्रमोदावहः, सर्वज्ञागमदेशनामृतकरैर्निर्वापयन् मेदिनीम् । भास्वत्सन्मुनितारकेषु नियतं सन्नायकत्वं दधत्, स श्रीमानुदियाय यो निजकुलव्योमाङ्गणालङ्कृतिः ॥११।। सूरिः श्रीजिनचन्द्रश्चन्द्रो निःशेषजनमनोदयितः । सौम्यत्व-कलावित्वप्रभृतिगुणानां स्वकुलभवनम् ॥१२॥ तच्छिष्यः प्रथमपदे, श्रीपदवानाऽऽनदेवसूरिरभूत् । अपरोऽपि तत्कनिष्ठः, श्रीमान् श्रीचन्द्रसूरिरभूत् ॥१३॥ इतश्च यो मेदपाटाध्युषितोऽपि धीमान्, दयाधनो धार्मिकमध्यवर्ती । सत्साधुताधर्मकृताभिलाषः, सुश्रावकत्वं परिपाति सम्यक् ॥१४॥ मारावल्या अल्लकश्रेष्ठिवयों, मुक्त्वा स्वीयं धाम हेतोः कुतश्चित् । आयातोऽसावर्बुदाध:प्रदेशे, तत्राप्यासीत् स्वैर्गुणैः सुप्रसिद्धः ॥१५॥ किञ्च कासह्रदधाम्नि निजं, धर्म्य धाम प्रवर्तितं येन । पोषधशाला सच्छ्रावकादिधर्मार्थमत्यर्थम् ॥१६॥ For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-३ आजन्मापि जिनेश्वरस्य सदने बिम्बे जिनाभ्यर्चने, तीर्थानामभिवन्दने जिनमतव्यालेखनेऽलङ्कृतौ । श्रीमत्सूरि-महत्तरापद-जिनप्रव्राजनादौ शुभं, धर्मार्थं व्ययतो धनं सफलतां यस्याऽगमद् धीमतः ।। १७ ॥ सुलब्धजन्मा, सदाकृतिर्धर्मविशुद्धकर्मा । स सिद्धनागः पुत्रोऽभवत् तस्य जनप्रसिद्धः, पुण्यानुभावाच्चसदा समृद्धः ॥१८॥ तस्मादपि दौस्थित्यात्, कुतोऽपि धवलक्कके समायातः । आस्ते स सिद्धनामा, तत्रापि जने गुणैः प्रथितः ॥१९॥ अन्यञ्च येन कारितमतिरम्यं भव्यजनमनोहारि । सीमन्धरजिनबिम्बं रमणीये मोढचैत्यगृहे ॥ २०॥ त्यागी भोगी देव-गुर्वादिभक्तो, जैने धर्मे प्रेमरागानुरक्तः । वार्द्धक्येऽभूदेक उद्योतनाह्नः पुत्रस्तस्य त्यक्तदुष्टद्विजिह्वः ॥ २१॥ श्रीनेमिचन्द्रसूरेर्वाक्यात् तदनु स्वशिष्यभणनाच्च । उद्योतनसच्छ्रावकविशेषसद्भक्तिवचनाच्च ॥२२॥ तत्रैव बृहद्गच्छे रत्नाकरसन्निभे प्रसूतेन । प्राकृतमणिकल्पेन, श्रुत- गुरुबहुमानसहितेन ॥ २३॥ श्रीपदसङ्गतनाम्ना, श्रीमज्जिनचन्द्रसूरिशिष्येण । रचिताऽऽम्रदेवमुनिपेन वृत्तिरेषा स्वबोधेन ॥२४॥ व्याख्याप्रज्ञप्ताविव, लब्धवरायामिहापि सद्वृत्तौ । श्रुतिसुखदवर्णरुचिरा, विचित्रगम - भङ्गरमणीया ॥ २५ ॥ सुव्यक्तमेकचत्वारिंशदनूना भवेयुरधिकाराः । तत्र सतानी च विचारश्रुता अग्र्यवृत्ताश्च ( ? ) ॥२६॥ सत्स्वपि नानारूपेषु पूर्वकविभिर्विशिष्टमतिविभवैः । रचितेषु शास्त्रविवरणकथाप्रबन्धेषु सरसेषु ॥२७॥ कीदृगिदं मत्काव्यं ? तदपि ग्राह्यं कृतप्रचुरकरुणैः । मयि वल्लभमाध्यस्थ्ये, माध्यस्थ्यगुणान्वितैः सद्भिः ||२८|| " For Personal & Private Use Only २१ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ बृहद्गच्छ का इतिहास छन्दोलक्षणविकलं, समयोत्तीर्णं च यत् किमपि लिखितम् । तच्छोध्यं विद्वद्भिः, कृताञ्जलि: प्रार्थये भवतः ॥२९॥ अन्यच्च नेमिचन्द्रा गुणाकराः पार्श्वदेवनामानः । एते त्रयोऽपि गणयो विपश्चितो मुख्यनिजशिष्याः ॥३०॥ साहाय्यं कृतवन्तो मम लेखन-शोधनादिकृत्येषु । आधानोद्धरणे च प्रमादविकलाः कलाकुशलाः ॥३१॥ नवत्या युक्तेषु प्रथितयशसो विक्रमनृपा च्छतेषु क्रान्तेषु त्रिनयनसमानेषु शरदाम्। अजय्ये सौराज्ये जयति जयसिंहस्य नृपते रियं स्थानीयेऽगाद् धवलकपुरे सिद्धिपदवीम् ॥३२।। श्रेष्ठियशोनागस्याऽऽरब्धा वसताववस्थितैः सद्भिः । वसतां सम्यगवसिता वसतावच्छुप्तसत्कायाम् ॥३३॥ भुवनानीव चतुर्दश धातुर्मम रम्यवर्ण-पदभाञ्जि । अक्षरगणनाद् ग्रन्थो जातोऽनुष्टुप्सहस्राणि ॥३४॥ मानसगर्भे स्थित्वा, लक्षणयुगयं सपादनवमासैः । आख्यानकमणिकोशः, सुत इव समपाचि सद्वृत्तिः ॥३५।। यावश्चन्द्रश्च सूर्यश्च, यावन्मेरुर्महीतलम् । स्वर्गाऽपवर्गवत् तावन्नन्द्यादेषाऽपि मत्कृतिः ॥३६।। इस प्रशस्ति के प्रारम्भ के १५ पद्यों में वृत्तिकार ने अपने गच्छ के पूर्ववर्ती आचार्यों देवसूरि, अजितदेवसूरि, आनन्दसूरि और सुप्रसिद्ध रचनाकार नेमिचन्द्रसूरि का सादर स्मरण किया है, किन्तु उनके सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं दी है। इस कारण इन आचार्यों का पारस्परिक सम्बन्ध क्या था? इस बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। स्वयं वृत्तिकार के सम्बन्ध में इतना ही ज्ञात होता है कि वे मूल ग्रन्थकार के गुरुभ्राता जिनचन्द्रसूरि के शिष्य और श्रीचन्द्रसूरि के गुरुभ्राता थे। वृत्तिकार आम्रदेवसूरि के तीन शिष्यों – नेमिचन्द्र, गुणाकर और पार्श्वदेव ने इस वृत्ति की रचना में अपने गुरु की सहायता की।२ इसे तालिका के रूप में इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है: For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-३ द्रष्टव्य तालिका क्रमांक नेमिचन्द्र (शिष्य) - नेमिचन्द्रसूरि (आख्यानकमणिकोश के रचनाकार) १ ? गुणाकर (शिष्य) आम्रव (वि० सं० १९९१ में आख्यानकमणिकोशवृत्ति के कर्ता) जिनचन्द्रसूरि पार्श्वदेव (शिष्य) For Personal & Private Use Only (आख्यानकमणिकोशवृत्ति की रचना में गुरु को सहायता देने वाले) आम्रदेवसूरि के उपरोक्त शिष्य नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रची गयी अनंतनाहचरिय (रचनाकाल वि०सं० १२१६ / ई०स० ११५०) की प्रशस्ति में उन्होंने अपने गुरु - परम्परा की लम्बी गुर्वावली दी है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ३ इस प्रशस्ति के अनुसार बृहद्गच्छ में देवसूरि के वंश में अजितदेवसूरि हुए, जिनके पट्टधर का नाम आनन्दसूरि था। आनन्दसूरि के तीन पट्टधर हुए १नेमिचन्द्रसूरि; २- प्रद्योतनसूरि और ३- जिनचन्द्रसूरि । जिनचन्द्रसूरि के दो पट्टधर हुए २३ श्रीचन्द्रसूरि ― १- आम्रदेवसूरि (आख्यानकमणिकोशवृत्ति के कर्ता) एवं श्रीचन्द्रसूरि । आम्रदेवसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि, नेमिचन्द्रसूरि (वि०सं० १२१६ / ई०स० ११६० में अनंतनाहचरिय के कर्ता), यशोदेवसूरि, गुणाकर और पार्श्वदेव हुए। आम्रदेवसूरि ने अपने पट्ट पर अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि को स्थापित किया। विजयसेनसूरि के शिष्य समन्तभद्रसूरि हुए। यशोदेवसूरि और समन्तभद्रसूरि ने अनंतनाथचरिय का संशोधन किया। इसे तालिका के रूप में निम्न प्रकार रखा जा सकता है : द्रष्टव्य तालिका क्रमांक - २ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका क्रमांक-२ २४ बृहद्गच्छीय देवसूरि अजितदेवसूरि आनन्दसूरि नेमिचन्दसूरि प्रद्योतनसूरि जिनचन्दसूरि (आख्यानकमणिकोश के कर्ता) For Personal & Private Use Only श्रीचन्द्रसूरि आम्रदेवसूरि (आख्यानकमणिकोशवृत्ति के रचनाकार) हरिभद्रसूरि विजयसेनसूरि नेमिचन्द्रसूरि यशोदेवसूरि गुणाकर (मुख्य पट्टधर) (शिष्य पट्टधर) (वि०सं० १२१६ में (शिष्य पट्टधर) अनंतनाथचरिय के कर्ता) अनंतनाथचरिय के संशोधक पार्श्वदेव (शिष्य) हरिभद्रसूरि (शिष्य) बृहद्गच्छ का इतिहास समन्तभद्रसूरि Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ आम्रदेवसूरि ने अपने गुरुभ्राता श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि, ४ जिन्हें अपना मुख्य पट्टधर बनाया था, द्वारा रचित मल्लिनाहचरिय, चंदप्पहचरिय, नेमिनाथचरित नामक कृतियां मिलती हैं। 4 अनंतनाथचरिय के अलावा नेमिचन्द्रसूरि ने प्रवचनसारोद्धार नामक कृति की भी रचना की । ६ अध्याय-३ चन्द्रकुल में शांतिसूरि नामक एक आचार्य हुए जिन्होंने वि०सं० ११६१ / ई०स० ११०५ में प्राकृत भाषा में पुहवीचंदचरिय ( पृथ्वीचन्द्रचरित) की रचना की । ७ इसकी प्रशस्ति में उन्होंने स्वयं को सर्वदेवसूरि का प्रशिष्य और नेमिचन्द्रसूरि का शिष्य बतलाया है तथा यह भी कहा है कि ग्रन्थकार के प्रगुरु के शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ने उन्हें आचार्य पद प्रदान किया। ( प्रशस्ति गाथा २८८) ८ यहाँ ‘ग्रन्थकार का पक्ष लेकर श्रीचन्द्रसूरि ने उन्हें आचार्य पद दिया' ऐसे स्ववक्तव्य से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि ग्रन्थकार शांतिसूरि के गुरु नेमिचन्द्रसूरि को उन्हें आचार्य पद देना अभीष्ट न था, फिर भी ग्रन्थकार ने अपने गुरु के प्रति प्रशस्तिगाथा (२८६) में अत्यधिक सम्मान प्रकट किया है। प्रशस्ति गाथा ( २८५) से यह भी स्पष्ट होता है कि ग्रन्थकार के प्रगुरु सर्वदेवसूरि से अनेक शाखाओं - प्रशाखाओं वाला गच्छ बना था । ९ ग्रन्थकार को आचार्य धनेश्वरसूरि से विद्याभ्यास विषयक विभिन्न मार्गदर्शन मिला था, ऐसा स्वयं ग्रन्थकार ने ही उल्लेख किया है । ग्रन्थकार के प्रगुरु सर्वदेवसूरि के पट्टशिष्य के रूप में ८ आचार्य थे। १० जैसा कि पूर्व में हम देख चुके हैं बृहद्गच्छीय आचार्य मुनिचन्द्रसूरि भी अपने प्रगुरु के रूप में सर्वदेवसूरि व गुरु के रूप में यशोभद्रसूरि एवं नेमिचन्द्रसूरि का उल्लेख करते हैं । ११ तपागच्छीय मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली (रचनाकाल वि०सं० १४६६ / ई०स० १४१०) में भी सर्वदेवसूरि के उक्त दो शिष्यों का नाम आ चुका है। १२ शेष ६ पट्टधरों में से तीसरे श्रीचन्द्रसूरि (प्रशस्ति गाथा २८८) और चौथे धनेश्वरसूरि जिनका ग्रन्थकार ने अपने विद्यागुरु के रूप में उल्लेख किया है, का नाम हम ऊपर देख चुके हैं। धनेश्वरसूरि से चैत्रगच्छ अस्तित्त्व में आया।' । १३ धनेश्वरसूरि के पट्टधर भुवनचन्द्रसूरि और भुवनचन्द्रसूरि के पट्टधर देवभद्रगणि हुए जिनके पास जगच्चन्द्रसूरि ने उपसम्पदा ग्रहण की। जगच्चन्द्रसूरि से वि०सं० १२८५ में तपागच्छ अस्तित्त्व में आया । १४ जगच्चन्द्रसूरि के दो शिष्यों विजयचन्द्रसूरि और देवेन्द्रसूरि से तपागच्छ की बृहद्पौशालिक १५ एवं लघुपौशालिक १६ शाखायें निकलीं। For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ बृहद्गच्छ का इतिहास सर्वदेवसूरि के ५वें शिष्य के रूप में उपा० विनयचन्द का नाम मिलता है। इनके शिष्य मुनिचन्द्रमुनि को शांतिसूरि के गुरु नेमिचन्द्रसूरि ने अपना पट्टधर बनाया था। इन्हीं मुनिचन्द्रमुनि ने शांतिसूरि से पृथ्वीचंद्रचरित की रचना के लिए प्रार्थना की थी । १७ इस प्रकार सर्वदेवसूरि के ८ शिष्यों में से ५ शिष्यों १- यशोभद्रसूरि; २नेमिचन्द्रसूरि; ३- श्रीचन्द्रसूरि ४- धनेश्वरसूरि और ५- उपा० विनयचन्द्र के नाम ज्ञात हो जाते हैं। शेष तीन शिष्यों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। वि०स० ११४९ में पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक चन्द्रप्रभसूरि १८ के प्रगुरु सर्वदेवसूरि भी उक्त सर्वदेवसूरि से समसामयिकता, नामसाम्य आदि को देखते हुए अभिन्न माने जा सकते हैं। जैसा कि प्रारम्भ में हम देख चुके हैं यशोभद्रसूरि और नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिचन्द्रसूरि से बृहद्गच्छ की परम्परा आगे बढ़ी। इसी प्रकार नेमिचन्द्रसूरि के दूसरे शिष्य व श्रीचन्द्रसूरि द्वारा आचार्यपद प्राप्त शांतिसूरि से पिप्पलगच्छ१९ अस्तित्त्व में आया । द्रष्टव्य तालिका-३ ――― - For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका क्रमांक-३ (सर्व) देवसूरि अध्याय-३ जयसिंहसूरि यशोभद्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि उपा०विजयचन्द्र ३अन्य शिष्य श्रीचन्द्रसूरि (शान्तिसूरि को आचार्य पद देनेवाले) धनेश्वरसूरि (शान्तिसूरि को । विद्याध्ययन कराने वाले, चैत्रगच्छ के प्रवर्तक) For Personal & Private Use Only चन्द्रप्रभसूरि मुनिचन्द्रसूरि शान्तिसूरि (वि० सं० ११४९ (बृहद्गच्छीय) (वि०सं० ११६१ में में पूर्णिमागच्छ । पुहवीचंदचरिय के के प्रवर्तक) कर्ता एवं पिप्पलगच्छ के आदिपुरुष) भुवनचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रमुनि (नेमिचन्द्रसूरि द्वारा आचार्य पद प्राप्त, शान्तिसूरि से पुहवीचंदचरिय की रचना की प्रार्थना करने वाले) देवभद्रगणि जगच्चन्द्रसूरि (वि० सं० १२८५ में तपागच्छ के प्रवर्तक) - - - पूर्णिमागच्छ - - - - - - बृद्गच्छ ---- - - - पिप्पलगच्छ चैत्रगच्छ---- र विजयचन्द्रसूरि । (तपागच्छ-बृहद्पौशालिक शाखा के आदिपुरुष) देवेन्द्रसूरि (तपागच्छ-लघुपौशालिक शाखा के आदिपुरुष) २७ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ बृहद्गच्छ का इतिहास बृहद्गच्छीय आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं। वि०सं० ११७२/ई०स० १११६ में इन्होंने बन्यस्वामित्ववृत्ति, आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणवृत्ति और श्रेयांसनाथचरित की रचना की। वि०सं० ११८५/ई०स० ११२९ में पाटण में श्रेष्ठी यशोनाग के उपाश्रय में रहते हुए प्रशमरतिप्रकरण पर वृत्ति की रचना की। अपनी कृतियों की प्रशस्ति२० में इन्होंने मानदेवसूरि को अपना प्रगुरु तथा जिनदेवसूरि को गुरु बतलायाहै: मानदेवसूरि जिनदेवसूरि हरिभद्रसूरि हरिभद्रसूरि के प्रगुरु मानदेवसूरि को आख्यानकमणिकोश के रचनाकार देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि के प्रगुरु उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन ५ आचार्यों - यशोदेवसूरि, प्रद्युम्नसूरि, मानदेवसूरि, (सर्व) देवसूरि और आनन्दसूरि – में से तीसरे मानदेवसूरि से प्राय: समसामयिकता, नामसाम्य और गच्छसाम्य को देखते हुए अभिन्न मानने की सम्भावना व्यक्त की जा सकती है। द्रष्टव्य तालिका-४ तालिका क्रमांक -४ उद्योतनसूरि 'प्रथम' सर्वदेवसूरि देवसूरि ‘विहारुक' नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम' उद्योतनसूरि ‘द्वितीय' यशोदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि (सर्व)देवसूरि आनन्दसूरि For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-३ आम्रदेवसूरि ‘प्रथम’ 1 नेमिचन्द्रसूरि जिनदेवसूर हरिभद्रसूरि (प्रसिद्ध ग्रन्थकार) श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य एवं आम्रदेवसूरि के मुख्य पट्टधर हरिभद्रसूरि अपने युग के प्रसिद्ध रचनाकार थे। चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज (वि०सं०११५०-११९९) और कुमारपाल (वि०सं० १९९९-१२३०) के शासनकाल में महामात्य के पद पर आसीन मंत्रीश्वर पृथ्वीपाल की प्रार्थना पर इन्होंने चौबीस तीर्थङ्करों के जीवनचरित्र का प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं प्रणयन किया। इनमें से चन्द्रप्रभचरित, मल्लिनाथचरित और नेमिनाथचरित आज उपलब्ध हैं। चन्द्रप्रभचरित की प्रशस्ति २१ में इन्होंने अपनी गुरुपरम्परा दी है जो इस प्रकार है : “नियय महिमा तिरोहिय-चिंतामणि- कामधेणु-माहप्पो । चउवीसइमजिणिंदो, जाओ सिरिबद्धमाहपहू || तत्तित्थंमि य कोडियगणंमि विउलाए वइरसाहाए । चंदकुलंमि य चंदुज्जलमि वडगच्छगयणससी । तरणि व्व गरुअ-तेओ, सयंभुरमणु व्व पत्त-परम-दओ । हंसो व्व विमलपक्खो, सुरगिरिरिव लोय मज्झत्थो । लच्छी-कलाकलावासमाणमेहाहिं सच्चवियनामो । जाओ पत्तपसिद्धी, भयवं जिणचंदसूरि त्ति ॥ - वियसंत- कुमुय-कमला, निय-निय - पहविभु (बु) ह चक्क - कय-तोसा । तत्सासि दोन्नि सीसा, रयणीयर- सहस्सकिरण व्व ॥ तत्थ य सुरसो विरइय- परप्पबंधो य धरणिनाहु व् । सिरिअम्बएवसूरी, गुण- रयण-महोयही पढमो ॥ अणवरय-धम्मकम्मोवउत्त-चित्तो वि निच्चमपहरणो । कय-करणायारो वि हु, अविहिय-रायट्ठिइविसेसो ॥ २९ For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० बहुसमओ वि अमओ, पाविय - उदओ वि पत्त - जल-संगो । बीओ विणेयरयणं, अहेसि सिरिचंदसूरिति ॥ " “पसरिय-जस-पडहारव-नच्चाविय-कित्ति-तरुणिरयणस्स । असरिस-गुण-मणि-निहिणो, पहुणो सिरिचंदसूरिस्स ।। चडवीसइ जिणपुंगव - सुचरिय- रयणाभिराम - सिंगारो । एसो विणेयदेसो, जाओ हरिभद्दसूरि त्ति ।। अपभ्रंश भाषा में इनके द्वारा रचित नेमिनाथचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह कृति चौलुक्यनरेश कुमारपाल के शासनकाल में पाटण में वि०सं० १२१६ कार्तिक सुदि १३ को पूर्ण हुई थी । २२ इसमें कुल ८०३२ श्लोक हैं। विजयसेनसूरि द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु उनके शिष्य समन्तभद्रसूरि ने, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है अपने गुरु के गुरुभ्राता नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रचित अनंतनाथचरिय का संशोधन किया था। २३ ठीक यही बात नेमिचन्द्रसूरि के दूसरे गुरुभ्राता यशोदेवसूरि के बारे में भी हम ऊपर देख चुके हैं। आम्रदेवसूरि के दो अन्य शिष्यों गुणाकर एवं पार्श्वदेव द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है, और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है। उस सभी मुनिजनों की शिष्य-सन्तति में आगे चलकर कौन - कौन से मुनि हुए, इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिलती । बृहद्गच्छ की परम्परा आगे की शताब्दियों में भी प्रवाहमान रही; किन्तु उनका उक्त मुनिजनों से क्या सम्बन्ध था, इस सम्बन्ध में कुछ भी जान पाना प्रायः असम्भव हीहै । बृहद्गच्छ का इतिहास मानदेवसूरि, (सर्व)देवसूरि और अजितदेवसूरि की पूर्वोक्त अलग-अलग शिष्यपरम्पराओं की तालिकाओं के परस्पर समायोजन से बृहद्गच्छीय मुनिजनों की जो संयुक्त तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : द्रष्टव्य तालिका क्रमांक - ५ For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका क्रमांक-५ खोतनसूरि प्रथम सर्वदेवसरि शांतिसूरि के प्राचार्षद ____ प्रदान करने वाले । शांतिसूरि को विधाम्यवन कराने | | वाले नगद के प्रवर्तक अध्याय-३ ग्योतनसूरि दितीय के समकालीन स्वगळीच ५ माचार्य द्योतकसूरि द्वितीय यशोदेवसूरि मानदेवसूरि (स) देवसूरि अजितदेवसूरि मादेवसूरि 'प्रथम देवेनागणि अपरनाम मिलनसरि (आख्यानकमणिकोश, महावीरचरित आदि के रचनाकार) जिनदेवसूरि जयसिसूरि बसोमासूरि मिवन सूरिश्रीचन्द्रसूरि बनेश्वरसूरि विनमचंद उपा. मन्य शिव मानन्दसूति हरिभद्रसूरि भुवनचनासूरि बनामसूरि मुनिचन्द्रसूरि (वि.सं. १९४९ में पूर्णिमागच्छ (बृहद्गच्छीय) के प्रवर्तक) शांतिसूरि (वि.सं. ११६१ में पुहवीचंदचरिय के कर्ता एवं पिप्पलगच्छ के प्रवर्तक) मुनियन मुनि (नेमिचन्द्रसूरि द्वारा आचार्य पद प्राप्त शांतिसूरि से पृथ्वीचंद्रचरित की रचना की प्रार्थना करने वाले) देवमणि ज्योतनसरि जिनचन सरि For Personal & Private Use Only (वि. सं. ११७२ में बंघस्वामित्ववृत्ति, श्रेयांसनाथचरित एवं एवं आगामिकवस्तुविचारसारप्रकरणवृत्ति तथा वि.सं. १९८५ में प्रशमरतिप्रकरणवृत्ति के कर्ता) नेमियन सूरि (आख्यानकमणिकोश एवं महावीरचरित आदि के कर्ता) बनसार मानदेवसूरि (वि.सं. १९९१ में आख्यानकमणिकोशवृत्ति के कर्ता) जगवनासूरि हरिमासूरि तपा०के आदि पुरुष (मुख्यपट्टपर) विजयसेनसूरि - हरिभामूरि नेमिचन्द्रसूरि पशोदेवसूरि गुणाकर (पट्टधर) (प्रवचनसारोद्धार तथा वि.सं. १२१६ में अनन्तनाथचरित के रचनाकार) पादिव (प्रसिद्ध रचनाकार) द्ग - विजयचन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि समन्तमासूरि - -पूर्णिमागळ----- - - - पिप्पलगच्छ---------- - - - - - -तपागच-पादपोशालिकशाला -तपागच्छ-लघुपौशालिकशासा - - ३१ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास सन्दर्भ यह कृति आख्यानकमणिकोश (मूल) के साथ ही प्रकाशित है। इस सम्बन्ध में विस्तार के लिए द्रष्टव्य-अध्याय २, सन्दर्भ क्रमांक ५. २-३. वही, प्रस्तावना, पृ० ११-१२. वही. पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, श्री सयाजा साहित्यमाला, पुष्प ३३५, बड़ोदरा १९६३ ई०, पृ० १३३-३४. धम्मधरुद्धरणमहावराहजिणचंदसूरिसिस्साणं । सिरिअम्मएवसूरीण पायपंकयपराएहिं ॥९५।। सिरिविजयसेणगणहरकणिट्ठजसदेवसूरिजिट्टेहिं । सिरिनेमिचंदसूरिहिं सविणयं सिस्सभणिएहिं ॥१६॥ समयरयणायराओ रयणाणं पिव सयत्थदाराई। निउणनिहाणपुव्वं गहिउं संजत्तिएहिं व ॥९७|| पवयणसारुद्धारोरइओ सपरावबोहकज्जंमि । जंकिंचि इह अजुत्तं वहुस्सुआ तं विसोहंतु ॥९८॥ प्रवचनसारोद्धार की प्रशस्ति मुनि दर्शनविजय, सम्पादक- प्रवचनसारोद्धार, जिनाज्ञा प्रकाशन, वापी वि० सं० २०५४, पृ० २९८-९९. तथा आ० मुनिचन्द्रसूरि, सम्पा० - प्रवचनसारोद्धार, सुरत १९८८ ई०, पृ० ३३५-३३६. पंन्यास मुनि रमणीकविजयजी, सम्पा० पुहवीचंदचरिय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, ग्रन्थांक १६, वाराणसी १९७२ ईस्वी. ८-१०. वही, प्रस्तावना, पृ० १८ और आगे. ११. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कण्डिका ३३२ १२-१३ पुहवीचंदचरिय, प्रस्तावना, पृ० १८. श्री जैनशासननभस्तलतिग्मरश्मि;, श्रीसचान्द्रकुलपद्माविकासकारौ । स्वज्योतिरावृतदिगम्बरडम्बरोऽभूत, श्रीमान् धनेश्वरगुरुः प्रषित; पृथिव्याम् ॥७॥ श्रीमच्चैत्रपुरैकमण्डनमहावीरप्रतिष्ठाकृतस्तस्माच्चैत्रपुरप्रबोधतरणैः श्रीचैत्रगच्छोऽजनि। तत्र श्रीभुवनेन्दुसूरिसुगुरुभूभूषणं भासुरज्योतिः सद्गुणरत्नरोहणगिरिः कालक्रमेणा-भवत् ।।८॥ मुनि चतुरविजय तथा मुनि पुण्यविजय, सम्पा० . For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-३ बृहत्कल्पसूत्रम् वृत्ति, भाग ७, पृ० १७१०. चैत्रगच्छ के सम्बन्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य - श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास, खंड-१, पृ० ४३६-५०३. १४-१६. तपागच्छ और उसकी शाखाओं के इतिहास के सन्दर्भ में द्रष्टव्य. शिवप्रसाद, तपागच्छ का इतिहास, भाग १, वाराणसी २००० ईस्वी. शिवप्रसाद, “तपागच्छ-बृहद्पौशालिक शाखा" निर्ग्रन्थ, तृतीय अंक, अहमदाबाद २००२ ईस्वी, सम्पा०- एम० ए० ढांकी एवं जीतेन्द्र शाह, हिन्दी खण्ड, पृ० ३२५-३४१. १७. पुहवीचंदचरिय, प्रस्तावना, पृ० २१ एवं प्रशस्ति, पृ० २२१-२२२. १८-१९. पूर्णिमागच्छ और पिप्पलगच्छ के सम्बन्ध में इसी पुस्तक में यथास्थान में विवरण प्रस्तुत किया गया है । २०. पं० लालचंद भगवानदास गांधी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पृ० १२९-१३२. २१. चन्द्रप्रभचरित्र की प्रशस्ति C.D. Dalal Ed. A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandars at. Patran, pp 252-256. पं० लालचंद भगवानदास गांधी, पूर्वोक्त, पृ० १३३-३४. २२. वही, पृ० १३२. द्रष्टव्य - तालिका क्रमांक २. For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय वादिदेवसूरि और उनकी शिष्य - परम्परा ५ अब हम आचार्य वादिदेवसूरि के गुरु आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की रचनाओं और उनकी शिष्य-परम्परा पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे, जिनसे बृहद्गच्छ की परम्परा आगे चली । - आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की गुरु-परम्परा का प्रारम्भ में ही यथास्थान उल्लेख किया जा चुका है। इनके द्वारा रचित ३० से ज्यादा कृतियों का उल्लेख प्राप्त होता है, जिनमें से प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं १ : १ २ ३ ४ ६ ४ देवेन्द्रनरेन्द्रप्रकरणवृत्ति वि०सं० ११६८. सूक्ष्मार्थसार्थशतकचूर्णि वि०सं० ११७०. अनेकान्तजयपताकाटिप्पण वि०सं० ११७१. उपदेशपदवृत्ति ललितविस्तरापंजिका धर्मबिन्दुवृत्ति (वि०सं० १९८१ से पूर्व ) कर्मप्रकृति- विशेषवृत्ति ७ इसके अलावा इनके द्वारा रचित स्वतंत्र कृतियां भी मिलती हैं १ २ ३ अंगुलसप्तति आवश्यक (पाक्षिक) सप्तति वनस्पतिसप्ततिका For Personal & Private Use Only — ११- प्रभातिस्तुति १२- शोकहरउपदेशकुलक १३- सम्यक्त्वोत्पादविधि Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ अध्याय-४ ४- गाथाकोश १४- सामान्यगुणोपदेशकुलक ५- अनुशासनांकुशकुलक १५- हितोपदेशकुलक ६-७- उपदेशामृतकुलक प्रथम और द्वितीय १६- कालशतक ८- उपदेशपंचासिका १७- मंडलविचारकुलक ९-१०- धर्मोपदेशकुलक प्रथम और द्वितीय १८- द्वादश वर्ग ___मुनिचन्द्रसूरि के ख्यातिनाम शिष्यों में वादिदेवसूरि और अजितदेवसूरि प्रमुख थे । इनमें से वादिदेवसूरि और उनकी शिष्य-परम्परा के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है । वादिदेवसूरि ये आचार्य मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। आबू से २५ मील दूर मडार नामक स्थान में वि०सं० ११४३/ई०स० १०८७ में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम वारिनाग और माता का नाम जिनदेवी था। आचार्य मुनिचन्द्रसूरि के उपदेश से माता-पिता ने बालक को उन्हें सौंप दिया और उन्होंने वि०सं० ११५२/ई०स० १०९६ में इन्हें दीक्षित कर मुनि रामचन्द्र नाम रखा। वि०सं० ११७४/ई०स० १११८ में इन्होंने आचार्य पद प्राप्त किया और देवसूरि के नाम से विख्यात हुए।२ वि०सं० ११८१-८२/ई०स० १०२४ में चौलुक्यनरेश जयसिंह-सिद्धराज की राजसभा में इन्होंने कर्णाटक से आये दिगम्बर आचार्य कुमुदचन्द्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया और वादिदेवसूरि के नाम से विख्यात हुए। आचार्य हेमचन्द्रसूरि इस शास्त्रार्थ में वादिदेवसूरि के कनिष्ठ सहयोगी के रूप में विद्यमान थे। वादविषयक ऐतिहासिक उल्लेख कवि यशश्चन्द्रकृत मुद्रितकुमुदचन्द्र३ में प्राप्त होता है। ये गुजरात के प्रमाणशास्त्र के श्रेष्ठ विद्वानों में से थे। इन्होंने प्रमाणशास्त्र पर प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार नामक ग्रन्थ ८ परिच्छेदों में रचा और उस पर स्याद्वादरत्नाकर नामक बड़ी टीका की भी रचना की। इस ग्रन्थ की रचना में इन्हें अपने शिष्यों- भद्रेश्वरसूरि और रत्नप्रभसूरि से सहायता प्राप्त हुई। इनके द्वारा रचित अन्य रचनायें निम्नानुसार हैं : जीवानुशासन मुनिचन्द्राचार्यस्तुति गुरुविरहविलाप For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास द्वादशव्रतस्वरूप कुरुकुल्लादेवीस्तुति पार्श्वधरणेन्द्रस्तुति कलिकुण्डपार्श्वजिनस्तवन यतिदिनचर्या जीवाभिगमलघुवृत्ति उपधानस्वरूप प्रभातस्मरणस्तुति उपदेशकुलक संसारोद्विग्नमनोरथकुलक वि०सं० १२२६में इनका देहान्त हुआ वादिदेवसूरि के विशाल शिष्य परिवार के प्रमुख शिष्यों के नाम निम्नानुसार हैं :४ १- भद्रेश्वरसूरि ८- पद्मचन्द्रगणि २- रत्नप्रभसूरि ९- पद्मप्रभसूरि ३- माणिक्यसूरि १०- महेश्वरसूरि ४- अशोकमुनि ११- गुणचन्द्र ५- विजयसेन १२- शालिभद्र ६- पूर्णदेवाचार्य ७- जयप्रभमुनि वादिदेवसूरि के गृहस्थ शिष्यों में थाहड़, नागदेव, उदयन, वाग्भट्ट आदि श्रीमंत भी थे । भद्रेश्वरसूरि इनके द्वारा रचित कोई स्वतन्त्र कृति नहीं मिलती। जैसाकि ऊपर कहा जा चुका है। इन्होंने अपने गुरु वादिदेवसूरि को प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार और उस पर स्याद्वादरत्नाकर नामक टीका की रचना में सहायता प्रदान की। भद्रेश्वरसूरि के एक शिष्य परमानन्दसूरि हुए जिन्होंने वि०सं० १२५० के आस-पास खण्डनमण्डनटिप्पण नामक कृति की रचना की।५ For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-४ ३७ भद्रेश्वरसूरि की शिष्य-परम्परा में मुनिदेवसूरि नामक एक विद्वान् आचार्य हुए। इन्होंने वि०सं० १३२२/ई०स० १२६६ में शांतिनाथचरित की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा की चर्चा की है, जो इस प्रकार है : भद्रेश्वरसूरि अभयदेवसूरि मदनचन्द्रसूरि मुनिदेवसूरि (वि०सं० १३२२/ई०स०१२७६ में __शांतिनाथचरित के रचनाकार) भद्रेश्वरसूरि की ही शिष्य-परम्परा में ही हुए मुनिभद्रसूरि ने उक्त शांतिनाथचरित के आधार पर वि०सं० १४१०/ई०स० १३५४ में एक अन्य शांतिनाथचरित की रचना की। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : भद्रेश्वरसूरि विजयचन्द्रसूरि मानभद्रसूरि गुणभद्रसूरि मुनिभद्रसूरि (वि०सं० १४१०/ई०स० १३५४ में शांतिनाथचरित के रचनाकार) । इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि रचनाकार के गुरु गुणभद्रसूरि को सुल्तान मुहम्मद तुगलक एवं रचनाकार को उसके उत्तराधिकारी फिरोजशाह तुगलक (ई०स० १३५३-१३८८) ने अपने राजदरबार में सम्मानित किया था। यह प्रशस्ति न केवल बृहद्गच्छ बल्कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त ही महत्त्वपूर्णहै।" For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास वि०सं० १३९२/ई०स० १३३६ में रत्नदेवगणि को वज्जालग्ग की टीका की रचना के लिए प्रेरणा देने वाले हरिभद्रसूरि के शिष्य धर्मचन्द्र भी इसी गच्छ के थे।८ हरिभद्रसूरि के प्रगुरु का नाम विजयचन्द्रसूरि और गुरु का नाम मानभद्रसूरि था। मानभद्रसूरि के एक अन्य शिष्य विद्याकर गणि ने वि०सं० १३६८ में हैमव्याकरण पर दीपिका की रचना की।९ इसे तालिका के रूप में निम्नप्रकार से रखा जा सकता है : विजयचन्द्रसूरि मानभद्रसूरि हरिभद्रसूरि विद्याकर गणि (वि० सं० १३६८ में हैमव्याकरण मुनि धर्मचन्द्र पर दीपिका के रचनाकार) (इनकी प्रेरणा पर वि०सं० १३९२ में रत्नदेवगणि ने वज्जालग्ग पर टीका . की रचना की) वि०सं० १४१० में मुनिभद्रसूरि द्वारा रचित शांतिनाथचरित की प्रशस्ति, जिसका ऊपर उल्लेख आ चुका है, में विजयचन्द्रसूरि का वादिदेवसूरि के प्रशिष्य व भद्रेश्वरसूरि के शिष्य के रूप में नाम मिलता है। इस प्रकार भद्रेश्वरसूरि की शिष्य सन्तति की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : वादिदेवसूरि भद्रेश्वरसूरि विजयचन्द्रसूरि अभयदेवसूरि परमानन्दसूरि (वि०सं०१२५० के आस-पास खण्डनमण्डनकाव्यटिप्पण के कर्ता) मानभद्रसूरि मदनचन्द्र For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-४ ३९ हरिभद्र गणभद्र विद्याकरगणि मुनिदेवसूरि (वि०सं० १३६८ में (वि०सं०१३२२ में हैमव्याकरणदीपिका के कर्ता) शांतिनाथचरित के कर्ता) धर्मचन्द्र मुनिभद्र (वि०सं० १४१० में शांतिनाथचरित (वि०सं० १३९२ के के रचनाकार एवं मुहम्मदतुगलक के रत्नदेवगणि ने वज्जालग्ग टीका उत्तराधिकारी फिरोजतुगलक से सम्मानित) की इनकी प्रेरणा से रचना की) वादिदेवसूरि के दूसरे शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा वि०सं० १२३३ में रचित नेमिनाथचरित तथा उपदेशमाला पर वि० सं० १२३८ में रची गयी दोघट्टी नामक वृत्ति तथा स्याद्वादरत्नाकर पर रचित लघुटीका नामक कृतियां प्राप्त होती हैं।१० वि०सं० १३३८ के एक प्रतिमालेख में बृहद्गच्छीय परमानन्दसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में नाम मिलता है।११ इस लेख में परमानन्दसूरि के गुरु हरिभद्रसूरि और प्रगुरु रत्नप्रभसूरि का भी नाम मिलता है जिन्हें नामसाम्य और गच्छसाम्य को देखते हुए वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि से अभिन्न तो माना जा सकता है; किन्तु इनमें सबसे बड़ी बाधा रत्नप्रभसूरि और परमानन्दसूरि के बीच लगभग १०० वर्षों के दीर्घ समयान्तराल को लेकर है। तीन आचार्यों के मध्य लगभग १०० वर्षों का समयान्तराल होना असम्भव तो नहीं, परन्तु कठिन अवश्य लगता है। वादिदेवसरि के तीसरे शिष्य माणिक्यसूरि द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न कोई प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमा आदि ही। इसी प्रकार इनके शिष्यों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिल पाती। ठीक यही बात वादिदेवसूरि के चौथे शिष्य अशोकमुनि और पांचवें शिष्य विजयसेन के बारे में कही जा सकती है। ___ वादिदेवसूरि के छठे शिष्य पूर्णदेव द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु इनके शिष्य रामचन्द्र के वि०सं० १२६८ के उत्कीर्ण लेख में इनका नाम मिलता है। मुनि जिनविजय जी ने इस लेख की वाचना दी है,१२ जो निम्नानुसार है : (१) ओं ॥ संवत् १२२१ श्रीजावालिपुरीयकांचन (गि) रिगढस्योपरि प्रभुश्रीहेमसूरिप्रबोधितश्रीगूजरधराधीश्वरपरमार्हतचौलुक्य For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) बृहद्गच्छ का इतिहास (२) महारा(ज)।धिराजश्री(कु)मारपालदेवकारिते श्रीपा (व)नाथसत्कम्(ल)विंव(बिंब)सहितश्रीकुवरविहाराभिधाने जैनचैत्ये। सद्विधिप्रव(र्त)नाय वृ(बृ) हद्गच्छीयवा - (३) दींद्रश्रीदेवाचार्याणां पक्षे आचंद्राक्कं समर्पिते ।। सं० १२४२ वर्षे एतद्देसा (शा) धिपचाहमानकुलतिलकम हाराजश्रीसमरसिंहदेवादेशेन भां० पासूपुत्र भां० यशो(४) वीरेण स(मु)द्धते श्रीमद्राजकुलादेशेन श्रीदे(वा)चार्य शिष्यैः श्रीपूर्णदेवाचार्यैः। सं० १२५६ वर्षे ज्येष्ठसु० ११ श्रीपार्श्वनाथदेवे तोरणादीनां प्रतिष्ठाकार्ये कृते। मूलशिखरे व(च)कनकमयध्वजादंडस्य ध्वजारोपणप्रतिष्ठायां कृतायां ॥ सं० १२६८ वर्षे दीपोत्सवदिने अभिनवनिष्पन्नमेक्षामध्यमंडपे श्रीपूर्णदेवसूरिशिष्यैः श्रीरामचंद्राचार्यै(:) सुवर्णमयकलसारोपणप्रतिष्ठा कृता।। सु(शु)भ भवतु ॥छ।। यह लेख कुमारविहार, जालौर का है । इससे ज्ञात होता है कि वि० सं० १२२१ में चौलुक्यनरेश कुमारपाल ने सुवर्णगिरि दुर्ग पर पार्श्वनाथ का एक जिनालय निर्मित कराया था और उसे सद्विधि के प्रवर्तानादि बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के पक्ष को समर्पित कर दिया था । वि० सं० १२४२ में चौहान नरेश समरसिंह के आदेश से भाण्डागारिक पासु के पुत्र भाण्डागारिक यशोभद्र ने इसका पुनरुद्धार कराया । वि० सं० १२५६ ज्येष्ठ सुदि ११ को श्रीदेवाचार्य (वादिदेवाचार्य) के शिष्य पूर्णदेवाचार्य ने राजकीय आदेश से पार्श्व जिनालय के तोरणादि की प्रतिष्ठा व मूल शिखर पर सुवर्णमय ध्वजादंड प्रतिष्ठा व ध्वजारोहण किया । वि० सं० १२६८ में नवनिर्मित प्रेक्षामंडप में श्रीपूर्णदेवाचार्य के शिष्य रामचंद्रसूरि ने सुवर्णकलशों को प्रतिष्ठापूर्वक चढ़ाया । रामचन्द्रसूरि जन्मान्ध किन्तु विद्वान् आचार्य थे । उनके द्वारा संस्कृत भाषा में रची गयी ८ द्वात्रिंशिकायें एक चर्तुविंशतिका एवं १७ षोडषिकायें मिलती हैं ।१३ इन्ही के शिष्य जयमंगलसूरि द्वारा सुंधा पहाड़ी पर स्थित चामुंडा मंदिर पर वि० सं० १३१८ For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ अध्याय-४ में उत्तीर्ण ऐतिहासिक प्रशस्ति की रचना की गयी ।१४ जयमंगलसूरि द्वारा रचित कविशिक्षा, भट्टिकाव्यवृत्ति, महावीरजन्मभिषेकभास आदि कृतियां भी मिलती हैं ।१५ इनके शिष्य सोमचन्द्र ने वि० सं० १३२९/ई० सं० १२७३ में वृत्तरत्नाकर पर वृत्ति की रचना की ।१६ जयमंगलसूरि के एक अन्य शिष्य अमरचन्द्र के प्रशिष्य ज्ञानकलश ने ईस्वी सन् की चौदहवीं शताब्दी के मध्य सन्देहसमुच्चय की रचना की ।१७ रामचन्द्रसूरि की शिष्य परम्परा इस प्रकार निश्चित होती है : वादिदेवसूरि पूर्णदेवसूरि रामचन्द्रसूरि जयमंगलसूरि अमरचन्द्रसूरि सोमचन्द्र (वि० सं० १३२९ में वृत्तरत्नाकरवृत्ति के कर्ता) मुनि धर्मघोष मुनि धर्मतिलक मुनि ज्ञानकलश (ई० स० १४वीं शती के मध्य सन्देहसमुच्चय के कर्ता) वादिदेवसूरि के सातवें शिष्य जयप्रभ और ११वें शिष्य गुणचन्द्र द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही कोई प्रतिमालेखादि ही किन्तु जयप्रभ के शिष्य रामभद्रसूरि द्वारा रचित प्रबुद्धरोहिणेय१८ नाटक और कालकाचार्यकथा१९ नामक कृतियां मिलती हैं । इसका समय विक्रमसम्बत् की १३वीं शती का उत्तरार्ध माना जाता है। ___ संघवी पाड़ा, पाटण में संरक्षित उत्तराध्ययनसूत्र२० की वि० सं० १३८१ में लिखी गयी प्रति में लेखक महीचन्द्र को वादिदेवसूरि की परम्परा में हुए रामभद्रसूरि का शिष्य कहा गया हैं । जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं रामभद्रसूरि का समय विक्रम संवत् की तेरहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध सुनिश्चित है, ऐसी स्थिति में महीचन्द्र के गुरु रामभद्रसूरि For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ बृहद्गच्छ का इतिहास और जयप्रभसूरि तथा वादिदेवसूरि के प्रशिष्य रामभद्रसूरि को एक ही व्यक्ति मानने में बाधा उत्पन्न होती है क्योंकि दोनों के मध्य लगभग १०० वर्षों का दीर्घ समयान्तराल है । यह भी संभव है कि वि० सं० १२८२ की जगह भूल से उत्तराध्ययनसूत्र का प्रतिलिपिकाल उक्त पुस्तक में १३८१ छप गया हो । यदि यह संभावना सही है तो दोनों रामभद्रसूरि एक व्यक्ति माने जा सकते हैं, किन्तु इस बात का सही निर्णय तो संघवी पाड़ा की उत्तराध्ययनसूत्र की महीचन्द्रमुनि द्वारा लिखित प्रति को देख कर ही किया जा सकता है । वादिदेवसूरि जयप्रभसूरि रामभद्रसूरि (प्रबुद्धरोहिणेय नाटक तथा कालकाचार्यकथा के रचनाकार) वादिदेवसूरि के ८वें शिष्य पद्मचन्द्रगणि द्वारा वि०सं० १२१५ वैशाख सुदि १० मंगलवार को प्रतिष्ठापित नेमिनाथ और शांतिनाथ की प्रतिमायें प्राप्त हुई है। वर्तमान में ये पद्मप्रभ जिनालय, नाडोल में है। मुनि जिनविजय जी ने इन लेखों की वाचना दी है, २१ जो निम्नानुसार हैं : (१) संवत् १२१५ ॥ वैशाख सुदि १० भौमे वीसाडास्थाने श्रीमहावीर चै(त्ये समु) दा(२) य सहितैः देवणाग नागड जोगडसुतैः देम्हाज धरण जसचंद्र ज(३) सदेव जसधवल जसपालैः श्रीनेमिनाथबिं कारित।। बृह(द्गच्छी)य श्रीमद्देवसूरिशिष्येण पं० पद्मचन्द्रगणिना प्रतिष्ठितं।। नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख (१) संवत् १२१५ वैशाख सुदि १० भौमे वीसाडास्थाने श्रीमहावीरचैत्ये समुदायस (४) For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-४ (२) हितैः देवणाग नागड जोगडसुतैः देम्हाज धरण जसचंद्र जसदेव।। (३) जसधवल जसपालैः श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद् - (४) च्छीय श्रीमन्मुनिचंद्रसूरिशिष्य श्रीमद्देवसूरिविनयेन पाणिनीय पं० पद्मचं. (५) द्रगणिना यावद्दिवि चंद्ररवी स्यातां धर्मो जिनप्रता तोस्ति ताव (ज्जी) यादेत(६) (ज्जि) न युगलं वीरजिनभुवने।। शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वादिदेवसूरि के नवे शिष्य पद्मप्रभसूरि से नागपुरीयतपागच्छ अस्तित्त्व मे आया।२२ इनके द्वारा रचित भुवनदीपक अपरनाम ग्रहभावप्रकाश नामक कृति प्राप्त होती है।२३ ___ दसवें शिष्य महेश्वरसूरि द्वारा पाक्षिकसप्तति पर रची गयी सुखप्रबोधिनी वृत्ति प्राप्त होती है ।२४ बारहवें शिष्य महेन्द्रप्रभ द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु उनके शिष्य प्रद्युम्नसूरि द्वारा रचित वादस्थल नामक कृति प्राप्त होती है।२५ इनके शिष्य मानदेव का वि०सं० १३१० के लेख में और प्रशिष्य जयानन्द का वि०सं० १३०५ के गिरनार के शिलालेख में नाम मिलता है।२६ तेरहवें शिष्य शालिभद्रसूरि ने वि०सं० १२४१ में भरतेश्वरबाहुबलिरास२७ की रचना की। वि०सं० १२८८-१३०७ के मध्य प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं२८ पर प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में पद्मदेवसूरि का नाम मिलता है। इन लेखों में पद्मदेवसूरि के गुरु का नाम पूर्णभद्रसूरि बताया गया है जो वादिदेवसूरि के संतानीय (शिष्य) थे । उक्त विवरण को तालिका के रूप में निम्नप्रकार से रखा जा सकता है – द्रष्टव्यवादिदेवसूरि के शिष्य परम्परा की विस्तृत तालिका - For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ xx वादिदेवसूरि के शिष्य-प्रशिष्य परम्परा की तालिका वादिदेवसूरि रत्नप्रभसूरि माणिक्यसूरि अशोकमुनि विजयसेनसूरि भद्रेश्वरसूरि पूर्णदेवसूरि विजयचन्द्रसूरि परमानन्दसूरि अभयदेवसूरि हरिभद्रसूरि रामचन्द्रसूरि मानभद्रसूरि मदनचन्द्रसूरि परमानन्दसूरि जयमंगलसूरि For Personal & Private Use Only हरिभद्रसूरि गुणभद्रसूरि मुनिदेवसूरि अमरचन्द्रसूरि सोमचन्द्र धर्मचन्द्र मुनिभद्रसूरि मुनिधर्मघोष धर्मतिलक ज्ञानकलश जयप्रभसूरि पत्रचन्द्रगणि पद्मप्रभसूरि महेश्वरसूरि गुणचन्द्रगणि महेन्द्रप्रभसूरि शालिभद्रसूरि बृहद्गच्छ का इतिहास प्रद्युम्नसूरि Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-४ ४५ वि०सं०११८०/ई०स०११२४ में नाभेयनेमिकाव्य के कर्ता आचार्य हेमचन्द्रसूरि भी इसी गच्छ के थे।२९ इनके गुरु का नाम अजितदेवसूरि था जो मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य थे। मुनिचन्द्रसूरि अजितदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि (वि०सं० ११८०/ई०स० ११२४ में नाभेयनेमिकाव्य के कर्ता) सुप्रसिद्ध विद्वान् मुनि जिनविजय जी ने स्वसम्पादित कुमारपालप्रतिबोध (रचनाकार बृहद्गच्छीय सोमप्रभसूरि; रचनाकाल वि०सं० १२४१/ई०स० ११८५) की प्रस्तावना३० में हेमचन्द्रसूरि को सोमप्रभसूरि का गुरुभ्राता तथा विजयसिंहसूरि का शिष्य एवं अजितदेवसूरि का प्रशिष्य बतलाया है - मुनिचन्द्रसूरि अजितदेवसूरि विजयसिंहसूरि हेमचन्द्रसूरि सोमप्रभसूरि (वि०सं० ११८०/ई०स० ११२४ (वि०सं० १२४१/ई०स०११८५ में नाभेयनेमिकाव्य के रचनाकार) कुमारपालप्रतिबोध के कर्ता) नाभेयनेमिकाव्य की प्रशस्ति के आधार पर पं० लालचन्द भगवानदास गांधी ने हेमचन्द्रसूरि को कुमारपालप्रतिबोध के कर्ता सोमप्रभसूरि का गुरुभ्राता नहीं उनके गुरु विजयसिंहसूरि का गुरुभ्राता बतलाया है३१ : मुनिचन्द्रसूरि अजितदेवसूरि विजयसिंहसूरि हेमचन्द्रसूरि (वि०सं० ११८० में नाभेयनेमिकाव्य के कर्ता) सोमप्रभसूरि (वि०सं० १२४१ में कुमारपालप्रतिबोध के कर्ता) For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ....... बृहद्गच्छ का इतिहास हेमचन्द्रसूरि और सोमप्रसूरि३२ के मध्य लगभग ६० वर्षों के दीर्घ समयान्तराल को देखते हुए मोहनलाल दलीचंद देसाई और लालचन्द भगवानदास गांधी का मत यथार्थ माना जा सकता है। ___सोमप्रभसूरि भी अपने समय के विख्यात और समर्थ विद्वान् थे । उनके द्वारा रचित कुमारपालप्रतिबोध के अतिरिक्त सूक्तिमुक्तावली अपरनाम सिन्दूरप्रकर (जिसका एक नाम सोमशतक भी है) रचनाकाल वि० सं० १२५० के आस-पास, सुमतिनाहचरिय, शतार्थकाव्य और उसपर वृत्ति आदि रचनायें मिलती हैं । शंखेश्वर महातीर्थ से प्राप्त वि० सं० १२३८ के एक अभिलेख में किन्ही सोमप्रभसूरि द्वारा मातृपट्टिकास्थापित करने का उल्लेख मिलता है । मुनि जयन्तविजय ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है: पट्टः श्री शं... .....१२३८ वर्ष माघ सुदि ३शनौ श्रीसोमप्रभसूरिर्जिनमातृपट्टिका प्रतिष्ठिता..............................त्राभ्यां राजदेव । रत्नाभ्यां स्वमातु... ..............।। कल्याणमस्तु श्रीसंघस्य ॥ शंखेश्वरमहातीर्थ, लेखांक ९, पृष्ठ १८४. उक्त अभिलेख में उल्लिखित सोमप्रभसूरि और बृहदगच्छीय सोमप्रभसूरि को समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं आती । वि० सं० १२८४ के आस-पास श्रीमालनगर में इनका देहान्त हुआ । ___ हेमचन्द्रसूरि और सोमप्रभसूरि की शिष्य-संतति आगे चली या नहीं ? यदि आगे चली तो उनमें कौन-कौन से मुनिजन हुए, इस सम्बन्ध में हमारे पास कोई भी विवरण उपलब्ध नहीं है । ___ साहित्यिक साक्ष्यों से बृहद्गच्छ के कुछ ऐसे भी मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, जिनकी गुरु-परम्परा के एक-दो नामों को छोड़कर अन्य कोई जानकारी ही नहीं मिलती। इनका विवरण निम्नानुसार है : ___ वि०सं० १२४७(८) में नागेन्द्रगच्छीय बालचन्द्रसूरि द्वारा रचित विवेकमंजरीटीका के संशोधक के रूप में उक्त गच्छ के विजयसेनसूरि और बृहद्गच्छ के पद्मसूरि का नाम मिलता है।३३ ये पद्मसूरि बृहद्गच्छ के किस मुनि या आचार्य के शिष्य थे, यह बात साक्ष्यों के अभाव में जान पाना कठिन है। For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय- ४ ४७ वि० सं० १३६८ में हैमव्याकरण बृहद्वृत्तिदीपिका के रचनाकार विद्याकरगणि के गुरु का नाम मानभद्रसूरि और प्रगुरु का नाम वादिदेवसूरिसंतानीय विजयचन्द्रसूरि था ।३४ उक्त विजयचन्द्रसूरि का वादिदेवसूरि के किस शिष्य से सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता । विक्रम संवत् १४२७ में रचित यन्त्रराज की प्रशस्ति ३५ से ज्ञात होता है कि रचनाकार मलयचन्द्र के गुरु का नाम बृहद्गच्छीय महेन्द्रसूरि था, जिनका सुलतान फिरोजतुगलक ने सम्मान किया था। महेन्द्रसूरि के गुरु का नाम मदनसूरि था। महेन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित दो सलेख जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १४२२ और १४२४ की है। ३६ यही समय फिरोजशाह तुगलक (वि०सं०१४०७-१४४४ / ई०स० १३५११३८८) का भी है। महेन्द्रसूरि के गुरु मदनसूरि के गुरु- प्रगुरु आदि के बारे में किन्हीं भी अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी नहीं मिल पाती। महेन्द्रसूरि के शिष्य का नाम मलयचन्द्रसूरि था, जिन्होंने अपने गुरु की कृति पर टीका की रचना की। ? मदनसूरि बृहद्गच्छीय महेन्द्रसूरि (वि० सं० मलयचन्द्र १४२२-२४) प्रतिमालेख; सुल्तान फिरोजतुगलक द्वारा सम्मानित) यन्त्रराज के रचनाकार ( यन्त्रराजटीका- वि० सं० १५वीं शताब्दी - द्वितीय चरण के आस-पास के कर्ता) मदनसूरि तथा उनके शिष्य महेन्द्रसूरि और प्रशिष्य मलयचन्द्र का वादिदेवसूरि की शिष्य सन्तति के बीच परस्पर किस तरह का सम्बन्ध था, इस बारे में हमें आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है । मलयचन्द्र की शिष्य संतति में कौन-कौन से मुनिजन हुए, इस सम्बन्ध में भी किसी प्रकार का विवरण उपलब्ध नहीं होता । जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, इस गच्छ की एक पट्टावली मिलती है३७, जो वि० सं० की १७वीं शती के प्रथम चरण के प्रारम्भ में मुनिमाल द्वारा रची गयी है । यह वादिदेवसूरि से प्रारम्भ होती है । इसमें प्राप्त गुरु-परम्परा निम्नानुसार है : For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ बृहद्गच्छ का इतिहास वादिदेवसूरि विमलचन्द्र उपाध्याय मानदेवसूरि हरिभद्रसूरि पूर्णप्रभसूरि नेमिचन्द्रसूरि नयचन्द्रसूरि मुनिशेखरसूरि श्रीतिलकसरि भद्रेश्वरसूरि मुनीश्वरसूरि रत्नप्रभसूरि महेन्द्रसूरि मुनिनिधानसूरि For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय- ४ मेरुप्रभसूर 1 राजरत्नसूर 1 मुनिदेवसूर 1 रत्नशेखरसूरि 1 पुण्यप्रभसूर I संयमरत्नसूरि (वि०सं० १५६९ में पद स्थापना ) 1 भावदेवसूरि (वि०सं० १६०४ में भट्टारक पद प्राप्त) आवश्यकनिर्युक्ति के प्रतिलिपिकार मुनि जयशेखर ३८ भी मुनिमाल द्वारा दी गयी गुर्वावली में उल्लिखित मुनीश्वरसूरि की परम्परा के माने जा सकते हैं। उक्त कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु- परम्परा दी है, जो इस प्रकार है: मुनीश्वरसूर 1 वाचक भद्रमेरु 1 वाचक मनोदय ४९ 1 मुनि जयशेखर (वि०सं० १५३२ / ई०स० १४७६ में आवश्यक नियुक्ति के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १५४९ ( ई०स० १४९३ में रची गयी सुभद्राचउपई के रचनाकार वाचक विनयरत्न भी बृहद्गच्छ के मुनीश्वरसूरि की ही परम्परा के थे । ३९ उक्त कृति की प्रशस्ति में उन्होंने जो गुरु-परम्परा दी है, वह इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास वादिदेवसूरि की परम्परा के मुनीश्वरसूरि मेरुप्रभसूरि राजरत्नसूरि मुनिदेवसूरि वाचक महीरत्न मुनिसार वाचक विनयरत्न (वि०सं० १५४९ में सुभद्राचउपई के रचनाकार) वि०सं० १६१९ में श्राद्धजीतकल्पवृत्ति के प्रतिलिपिकार शीलदेव भी बृहद्गच्छ के थे।४० उक्त प्रति की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को भावदेवसूरि का शिष्य कहा है। मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छगुर्वावली में भी भावदेवसूरि का नाम ऊपर हम देख चुके हैं। शीलदेव के शिष्य मांडण ने वि०सं० १६५८ में योगरत्नाकर का प्रतिलिपि की।४१ भावदेवसूरि (वि०सं० १६०४ में भट्टारक पद प्राप्त) शीलदेव (वि०सं० १६१९ में श्राद्धजीतकल्पवृत्ति के प्रतिलिपिकार) मांडण (वि०सं० १६५८ में योगरत्नाकर के प्रतिलिपिकार) अगले अध्याय में बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों का विस्तृत विवरण और उनके आधार प्राप्त इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की तालिकाओं का साहित्यिक साक्ष्यों से प्राप्त विभिन्न गुरु-परम्पराओं से परस्पर समायोजन की संभावना प्रस्तुत है । For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय- ४ सन्दर्भ १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८-९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कण्डिका ३३२-३३४. श्रीनवलमल जी बिनौलिया, “श्रीवादिदेवसूरि" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ३, अंक १०-१२, ५१ पृ० ३७५-३८२. देसाई, पूर्वोक्त कण्डिका ३४३, पृ० २४७-४८. बिनौलिया, पूर्वोक्त, पृ० ३८२. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ४८७, जिनरत्नकोश, पृ० १००. P. Peterson, Opration in Search of Sanskrit & Prakrit MSS in Bombay Circle, Vol. I, App. p-6, Vol. III, App. p-65. Vol. 4, p-XCV. Muni Punya Vijaya, Ed., New Catalogue of Mss in the Jaina Bhandars at Jesalmer, No. 90,p 192. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ५९४. वही, कण्डिका ६४२-६४४. गुलाबचन्द चौधरी, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० २२३-२४. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ६३०,६३३. रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति (जिसका संशोधन इनके ज्येष्ठ गुरुभ्राता भद्रेश्वरसूरि ने किया) तथा अपने गुरु वादिदेवसूरिकृत स्याद्वादरत्नाकर पर रचित लघु टीका नामक कृतियां प्राप्त होती हैं । देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ४८३. अध्याय ५ के अन्तर्गत लेख तालिका में इसका विवरण प्रस्तुत किया गया है । मुनि जिनविजय, संपा०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३५२. मुनि चतुरविजयजी, संपा० जैनस्तोत्रसन्दोह, प्रथम भाग, प्रस्तावना, पृष्ठ ४८-४९. मुनि चतुरविजयजी ने उक्त रामचन्द्रसूरि को कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि के शिष्य सुप्रसिद्ध नाट्यकार रामचन्द्रसूरि से अभिन्न माना है । त्रिपुटी महाराज ने भी मुनि चतुरविजयजी के मत का समर्थन किया है । इसके विपरीत मुनि कल्याणविजयजी और पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह उक्त रामचन्द्रसूरि को बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के प्रशिष्य और पूर्णदेवसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि से अभिन्न बतलाया है । प्रो० एम. ए. ढांकीने भी विभिन्न अकाट्य साक्ष्यों के आधार पर मुनि कल्यणविजयजी एवं शाहजी के मत की पुष्टि की है । " कवि रामचन्द्र अने कवि सागरचन्द्र', सम्बोधि, वर्ष ११, अंक १-४, पृष्ठ ६८-७८. F. Keilhorn, "Sundha Hill Inscription of Cacigadeva, Vikram Samvat 1319. " Epigraphiya Indica, Vol IX - 1907-08, p. 79. पूरनचन्द्र नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ४३. हीरालाल रसिकलाल कापडिया, जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास, द्वितीय संस्करण, संपा० आ० मुनिचन्द्रसूरि, भाग-२, पृष्ठ ३२६. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ३५४. A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Ac. Vijayadevasuries and Ac Ksantisuries collections, Part IV, L. D. Series No. 20, p. 95. For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ २१. २५ बृहद्गच्छ का इतिहास १७. A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts : Muniraj Shree Punya VijayaJis Collections, Part I, p. 182. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ३६५. अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, संपा० कालिकाचार्यकथा संग्रह, पृ० १७-१८ । C. D. Dalal, Ed. A Descriptive Catalogue of Manuscriptive in the Jain Bhandar's at Patan Vol. I, P-62. वही, लेखांक ३६४, ३६५. २२-२३. अध्याय ७ के अन्तर्गत इस सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डाला गया है । देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ४८४. वही, कण्डिका ४८२. मुनि जिनविजय, संपा०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५३. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ५०५. अध्याय ५ के अन्तर्गत लेख तालिका में इसका विवरण प्रस्तुत किया गया है । Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan, Introduction, p. 50. जिनरत्नकोश, पृष्ठ २१०. मुनि जिनविजय, सम्पा०- कुमारपालप्रतिबोध (सोमप्रभाचार्य; रचनाकाल वि०सं० १२४१), गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, ग्रन्थांक १४, बड़ोदरा १९२० ई०, प्रस्तावना, पृ० १-४. पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पृ० ८२-८४. सोमप्रभाचार्य द्वारा रचित सुमतिनाथचरित, सूक्तिमुक्तावली एवं शतार्थीकाव्य नामक कृतियां भी मिलती हैं। मुनि जिनविजय, कुमारपालप्रतिबोध, प्रस्तावना, पृ० ४-७. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ५५१. वही, कण्डिका ६३०. A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss Muniraja Shri Punya VijayaJi's Collection , Part-III, P. 443. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया के अनुसार यह कृति ई०स० १८८३ में सुधाकर द्विवेदी और एल०शर्मा द्वारा वाराणसी से प्रकाशित हुई है। जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, खण्ड १, द्वितीय संस्करण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि, सूरत २००४ ईस्वी, पृष्ठ १३९, पाद टिप्पणी. १. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार यह ग्रन्थ निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से भी प्रकाशित हुआ है । भारतीय ज्योतिष, द्वितीय संस्करण, काशी १९६०ई०, पृष्ठ ६२२. यंत्रराज के सम्बन्ध में विस्तार के लिए द्रष्टव्य, नेमिचन्द्र शास्त्री, पूर्वोक्त, पृष्ठ १६१. अध्याय ५ के अन्तर्गत लेख क्रमांक ८६-८८.. मुनि जिनविजय, सम्पा०- विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृ०५२-५५. अमृतलाल मगनलाल शाह, सम्पा०- श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक १४९, पृ० ३५. शीतिकण्ठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास- मरु-गूर्जर, भाग १, पृ० ११५. अमृतलाल मगनलाल शाह, पूर्वोक्त, भाग-२, प्रशस्ति क्रमांक ४३६, पृ० ११५. Muni Punya Vijaya Ji, Ed., New Catalogue of Mss in the Jain Bhandar's at Jesalmer, No. 1829, p. 330. ४०. ४१. For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - ५ बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की सारिणी एवं उनसे प्राप्त विभिन्न मुनिजनों की गुरु-परम्परायें इस अध्याय के अन्तर्गत बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों का विस्तृत विवरण और उनके आधार पर निर्मित इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्पराओं की तालिकाओं का साहित्यिक साक्ष्यों से प्राप्त विभिन्न गुरु-परम्पराओं एवं बृहद्गच्छगुर्वावली के साथ उनके परस्पर समायोजन की संभावनाओं को प्रस्तुत किया गया है - For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० २. or Personal & Private se Only ५. ६. www.jaiayli वि०सं० तिथि / मिति ११४३ ११४८ ११८७ ११८७ ११९१ १२०० १२०४ वैशाख सुदि ३ गुरुवार आषाढ़ सुदि ७ बुधवार फाल्गुन वदि ४ सोमवार फाल्गुन सुदि २ सोमवार ज्येष्ठ सुदि १ शुक्रवार फाल्गुन वदि ४ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम अजितदेवसूरि के पट्टधर विजयसिंहसूर सर्वदेवसूर संविग्नविहारी वर्धमानसूरि के पट्टधर पद्मसूरि एवं भद्रेश्वरसूरि संविग्नविहारी वर्धमानसूरि के पट्टधर चक्रेश्वरसूरि विजयसिंहसूर नेमिचन्द्रसूरि संविग्नविहारी वर्धमानसूरि के शिष्य चक्रेश्वरसूरि प्रतिमालेख / शिलालेख जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देवकुलिका का लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान आदिनाथ जिनालय, कोरटा शांतिनाथ जिनालय, कुम्भारिया विमलवसही, आबू "" "" नेमिनाथ जिनालय, आरासणा विमलवसही, आबू नेमिनाथ जिनालय, कुम्भरिया (आरासणा) सन्दर्भ ग्रन्थ मुनि विद्याविजय, संपा०प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३. मुनि विशालविजय, संपा०श्री आरासणातीर्थ, लेखांक २६-१४६. मुनि जिनविजय, संपा०प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १८४. मुनि जयन्तविजय, संपा० - अर्बुद - प्राचीनजैनलेखसंदोह,लेखांक ११४. मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, परिशिष्ट, लेखांक १. मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ५३. मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, परिशिष्ट, लेखांक ३. ५४ बृहद्गच्छ का इतिहास Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mo १०. ११. १२ १३ १४] १५. १६. वि०सं० तिथि / मिति १२०५ १२०७ १२०८ १२१४ १२१५ १२१५ ज्येष्ठ सुदि ९ मंगलवार माघ सुदि ५ शुक्रवार फाल्गुन सुदि ७ शुक्रवार प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम फाल्गुन सुदि १० संविग्नविहारी वर्धमानसूरि रविवार के शिष्य चक्रेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि के पट्टधर अभयदेवसूरि के पट्टधर जिनभद्रसूरि शांतिप्रभ (शालिप्रभसूरि) माघ वदि ४ शुक्रवार संविग्नविहारी वर्धमानसूरि के पट्टधर चक्रेश्वरसूरि के पट्टधर परमानन्दसूरि वैशाख सुदि १० मुनिचन्द्रसूरि के पट्ट मंगलवार देवसूरि के शिष्य पद्मचन्द्रगणि हेमचन्द्रसूरि प्रतिमालेख / शिलालेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कायोत्सर्गमुद्रा में स्थित प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान नेमिनाथ जिनालय, कुम्भारिया नेमिनाथ जिनालय, आरासणा पद्मप्रभ जिनालय, नाडोल सीमन्धर स्वामी का मन्दिर, तालावाले की पोल, सूरत. सन्दर्भ ग्रन्थ मुनि विशालविजय, वही, परिशिष्ट, लेखांक ७-८. प्रमोदकुमार त्रिवेदी, “गुजरात से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण जैन प्रतिमायें " पं० दलसुखभाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ, Aspect of Jainology, Vol. 3, P-174. मुनि विशालसूरि, वही, परिशिष्ट, लेखांक ११. वही, लेखांक १३-१४. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३६४, ३६५. एवं पूरनचन्द नाहर, सम्पा०- जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३३३-३३४. प्रा०ले०सं० लेखांक १८. अध्याय-५ ५५ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ ५६ cation वि०सं० | तिथि/मिति । | प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम १२१६ | वैशाख सुदि २ | नेमिचन्द्रसूरि | के पट्टधर देवाचार्य national दीवाल पर उत्कीर्ण लेख | पार्श्वनाथ जिनालय, आरासणा | मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ४-९१ १८. १२२० | आषाढ़ सुदि १० | श्रीसूरि शांतिनाथ की प्रतिमा पर | चिन्तामणि जी का उत्कीर्ण लेख | मन्दिर, बीकानेर अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, सम्पा०बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ८४. a १२२७ तिथिविहीन | धनेश्वरसूरि जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, लेखांक ८९. १२३४ वही, लेखांक ९१. १२३६ or persone Private Use फाल्गुन वदि ३ | अभयदेवसूरि के शिष्य | पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर | नेमिनाथ जिनालय, गुरुवार | जिनभद्रसूरि एवं धनेश्वरसूरि | उत्कीर्ण लेख आरासणा | मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, | परिशिष्ट, लेखांक १५. । सोमप्रभसूरि २१ ए/ १२३८ | माघ सुदि ३ शनिवार पाषाण की मातृपट्टिका पर देवकुलिका क्र० ५५ | शंखेश्वरमहातीर्थ, लेखांक-९, उत्कीर्ण लेख | शंखेश्वर पार्श्वनाथ | पृ० १८४. जिनालय, शंखेश्वर २२] १२४५ वैशाख वदि ५ | यशोदेवसूरि गुरुवार के शिष्य देवचन्द्रसूरि नेमिनाथ एवं अन्य तीर्थङ्करों | विमलवसही, आबू | मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, | की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेखांक १९२, १९५, २००, । लेख २०४, २०५, २०७, २०८. १२४९ ज्येष्ठ सुदि १० । मुनिरत्नसूरि wwwxinelibrary.org पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर | वासुपूज्य जिनालय, | P.C. Parikha & Bharti Shelat, उत्कीर्ण लेख शेखपाडो, अहमदाबाद| The Jain Image Inscriptions of Ahmedabad. No. 2. बृहद्गच्छ का इतिहास Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० ३० १२४९ ३१. १२६० ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. वि०सं० तिथि / मिति ३७. ३८. १२६८ १२७३ १२७५ १२७९ १२८४ १२८८ १२९० वैशाख सुदि ९ आषाढ़ वदि २ सोमवार कार्तिक वदि ज्येष्ठ सुदि १३ मंगलवार वैशाख सुदि ३ बुधवार वैशाख वदि चैत्र वदि ३ शुक्रवार माघ सुदि ५ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम देवाचार्यसंतानीय हेमसूरि हरिभद्रसूरि के शिष्य धनेश्वरसूि पूर्णभद्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूर धनेश्वरसूर हरिभद्रसूरि के शिष्य धनेश्वरसूर धर्मसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि वादिदेवसूरिसंतानीय पूर्णभद्रसूरि शिष्य पद्मदेव शांतिप्रभ शुक्रवार प्रतिमालेख / शिलालेख पार्श्वनाथ-धातु पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शिलालेख जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान महावीर मन्दिर, अजारी आबू, भाग-५, लेखांक ४१६ अगरचन्द नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०५. चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर जैन मंदिर, जालौर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खम्भात चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर वही विमलवसही, आबू सन्दर्भ ग्रन्थ चौबीसी पट्ट पर उत्कीर्ण जैनमन्दिर, राणकपुर लेख जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग-२, लेखांक ३५२. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ११४. बुद्धिसागरसूरि, संपा०जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५५५. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ११६. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १२३. मुनि जयन्तविजय, आबू- भाग-२, लेखांक १२५. मुनि विद्याविजय जी, पूर्वोक्त, लेखांक ३५. अध्याय-५ ५७ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि० सं० | तिथि/मिति | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम Education Internarsonal ३९. । शांतिप्रभसूरि १२९० | माघ सुदि ५ शुक्रवार चौबीसी पट्ट पर उत्कीर्ण | रैनूपुर तीर्थ, मारवाड़ | नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७०२ लेख ४०. | चक्रेश्वरसूरि १२९३ | चैत्र वदि ८ शुक्रवार देवकुलिका में उत्कीर्ण | विमलवसही, आबू | मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग-२, लेख लेखांक २८९. १२९३ | तिथिविहीन वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मदेवसूरि पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, भाग २ लेखांक २३१. १३०५ । For Persoal & Private Use On प्रद्युम्नसूरि के पट्टधर मानदेवसूरि के पट्टधर जयानन्दसूरि शनिवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा की चरणचौकी पर उत्कीर्ण लेख | वस्तुपाल द्वारा निर्मित| मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, I | जिनालय, गिरनार | लेखांक ५३. १३०७ | ज्येष्ठ वदि ५ वादिदेवसूरि संतानीय पूर्णभद्रसूरि के पट्टधर ब्रह्मदेव (पद्मदेव)सूरि महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | लूणवसही, आबू मुनि जयन्तविजय, भाग २, लेखांक ३३३. |४४. १३१० | चैत्र वदि २ सोमवार | शिलालेख नेमिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, परिशिष्ट लेखांक १८. आरासणा अभयदेवसूरि के पट्टधर जिनभद्रसूरि के पट्टधर शांतिप्रभसूरि के पट्टधर रत्नप्रभसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि बृहद्गच्छ का इतिहास Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि० सं० | तिथि/मिति प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ अध्याय-५ ४५.| १३१० |....... सुदि ८ | मानदेवसूरि शुक्रवार शांतिनाथ की धातु की भाभा पार्श्वनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | देरासर, पाटण | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, | लेखांक २२६. ६. १३१० । तिथिविहीन यन्त्र लेख नेमिनाथ जिनालय, आरासणा अभयदेवसूरि के शिष्य जिनभद्रसूरि के शिष्य शांतिप्रभसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि | मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ७. तथा अ०प्र०जै०ले०सं० (आबू-भाग५) लेखांक २५. १३१४ नेमिनाथ जिनालय, सोमवार | आदिनाथ की प्रतिमा | पर उत्कीर्ण लेख शांतिप्रभसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि के पट्टधर हरिभद्रसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि नि विशालविज लेखांक-२१. आरासणा १३१४ | शिलालेख नेमिनाथ जिनालय सोमवार शांतिप्रभसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि के पट्टधर हरिभद्रसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि | मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक २२. आरासणा ४९. १३१६ चैत्र वदि ६ मंगलवार | उद्योतनसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि महावीर की पंचतीर्थी शांतिनाथ जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | नागौर विनयसागर संपा०प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ७०. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० ५५०. ५१. For ५३. Use Only ५४. ५५. www.ainelibrary.org ५६. वि०सं० तिथि / मिति १३२३ १३२७ १३३१ १३३४ १३३४ १३३५ १३३५ माघ सुदि ६ ज्येष्ठ सुदि ११ वैशाख सुदि ५ गुरुवार प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम शांतिप्रभसूर शिष्य रत्नप्रभसूर के पट्टधर हरिभद्रसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि पडोचंद्रसूरि के शिष्य माघ सुदि १३ शुक्रवार परमानन्दसू हरिभद्रसूरि के शिष्य परमानंदसूर वैशाख सुदि १० जयदेवसूरि के शिष्य मानदेवसूरि मार्गशीर्ष वदि १३ हरिभद्रसूरि के शिष्य सोमवार परमानन्दसू विजयसिंहसूरि संतानीय श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य वर्धमानसू प्रतिमालेख / शिलालेख प्राप्तिस्थान महावीर की धातु- प्रतिमा माणिक्यसूरि नेमिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भण्डारस्थ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ जिनालय, आरासणा चौमुख जी देरासर, पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिनालय, बूंदी चिंतामणिजी का मंदिर, बीकानेर चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर नेमिनाथ जिनालय, कुम्भारिया "" सन्दर्भ ग्रन्थ मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक २४. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३७. अहमदाबाद विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८०. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १८४. नाहटा, वही, लेखांक १८५. मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, परिशिष्ट, लेखांक २७. वही, परिशिष्ट, लेखांक २९. ६० बृहद्गच्छ का इतिहास Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० वि०सं०] तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम A Educaton International अध्याय-५ ५७-५८ १३३५ | शिलालेख हरिभद्रसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि वही, परिशिष्ट, लेखांक ३१-३२. " ५९. | १३३५ वर्धमानसूरि देवकलिका का लेख । नेमिनाथ जिनालय, | आबू, भाग ५, लेखांक २९. आरासणा ६०. | १३३५ । माघ सुदि...... शुक्रवार अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विशालविजय, पूर्वोक्त परिशिष्ट, लेखांक २६ तथा आबू, भाग ५, लेखांक २८ For Perswal & Private Use Only ६१. | १३३७ | ज्येष्ठ सुदि १४ | चक्रेश्वरसूरि के शुक्रवार संतानीय सोमप्रभसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ जिनालय, आरासणा तीर्थ | मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २९२. शिलालेख ६२. | १३३८ | ज्येष्ठ सुदि १४ | रत्नप्रभसूरि के शनिवार पट्टधर हरिभद्रसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २९०. ६३. | १३३८ कनकप्रभसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, परिशिष्ट, लेखांक ३६. ६४. | १३३८ वही, लेखांक १४. Aniainalibood रत्नप्रभसूरि के पट्टधर हरिप्रभसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि वासुपूज्य की प्रतिमा | पर उत्कीर्ण लेख Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ J वि०सं० | तिथि/मिति प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ ६२ ucation Internal १३३८ " वही, लेखांक १३. संविग्नविहारी चक्रेश्वरसूरि | मुनिसुव्रत की प्रतिमा के शिष्य जयसिंहसूरि | पर उत्कीर्ण लेख के शिष्य सोमप्रभसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि ६६.| १३३८ | जेष्ठ सुदि १४ | चक्रेश्वरसूरि संतानीय सोमप्रभसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि शांतिनाथ की पाषाण | नेमिनाथ जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | आरासणा | मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग ५ | लेखांक ३३. | १३३८ | ज्येष्ठ सुदि १४ | श्रीवादि...... चन्द्रसूरि के शिष्य परमानन्दसूरि For Perswral & Private Uwonly शांतिनाथ की प्रतिमा | का लेख चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १९१. - १३३९ | फाल्गुन सुदि ८ | मानदेवसूरि पार्श्वनाथ की धातु की | जैन मन्दिर, लींच प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | मुनि विद्याविजयजी, पूर्वोक्त, लेखांक ४५. १३४९ परमानन्दसूरि महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १९७. मन्दिर, बीकानेर ७०.| १३४३ | माघ सुदि १० | हरिभद्रसूरि के शिष्य शनिवार | परमानन्दसूरि नेमिनाथ की प्रतिमा पर | नेमिनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख आरासणा | मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, | परिशिष्ट, लेखांक ४०. www.jair9ibrary.org बृहद्गच्छ का इतिहास १३४५ परमानन्दसूरि [ का लेख नेमिनाथ जिनालय, | मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग ५, | लेखांक ३०. आरासणा Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि०सं० तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम सन्दर्भ ग्रन्थ अध्याय-५ ७२. | १३४६ | आषाढ़ वदि १ | देवेन्द्रसूरि शुक्रवार मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २०२. |७३. | १३४९ | ज्येष्ठ सुदि १० | मुनिरत्नसूरि P.C. Parikha & Bharti Shelat, शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जैन मंदिर, मोटी पोल, अहमदाबाद. The Jain Image Inscriptions of Ahmedabad, No. 8. ७४. | १३४९ | ज्येष्ठ सुदि १० | मुनिरत्नसूरि पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलवसही, आबू | मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, तथा महावीर | लेखांक १५. जिनालय, ब्राह्मणवाडा | तथा आबू, भाग ५, लेखांक २८२. (७५. | १३५१ | वैशाख सुदि नेमिनाथ जिनालय, परमानन्दसूरि के पट्टधर वीरप्रभसूरि चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ४५. आरासणा |७६. | १३५२ | वैशाख सुदि ५ | प्रभानन्दसूरि पार्श्वनाथ की धातु-प्रतिमा | पुरातत्त्व संग्रहालय, | पटनी, अर्बुदपरिमंडल की जैन पर उत्कीर्ण लेख । सिरोही धातु प्रतिमायें एवं मंदिरावलि, लेखांक २९, पृ० ४५. ७७. | १३५६ | ज्येष्ठ वदि ८ www.jalnelibrary.org | हेमप्रभसूरि के पट्टधर पद्मचन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की धातु की चिन्तामणि पार्श्वनाथ | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जिनालय,चौकसीपोल, | लेखांक ८०३. खम्भात Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jinlucatio वि० सं० | तिथि/मिति प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ ७८. | (१३)५७ | फाल्गुन सुदि ७ | वादिदेवसूरि के संतानीय | महावीर की धातु प्रतिमा | चिन्तामणिजी का गुरुवार धर्मदेवसूरि पर उत्कीर्ण लेख | मंदिर, बीकानेर | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २३०. वही, लेखांक २१९. |७९. | १३५९ । श्रावण सुदि ९ | जयमंगलसूरि के शिष्य | शांतिनाथ की धातु प्रतिमा | वही अमरचंद्रसूरि पर उत्कीर्ण लेख ८०. | १३६० | आषाढ़ वदि ४ | मानदेवसूरि के शिष्य सर्वदेवसूरि के शिष्य पं० उदयचन्द्र हस्तिशाला का | शिलालेख । लूणवसही, आबू । मुनि जयन्तविजय जी, पूर्वोक्त, लेखांक ३१८. For Personal & Privaguse Only यशोभद्रसूरि १३६७ | माघ वदि ९ गुरुवार महावीर की प्रतिमा पर | चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २३८. उत्कीर्ण लेख मन्दिर, बीकानेर १३६८ वादिदेवसूरि के गच्छ के | पार्श्वनाथ की धातु-प्रतिमा | वही धर्मदेवसूरि का लेख वही, लेखांक २४३. mmom ईई....... वही, लेखांक २४७. ८३. | १३६९ | फाल्गुन वदि २ | पद्मदेवसूरि के सोमवार शिष्य वीरदेवसूरि चौबीसी पट्ट पर उत्कीर्ण लेख www.jainrary.org बृहद्गच्छ का इतिहास | १३६९ आणंदसूरि एवं हेमप्रभसूरि श्वे० जैन मन्दिर, | मुनि कांतिसागर, सम्पा०- जैनधातु - In नागपुर प्रतिमालेख, लेखांक २४. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० | वि० सं० | तिथि/मिति प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ Hal& ducation International अध्याय-५ ६५. | १३७३ | फाल्गुन सुदि..... | हेमप्रभसूरि के शिष्य पद्मचन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सीमंधर स्वामी का मंदिर, दोशीवाडा पोल, अहमदाबाद P.C. Parikha & Bharti Shelat, The Jain Image Inscriptions of Ahmedabad, No. 13. ८६. १३७१ अमरप्रभसूरि आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख गौडीपार्श्वनाथ जिनालय | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १९६०. के अन्तर्गत आदिनाथजिनालय, बीकानेर | १३८३ | माघ सुदि १ | कनकसूरि आदिनाथ की धातु की | धर्मनाथ देरासर, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | डभोई बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५१. For osonal & Privatense Only १३८५ | फाल्गुन सुदि ८ | भद्रेश्वरसूरि के पट्टधर विजयसेनसूरि महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ३०४. मन्दिर, बीकानेर | १३८६ | ज्येष्ठ वदि ४ सोमवार वही, लेखांक ३०५. आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ९०. | १३८७ | फाल्गुन सुदि ४ | मुनिशेखरसूरि सोमवार वही, लेखांक ३१९. www.jagelibrary.org |९१. | १३८८ । वैशाख सुदि १५ | भद्रेश्वरसूरि के पट्टधर शनिवार विजयसेनसूरि नाहटा, लेखांक ३२५. पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि०सं० तिथि/मिति । प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ 33 Education Intergronal १२. | १३९० | वैशाख वदि ११ | पिप्पलाचार्य गुणाकर सूरि | महावीर की प्रतिमा पर | वही शनिवार | के शिष्य रत्नप्रभसूरि | उत्कीर्ण लेख वही, लेखांक ३४०. ९३. | १३९१ | तिथिविहीन विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर भावदेवसूरि शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | नेमिनाथ जिनालय, आरासणा मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ५३. १३९२ | फाल्गुन वदि ११ | रामचन्द्रसूरि के पट्टधर पासभद्रसूरि शांतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ जिनालय, | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, सवाईमाधोपुर | लेखांक १३६. १३९३ मुनिशेखरसूरि For Personer Private Use of चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ३५२. मन्दिर, बीकानेर | १४०१ | चैत्र सुदि ७ बुधवार | धर्मचन्द्रसूरि अभिनन्दन स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | वही, लेखांक ४००. |९७. | १४०८ | वैशाख सुदि ५ | सर्वदेवसूरि आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, लेखांक ४१४. गुरुवार १४०८ | ज्येष्ठ सुदि ५ | धर्मतिलकसूरि वही, लेखांक ४२०. www.jaiotlibrary.org| बृहद्गच्छ का इतिहास |९९. | १४०६ | ज्येष्ठ वदि ९ | रामचन्द्रसूरि रविवार | वही, लेखांक ४०५. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ Ja Education Interational क्र० वि०सं० | तिथि/मिति प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम १००. १४११ | आषाढ़ सुदि ३ | परमानन्दसूरि के शिष्य शनिवार अध्याय-५ कायोत्सर्ग प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | शांतिनाथ जिनालय, | मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग ५, | दीयाणा लेखांक ४९१.* १०१. १४१२ .......वदि १ | आबू, भाग ५, लेखांक १२०. । देवेन्द्रसूरि के पट्टधर दरवाजे के ऊपर उत्कीर्ण | महावीर जिनालय. जिनचंद्रसूरि के पट्टधर | लेख जीरावला रामचन्द्रसूरि १४१४ | ज्येष्ठ वदि १३ | अमरचन्द्रसूरि नेमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | अजितनाथ देरासर, | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, वीरमगाम लेखांक १४९०. रविवार Or For Personal & Privao Use Only a For Personale per use only १४१७ | ज्येष्ठ सुदि ९ | विजयसेनसूरि के शिष्य रत्नाकरसूरि आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४३८. मन्दिर, बीकानेर स्तम्भलेख १०४. १४१७ | आषाढ़ सुदि ५ | मुनिशेखरसूरि गुरुवार लूणवसही, आबू | मुनि जयन्तविजयजी, आबू, भाग २ लेखांक ३८०. www.jainelibrary.cky |१०५. १४१८ | वैशाख सुदि ७ | हेमरत्नसूरि के पार्श्वनाथ की | अनुपूर्ति लेख, आबू | वही, लेखांक ५७४. पट्टधर रत्नशेखरसूरि प्रतिमा पर (प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु उत्कीर्ण लेख उपदेशक) * जैनप्रतिमालेखसंग्रह लेखांक ३३१ में सम्पादक दौलत सिंह लोढ़ा ने वि०सं० १४११ को १०११ पढ़ा है जो भ्रामक है. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | वि० सं० तिथि/मिति | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम I& ducatioInterational १०६. | १४२२ | वैशाख वदि ११ | महेन्द्रसूरि पार्श्वनाथ की प्राचीन जैन मन्दिर, | मुनि कांतिसागर, पूर्वोक्त, धातु की प्रतिमा | नासिक लेखांक ३९. पर उत्कीर्ण लेख १०७. | १४२२ | वैशाख वदि ११ | महेन्द्रसूरि शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | चन्द्रप्रभ जिनालय, | जैसलमेर | नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२७०. | फाल्गुन सुदि ९ | पिप्पलाचार्य गुणसमुद्रसूरि | पार्श्वनाथ की धातु-प्रतिमा | संभवनाथ जिनालय, सोमवार पर उत्कीर्ण लेख | कालूपुर, अहमदाबाद The Jain Image Inscriptions of Ahmedabad, No.-39. For Personal private Use Only | वैशाख वदि ३ | दिनविजयसूरि गुरुवार (प्रतिमा प्रतिष्ठापना के उपदेशक़) देवकुलिका नं० २२ का लेख जीरावला पार्श्वनाथ मन्दिर, जीरावला | दौलतसिंह लोढ़ा सम्पा०श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक २९२(अ). १४२४ । आषाढ़ सुदि ५ । महेन्द्रसूरि गुरुवार पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, मन्दिर, बीकानेर | लेखांक ४६३, ४६८. तथा ११. १४२५ । वैशाख सुदि ११ | वदरिसेणसूरि सोमवार पार्श्वनाथ की धात-प्रतिमा | पुरातत्त्व संग्रहालय, | पटनी, पूर्वोक्त, लेखांक २१, पृष्ठ ५४.4 पर उत्कीर्ण लेख | सिरोही www.jainsibrary.org| बृहद्गच्छ का इतिहास ११३ | १४३० | माघ वदि २ | धनदेवसूरि सोमवार धातु की पंचतीर्थी | आदिनाथ जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | मांडवीपोल, खंभात | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, | लेखांक ६२४. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० ११४. १४३२ ११५.१४३३ वि०सं० तिथि / मिति ११६.१४३४ ११७. ११९. ११८. १४३६ १२०. १४३४ १४४० १४४३ फाल्गुन सुदि ३ शुक्रवार वैशाख सुदि ६ वैशाख वदि २ बुधवार "" प्रतिष्ठापक आचार्य प्रतिमालेख/शिलालेख या मुनि का नाम माघ सुदि ४ मंगलवार नाणचन्द्रसूरि के शिष्य नरदेवसूरि शनिवार महेन्द्रसूरि के पट्टधर कमलचन्द्रसूरि " वैशाख सुदि १३ मुनिशेखरसूरि के सोमवार शिष्य श्रीतिलकसूरि के शिष्य भद्रेश्वरसूरि सागरचन्द्रसूर कार्तिक वदि १४ मानतुंगसूरि के संतानीय शुक्रवार धर्मचन्द्रसूरि शिष्य विनयचन्द्रसूरि चन्द्रप्रभ स्वामी की धातु की प्रतिमा पर विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख स्तम्भ लेख प्राप्तिस्थान शांतिनाथ देरासर, कनासानो पाडो, अक्षतचन्द्रसूरि चन्द्रप्रभ जिनालय, जैसलमेर चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर नमिनाथ जिनालय, लक्ष्मीनारायण पार्क, बीकानेर चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर नेमिनाथ जिनालय, नाडाई सन्दर्भ ग्रन्थ वही, भाग १, लेखांक ३२१. उत्कीर्ण लेख पाटण नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२७५. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५०९. वही, लेखांक ५१०. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ११९७. वही, लेखांक ५४३. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३३५. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८५८ मुनि विद्याविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ८७. अध्याय-५ m Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि०सं०] तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ ७० o Jall bucation प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम tematorial १२१.| १४४५ | ज्येष्ठ वदि १२ | धर्मदेवसूरि शुक्रवार शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५४८. मन्दिर, बीकानेर मुनिसुव्रत की प्रतिमा |१२२.| १४४५ | फाल्गुन वदि १०/ रत्नाकरसूरि रविवार | चन्द्रप्रभ जिनालय, पर उत्कीर्ण लेख | नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, | जैसलमेर लेखांक २२७९. | फाल्गुन सुदि ९ | रत्नशेखरसूरि सोमवार | के पट्टधर पूर्णचन्द्रसूरि शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५५२. मन्दिर, बीकानेर For Personal & Pavate Use Only वही, लेखांक ५५५. | वैशाख सुदि ६ | अभयदेवसूरि एवं शुक्रवार | सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | वैशाख सुदि .... | अभयदेवसूरि शुक्रवार १४५४ | माघ सुदि ८ | रामसेनीय धर्मदेवसूरि शनिवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पार्श्वनाथ जिनालय, | वही, लेखांक २४८१. पर उत्कीर्ण लेख नौहर भात-प्रतिमा | भण्डारस्थ प्रतिमा | चन्द्रप्रभा की धातु-प्रतिमा | भण्डारस्थ प्रतिमा । | वही, लेखांक ५६६. पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर www.camelibrary.dg बृहद्गच्छ का इतिहास १२७.| १४५७ | वैशाख सुदि ३ | रामसेनीय धर्मदेवसूरि चन्द्रप्रभा की धातु-प्रतिमा | वही पर उत्कीर्ण लेख वही, लेखांक ५७५. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० वि० सं०] तिथि/मिति | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम अध्याय-५ १२८. (१४)५६ | फाल्गुन सुदि ९ | वादिदेवसूरि के संतानीय | महावीर की धातु-प्रतिमा | चिन्तामणिजी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५८१. मंदिर, बीकानेर |१२९. | १४६५ | वैशाख सुदि ३ | धर्मदेवसूरि के | वासुपूज्य की धातु की | महावीर जिनालय, | वही, लेखांक १३४५. गुरुवार पट्टधर धर्मसिंहसूरि प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | बीकानेर सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | चन्द्रप्रभ जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, | जैसलमेर | लेखांक २२८६ पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ६६२. मन्दिर, बीकानेर ४७२ फाल्गुन सुदि ९ | गुणसागरसूरि शुक्रवार १३२. |१४७२ | फाल्गुन फाल्गुन सुदि ९ | कमलचन्द्रसूरि शुक्रवार शांतिनाथ की धातु-प्रतिमा | पुरातत्त्व संग्रहालय, | पटनी, पूर्वोक्त, लेखांक १११, पर उत्कीर्ण लेख | सिरोही पृ० ६५. नमिनाथ की धातु-प्रतिमा | वही, लेखांक ११२, पृ० ६५. पर उत्कीर्ण लेख |१३४. १४७२ | तिथिविहीन | जयतिलकसूरि पार्श्वनाथ की चौबीसी | वासुपूज्य जिनालय, | The Jain Image Inscriptions of प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | शेखानो पाड़ो, Ahmedabad, No. 88. अहमदाबाद ११३५. |१४७३ | माघ सुदि ९ | कमलचन्द्रसूरि बुधवार muryalmeniorary.org मुनिसुव्रत की धातु | माणिकसागरजी का | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण | मन्दिर, कोटा | लेखांक २१२. लेख Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jail वि०सं०] तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ C5 | प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम १३६. |१२७५ | फाल्गुन सुदि ९ | गुणसागरसूरि शुक्रवार पद्मप्रभ की धातु-प्रतिमा | भण्डारस्थ प्रतिमा, | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ६६२. पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर |१३७. | १४७८ | फाल्गुन वदि ८ | देवाचार्यसंतानीय रविवार देवचन्द्रसूरि के पट्टधर पूर्णचन्द्रसूरि श्रेयांसनाथ की | धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, | मुनि विद्याविजय जी, पूर्वोक्त, | पूना लेखांक ११९. ११३८. | १४७८ नरचन्द्रसूरि नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ६९१ संभवनाथ की धातु-प्रतिमा | भण्डारस्थ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर वही, लेखांक ६९३. (१३९. | १४७९ | वैशाख सुदि ३ | मुनीश्वरसूरि शुक्रवार धर्मनाथ की धातु-प्रतिमा | वही पर उत्कीर्ण लेख |१४०. | १४७९ | पौष वदि ५ । पूर्णचन्द्रसूरि शुक्रवार वासुपूज्य की धातु | आदिनाथ जिनालय, | मुनि विद्याविजय जी, पूर्वोक्त, की प्रतिमा पर लेखांक १२२. उत्कीर्ण लेख १४१. | १४८० | फाल्गुन सुदि १० | रामदेवसूरि बुधवार | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७०१. www.jamemoraty.org आदिनाथ की धातु-प्रतिमा | भण्डारस्थ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर बृहद्गच्छ का इतिहास Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० वि०सं० तिथि / मिति १४२. १४८२ १४३. १४८२ १४४. १४८२ १४५. १४८२ १४६. १४८५ १४७. १४८६ १४८. १४८६ ज्येष्ठ वदि ५ शनिवार माघ सुदि ५ सोमवार माघ वदि ९ बुधवार माघ सुदि ५ ज्येष्ठ सुदि १३ सोमवार वैशाख सुदि ७ सोमवार प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम अमरप्रभसूर नरचन्द्रसूरि के पट्टधर वीरचन्द्रसूरि महेन्द्रसूरि पट्टधर कमलचन्द्रसूरि कमलचन्द्रसूरि गुणसागरसूरि मुनीश्वरसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूर वैशाख सुदि १३ मुनीश्वरसूरि के शिष्य रत्नप्रभसू सोमवार प्रतिमालेख / शिलालेख आदिनाथ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान विमलनाथ जिनालय, अजीमगंज, मुर्शिदाबाद चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर अनुपूर्ति लेख आबू वीर जिनालय, डांगों की गुवाड़, बीकानेर भंडारस्थ प्रतिमा, गौड़ी जी भण्डार, उदयपुर जैन मन्दिर, पटना मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा सन्दर्भ ग्रन्थ नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३९. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७१८. मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ६२०. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १५३०. मुनि विद्याविजय जी, पूर्वोक्त, लेखांक १३३. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २७४. विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २५७. अध्याय-५ ७३ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि०सं० तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम ७४ Jail Gucation tema coal |१४९. | १४८६ | वैशाख सुदि १३ | सत्यपुरीय ललितप्रभसूरि शनिवार | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७३१. सुमतिनाथ की धातु-प्रतिमा |भण्डारस्थप्रतिमा, पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वही १५०. | १४८६ | ज्येष्ठ सुदि १३ | मुनीश्वरसूरि के पट्टधर सोमवार | रत्नप्रभसूरि सुमतिनाथ की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, लेखांक ७३५. १. [१४८६ १४८६ , For Bersonal & Private मुनीश्वरसूरि के पट्टधर चन्द्रप्रभसूरि नमिनाथ की विमलनाथ जिनालय, | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | सवाई माधोपुर | लेखांक २५९. । धर्मसिंहसूरि e Only | १४८७ | माघ वदि ९ मंगलवार | वासुपूज्य स्वामी की धातु | चिन्तामणि पार्श्वनाथ | वही, भाग १, लेखांक २६९. की प्रतिमा पर उत्कीर्ण | जिनालय, किशनगढ़ लेख |१५३. | १४८८ | माघ सुदि ५ विमलनाथ की धातु की | वीरभद्रसूरि सोमवार कल्याण पार्श्वनाथदेरासर, बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वीसनगर लेखांक ५००. १५४. १४८९ | मार्गशीर्ष सुदि ११/ भद्रेश्वरसूरि गुरुवार | नाहटा,पूर्वोक्त, लेखांक २५२६. |शांतिनाथ की पाषाण की शांतिनाथ जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख हनुमानगढ़ New.jainelibrary.org बृहद्गच्छ का इतिहास Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० वि०सं० तिथि/मिति १५५. १४८९ १५६. १४८९ १५७. १४९२ १५८. १४९२ १५९. | १४९३ १६०. १४९५ वैशाख सुदि १२ शनिवार माघ वदि २ शुक्रवार वैशाख सुदि २ बुधवार मार्गशीर्ष वदि ५ गुरुवार ज्येष्ठ वदि ३ मंगलवार फाल्गुन वदि ९ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम धर्मदेवसूरि के पट्टधर धर्मसिंहसूर ललितप्रभसू गुणसागरसू सागरचन्द्रसूरि देवाचार्यान्वय के हेमचन्द्रसूरि हेमचन्द्रसूरि रविवार प्रतिमालेख / शिलालेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर चन्द्रप्रभा जिनालय, जालना भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वही धर्मनाथ जिनालय, जोधपुर आदिनाथ जिनालय, कारंजा सन्दर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७४३. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, संपा० महो० विनयसागर, लेखांक ५३. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७५९. वही, लेखांक ७६४. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६१९ विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ६१. अध्याय-५ ७५ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० वि०सं० | तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान । प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम । सन्दर्भ ग्रन्थ ७६ १६१. | १४९७ | ज्येष्ठ सुदि ३ | अमरचन्द्रसूरि नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ७९४. संभवनाथ की धातु-प्रतिमा | भण्डारस्थ प्रतिमा, पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर |१६२. | १४९८ | फाल्गुन वदि १०/ मुनीश्वरसूरि के सोमवार | शिष्य रत्नप्रभसूरि वासुपूज्य की धातु की | महावीर जिनालय, | प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | चौथ का बरवाडा | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, | लेखांक ३२५. १६३. | १४९९ | श्रावण वदि २ | पद्माणंदसूरि शनिवार शांतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | पार्श्वनाथ जिनालय, | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, | बूंदी | लेखांक ३२८. |१६४. | १४९९ । माघ सुदि ६ | अमरप्रभसूरि के पट्टधर सागरचन्द्रसूरि | कुन्थुनाथ की धातु-प्रतिमा | मनमोहन पार्श्वनाथ | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, | पर उत्कीर्ण लेख | देरासर, खजुरीपाड़ा, | लेखांक २४६. १६५. |१४९९ | फाल्गुन वदि २ | रत्नप्रभसूरि गुरुवार संभवनाथ की धातु की | नया मन्दिर, जयपुर | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ३३२. तथा मुनि विद्याविजय, पूर्वोक्त, लेखांक १७६. बृहद्गच्छ का इतिहास yog Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jalcularua क्र० वि० सं० | तिथि/मिति । प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम | प्रातमालख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान | सन्दर्भ ग्रन्थ अध्याय-५ a TORTOTTER १६६. |१४९९ श्रेयांसनाथ की धातु की | आदिनाथ जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख गागरडू | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, | लेखांक ३३३. १६७. | १५०० | मार्गशीर्ष वदि २ | रत्नप्रभसूरि के शिष्य शनिवार । महेन्द्रसूरि आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | श्रीगंगागोल्डेनजुबली | म्यूजियम, बीकानेर | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २१५७. | | वही, लेखांक २१५२. Tom Personal Private Use Only |१६८. |१५०१ । वैशाख सुदि ३ | देवाचार्यसंतानीय महावीर की पाषाण | वही जिनरत्नसूरि, मुनिशेखरसूरि, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रीतिलकसूरि, श्रीभद्रेश्वरसूरि, के शिष्य मुनीश्वरसूरि के पुण्यार्थ देवभद्रगणि ने महावीर की प्रतिमा बनवायी जिसे रत्नप्रभसूरि के पट्टधर महेन्द्रसूरि ने स्थापित की। वही वही, लेखांक २१५४. १६९. | १५०१ | वैशाख सुदि २ | देवाचार्यसंतानीय सोमवार रत्नप्रभसूरि के पट्टधर महेन्द्रसूरि अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १७०. | १५०१ । वैशाख सुदि ३ | , संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | वही वही, लेखांक २१५३. 605 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jail E क्र० वि०सं०] तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ 20 प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम cation temational | १७१. | १५०१ | ज्येष्ठ वदि १२ | नरचन्द्रसूरि के सोमवार पट्टधर वीरचन्द्रसूरि नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भण्डारस्थ धातु-प्रतिमा, नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३६०. महावीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर |१७२. | १५०१ | माघ सुदि १० | मुनिदेवसूरि सोमवार |सुविधिनाथ की धातु की | चन्द्रप्रभ-जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण कोटा | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३४५. लेख For PersonaL.Privatellse.Only | १७३. | १५०४ | ज्येष्ठ वदि ३ | धर्मचन्द्रसूरि के सोमवार | पट्टधर मलयचन्द्रसूरि |सुविधिनाथ की धातु | महावीर जिनालय, | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३२०. प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | वैदों का चौक, बीकानेर १७४. | १५०४ | मार्गशीर्ष सुदि ६ | सागरचन्द्रसूरि सोमवार शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | महावीर जिनालय, | वही, लेखांक १२९५. वैदों का चौक, बीकानेर - १७५. | १५०४ | फाल्गुन सुदि ११] अमरचन्द्रसूरि वही, लेखांक ८८८. चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर बृहद्गच्छ का इतिहास DILainalibr Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |वि०सं०] तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम अध्याय-५ |१७६. | १५०५ | फाल्गुन वदि ५ | अमचन्द्रसूरि बुधवार वासुपूज्य की धातु-प्रतिमा | चिन्तामणिजी का पर उत्कीर्ण लेख मंदिर, बीकानेर नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ८९५. वही | १५०६ | वैशाख सुदि ८ | पुण्यप्रभसूरि मंगलवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, लेखांक ८९९. | फाल्गुन सुदि ३ | महेन्द्रसूरि एवं रविवार रत्नाकरसूरि श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | वही वही, लेखांक ९०५. वही १७९. | १५०७ | ज्येष्ठ सुदि १० | वीरचन्द्रसूरि सोमवार वही, लेखांक ९१७. EnDarsaneLBPrinatolaniall मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख |१८०. | १५०७ | मार्गशीर्ष सुदि ३ | सागरचन्द्रसूरि शुक्रवार ग १, विमलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ जिनालय, आमेर विनयस लेखांक ४१९. |१८१. | १५०८ | वैशाख......? | महेन्द्रसूरि सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९२३. चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर |१८२. | १५०८ | मार्गशीर्ष वदि २ | रत्नप्रभसूरि के बुधवार पट्टधर महेन्द्रसूरि संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शाकरचन्द प्रेमचन्द की टूक, शत्रुजय | मुनि कांतिसागर, शत्रुजयवैभव, लेखांक १२० ७९ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० वि०सं० तिथि/मिति १८३. १५०८ १८४.१५१० १८५. १५१० १८६. १५१० १८७. १५१० १८८. १५१० १८९.१५११ "7 चैत्र वदि ८ बुधवार आषाढ़ सुदि २ गुरुवार माघ सुदि ५ तिथिविहीन ज्येष्ठ सुदि ३ गुरुवार प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम "" मतिसुन्दर शांतिसुन्दरसू महेन्द्रसूरि अमरप्रभसूरि के पट्टधर रत्नचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूर महेन्द्रसूरि के पट्टधर रत्नाकरसूरि प्रतिमालेख/शिलालेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अभिनन्दन स्वामी की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान हेमाभाई की ट्रंक, शत्रुंजय शांतिनाथ जिनालय चांदलाई सुमतिनाथ जिनालय, रतलाम शांतिनाथ जिनालय, चुरु वीर जिनालय, सांगानेर आदिनाथ जिनालय, जानीशेरी, बड़ोदरा माणिसागर जी का मन्दिर, कोटा सन्दर्भ ग्रन्थ मुनि कंचनसागर, शत्रुंजयगिरिराजदर्शन, लेखांक ४२१. विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४५२. वही, भाग १, लेखांक ४५३. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २४०९. विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४६६. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १५४. विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ४७१. ८० बृहद्गच्छ का इतिहास Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० वि०सं०] तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम Jaimucationalocational अध्याय-५ १९०. | १५११ | ज्येष्ठ सुदि ३ | मुनिशेखरसूरिसंतानीय महेन्द्रसूरि के पट्टधर रत्नाकरसूरि चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर | संभवनाथ जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, उत्कीर्ण लेख अजीमगंज, मुर्शिदाबाद| लेखांक २३. गुरुवार |१९१. | १५१२ | वैशाख सुदि १० | श्रीसूरि सोमवार अजितनाथ की धातु की | श्रीमालों का मन्दिर, | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जयपुर | लेखांक ६११. |१९२. | १५१३ | मार्गशीर्ष सुदि १०| मेरुप्रभसूरि के सोमवार पट्टधर राजरत्नसूरि चिन्तामणि जी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ९७३. मन्दिर, बीकानेर | १५१३ | माघ सुदि ३ शुक्रवार । सर्वदेवसूरि पद्मप्रभ की प्रतिमा पर | ऋषभदेव का बड़ा | दौलतसिंह लोढ़ा, पूर्वोक्त, उत्कीर्ण लेख मंदिर, थराद. लेखांक २२०. | १९४. | १५१६ | आषाढ़ सुदि ९ | मेरुप्रभसूरि शुक्रवार शांतिनाथ की धातु की | विमलनाथ जिनालय, | विनयसागर,पूर्वोक्त, भाग ३, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | कोटा लेखांक १०४ |१९५. | १५१६ | मार्गशीर्ष वदि ५ | सागरचन्द्रसूरि पद्मप्रभ की प्रतिमा पर | चन्द्रप्रभ जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, उत्कीर्ण लेख | जैसलमेर लेखांक २३३८. १९६. | १५१७ | ज्येष्ठ सुदि | पासचन्द्रसूरि (सत्यपुरीय शाखा) सुमतिनाथ की धातु की | चिन्तामणि पार्श्वनाथ | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जिनालय, खम्भात | लेखांक ५८४. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jail ० तिथि/मिति | प्रतिमालेख/शिलालेख । प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम ८२ &cation tema omal १९७. | १५१८ | माघ सुदि ५ शुक्रवार | जयमंगलसूरिसंतानीय पुण्यचन्द्रसूरि के पट्टधर कमलप्रभसूरि धर्मनाथ की धातु-प्रतिमा | अजितनाथ देरासर, | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, पर उत्कीर्ण लेख | सुतार की खड़की, | लेखांक १३३९. अहमदाबाद शांतिनाथ की प्रतिमा पर | भण्डारस्थ प्रतिमा, विनयसागर, नाकोड़ापार्श्वनाथतीर्थ, उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय | लेखांक ३४. नाकोड़ा १९८. |१५१८ | माघ सुदि १० । मुनीश्वरसूरि के पट्टधर सोमवार रत्नप्रभसूरि के पट्टधर महेन्द्रसूरि के पट्टधर रत्नाकरसूरि के शिष्य गुणनिधानसूरि एवं | मेरुप्रभसूरि For Personal & Private Me One १९९. |१५१९ | वैशाख वदि १० | जीराउला उदयचंद्रसूरि | कुन्थुनाथ की धातु की | पुरातत्त्व संग्रहालय, | पटनी, पूर्वोक्त, लेखांक ६७, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | सिरोही | पृष्ठ ८४. १५१९ | वैशाख वदि ११ | देवचन्द्रसूरि शुक्रवार कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर | चन्द्रप्रभ जिनालय, उत्कीर्ण लेख नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, | जैसलमेर लेखांक २३४३. |१५१९ | पौष वदि ५ शुक्रवार | जयमंगलसूरिसंतानीय कमलप्रभसूरि | आदिनाथ की धातु की | वीर जिनालय, खेड़ा | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ४३७. बृहद्गच्छ का इतिहास १५... | ...... सुदि १० । रत्नाकरसूरि के पट्टधर सोमवार | मुनिनिधानसूरि अनन्तनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | नाकोड़ा तीर्थ | विनयसागर, नाकोड़ातीर्थ, लेखांक ६५. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JALA ० वि०सं०] तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम सन्दर्भ ग्रन्थ अध्याय-५ २०३. |१५१९ | वैशाख सुदि ५ | रत्नप्रभसूरि के पट्टधर मंगलवार | महेन्द्रसूरि | आदिनाथ की धातु की | गौडी पार्श्वनाथ | नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जिनालय, अजमेर | लेखांक ५५९. २०४. |१५१९ | ज्येष्ठ सुदि ९ | उदयप्रभसूरि शुक्रवार सुमतिनाथ की धातु की | अनुपूर्ति लेख, आबू | मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २ | पंचतीर्थी प्रतिमा पर लेखांक ६४३. उत्कीर्ण लेख २०५. |१५१९ । माघ सुदि ९ शनिवार | जयमंगलसूरिसंतानीय हेमचन्द्रसूरि के पट्टधर कमलप्रभसूरि शीतलनाथ की धातु की | शामला पार्श्वनाथ चौबीसी प्रतिमा पर | जिनालय, लाम्बेश्वर उत्कीर्ण लेख | पोल, अहमदाबाद | The Jain Image Inscriptions of Ahmedabad, No. 462. arrearerosero २०६. |१५२१ | आषाढ वदि १३ | हेमचन्द्रसूरि संभवनाथ की धातु की | पंचायती मन्दिर, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जयपुर विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, | लेखांक ६१६. २०७. | १५२३ | मार्गशीर्ष सुदि १० मेरुप्रभसूरि के पट्टधर । सोमवार | राजरत्नसूरि अजितनाथ की धातु- भण्डारस्थ प्रतिमा | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०३१.' प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर वही, लेखांक १०३५. २०८. |१५२४ | वैशाख सुदि ६ | जयमंगलसूरिसंतानीय गुरुवार कमलप्रभसूरि कुन्थुनाथ की धातु-प्रतिमा | वही पर उत्कीर्ण लेख Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० वि०सं० तिथि / मिति २०९. १५२४ २१०. १५२४ २११.१५२५ २१२. १५२५ २१३. १५२५ २१४. १५२५ मार्गशीर्ष वदि १२ मेरुप्रभसूरि के पट्टधर सोमवार राजरत्नसूर फाल्गुन सुदि ७ बुधवार चैत्र वदि १० गुरुवार ज्येष्ठ वदि १ शुक्रवार प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम आषाढ़ सुदि ९ शनिवार रत्नाकरसूरि पट्टधर मेरुप्रभसूर कमलप्रभसूर अमरचन्द्रसूरि के शिष्य देवचन्द्रसूरि धर्मचन्द्रसूरि शिष्य मलयचन्द्रसूरि मार्गशीर्ष सुदि ३ हेमशेखरसूरि के गच्छ शुक्रवार भ पट्टधर शालिभद्रसूरि प्रतिमालेख/शिलालेख शांतिनाथ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर आदिनाथ जिनालय, पूना वीर जिनालय, पनवाड़ आदिनाथ जिनालय, राजामेहता पोल, कालूपुर, अहमदाबाद आदिनाथ जिनालय, जामनगर खरतरगच्छीय आदिनाथ जिनालय, कोटा सन्दर्भ ग्रन्थ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०३७. मुनि विद्याविजयजी, पूर्वोक्त, लेखांक ३८०. विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६५५. The Jain Image Inscriptions of Ahemdabad, No. 462. मुनि विद्याविजयजी, पूर्वोक्त, लेखांक ४०२. विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ६६५. Oc बृहद्गच्छ का इतिहास Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jal वि०सं० तिथि/मिति प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ अध्याय-५ १२१५. | १५२५ | मार्गशीर्ष सुदि ९ | गुणसुन्दरसूरि के बुधवार पट्टधर विनयप्रभसूरि सुमतिनाथ की धातु की | शांतिनाथ जिनालय, | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | भोजपुर लेखांक ६६६. |२१६. | १५२६ । मार्गशीर्ष वदि ५ | देवचन्द्रसूरि सोमवार सुविधिनाथ की धातु की पुरातत्त्व संग्रहालय, | पटनी, पूर्वोक्त, लेखांक ९८, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | सिरोही पृ० ८७. २१७. १५२८ | चैत्र वदि ५ | सोमवार । मेरुप्रभसूरि एवं राजरत्नसूरि आदिनाथ की धातु की महावीर जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | बीकानेर | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३३७. Torresonans private use only १२१८. | १५२८ | वैशाख वदि ५ | वीरचन्द्रसूरि एवं रविवार धनप्रभसूरि वासुपूज्य की धातु की | पंचायती मन्दिर, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जयपुर विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७०१. (२१९. | १५२८ | वैशाख वदि ६ | मेरुप्रभसूरि सोमवार | वही,लेखांक ७०३. शीतलनाथ की धातु की | बड़ा जैन मन्दिर, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | नागौर २२०. | १५२८ | ज्येष्ठ सुदि १३ | माणिक्यसुन्दरसूरि शुक्रवार शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय, | मुनि कांतिसागर, शत्रुजयवैभव, शजय | लेखांक १९६. २२१. | १५३० । माघ सुदि १३ रविवार वोकडिया धर्मचन्द्रसूरि के | संभवनाथ की धातु की | वासुपूज्य जिनालय, The Jain Image Inscriptions of पट्टधर मलयचन्द्रसूरि । प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | रूपसुरचंद की पोल, | Ahemedabad, No. 654 अहमदाबाद Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jal- क्र० वि०सं० तिथि/मिति प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान | सन्दर्भ ग्रन्थ metriendmommenemel । शालिभद्रसूरि २२२. | १५३१ | माघ सुदि ५ शुक्रवार विमलनाथ की धातु- | पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | बूंदी विनयसाग लेखांक ७३८. विमलनाथ जिनालय, | वही, भाग १, लेखांक ७४२. २२३. | १५३२ | चैत्र सुदि ११ । मेरुप्रभसूरि के शिष्य राजरत्नसूरि कुन्थुनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बेंतेड -For-rememmine- s २२४. | १५३४ | आषाढ़ सुदि १ | मेरुप्रभसूरि के शिष्य राजरत्नसूरि कुन्थुनाथ की धातु की | विमलनाथ जिनालय, | वही, भाग १, लेखांक ७७४. प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | बेंतेड गुरुवार २२५. | १५३४ मुनिसुव्रत जिनालय, | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २२८१. नाल, बीकानेर cience-only |२२६. | १५३४ | वैशाख सुदि ३ | कलशचन्द्रसूरि सोमवार शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | भण्डारस्थ प्रतिमा, | वही, लेखांक १०८० चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर २२७. | १५३४ | माघ सुदि ६ । वीरचन्द्रसूरि के शिष्य शनिवार धनप्रभसूरि । चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर जिनालय, | वही, लेखांक १२९८. बीकानेर २२८. |१५३५ । माघ सुदि ९ बृहद्गच्छ का इतिहास | ज्ञानचन्द्रसूरि Pomegimentorery-drg वासुपूज्य की धातु की | चन्द्रप्रभ जिनालय, | विनयसागर, पूर्वोक्त,भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | कोटा लेखांक ७९२. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० २२९. १५३६ वि०सं० तिथि/मिति २३०. १५३६ २३१. | १५३६ २३२. २३४. १५३६ २३३. १५३७ १५३८ २३५. १५३९ कार्तिक सुदि १५ बुधवार वैशाख सुदि ८ मंगलवार फाल्गुन सुदि ३ "" ज्येष्ठ वदि ४ मंगलवार ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रवार तिथिविहीन प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम पुण्यप्रभसू मेरुप्रभसूर रत्नाकरसूरि के पट्टधर मेरुप्रभसूर सोमसुन्दर माणिक्यसुन्दर गुणप्रभसूर प्रतिमालेख / शिलालेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शान्तिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शान्तिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्तिस्थान पंचायती मन्दिर, जयपुर भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर अष्टापद जिनालय, जैसलमेर आदिनाथ जिनालय, चाडसू देहरी क्रमांक १८२, शत्रुंजय महावीर जिनालय, सांगानेर सन्दर्भ ग्रन्थ वही, भाग १, लेखांक ७९७. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०९६. नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २१९६. नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २७२१. विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८१२. मुनि कंचनसागर, पूर्वोक्त, लेखांक १८२. विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८२०. अध्याय-५ ८७ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jan E क्र० वि०सं० तिथि/मिति | प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ cation प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम tematsal १५४२ | वैशाख सुदि ९ | मेरुप्रभसूरि शुक्रवार मुनिसुव्रत की धातु की | नया मन्दिर, जयपुर | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ८२८ एवं विद्याविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ४८५. |२३७. | १५४३ | वैशाख सुदि ३ | देवकुंवरसूरि सोमवार धर्मनाथ की प्रतिमा पर | चन्द्रप्रभ जिनालय, उत्कीर्ण लेख मांडवी पोल, The Jain Image Inscriptions of Ahmedabad, No. 734. अहमदाबाद १५४८ | पौष वदि १३ । वीरचन्दसूरि के पट्टधर सोमवार धनप्रभसूरि श्रेयांसनाथ की धातु की | शांतिनाथ जिनालय, | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग २, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १७५. For Personal & Private se Only १५४९ । माघ सुदि ५ सोमवार | जयमंगलसूरि की परम्परा के के पट्टधर पुण्यप्रभसूरि अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | अजितनाथ जिनालय वाघनपोल, अहमदाबाद. The Jain Image Inscriptions of Ahmedabad, No. 747. | १५५० | माघ सुदि ५ गुरुवार संभवनाथ की धातु की | शान्तिनाथ जिनालय, | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | रामपुरा लेखांक ८५९. बृहद्गच्छ २४१.१५५१ शिलालेख तारापुर मन्दिर, माण्डवगढ़ | वैशाख सुदि ६ । वादिदेवसूरि संतानीय शुक्रवार वीरदेवसूरि के शिष्य अमरप्रभसूरि के पट्टधर कनकप्रभसूरि श्रीनन्दलाल लोढा, “माण्डवगढ के | तारापुर मन्दिर का शिलालेख', जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ३, अंक १, पृ० ४४-४८. इतिहास Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० वि०सं०] तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम अध्याय-५ २४२. | १५५१ | वैशाख सुदि ११/ धनप्रभसूरि सोमवार मुनिसुव्रत की धातु की | सेठ जी का विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | घर देरासर, कोटा | लेखांक ८६०. |२४३. | १५५१ | फाल्गुन वदि ८ | ज्ञानचन्द्रसूरि सोमवार शान्तिनाथ की धातु की | विजयगच्छीय मन्दिर, | वही, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जयपुर | लेखांक ८७०. २४४. | १५५६ | वैशाख सुदि १३ | देवचन्द्रसूरि गणेशमल सौभाग्यमल| मुनि कांतिसागर, जैनधातुप्रतिमालेख, का मन्दिर, मुम्बई | लेखांक २६९. रविवार २४५. | १५५७ | आषाढ़ वदि १० | रत्नाकरसूरि के पट्टधर शुक्रवार | मेरुप्रभसूरि | कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर | शांतिनाथ जिनालय, | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १८३० उत्कीर्ण लेख नाहटों में, बीकानेर २४६. | १५५९ | आषाढ़ सुदि बुधवार | मेरुप्रभसूरि के पट्टधर | मुनिदेवसूरि महावीर जिनालय, | विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, सांगानेर लेखांक ९०२. |२४७. | १५६६ | आश्विन सुदि ४ | मुनिदेवसूरि के शिष्य मंगलवार वाचक ज्ञानप्रभ | आदिनाथ की पाषाण की | शांतिनाथ जिनालय, | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक २५२७. प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | हनुमानगढ़ watery.dg २४७. | १५६६ | माघ सुदि ४ | मलयहंससूरि गुरुवार अजितनाथ की धातु- | सुपार्श्वनाथ जिनालय, | नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | जैसलमेर लेखांक २२०५. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jair ०वि०सं० तिथि/मिति प्रतिमालेख/शिलालेख | प्राप्तिस्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम a tion demation |२४९. | १५६९ । माघ सुदि १५ | कमलप्रभसूरि गुरुवार नमिनाथ की धातु-प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, | भाग १, लेखांक १३२०. २५०. |१५७२ | वैशाख सुदि ५ | चन्द्रप्रभसूरि सोमवार आदिनाथ की धातु-प्रतिमा | पंचायती मन्दिर, पर उत्कीर्ण लेख लस्कर, ग्वालियर नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३८६. २५१. | १५८१ । वैशाख वदि ५ | देवकुंजरसूरि के गुरुवार शिष्य देवेन्द्रसूरि चन्द्रप्रभ की धातु की | जैन मन्दिर, ऊंझा | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक १८३. लूणवसही, आबू २५२. |१६१३ | वैशाख सुदि ९ | पुण्यप्रभसूरि के पट्टधर | स्तम्भलेख विजयदेवसूरि | मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २ | लेखांक ३८९. २५२. |१६१३ | वैशाख सुदि ८ | ,, | विमलवसही, आबू | वही, लेखांक १९९. | १६३९ | चैत्र वदि ११ | उदयसिंहसूरि मंगलवार पार्श्वनाथ की धातु की | शांतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख | चौकसीपोल,खम्भात | भाग २, लेखांक ८४७. बृहद्गच्छ का इतिहास mjanmenumany.org Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-५ ९१ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों से यद्यपि इस गच्छ के कुछ मुनिजनों को छोड़कर अन्य का साहित्यिक साक्ष्यों में कोई उल्लेख नहीं मिलता। अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की छोटी-छोटी तालिकायें संकलित की जा सकती हैं जो निम्नानुसार हैं - चन्द्रकुलीन संविग्नविहारी वर्धमानसूरि चक्रेश्वरसूरि (वि०सं० ११८७-१२०८) परमानन्दसूरि (वि०सं० १२१४) मुनि जिनविजयजी? ने चक्रेश्वर की जगह भद्रेश्वर पाठ दिया है, जो भ्रामक है। (२) बुद्धिसागरसूरि अभयदेवसूरि जिनभद्रसूरि (वि० सं० १२०५) शांतिप्रभसूरि For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास रत्नप्रभसूरि . हरिभद्रसूरि परमानन्दसूरि (वि०सं० १३१०-१३) वीरप्रभसूरि (वि० सं० १३५१) (३) मुनिशेखरसूरि (वि० सं० १३८७-१४१७) श्रीतिलकसूरि भद्रेश्वरसूरि मुनीश्वरसूरि (वि०सं० १४३६–प्रतिमालेख) देवभद्रसूरि मुनिप्रभसूरि (वि०सं० १४८६) रत्नप्रभसूरि मुनिचन्द्रप्रभ (वि०सं०१४८६-१४९९) (वि०सं० १४८६) महेन्द्रसूरि (वि०सं० १५००-१५१९) For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-५ रत्नाकरसूरि (वि०सं० १५११-१५१६) गुणनिधानसूरि (वि० सं० १५१८) मेरुप्रभसूरि (वि०सं० १५१८-१५५७) मुनिदेवसूरि राजरत्नसूरि (वि०सं० १५५९) (वि०सं० १५१३-१५३४) वाचक ज्ञानप्रभ (वि०सं० १५६६) (४) आणंदसूरि (वि०सं० १३६९) हेमप्रभसूरि (वि० सं० १३६९) परमानन्दसूरि पद्मचन्द्रसूरि (वि०सं० १३७३) (वि० सं० १३५६-१३७३) (५) देवाचार्यसंतानीय देवचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि (वि०सं० १४७८-१४७९) For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास हेमचन्द्रसूरि (वि०सं० १४९३-१५२१) कमलप्रभसूरि (वि०सं० १५१८-१५२५) पुण्यप्रभसूरि (वि०सं० १५०६-१५५०) (६) नरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४७८) वीरचन्द्रसूरि (वि० सं० १४८२-१५०७) धनप्रभसूरि (वि० सं० १५२८-१५५१) (७) अमरप्रभसूरि सागरचन्द्रसूरि (वि० सं० १४९२-१५१६) रत्नचन्द्रसूरि (वि०सं० १५१०) माण्डवगढ के एक जिनालय से प्राप्त वि०सं० १५५१ के एक शिलालेख में भी वादिदेवसूरि की परम्परा के कुछ मुनिजनों का नाम मिलाता है, २ जो इस प्रकार For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-५ वादिदेवसूरि वीरदेवसूरि अमरप्रभसूरि कनकप्रभ साहित्यिक साक्ष्यों से ज्ञात वादिदेवसूरि की पूर्वोक्त शिष्य परम्परा और उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञाच उत्तरकाल में हुए उनकी परम्परा के उपरोक्त मुनिजनों का परस्पर किस प्रकार का सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता। जैसा कि अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची में हम देख चुके हैं वि०सं० १२०५ के प्रतिमालेखों में प्रतिष्ठापक जिनभद्रसूरि के गुरु का नाम अभयदेवसूरि और प्रगुरु का नाम बुद्धिसागरसूरि दिया गया है।३. मुनि विशालविजय द्वारा दी गयी उक्त वाचना को यदि प्रमाणिक मानें तो निश्चय ही उक्त प्रतिमा लेखों में उल्लिखित जिनभद्रसूरि के गुरु अभयदेवसूरि को नवाङ्गीवृत्तिकार अभयदेवसूरि (मृत्यु सं० ११३५) से उनके लम्बे समयान्तराल को देखते हुए अलग-अलग व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक यही बात उक्त अभिलेख में उल्लिखित अभयदेवसूरि के गुरु बुद्धिसागरसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। द्रष्टव्य अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित तालिका क्रमांक -२४ ___ नाकोड़ा से प्राप्त वि०सं० १५१८ के एक प्रतिमालेख में इस गच्छ के ६ मुनिजनों का नाम मिलताहै।५ For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ बृहद्गच्छ का इतिहास मुनीश्वरसूरि रत्नप्रभसूरि महेन्द्रसूरि रत्नाकरसूरि मुनिनिधानसूरि मेरुप्रभसूरि (वि०सं० १५१८ में प्रतिमाप्रतिष्ठापक) जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं कि वि०सं०१४७९ के एक लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में मुनीश्वरसूरि का नाम आ चुका है। वि०सं० १५१८ के उक्त लेख के अनुसार मुनीश्वरसूरि की ५वीं पीढ़ी में मेरुप्रभसूरि हुए जिन्होंने वि०सं० १५१८ में नाकोड़ा में प्रतिमा की प्रतिष्ठा की। इस प्रकार हम देखते हैं कि मात्र ४९ वर्षों के अन्तराल में ५पीढ़ी गुजर गयी लगती है जो कि प्रायः असंभव है। इस सम्बन्ध में त्रिपुटीमहाराज द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण महत्त्वपूर्ण है। उनके अनुसार भद्रेश्वरसूरि के पश्चात् भट्टारकपद और आचार्यपद अलग-अलग होने लगे।६ इस तथ्य का समर्थन इस बात से भी हो जाता है कि मुनिमाल के गुर्वावली में जहाँ भावदेवसूरि को संयमरत्नसूरि का पट्टधर एवं पुण्यप्रभसूरि का प्रपट्टधर बताया गया है वहीं कल्पातवाच्य की प्रशस्ति में भावदेवसूरि को पुण्यप्रभसूरि का पट्टधर कहा गया है यहाँ संयमरत्नसूरि का नाम भी नहीं मिलता । ..................तत्पट्टेपुण्यप्रभसूरयः। तत्पट्टे संयमरत्नसूरि - येषां १५६९ वर्षे पदस्थापना। तत्पट्टे पिराइवा गोत्रे लक्ष्मणांगजा लक्ष्मीकुक्षिभवाः, कलिकाल वर्तमान शास्त्राधार बृहद्गच्छाब्धिकुमुदबान्धवतुल्या:, यशः पूताष्टककुभ: श्रीभावदेवसूरीन्द्राः। .......................येषां पदस्थापना १६०४ वर्षे । मुनिमालकृत “बृहद्गच्छगुर्वावली' मुनि जिनविजय, विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ ५५. For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय- ५ ९७ संवत् १६२० वर्षे, शाके १४८५ कार्तिक सुदि ८ दिने रविदिने श्रवण नक्षत्रे सिद्धिनामयोगे श्रीसरस्वतीपत्तने पातशाह अकब्बर विजयराज्ये श्रीबृहद्गच्छे भट्टारकी ६ पुण्यप्रभसूरि तत्पटेभ० श्री ७ भावदेवसूरि तत्शिष्य पं० पुण्यरत्न लिखितम् । (बीकानेरराजकीयग्रन्थसंग्रहस्थित कत्पान्तर्वाच्यग्रन्थाद् इयं गुर्वावली समुद्धृताऽस्ति)। मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ ५५. यदि उक्त दृष्टि से हम देखते हैं तो अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर संकलित तालिका क्रमांक-३ का अन्तर्विरोध भी समाप्त हो जाता है और साथ ही मुनिमाल कृत बृहद्गच्छगुर्वावली को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है : वादिदेवसूरि 1 विमलचन्द्र उपाध्याय I मानदेवसूरि I हरिभद्रसूरि 1 पूर्णप्रभसूरि 1 नेमिचन्द्रसूरि 1 नयचन्द्रसूरि 1 मुनिरत्नसूरि (वि०सं० १३४९ ) प्रतिमालेख मुनिशेखरसूरि (वि०सं० १३८७-१४१७) प्रतिमालेख I For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीतिलकसूरि भद्रेश्वरसूरि मुनिप्रभसूरि (वि०सं० १४८६) प्रतिमालेख भट्टारक मुनीश्वरसरि (वि०सं० १४७९) प्रतिमालेख आचार्य रत्नप्रभसूरि (वि०सं० १४८६-१४९९) प्रतिमालेख चन्द्रप्रभसूरि (वि०सं० १४८६) प्रतिमालेख भट्टारक महेन्द्रसूरि आचार्य रत्नाकरसूरि (वि०सं० १५००-१५१९) प्रतिमालेख (वि०सं० १५११-१५१५) प्रतिमालेख गुणनिधानसूरि (वि०सं० १५१८) प्रतिमालेख भट्टारक मेरुप्रभसरि (वि०सं० १५१८-१५५७) प्रतिमालेख आचार्य राजरत्नसूरि (वि०सं० १५१३-१५३४) प्रतिमालेख For Personal & Private Use Only भट्टारक मुनिदेवसूरि (वि०सं० १५५९) प्रतिमालेख आचार्य रत्नशेखरसूरि आचार्य संयमरत्न वाचक ज्ञानप्रभ (वि०सं० १५५८) प्रतिमालेख भट्टारक पुण्यप्रभसूरि (वि०सं० १५५९) प्रतिमालेख भट्टारक भावदेवसूरि (वि०सं० १६०४ में भट्टारक पद प्राप्त) बृहद्गच्छ का इतिहास मुनिमाल (बृहद्गच्छगुर्वावली एवं अन्य विभिन्न कृतियों के कर्ता) वाचक पुण्यरत्न (वि०सं० १६२० में कल्पान्तर्वाच्य के प्रतिलिपिकार) Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-५ । उक्त तालिका में वादिदेवसूरि (वि०सं० १२२९ में स्वर्गस्थ) के पश्चात् और मुनिरत्नसूरि (वि०सं० १३४९ प्रतिलेख) के पूर्ववर्ती जिन ६ मुनिजनों - उपाध्याय विमलचन्द्र, मानदेवसूरि, हरिभद्रसूरि, पूर्णप्रभसूरि, नेमिचन्द्रसूरि और नयचन्द्रसूरि - के नाम आये हैं, उनका यद्यपि किन्ही अन्य साक्ष्यों में कोई उल्लेख नहीं मिलता, फिर भी १२०वर्षों के अन्तराल में ६ पट्टधर आचार्यों का होना स्वाभाविक ही है। ___मुनि कल्याणविजय जी ने मुनिमाल द्वारा दी गयी गुर्वावली में भावदेवसूरि के पश्चात् हुए ८ आचार्यों के नाम दिये हैं, जो इस प्रकार हैं : - उदयराजसूरि भट्टारक शीलदेवसूरि सुरेन्द्रसूरि प्रभाकरसूरि माणिक्यदेवसूरि दामोदरसूरि देवसूरि नरेन्द्रदेव मुनि कल्याणविजय जी द्वारा दिये गये उक्त नामों का क्या आधार है, यह ज्ञात नहीं होता साथ ही साथ इनका न तो किन्ही साहित्यिक साक्ष्यों में नाम मिलता है और न किन्हीं अभिलेखों आदि में ही। अत: इन्हें प्रमाणों के अभाव में स्वीकार कर पाना कठिन है। For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० बृहद्गच्छ का इतिहास अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित शेष अन्य मुनिजनों के गुरु-परम्परा के सम्बन्ध में साक्ष्यों के अभाव में यद्यपि कुछ भी कह पाना कठिन हैं फिर भी सुनिश्चित है कि इस गच्छ में मुनिजनों की संख्या पर्याप्त थी और समाज पर उनका व्यापक प्रभाव था। वि० सं० की १७वीं शताब्दी में स्थानकवासी सम्प्रदाय छोड़ कर प्रायः अन्य सभी गच्छों का द्रुतगति से प्रभाव क्षीण होने लगा। यद्यपि अनेक गच्छ बाद की शताब्दियों में भी अस्तित्त्व में रहे, परन्तु उनका प्रभाव नाममात्र का ही शेष रहा। वि०सं० की १९वीं शती के प्रथम चरण तक विद्यमान बृहद्गच्छ८ के बारे में भी यही बात कही जा सकती है। सन्दर्भ : १. मुनि जिनविजय, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १८४, द्रष्टव्य - बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची के अन्तर्गत लेख क्रमांक ३. २. नन्दलाल लोढ़ा, “माण्डवगढ के तारापुर मंदिर का शिलालेख" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ३, अंक १, पृष्ठ ४४-४८. ३. द्रष्टव्य बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची के अन्तर्गत लेख क्रमांक ८. ४. बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा निर्मित तालिका क्रमांक २. ५. बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची के अन्तर्गत लेख क्रमांक १६४; महोपाध्याय विनयसागर, नाकोड़ा तीर्थ श्रीपार्श्वनाथ, लेख क्रमांक ३४, पृष्ठ १०८. त्रिपुटी महाराज, जैन परम्परानो इतिहास, भाग-२, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ ४६१. ७. मुनि कल्याणविजय गणि, पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ २३१-२३३. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगुर्जरकविओ, नेवीनसंस्करण, संपा० जयन्त कोठारी, भाग ९, पृष्ठ २४१-४७. ८. शीतिकंठ मिश्र, हिन्दीजैनसाहित्य का इतिहास, मरु-गूर्जर, भाग ४, पृष्ठ २३०. For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - ६ बृहदगच्छीय मुनिजनों का साहित्यावदान बृहदगच्छ में समय-समय पर विभिन्न प्रभावक और विद्वान् आचार्य हुए हैं, जिन्होंने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और मरु-गूर्जर भाषा में विभिन्न छोटे-बड़े ग्रन्थों की रचनायें की हैं । प्रस्तुत अध्याय में इनकी सूची दी गयी है । यह दो प्रकार से प्रस्तुत की गयी है । प्रथम तो रचनाकारों के अकारादिक्रम से और दूसरी रचनाओं के अकारादिक्रम से । प्रत्येक सूची में रचनाकार का नाम, उनके गुरु का नाम, कृति का नाम, रचना की भाषा, रचनाकाल और संदर्भग्रन्थ की तालिका दी गयी है । इनका विवरण इस प्रकार है : रचनाकारों के अकारादिक्रमानुसार तालिका आग्रदेवसूरि (जिनचन्द्रसूरि के शिष्य) आख्यानकमणिकोशवृत्ति (प्राकृत) वि०सं० ११९१, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी द्वारा मूल ग्रन्थ के साथ १९६२ ई० में प्रकाशित. जयमंगलसूरि (रामचन्द्रसूरि के शिष्य) कविशिक्षा (प्राकृत), महावीरजन्माभिषेककाव्य (अपभ्रंश) वि० सं० १३१०, गुजरातीसाहित्यकोश, पृष्ठ ११२. भट्टिकाव्य पर वृत्ति (संस्कृत), वि० सं० १४वीं शताब्दी का प्रथमचरण, H.R. Kapadia, Descriptive Catalogue of the Government collection of Manuscripts Library, Vol XVII, Part IV, Poona 1948, pp.216-217. For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ज्ञानकलश दामोदर देवेन्द्रसूरि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि बृहद्गच्छ का इतिहास सुंधा पहाड़ी का लेख (संस्कृत), चामुंडा के मंदिर पर उत्कीर्ण चाचिगदेव की प्रशस्ति- वि० सं० १३१९. नाहर, Epigraphia Indica, Vol IX, 1907-08, p-79, पूरनचन्द जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९४३-४४. जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका ५०५. (अमरचन्द्र के प्रशिष्य और धर्मघोष के शिष्य) सन्देहसमुच्चय (संस्कृत), १४वीं शती ई० का मध्य. Pt. A. P. Shah, Ed. Catalogue of the Sanskrit and Prakrit Manuscripts: Muniraj Shree Punya Vijayajis Collections. Ahmedabad1962, p. 182. मुनिमाल के शिष्य और भावदेवसूरि के प्रशिष्य), अनन्तनाथस्तवनम् (रचनाकाल वि० सं० १६९४) भोगीलाल सांडेसरा, संपा० प्राचीनफागुसंग्रह, पृष्ठ १३६-१४९. मोहनलाल दलीचंददेसाई, जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय संस्करण, भाग२, पृ० ५५-६५, भाग ३, पृ० ३६२-६४. (आनन्दसूरि के शिष्य) आख्यानकमणिकोश, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी द्वारा ई०स० १९६२ में वृत्ति के साथ प्रकाशित. उत्तराध्ययनसूत्र - सुखसुबोधावृत्ति, संस्कृत, वि० सं० ११२९, देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका २९०. P. Peterson, A Third Report of Operation in Search of Sanskrt Mss. P. 10-68, 71, 86. महावीरचरित्र, (प्राकृत), वि०सं० ११३९, जिनरत्नकोश, पृ० ३०६. रत्नचूड़कथा अपरनाम तिलकसुन्दरीरत्नचूड़कथानक, जिनरत्नकोश, पृष्ठ ३२६. नेमिचन्द्रसूरि (आम्रदेवसूरि के शिष्य) प्रवचनसारोद्धार, प्राकृत, वि०सं० १३वीं शती प्रथम चरण, कई स्थानों से विभिन्न संस्करणों में प्रकाशित. For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ अध्याय-६ पद्मप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य) भुवनदीपक अपरनाम ग्रहभावप्रकाश; (संस्कृत); वि० सं० १३वीं शती प्रथम चरण, लक्ष्मी वेंकटेश्वर प्रेस मुम्बई से वि० सं० १९९६ में प्रकाशित. परमानन्दसूरि (भद्रेश्वरसूरि के शिष्य) खंडनमंडनटिप्पण, (वि० सं० १३५० के आस पास), जिनरत्नकोश, पृ० १००. प्रद्युम्नसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य महेन्द्रसूरि) वादस्थल, (वि० सं० १२३२ के आस-पास), देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ४८२ः जिनरत्नकोश, पृ० ३४८ मलयचन्द्र (महेन्द्रसूरि के शिष्य) यन्त्रराजटीका, (संस्कृत), निर्णयसागर प्रेस मुम्बई से १९३६ ई० में मूल ग्रन्थ और टीका के साथ प्रकाशित. महेन्द्रसूरि (मदनसूरि के शिष्य) यन्त्रराज, (संस्कृत), वि. सं० १४२७, निर्णयसागर प्रेस मुम्बई से १९३६ ई० में मूल ग्रन्थ और टीका प्रकाशित. मालदेव (भावदेवसरि के शिष्य) वि० सं० १७वीं शताब्दी, अन्जनासुन्दरीचौपाई, पद्य १५९, अमरसेनवयरसेनचउपइ, पद्य ४०८, कीर्तिधरसुकोशलसम्बन्ध, पद्य ४३१; ज्ञानपंचमीस्तवन, पद्य १७; देवदत्तचौपाई; पद्य ५३०; धनदेवपद्मरथचौपाई, पद्य १८४; नेमिनाथनवभवरास, पद्य २३०; नेमिराजुलधमाल, पद्य ६५, पंचपुरी; पदसंग्रह, पद्मरथचौपाई, गाथा ६९, (वि० सं० १६७६ से पूर्व); पद्मावतीपद्मश्रीरास, पद्य ८१५; पुरंदरचौपाई, पद्य ३७२; बृह्दगच्छगुर्वावली, पद्य ३७; भ्रमरागीत, भविष्यभविष्याचौपाई; भोजप्रबन्ध, पद्य २०००; महावीरपंचकल्याणकस्तवन, गाथा २८; महावीरपारणा; मालशिक्षाचउपई, पद्य ६७; मृगांकपद्यावतीरास, पद्य ४७८; विक्रमपंचदंडचौपाई, गाथा १७२५; वीरांगदचौपाई, पद्य ७०४, रचनाकाल वि० सं० १६१२; वैराग्यगीत; शीलबत्तीसी, शीलबावनी, सत्यकीचउपई, पद्य ४२६; सवैया, सुरसुन्दरीचौपाई, पद्य ६६९; स्थूलिभद्रधमाल, पद्य १०७, उक्त रचनाओं में से 'बृह्दगच्छगुर्वावली' विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ ५२-५५ और शीलबावनी, परिषद पत्रिका, वर्ष ६ अंक ४, पृष्ठ ९६-१०१ पर प्रकाशित हैं। शेष रचनाओं के सम्बन्ध में द्रष्टव्य - मोहनलाल For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ मुनिचन्द्रसूरि मुनिदेवसूरि मुनिभद्रसूरि रत्नदेवगण रत्नप्रभसूर बृहद्गच्छ का इतिहास दलीचंद देसाई, जैन गूर्जरकविओ, द्वितीय संशोधित संस्करण, भाग २, पृष्ठ ५५ ६५ तथा भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे तथा शीतिकंठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, भाग २, पृष्ठ ३५२-३५८. तथा अगरचन्द्र नाहटा, “हरियाणा के सुकवि मालदेव की नवोपलब्ध रचनायें”, श्रमण, वर्ष २८, अंक - ३, जनवरी १९६६ ई. (यशोभद्र-नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य) देवेन्द्रनरेन्द्रप्रकरणवृत्ति (वि० सं० ११६८); सूक्ष्मार्थसार्धशतकचूर्णि (वि० सं० ११७०); अनेकान्तजयपताकाटिप्पण वि०सं० १९७१ उपदेशपदवृत्ति, ललितविस्तरापंजिका; (प्रकाशित), धर्मबिन्दुवृत्ति (वि० सं० १९८१ से पूर्वं); कर्मप्रकृति - विशेषवृत्ति; अंगुलसप्तति, आवश्यक (पाक्षिक) सप्तति, वनस्पतिसप्ततिका; गाथाकोश; (प्रकाशित), अनुशासनांकुशकुलक; उपदेशामृतकुलक प्रथम और द्वितीय; उपदेशपंचासिका, धर्मोपदेशकुलक प्रथम और द्वितीय, प्राभातिकस्तुति, पार्श्वनाथ स्तवनम् (संस्कृत) (मदनचन्द्रसूरि के शिष्य) धर्मोपदेशमालावृत्ति, (संस्कृत), वि० सं० १४वी पूर्वार्ध, जिनरत्नकोश, पृ० १९६. शांतिनाथचरित्र, (संस्कृत), वि० सं० १३३२, देसाई, जैन साहित्यनो..., कंडिका, ६३३. ( गुणभद्रसूरि के शिष्य) शांतिनाथचरित्र, (संस्कृत), वि० सं० १४१०, जिनरत्नकोश, पृ० ३८०. (हरिभद्रसूरि के शिष्य) वज्जालग्गटीका, (संस्कृत), वि० सं० १३९३, देसाई, जैन साहित्यनो... कंडिका, ६३३. ( वादिदेवसूरि के शिष्य) नेमिनाथचरिउ ( अपभ्रंश) वि० सं० १२३३; रत्नाकरावतारिका (संस्कृत) (प्रमाणनयत्तत्वालोकालंकार की टीका), ५००० श्लोक प्रमाण; उपदेशमाला पर दोघट्टीवृत्ति (वि० सं० १२३८); मतपरीक्षापंचाशत, स्याद्वाद्रलाकरलघुटीका. रामचन्द्रसूरि (वादिदेवसूरि के प्रशिष्य और पूर्णभद्रसूरि के शिष्य) १० द्वात्रिंशिकायें, १ चतुर्विंशतिका, १६ षोषिका, संस्कृत, वि० सं० १३वीं शती उत्तरार्ध, जैनस्तोत्रसंदोह, भाग-१, पृष्ठ १३०-१८९. For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ अध्याय-६ लक्ष्मीनिवास (रत्नप्रभ के शिष्य), खंडप्रशस्तिटीका (संस्कृत), एवं मेघदूतवृत्ति (संस्कृत); हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग २, पृष्ठ ३३३. वर्धमानसूरि (अभयदेवसूरि के शिष्य) आदिनाथचरित्र, (प्राकृत), वि० सं० ११६०, जिनरत्नकोश, पृ० २८. मनोरमाकहा, (प्राकृत), वि० सं० ११४०, वही, पृ० ३०१. धर्मकरण्डक, वि० सं० ११६२, वही, पृ० १९२. वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्र के शिष्य); उपदेशकुलक; (संस्कृत); उपधानस्वरूप, (संस्कृत); कलिकुंडपार्श्वस्तवनम्, (संस्कृत); प्रमाणनयतत्त्वालोक, (संस्कृत); मुनिचन्द्रगुरुस्तुति, (संस्कृत); मुनिचन्द्रगुरुविरहस्तुति, (संस्कृत) प्रभातस्मरणस्तुति, (संस्कृत); यतिदिनचर्या, (संस्कृत); संसारोद्विग्नमनोरथकुलक, (संस्कृत); स्याद्वादरत्नाकर (प्रमाणनयतत्त्वालोक की टीका) देसाई, पूर्वोक्त, कंडिका ३४३-४५. विद्याकरगणि (मानभद्रसूरि के शिष्य) हैमव्याकरणवृत्ति पर दीपिका, (संस्कृत), वि० सं० १३६८, देसाई, जैनसाहित्य...,कंडिका ६३०. विनयरत्न (मुनिसार के शिष्य) सुभद्राचौपाई, मरु-गूर्जर, वि० सं० १५४९, शांतिकंठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, मरु-गूर्जर, भाग-१, पृ० ४९७. शांतिसूरि (नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य) पुहवीचंदचरिय, (प्राकृत), वि० सं० ११६१, प्राकृत अपरनाम टेक्स्ट सोसायटी से १९६२ ई० में प्रकाशित. शान्त्याचार्य शालिभद्रसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य) भरतबाहुबलिरास, (वि० सं० १२४१), गुजराती साहित्यकोश, पृ० ४६८. सुमतिप्रभसूरि (सुखप्रभसूरि के शिष्य) चौबीसी, मरु-गूर्जर, (वि० सं० १८२१), जैन गुर्जर कविओ, भाग-४, पृ. २३०. सोमचन्द्र वृत्तरत्नाकरवृत्ति, (संस्कृत), (वि० सं० १३२९). For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ बृहद्गच्छ का इतिहास सोमप्रभसूरि हरिभद्रसूरि Pt. A. P. Shah, Ed. Catalogue of the Sanskrit and Prakrit Manucripts Ac Vijayadevsuri's and Ac Kasantisuri's Collections. Part-IV, Ahmedabad-1968, p. 95. (विजयसिंहसूरि के शिष्य) कुमारपालप्रतिबोध (प्राकृत) प्रकाशित; शता काव्य और उस पर वृत्ति, (वि० सं० १२४१). सुमतिनाहचरिय, (प्राकृत); जिनरत्नकोश, पृ० ४४६, सुक्तिमुक्तावली अपरनाम सिन्दूरप्रकर, (संस्कृत); जिनरत्नकोश, पृष्ठ ४४१. (श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य) चन्द्रप्रभचरित, (अपभ्रंश), वि० सं० १२वीं उत्तरार्ध, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३९७. नेमिनाथचरित, (अपभ्रंश), मल्लिनाथचरित, (अपभ्रंश). जैन साहित्यनो.... (जिनदेवसरि के शिष्य) आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण अपरनाम षड्शीति टीका, (वि० सं० १२वीं उत्तरार्ध), देसाई, वही, कंडिका ३४७. क्षेत्रसमासवृत्ति, (संस्कृत), वि० सं० ११८५, देसाई, वही, कंडिका ३४७. बंधस्वामित्ववृत्ति, (संस्कृत), देसाई, वही, कंडिका, ३४७. मुनिपतिचरित्र, (संस्कृत), वि० सं० ११७२ देसाई, वही, कंडिका, ३४७. श्रेयांसनाथचरित्र, देसाई, वही, कंडिका, ३४७. (अजितदेवसूरि के शिष्य) नाभेयनेमिकाव्य, (संस्कृत), जिनरत्नकोश, पृ० २१०. हरिभद्रसूरि हेमचन्द्रसूरि रचनाओं के अकारादिक्रमानुसार तालिका अंजनासुन्दरीचौपाई, पद्य १५९ मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य) म०गू०, देसाई, जैन गुर्जरकविओ, भाग-२, नवीन संस्करण, पृ० ५५६५, भाग-३, पृ० २६२-६४. दामोदर (मालदेव के शिष्य) म०गू०, भोगीलाल सांडेसरा, प्राचीनफागुसंग्रह, पृ० १३७-१४९, देसाई, पूर्वोक्त, नवीन संस्करण, भाग-३, पृ० ३६२-६४. अनन्तनाथस्तवनम् For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-६ १०७ अनेकान्तजयपताकाटिप्पण मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्र-नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका, ३३२-३४. अमरसेनवयरसेनचउपइ, मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य) म०गू०, देसाई, जैनगूर्जरपद्य ४०८ कविओ, भाग-२, नवीन संस्करण, पृ० ५५-६५. आख्यानकमणिकोश देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि (आनन्दसूरि के शिष्य) प्राकृत, वि० सं० १२वीं शती पूर्वार्ध, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी वाराणसी से १९६२ ई० में प्रकाशित. आख्यानकमणिकोशवृत्ति आम्रदेवसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य) प्राकृत, वि० सं० ११९१, आख्यानकमणिकोश के साथ प्रकाशित. आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणवृत्ति हरिभद्रसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य) संस्कृत, वि० सं० अपरनाम षट्शीतिटीका ११७२, C.D. Dalal, Ed. Descriptive Catalogue of MSS In . the Jain Bhandars at Pattan, Part-1, p. 21, Muni Punya Vijaya, Ed. New Catalogue of Sanskrit & Prakrit MSS : Jesalmer Collection. p. 63-64. जिनरत्नकोश, पृष्ठ २१, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका-३४७. आदिनाथचरित्र वर्धमानसूरि (अभयदेवसूरि के शिष्य) (प्राकृत), वि० सं० ११६०, जिनरत्नकोश, पृ० ३०१. C.D. Dalal, Ed. A Descriptive Catalogue Mss in the Jain Bhandars at Pattan, Part-I, p. 350. आवश्यक (पाक्षिक) सप्ततिका मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्रसूरि-नेमिचंद्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३३२-३४, Petarson III, p. 243; जैन ग्रन्थावली, पृ० १४३; जिनरत्नकोश, पृ० २४१. For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ बृहद्गच्छ का इतिहास उत्तराध्ययनसूत्र (सुखबोधावृत्ति) देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि ( आनन्दसूरि के शिष्य), संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका २९७. जिनरत्नकोश, पृ० ३२७ उपदेशकुलक उपदेशपदव्याख्या उपदेशमालादोघट्टीवृत्ति उपधानस्वरूप कलिकुंडपार्श्वस्तवनम् कर्मप्रकृतिविशेषवृत्ति कलिकुण्डपार्श्वनाथ यन्त्रस्तवन, श्लोक १० वादिदेवसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), अपभ्रंश, साध्वी महायशाश्रीजी, संपादिका प्रमाणनयतत्त्वालोक, भूमिका, पृ० १८-१९. मुनिचन्द्रसूरि ( यशोभद्रसूरि - नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १९७४, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका- ३३२-३४, जिनरत्नकोश, पृ० ४८. रत्नप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३२८, देसाई, पूर्वोक्त, कंडिका ६३३, जिनरत्नकोश, पृष्ठ ४९-५० C.D. Dalal, Ibid, p. 206, 323. वादिदेवसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), जिनरत्नकोश, पृ०५३. वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, साध्वी महायशाश्रीजी, संपा०- प्रमाणनयतत्त्वालोक, भूमिका, पृ० १८-१९. मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्रसूरि - नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य) संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३३२-३४, जैनग्रन्थावली, पृ० ११५. वादिदेवसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य ), संस्कृत, मुनि चतुरविजय, संपा० जैनस्तोत्रसंदोह, भाग-१, पृ० ११८. कीर्तिधरसुकोशलसम्बन्ध, पद्य ४३१ मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु - गूर्जर. जैन गूर्जर कविओ, नवीन संस्करण, भाग २, पृ०, भाग ३, पृ०३६२ और आगे. For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-६ कुमारपालप्रतिबोध कुरुकुल्लादेवीस्तुति क्षेत्रसमासवृत्ति खंडनमंडनटिप्पण षड्शीतिटीका षोडषिकायें-१६ १०९ सोमप्रभसूरि (विजयसिंहसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० १२४१, प्रकाशित. वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, जैन स्तोत्रसंदोह, भाग १ में प्रकाशित. हरिभद्रसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १९८५, जिनरत्नकोश, पृ०९८, देसाई, जैनसाहित्यनो.., कंडिका ३४७. परमानन्दसूरि (भद्रेश्वरसूरि के शिष्य), संस्कृत, जिनरत्नकोश, पृ० १००. हरिभद्रसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत. जैन सहित्यनो...., कंडिका ३४७. रामचन्द्रसूरि (वादीदेवसूरि के प्रशिष्य और पूर्णदेवसूरि के शिष्य) संस्कृत, वि०सं० १३वी शती का उत्तरार्ध, जैनस्तोत्र संदोह, भाग-१ पृ० १३०-१८९. लक्ष्मीनिवास (रत्नप्रभसूरि के शिष्य) संस्कृत, वि०स० १३वीं शती, कापडिया जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, द्वितीय संस्करण, भाग २, पृ० ३३३. हरिभद्रसूरि (श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य) संस्कृत, देसाई, जैन साहित्यनो..., कंडिका ३९७. रामचन्द्रसूरि (वादीदेवसूरि के प्रशिष्य और पूर्णदेवसूरि के शिष्य) संस्कृत, वि०सं० १३वी शती का उत्तरार्ध, जैनस्तोत्र संदोह, भाग-१ पृ० १३०-१८९. जयमंगलसूरि (रामचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३१९, Epigraphia Indica, Vol. IX, 190708, p. 79. पूरनचन्द्र नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ९४३-९४४. घटकपर चन्द्रप्रभचरित चतुर्विंशतिका चामुंडाप्रशस्तिलेख For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० चौबीसी जीवाभिगमसूत्र लघुवृत्ति जीवानुशासनस्वोपज्ञवृत्तिसह देवदत्तचौपाई, पद्य ५३० धनदेवपद्यरथचौपाई पद्य १८४ धर्मकरण्डकस्वोपज्ञवृत्तिसह धर्मविन्दुवृत्ति धर्मोपदेशमालावृत्ति नाभेयनेमिकाव्य नेमिनाथचरित्र नेमिनाथचरित्र बृहद्गच्छ का इतिहास सुभतिप्रभसूरि ( सुखप्रभसूरि के शिष्य) मरु - गूर्जर, वि० सं० १८२१, देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग-४, पृ० २३०, गुजरातीसाहित्यकोश, पृ० ४६८. वादिदेवसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य) संस्कृत, जिनरत्नकोश, पृ०१४४, साध्वी महायशाश्रीजी, संपादिका - प्रमाणनयतत्त्वालोक, भूमिका, पृ० १८-१९. वादिदेवसूरि संस्कृत, वि०सं० ११६२, साध्वी महायशाश्रीजी, वही, भूमिका, पृ० १८-१९. मूल ग्रन्थ हेमचन्द्र ग्रन्थमाला, पाटण से प्रकाशित हो चुका है । मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृ० ५५ ६५, भाग ३, पृ०३६३ और आगे. वही वर्धमानसूरि (अभयदेवसूरि के शिष्य), वि० सं० ११७२, जिनरत्नकोश, पृ० १९२. जैन साहित्यनो...., कंडिका २९९. मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्रसूरि - नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३३२-३४. मुनिदेवसूरि ( मदनचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १४वीं पूर्वार्ध, जिनरत्नकोश, पृ० १९६. हेमचन्द्रसूरि (अजितदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, जिनरत्नकोश, पृ० २१०. हरिभद्रसूरि (श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य), अपभ्रंश, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३९७. रत्नप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० १२३३, वही, कंडिका ४८३. For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११ अध्याय-६ नेमिनाथनवभवरास, पद्य २३० मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, देसाई, जैन गूर्जरजैनकविओ, भाग-२, पृष्ठ ५५-६५, भाग ३, पृ० ३६३-६४. नेमिराजुल धमाल, पद्य ६५ वही. पंचपुरी पदसंग्रह पद्मरथचौपाई, गाथा ६९ पद्मावतीपद्मश्रीरास, पद्य १८१५ वही. पार्श्वनाथस्तवनम् मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्रसूरि-नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३३२-३४. पुरंदरचौपाई, पद्य ३७२ मालदेव, (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, जैनगुर्जरकविओ, भाग २, पृ० ५५-६५. पृथ्वीचंद्रचरित शांतिसूरि (नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० ११६१, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी से ई० सन् १९७२ में प्रकाशित. प्रभातस्मरण वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), साध्वी महायशाश्रीजी, प्रमाणनयतत्त्वालोक की भूमिका, पृ० १८-१९. प्रवचनसारोद्धार नेमिचंद्रसूरि (आम्रदेवसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० १२१६, प्रकाशित. बृहद्गच्छगुर्वावली, पद्य ३७ मुनि मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १७वीं शताब्दी, मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीय पट्टावलीसंग्रह में प्रकाशित.. बंधस्वामित्ववृत्ति हरिभद्रसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य), जिनरत्नकोश, पृ० २८१, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३४७. For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ भमरागीत भविष्यभविष्याचौपाई भुवनदीपक अपरनाम ग्रहभावप्रकाश पार्श्वधरणेन्द्रस्तुति प्रमाणनयतत्त्वालोक बृहद्गच्छ का इतिहास मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृ० ५५-६५. मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ५५-६५ तथा भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे; श्रमण, वर्ष २८, अंक ३, पृष्ठ २१-२४ पद्मप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० तेरहवीं शताब्दी प्रथम चरण, प्रकाशित. वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ३, अंक १०-१२ पृ० ३७५-३८३. वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, संपादिका-साध्वी महायशाश्रीजी, प्रका० ऊँकारसूरि ज्ञानभंडार, सुरत २००३ ई. मालदेव, (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, वि० सं० १७वीं शताब्दी, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ५५६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे. वर्धमानसूरि (अभयदेवसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० ११४०, जिनरत्नकोश, पृ० ३०१. जयमंगलसूरि (रामचन्द्रसूरि के शिष्य) संस्कृत, वि० सं० १३१०, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ५०५. मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ५५-६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे. वही भोजप्रबन्ध, पद्य २००० मनोरमाचरित्र महावीरजन्माभिषेककाव्य महावीरपंचकल्याणकस्तवन, गाथा २८ महावीरपारणा मालशिक्षाचउपई वही For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-६ ११३ मृगांकपद्यावतीरास, पद्य ४७८ वही मुनिचंद्रसूरिगुरुथुई, गाथा ५५ वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, साध्वी महायशाश्रीजी, संपा० प्रमाणनय-तत्त्वालोक, भूमिका, पृ० १८-१९. मुनिचन्द्रसूरिगुरुस्तुति, श्लोक २५ वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३वीं उत्तरार्ध, प्रकरणसमुच्चय के अन्तर्गत प्रकाशित. मुनिपतिचरित्र हरिभद्रसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० ११७२, जिनरत्नकोश, पृ० ३११, जैनग्रन्थावली, पृ० २२९. मेघदूतवृत्ति लक्ष्मीनिवास (रत्नप्रभसूरि के शिष्य) संस्सकृत, वि०सं० १३वी शती, कापडीया जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, द्वितीय संस्करण, भाग २, पृ० ३३३ विक्रमपंचदंडचौपाई, मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, गाथा १७२५ जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ५५-६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे. वैराग्यगीत वही. यतिदिनचर्या वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, साध्वी महायशाश्रीजी, संपा० प्रमाणनयत्त्वालोक, भूमिका, पृ० १८-१९. यन्त्रराज महेन्द्रसूरि (मदनचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १४वीं उत्तरार्ध, प्रकाशित. यन्त्रराजटीका मलयचन्द्र (महेन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १४वीं उत्तरार्ध, मूलग्रन्थ के साथ प्रकाशित For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ रत्नाकरावतारिक (प्रमाणनय तत्त्वा लोक की टीका) शांतिनाथचरित शीलबत्तीसी शीलबावनी श्रावकधर्मकुलक, गाथा ५७ बृहद्गच्छ का इतिहास रत्नप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, जिनरत्नकोश, पृ० २६७. मुनिभद्रसूरि (गुणभद्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १४१०, प्रकाशित-यशोविजय जैनग्रन्थमाला, वाराणसी वीर सं० २४३७. मुनि मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ५५-६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे. परिषदपत्रिका, वर्ष ६, अंक ४, पृ० ९४-१०१ पर प्रकाशित. । वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, लिम्बडी भंडार, साध्वी महायशाश्रीजी, संपा०- प्रमाणनयतत्त्वालोक, भूमिका, पृ० १८-१९. हरिभद्रसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, जैनग्रन्थावली, पृ० २४०, जिनरत्नकोश, पृ० ३९०, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३४७. वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, साध्वी महायशाश्रीजी, पूर्वोक्त, भूमिका, पृ० १८-१९. मुनि मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य) मरु-गूर्जर, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ५५-६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे. श्रेयांसनाथचरित्र संसारोदिग्नमनोरथकुलक सत्यकीचौपाई, पद्य ४४६ सवैया वही. For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-६ सार्धशतकचूर्णि सुभद्राचौपाई सुमतिनाहचरिय सुरसुन्दरीचौपाई ११५ मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्रसूरि-नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य) संस्कृत, वि० सं० ११७०, जिनरत्नकोश, पृ० ४३५, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३३२. विनयरत्न (मुनिसार के शिष्य), मरु-गूर्जर, वि० सं० १५४९, शीतिकंठमिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, मरु-गूर्जर, भाग १, पृ० ४९७. सोमप्रभसूरि (विजयसिंहसूरि के शिष्य) प्राकृत, जिनरत्नकोश, पृ० ४४९. मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृ० ५५-६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे. सोमप्रभसूरि (विजयसिंहसूरि के शिष्य) जिनरत्नकोश, पृ० ४४१, प्रकाशित. मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, जैनगूर्जर कविओ, भाग २, पृ, ५५-६५, भाग ३, पृ० ३६२ और आगे वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, प्रकाशित. रत्नप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३वीं, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका, ४८३.. विद्याकरगणि (मानभद्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३६८, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ६३०. सूक्तिमुक्तावली अपरनाम सिन्दूरप्रकर स्थूलभद्रधमाल, पद्य १०७ स्याद्वादरत्नाकर (प्रमाणनयतत्त्वलोक की टीका) स्याद्वादरत्नाकरलघुटीका हैमव्याकरणवृत्तिदीपिका For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - ७ बृहद्गच्छ से उद्भूत प्रमुख गच्छों का एतिहासिक अध्ययन अन्यान्य गच्छों की भांति बृहद्गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न गच्छों का उद्भव हुआ । इन गच्छों में जीरापल्लीगच्छ, नागपुरीयतपागच्छ, पिप्पलगच्छ, पूर्णिमागच्छ तथा मडाहडागच्छ प्रमुख हैं । इस अध्याय के अन्तर्गत इन्हीं गच्छों के इतिहास पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । | जीरापल्लीगच्छ का इतिहास बृहदगच्छ से अद्भूत पच्चीस शाखाओं में जीरापल्लीयगच्छ भी एक है । जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है जीरापल्ली? (राजस्थान प्रान्त के सिरोही जिले में आबू के निकट अवस्थित जीरावला ग्राम) नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया प्रतीत होता है । बृहद्गच्छीय देवचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और जिनचन्द्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जा सकते हैं। इस गच्छ में वीरसिंहसूरि, वीरचन्द्रसूरि, शालिभद्रसूरि, वीरभद्रसूरि, उदयरत्नसूरि, उदयचन्द्रसूरि, रामकलशसूरि, देवसुन्दरसूरि, सागरचन्द्रसूरि आदि कई मुनिजन हो चुके हैं। ___ इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य मिलते हैं जो सब मिलकर विक्रम सम्वत् की १५वीं शताब्दी से लेकर विक्रम सम्वत् की १७वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक के हैं। किन्तु जहाँ अभिलेखीय साक्ष्य वि०सं० १४०६ For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ ११७ से लेकर विक्रम सम्वत् १५७६ तक के हैं एवं उनकी संख्या भी तीस के लगभग है, वहीं साहित्यिक साक्ष्यों की संख्या मात्र दो है। चूँकि उत्तरकालीन अनेक चैत्यवासी मुनिजन प्रायः पाठन-पाठन से दूर रहते हुए स्वयं को चैत्यों की देखरेख और जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आदि कार्यों में ही व्यस्त रखते थे। अतः ऐसे गच्छों से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों का कम होना स्वाभाविक है। यहां उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । साहित्यिक साक्ष्यों की तुलना में अभिलेखीय साक्ष्यों का प्राचीनतर होने और संख्या की दृष्टि से अधिक होने के साथ ही अध्ययन की सुविधा आदि को नज़र में रखते हुए सर्वप्रथम इनका और तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण दिया जा रहा है : जीरापल्लीगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम लेख इस गच्छ के आदिम आचार्य रामचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। वर्तमान में यह प्रतिमा शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर में संरक्षित है। श्री पूरनचन्द नाह ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : कुटुम्ब श्रेयोर्थं श्री आदिनाथ बिम्बं सं० १४०६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ९ रवौ सा कारितं प्रतिष्ठितं जीरापल्लीयैः श्रीरामचन्द्रसूरिभिः ।। जैनलेखसंग्रह, भाग-२, लेखांक १०४९ इस गच्छ का उल्लेख करने वाला द्वितीय लेख वि०सं० १४११ का है जो जीरावला स्थित जिनालय में पार्श्वनाथ की देवकुलिका पर उत्कीर्ण है। मुनि जयन्तविजय ने इसकी वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : सं० १४११ वर्षे चैत्र वदि ६ बुधे अनुराधा नक्षत्रे बृहद्गच्छीय श्रीदेवचन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरीणां तपोवन समो.... .प्रभृतिपरिवारपरिवृत्तेन श्रीपार्श्वनाथस्य देवकुलिका सपरिकर जीरापल्लीयैः श्रीरामचन्द्रसूरिभिः कारिता ॥ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ११९ इस गच्छ से सम्बद्ध अन्य लेखों का विवरण इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० २. For Perso ४. 9. ६. ७. सम्वत् १४१३ १४२९ १४३५ १४३८ १४४० १४४२ १४४९ तिथि/मिति फाल्गुन सुदि १३ देवचन्द्रसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर रामचन्द्रसूरि माघ वदि ७ माघ वदि १२ सोमवार ज्येष्ठ वदि ४ रविवार पौष सुदि ११ बुधवार प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम वैशाख सुदि ६ बुधवार वीरचन्द्रसूर वीरसिंहसूरि के पट्टधर वीरचन्द्रसूरि वीर (चन्द) सूरि के शिष्य शालिभद्रसू वैशाख सुदि १५ वीरचन्द्रसूरि के शिष्य शालिभद्रसूरि लेख का स्वरूप आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की देवकुलिका जैनमंदिर, जीरावाला मुनि जयन्तविजय, संपा०, पर उत्कीर्ण लेख अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, लेखांक १२० एवं दौलतसिंह लोढा, श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३०९ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धातु की जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान पद्मप्रभ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ जिनालय, वडनगर आदिनाथ चैत्य, थराद चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेर गौडीपार्श्वनाथ जिनालय, बड़ोदरा सन्दर्भ ग्रन्थ चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर अनुपूर्तिलेख, बुद्धिसागरसूरि, जैनधातुप्रतिमालेख संग्रह, भाग - १, लेखांक ५४० लोढा, पूर्वोक्त, लेखांक ९९ अगरचन्द नाहटा, बीकानेरजैन लेखसंग्रह, लेखांक ५३२ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग- २, लेखांक २४१ अगरचंद नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५४७ मुनि जयन्तविजय, अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ६०३ ११८ बृहद्गच्छ का इतिहास Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० सम्वत् | तिथि/मिति | लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम अध्याय-७ For Personal & Private Use Only १४५३ | वैशाख सुदि ३ चौबीसी जिनप्रतिमा दौलतसिंह लोढ़ा, पूर्वोक्त, सोमवार पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ६२ १४५३ | मिति नष्ट महावीर की धातुप्रतिमा | चिन्तामणिजी | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ५६३ पर उत्कीर्ण लेख का मन्दिर, बीकानेर १४६२ | मितिविहीन पार्श्वनाथ की धातुप्रतिमा | धर्मनाथ जिनालय | मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, का लेख मडार | लेखांक ७४ १४६८ | वैशाख वदि ३ | शालिभद्रसूरि के पट्टधर | श्रेयांसनाथ की पंचतीर्थी | नवखण्डापार्श्वनाथ | बुद्धिसागर, वही, भाग-२, शुक्रवार | वीरभद्रसूरि प्रतिमा का लेख जिनालय, भोयरापाडो, लेखांक ८७४ खंभात १४७२ | वैशाख सुदि १२| शालिभद्रसूरि शांतिनाथ की प्रतिमा भण्डारस्थ धातु विजयधर्मसूरि, संपा०, का लेख प्रतिमा, पालिताणा | प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १११ १४७७ | वैशाख......? | शालिभद्रसूरि महावीर की धातुप्रतिमा | सुमतिनाथ मुख्य | बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-२, का लेख बावनजिनालय, मातर| लेखांक ४६१ १४८१ | वैशाख सुदि १५/ वीरचन्द्रसूरि के पट्टधर | पार्श्वनाथ की धातुप्रतिमा | चिन्तामणिजी का | नाहटा, पूर्वोक्त, बुधवार | शालिभद्रसूरि का लेख मन्दिर, बीकानेर लेखांक ७०७ १४८३ | वैशाख सुदि ५ | शालिभद्रसूरि के पट्टधर | चन्द्रप्रभ की धातुप्रतिमा | पार्श्वनाथ जिनालय, | बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग-२ गुरुवार | उदयरत्नसूरि का लेख नरसिंहजी की पोल, | लेखांक १३० बड़ोदरा १४८३ | माघ वदि ५ । शालिभद्रसूरि वासुपूज्य की धातु की | पार्श्वनाथ जिनालय | विनयसागर, प्रतिष्ठालेखसंग्रह सोमवार प्रतिमा का लेख साथां भाग - १ लेखांक २४५ ११९ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्वत् तिथि/मिति Jallication the national प्रतिष्ठापक आचार्य लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान सन्दर्भ ग्रन्थ या मुनि का नाम १५०८ | ज्येष्ठ सुदि १० | उदयचन्द्रसूरि | श्रेयांसनाथ की प्रतिमा | सुपार्श्वनाथ चैत्य, | लोढा, पूर्वोक्त, लेखांक २५६ सोमवार का लेख अमलीशेरी, थराद ८. | १५०९ वैशाख... प्रतिष्ठापक मुनि का नाम | सुविधिनाथ की धातु की | शांतिनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, संपा०, मिट गया है प्रतिमा का लेख राधनपुर राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १६१ १९. | १५१५ | फाल्गुन सुदि ५ | उदयचन्द्रसूरि कुन्थुनाथ की धातुप्रतिमा | संभवनाथ जिनालय, | विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, गुरुवार का लेख अमरेली लेखांक ३०३ २०. | १५२० । माघ वदि ७ | उदयचन्द्रसूरि के शिष्य | विमलनाथ की धातुप्रतिमा | अजितनाथ जिनालय, बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग-१, रविवार | सागरचन्द्रसूरि का लेख शेखनो पाडो, | लेखांक १०१५ अहमदाबाद १५२७ माघ वदि ७ शालिभद्रसूरि के पट्टधर | शांतिनाथ की प्रतिमा शांतिनाथ जिनालय, पूरनचन्द नाहर, संपा०, जैनलेखसंग्रह, रविवार उदयचन्द्रसूरि का लेख लखनऊ भाग-२, लेखांक १५०६ १५२७ उदयचन्द्रसूरि के पट्टधर | संभवनाथ की प्रतिमा लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक १३८ सागरचन्द्रसूरि का लेख ३. | १५३२ वैशाख वदि ५ धर्मनाथ की प्रतिमा चिन्तामणिजी का | नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १०७२ रविवार का लेख मन्दिर, बीकानेर २४. | १५४९ | ज्येष्ठ वदि १ | उदयचन्द्रसूरि के पट्टधर | धर्मनाथ की पंचतीर्थी वीर जिनालय, विनयसागर, पूर्वोक्त, भाग १, शुक्रवार देवरत्नसूरि प्रतिमा का लेख सांगानेर लेखांक ८५५ manujainelibranuclig बृहद्गच्छ का इतिहास Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० २५. २६. २७. al & Private Use Only सम्वत् १५५२ १५६० १५७२ तिथि/मिति माघ वदि २ रविवार वैशाख सुदि ३ बुधवार वैशाख सुदि ३ शनिवार प्रतिष्ठापक आचार्य या मुनि का नाम देवरत्नसूर लेख का स्वरूप वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा का लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातुप्रतिमा का लेख प्रतिष्ठास्थान शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद जैन मन्दिर, राजनगर चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर सन्दर्भ ग्रन्थ बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग - १, लेखांक १३२३ साराभाई नवाब“राजनगरना जिनमन्दिररोमां सचवायेलां ऐतिहासिक अवशेषो” जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९, अंक ८, लेखांक ३६ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ११३६ अध्याय-७ १२१ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं वि०सं० १४०६ के प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में रामचन्द्रसूरि का तो उल्लेख है, परन्तु उनके गुरु आदि का नाम उक्त लेख से ज्ञात नहीं होता, वहीं दूसरी ओर वि०सं० १४११ और वि०सं० १४१३ के अभिलेखों से स्पष्ट रूप उनके गुरु और प्रगुरु तथा उनके गच्छ का भी नाम मालूम हो जाता है। चूँकि ये इस गच्छ ( जीरापल्लीगच्छ) से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य हैं, अत: यह माना जा सकता है कि रामचन्द्रसूरि के समय से ही बडगच्छ की एक शाखा के रूप में जीरापल्लीगच्छ के अस्तित्व में आने की नींव पड़ चुकी थी और शीघ्र ही यह एक स्वतन्त्र गच्छ के रूप में स्थापित हो गया। इस आधार पर रामचन्द्रसूरि को इस गच्छ का पुरातन आचार्य माना जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्यों से रामचन्द्रसूरि के अतिरिक्त वीरसिंहसूरि, वीरचन्द्रसूरि, शीलभद्रसूरि, वीरभद्रसूरि, उदयरत्नसूरि, उदयचन्द्रसूरि, सागरचन्द्रसूरि, देवरत्नसूरि आदि के नामों के साथ-साथ उनके पूर्वापर सम्बन्धों का भी उल्लेख मिल जाता है, जो इस प्रकार है : १. वीरसिंहसूरि के पट्टधर वीरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२९-३८) २. वीरचन्द्रसूरि के पट्टधर शालिभद्रसूरि (वि०सं० १४४०-८३) ३. शालिभद्रसूरि के प्रथम शिष्य वीरभद्रसूरि (वि०सं० १४६८) ४. शालिभद्रसूरि के द्वितीय शिष्य उदयरत्नसूरि (वि०सं० १४८३) ५. शालिभद्रसूरि के तृतीय शिष्य उदयचन्द्रसूरि (वि०सं० १५०८-२७) ६. उदयचन्द्रसूरि के प्रथम शिष्य सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १५२०- १५३२) ७. उदयचन्द्रसूरि के द्वितीय शिष्य देवरत्नसूरि (वि०सं० १५४९ - १५७२) उक्त आधार पर जीरापल्लीगच्छ के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका पुनर्गठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : १२२ वडगच्छीय देवचन्द्रसूरि I जिनचन्द्रसूरि T रामचन्द्रसूरि (वि०सं० १४११ और १४१३ में जीरापल्ली तीर्थ पर दो देवकुलिकाओं के निर्माता) For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ वीरसिंहसूरि वीरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२९-१४३८) शालिभद्रसूरि (वि०सं० १४४०-१४८३) - वीरभद्रसूरि उदयरत्नसूरि उदयचन्द्रसूरि (वि०सं० १४६८) (वि०सं० १४८३) (वि०सं० १५०८-१५२७) ___ सागरचन्द्रसूरि देवरत्नसूरि (वि०सं० १५२०-१५३२) (वि०सं० १५४९-१५७२) जैसा कि लेख के प्रारम्भ में कहा जा चुका है इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो साहित्यिक साक्ष्य मिलते हैं। इनमें से प्रथम है रामकलशसूरि के शिष्य देवसुन्दरसूरि द्वारा रचित कयवन्नाचौपाई३। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने केवल अपने गुरु और रचनाकाल तथा गच्छ आदि का ही उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : संवत पनर चोराण सार, मागसर वदि सातमि गुरुवार। पूष्य नक्षत्र हूंतो सिध जोग, कयवन्नानी कथानो भोग।। श्रीजीराउलिगच्छ गुरु जयवंत, श्री श्रीरामकलशसूरि गुणवंत। वाचक देवसुन्दर पभणंति, भणइ गुणइ ते सुख लहंति।। इनके द्वारा रची गयी एक अन्य कृति भी मिलती है जिसका नाम है आषाढ़भूतिसज्झाय (रचनाकाल वि०सं० १५८७)। वि०सं० १६०२ में लिखी गयी तपागच्छीयश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति की प्रतिलिपि की प्रशस्ति५ में भी इस गच्छ का उल्लेख है : इत श्री तपग. श्राद्ध प्रतिक्रमण ...... वृत्तौ शेषाधिकारः पंचमः। समाप्ता चेयमर्थदीपिकानाम्नी श्राद्धप्रतिक्रमण-टीका । ग्रन्थाग्रन्थ ६६४४॥ श्री सं० १६०२ श्रावण For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ बृहद्गच्छ का इतिहास सुदि ५ रवौ श्रीजीराउलगच्छे लिखितं कीकी जाउरनगरे श्रीविजयहर्षगणि शिष्य रंगविजयनी प्रति भंडारी मूकी || कयवन्नाचौपाई के रचनाकार देवसुन्दरसूरि के गुरु रामकलशसूरि किसके शिष्य थे। अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित सागरचन्द्रसूरि, देवरत्नसूरि आदि से उनका क्या सम्बन्ध था, प्रमाणों के अभाव में यह ज्ञात नहीं होता। ठीक यही बात श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की वि०सं० १६०२ में प्रतिलिपि करने वाले जीरापल्लीगच्छीय रंगविजय और उनके गुरु विजयहर्षगणि के बारे में कही जा सकती है, फिर भी उक्त साहित्यिक साक्ष्यों से वि०सं० की १७वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक इस गच्छ का स्वतन्त्र अस्तित्व सिद्ध होता है। इसके बाद इस गच्छ से सम्बद्ध कोई साक्ष्य न मिलने से यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि इस समय तक इस गच्छ के अनुयायी श्रमण किन्ही प्रभावशाली गच्छों विशेषकर तपागच्छ के अनुयायी हो गये होंगे । यद्यपि त्रिपुटीमहाराज ने वि०सं० १६५१ में इस गच्छ के किन्हीं देवानन्दसूरि के पट्टधर सोमसुन्दरसूरि के विद्यमान होने का उल्लेख किया है, परन्तु अपने उक्त कथन का कोई आधार या सन्दर्भ नहीं दिया है, अतः इसे स्वीकार कर पाना कठिन है । सन्दर्भ : १. “बृहद्गच्छगुर्वावली”, मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृ० ५२-५५. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, पृ० ८७-९७. २. डॉ० ३-४. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग-१, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा०, जयन्त कोठारी, पृ० ३३३. अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा०, श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग-२, प्रशस्ति क्रमांक ३६६, पृ० १००. त्रिपुटी महाराज, जैन परम्परानो इतिहास, भाग - २, प्रथम संस्करण, पृ० ५९९. ५. ६. For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागपुरीयतपागच्छ का इतिहास ! निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में पूर्वमध्यकाल और मध्यकाल में उद्भूत विभिन्न गच्छों में नागपुरीयतपागच्छ (नागौरी तपागच्छ) भी एक है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है कि यह गच्छ तपागच्छ की एक शाखा के रूप में अस्तित्त्व में आया होगा, किन्तु इस गच्छ की स्वयं की मान्यतानुसार बृहद्गच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि ने अपने चौबीस शिष्यों को एक साथ आचार्य पद प्रदान किया, जिनमें पद्मप्रभसूरि भी एक थे।१ पद्मप्रभसूरि द्वारा नागौर में उग्र तप करने के कारण वहां के शासक ने प्रसन्न होकर उन्हें 'नागौरीतपा' विरुद् प्रदान किया। इस प्रकार उनके नाम के साथ 'नागौरीतपा' शब्द जुड़ गया और उनकी शिष्य सन्तति नागपुरीयतपागच्छीय कहलायी।२ इसी गच्छ से आगे चलकर १६वीं शताब्दी में पार्श्वचन्द्रगच्छ अस्तित्व में आया और आज भी उस गच्छ के अनुयायी श्रमण-श्रमणी विद्यमान हैं। नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध ग्रन्थ प्रशस्तियों एवं पट्टावलियों में यद्यपि इसे वि० सं० ११७४/ई० सन् १११८ में बृहद्गच्छ से उद्भूत बतलाया गया है, किन्तु इस गच्छ से सम्बद्ध उपलब्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य विक्रम सम्वत् की १६वीं१७वीं शताब्दी से पूर्व के नहीं हैं। नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य है वि० सं० १५५१/ई० स० १४९५ में प्रतिष्ठापित शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख। महोपाध्याय विनयसागर ने इस लेख की वाचना दी है,३ जो इस प्रकार है - सं० १५५१ व० मा० २ सोमे उ० ज्ञा० सोनीगोत्रे सा० चांपा भा० चांपलदे पु० हया रामा हृदा पितृनि० आ० श्रे० श्री शीतलनाथ बिं० कारि० प्रति० नागुरी (नागपुरीय) तपाग० भ० सोमरत्नसूरिभिः। For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ बृहद्गच्छ का इतिहास प्रतिष्ठान स्थान – ऋषभदेव जिनालय, मालपुरा आदिनाथ जिनालय, नागौर में एक शिलापट्ट पर उत्कीर्ण वि० सं० १५९६ का एक खण्डित अभिलेख प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख में राजरत्नसूरि और उनके शिष्य रत्नकीर्तिसूरि का नाम मिलता है। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है: ॥ॐ॥ स्वास्तिश्रीसंवत् १५९६ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे नवमी तिथौ सोमवारे नागपुरकोटे श्रीमालवंशे संकियाप्य (?) गोत्रे सं० नोल्हा पु० सं० चूहड़ सं० लक्ष्मीदास सं० भवानी सं० लक्ष्मीदास भार्या सं० सरूपदे नाम्नी है............................... श्रीराजरत्नसूरिपट्टे सं० श्रीरत्नकीर्तिसूरि प्रतिष्ठिता।। ...................। शिलापट्ट प्रशस्ति, आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर उक्त अभिलेख से राजरत्नसूरि और उनके शिष्य रत्नकीर्तिसूरि किस गच्छ के थे, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती किन्तु उक्त जिनालय में ही मूलनायक के रूप में स्थापित आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख से इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। महोपाध्याय विनयसागर जी५ ने इस लेख का मूलपाठ दिया है, जो निम्नानुसार है: ॥ॐ।। सं० १५९६ वर्षे फाल्गुन सुदि नवम्यां तिथौ.................गोत्रे.. ........... सं० नोल्हा पु० सं० तेजा पु० सं० चूहड भा० सं० रमाइं पु० सं० लक्ष्मीदास सं० भवानी सं० लक्ष्मीदास भा०... .......कल्याणमल्ल तत्र लक्ष्मीदास भार्या सरूपदेव्यौ कर्मनिर्जरार्थं श्री आदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं.... .......भट्टारक श्रीसोमरत्नसूरिपट्टे भट्टारिक श्री श्रीराजरत्नसूरयस्तत्पट्टे श्रीरत्नकीर्तिसूरि................... श्रीसंघस्य। मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर इस अभिलेख में रत्नकीर्तिसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलने के साथ साथ उनके गुरु राजरत्नसूरि और प्रगुरु सोमरत्नसूरि का भी नाम मिलता है: .......... For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १२७ सोमरत्नसूरि राजरत्नसूरि रत्नकीर्तिसूरि (वि० सं० १५९६ में आदिनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं नागपुरीयतपागच्छीय सोमरत्नसूरि का वि० सं० १५५१ के एक लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है। अत: इन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर रत्नकीर्ति के प्रगुरु और राजरत्नसूरि के गुरु सोमरत्नसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। ___ इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अन्तिम अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १६६७ का है। इस लेख का मूलपाठ भी हमें विनयसागर जी द्वारा ही प्राप्त होता है,६ जो इस प्रकार है : सम्वत् १६६७ फाल्गुन कृष्णा ६ गुरौ..............उसवालज्ञातीय दूगड़गोत्रे सा० सलिग पुत्र साह राजपाल पुत्र सा० खीमाकेन भार्या कुशलदे पुत्र गिरधर सा० मानसिंघयुतेन श्री श्रेयासनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनागौरीतपागच्छे श्रीचन्द्रकीर्तिसूरिपट्टे श्रीसोमकीर्तिसूरिपट्टे श्रीदेवकीर्तिसूरि श्रीअमर .................................। प्रतिष्ठितं नागौरी तपागच्छ श्री आगरानगरे मानसिंघेन लिपीकृतं ॥ मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ जिनालय, हिंडोन इस प्रकार इस अभिलेख में नागपुरीयतपागच्छ के चार मुनिजनों के नाम मिल जाते हैं, जो इस प्रकार हैं : For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ देवकीर्तिसूरि चन्द्रकीर्तिसूरि I सोमकीर्तिसूरि वि०सं० १५९६ के प्रतिमा लेख में उल्लिखित रत्नकीर्तिसूरि और वि० सं० १६६७ के उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित चन्द्रकीर्ति के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध था, यह बात उक्त प्रतिमालेख से ज्ञात नहीं होता है । बृहद्गच्छ का इतिहास अमर (कीर्तिसूरि) (वि० सं० १६६७ में श्रेयांसनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध यही चार अभिलेखीय साक्ष्य आज मिलते हैं, किन्तु इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से ये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्य पद्मप्रभसूर | प्रसन्नचन्द्रसूरि I गुणसमुद्रसूर 1 जयशेखरसूरि नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है इस गच्छ के आचार्य चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा वि० सं० १६२३ / ई० स० १५६७ में रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति ७, जिसमें रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी गुर्वावली दी है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से अति मूल्यवान है। गुर्वावली इस प्रकार है : वादिदेवसूर For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १२९ वज्रसेनसूरि हेमतिलकसूरि रत्नशेखरसूरि पूर्णचन्द्रसूरि प्रेम (हेम) हंससूरि रत्नसागरसूरि हेमसमुद्रसूरि हेमरत्नसूरि सोमरत्नसूरि राजरत्नसूरि चन्द्रकीर्तिसूरि हर्षकीर्ति (सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रथमादर्शप्रति के लेखक) चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित धातुपाठविवरण, छन्दकोशटीका आदि कई कृतियां प्राप्त होती हैं। इसी प्रकार इनके शिष्य हर्षकीर्ति भी अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे। इसके द्वारा रचित योगचिन्तामणि अपरनाम वैद्यकसारोद्धार, शारदीयनाममाला, अजियसंतिथव (अजितशांतिस्तव), उग्गहरथोत्त (उपसर्गहरस्तोत्र), धातुपाठ, नवकारमंत्र, (नमस्कारमन्त्र), बृहच्छांतिथव (बृहदशान्तिस्तव), लघुशान्तिस्तोत्र, सिन्दूरप्रकर आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं ।९ । गोपालभट्ट द्वारा रचित सारस्वतव्याकरण पर वृत्ति के रचनाकार भावचन्द्र भी नागपुरीयतपागच्छ के थे। अपनी उक्त कृति की प्रशस्ति° में इन्होंने अपने गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है: For Personal & Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० चन्द्रकीर्तिसूरि पद्मचन्द्र | भावचन्द्र (सारस्वतव्याकरणवृत्ति अपरनाम गोपालटीका के रचनाकार) ऊपर सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं कि किन्ही पद्मचन्द्र की प्रार्थना पर उक्त कृति की रचना की गयी थी ११ । इससे यह प्रतीत होता है कि मुनि पद्मचन्द्र का रचनाकार से अवश्य ही निकट सम्बन्ध रहा होगा। ऊपर हम गोपालटीका की प्रशस्ति में देख रहे हैं कि टीकाकार भावचन्द्र ने पद्मचन्द्र को चन्द्रकीर्तिसूरि का शिष्य और अपना गुरु बतलाया है। इस प्रकार सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रथमादर्शप्रति के लेखक हर्षकीर्ति और उक्त कृति की रचना हेतु आचार्य चन्द्रकीर्ति को प्रेरित करने वाले पद्मचन्द्र परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं। चन्द्रकीर्तिसूरि (वि०सं० १६२३ में सारस्वतव्याकरणदीपिका के रचनाकार) पद्मचन्द्र (सारस्वतव्याकरणदीपिका की रचना के लिए प्रार्थना करने वाले) बृहद्गच्छ का इतिहास हर्षकीर्ति (सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रथमादर्श प्रति के लेखक ): भावचन्द्र (सारस्वतव्याकरणवृत्ति अपरनाम गोपालटीका के रचनाकार) हर्षकीर्ति द्वारा रचित कल्याणमन्दिरस्तोत्रटीका नामक एक अन्य कृति भी प्राप्त होती है, जिसका संशोधन उनके शिष्य महोपाध्याय देवसुन्दर ने किया १२ । इसी प्रकार इनके एक शिष्य शिवराज ने अपने गुरु द्वारा रचित बृहदशान्तिस्तव की वि० सं० १६७६ में प्रतिलिपि की १३ । वि० सं० १६५७ में लिखी गयी सिरिवालचरिय (श्रीपालचरित्र) की प्रतिलेखन प्रशस्ति१४ में भी इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, जो इस प्रकार हैं For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १३१ चन्द्रकीर्तिसूरि मानकीर्ति अमरकीर्ति मुनिधर्म (वि०सं० १६५७/ई०स० १६०१ में सिरिवालचरिय के प्रतिलिपिकार) उक्त छोटी-छोटी प्रशस्तियों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की एक तालिका निर्मित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : चन्द्रकीर्तिसूरि (सारस्वतव्याकरणदीपिका के रचनाकार) मानकीर्ति (कल्याणमंदिरस्तोत्रटीका एवं अन्य कृतियों के कर्ता) हर्षकीर्ति पद्मचन्द्र (सारस्वतव्याकरणदीपिका की रचना के प्रेषक) शिवराज भावचन्द्र (गोपालटीका के रचनाकार) अमरकीर्ति महो० देवसुन्दर (कल्याणमंदिरस्तोत्रटीका के संशोधक) मुनिधर्म (वि०स० १६५७/ई०स० १६०१ में श्रीपालचरित के प्रतिलिपिकार ऋतुसंहारटीका के रचनाकार अमरकीर्ति१५ और वि०सं० १६५७ में सिरिवालचरिय के प्रतिलिपिकार मुनिधर्म के गुरु अमरकीर्ति एक ही व्यक्ति मालूम होते हैं ।। सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में उल्लिखित रचनाकार चन्द्रकीर्ति के गुरु राजरत्नसूरि और प्रगुरु सोमरत्नसूरि समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित राजरत्नसूरि और उनके गुरु सोमरत्नसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। इस आधार पर चन्द्रकीर्तिसूरि और रत्नकीर्तिसूरि, सोमरत्नसूरि के For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ बृहद्गच्छ का इतिहास प्रशिष्य, राजरत्नसूरि के शिष्य और परम्परा गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं। इस प्रकार इस गच्छ के मुनिजनों का जो वंशवृक्ष बनाता है, वह इस प्रकार है : सोमरत्नसूरि (वि० सं० १५५१) प्रतिमा लेख(नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य) राजरत्नसूरि चन्द्रकीर्तिसूरि (वि०सं० १६२३ में सारस्वव्याकरणदीपिका के कर्ता, प्रसिद्ध रचनाकार) रत्नकीर्तिसूरि (वि०सं० १५९६) प्रतिमालेख मानकीर्तिसूरि हर्षकीर्ति (सारस्वतव्याकरणदीपिका पद्मचन्द्र (इनकी प्रार्थना पर की प्रथमादर्श प्रति के सारस्वतव्याकरणदीपिका लेखक) की रचना हुई) अमरकीर्तिसूरि महो०देवसुन्दर शिवराज भावचन्द्र (गोपालटीका के कर्ता) __ मुनिधर्म (वि०सं० १६५७ में श्रीपालचरित के प्रतिलिपिकार) चूंकि नागपुरीयतपागच्छ का वि० सं० १५५१ से पूर्व कहीं भी कोई उल्लेख नहीं मिलता, अत: चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्तिगत गुर्वावली में आचार्य सोमरत्नसूरि से पूर्ववर्ती हेमरत्नसूरि, हेमसमुद्रसूरि, हेमहंससूरि, पूर्णचन्द्रसूरि आदि जिन मुनिजनों का उल्लेख मिलता है, उन्हें किस गच्छ से सम्बद्ध माना जाये, यह समस्या सामने आती है। इस सम्बन्ध में हमें अन्यत्र प्रयास करना होगा। तपागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों में हमें हेमरत्नसूरि (वि० सं० १५३३), हेमरत्नसूरि के गुरु हेमसमुद्रसूरि (वि० सं० १५१७-२८) और हेमसमुद्रसूरि के गुरु तथा पूर्णचन्द्रसूरि के शिष्य हेमहंससूरि (वि० सं० १४५३-१५१३) का उल्लेख प्राप्त होता है। इनका विवरण इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ क्रमांक संवत् १. १४५३ .. सुदि २. १४६५ माघ वादि १३ ३. १४६६ चैत्र सुदि १३ १४६९ कार्तिक सुदि १५ १४७५ मार्गसिर वादि १४८५ १४८५ १४८६ ज्येष्ठ सुदि १४८७ माघ सुदि १४९० वैशाख वदि ४. ५. ६. ७. ७अ. ७ब. ७स. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. तपागच्छीय आचार्य पूर्णचन्द्रसूरि के पट्टधर हेमहंससूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण तिथि दिन सन्दर्भग्रन्थ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४८९ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ६१९ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९१७ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ६४१ लेखांक १२४० बुधवार बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १३१४ वही, लेखांक ७२९ जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६५८ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५१ जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४२९ वही, भाग २, लेखांक १३२९ वही, भाग २, लेखांक १४८१ वही, भाग २, लेखांक १३६७ बुधवार वही, भाग २, लेखांक १४८२ शुक्रवार बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ८६५ माह माघ वदि . वदि "" ३ ४ १४ ५ १४९० फाल्गुन सुदि ९ १४९६ वैशाख सुदि १२ १४९८ फाल्गुन वदि १० १५०१ .....वदि १५०३ ज्येष्ठ सुदि १५०३ १५०३ मार्गशीर्ष वदि १५०४ फाल्गुन सुदि १५१० चैत्र वदि १३ ३ ६ ११ "" १० ११ ४ जैनलेखसंग्रह, भाग २, वही, लेखांक १४३३ वही, लेखांक १५१२ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक शनिवार वही, भाग २, लेखांक ११५२ १३३ For Personal & Private Use Only ११४७ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ बृहद्गच्छ का इतिहास क्रमांक संवत् माह तिथि दिन सन्दर्भग्रन्थ १७. १५११ माघ वदि ९ वही, भाग २, लेखांक १४०१ १७अ. १५१२ फाल्गुन वदि ५ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९४ १८. १५१३ पौष सुदि ७ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०८९ १९. १५१३ ,, ,, वही, भाग २, लेखांक १२६६ २०. १५१३ ,, ,, वही, भाग २, लेखांक १३७४ हेमहंससूरि के पट्टधर हेमसमुद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण क्रमांक संवत् माह तिथि दिन सन्दर्भ ग्रन्थ १. १५१७ मार्गशीर्ष सुदि २ शनिवार प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५६९ २. १५१७ माघ सुदि १० सोमवार वही, लेखांक ५७३ ३. १५१८ माघ सुदि २ शनिवार बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२२७ १५२१ वैशाख सुदि १३ सोमवार वही, लेखांक १२९३ ५. १५२१ माघ सुदि १२ बुधवार जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४४३ ५अ. १५२२ माघ सुदि २ गुरुवार प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२० ६. १५२८ वैशाख वदि ६ सोमवार बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२४९ हेमसमुद्रसूरि के पट्टधर हेमरत्नसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण क्रमांक संवत् माह तिथि दिन सन्दर्भग्रन्थ १. १५३३ माघ सुदि६ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ७६४ २. १५३३ " " बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ११९१ ३. १५४२ वैशाख सुदि १३ रविवार प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १६८ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर जो पट्टक्रम निश्चित होता है, वह इस प्रकार For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १३५ पूर्णचन्द्रसूरि हेमहंससूरि (वि० सं० १४५३-१५१३) हेमसमुद्रसूरि (वि० सं० १५१७-१५२८) हेमरत्नसूरि (वि० सं० १५३३-१५४२) इस प्रकार तपागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों में न केवल उक्त मुनिजनों के नाम मिलते हैं, बल्कि उनका पट्टक्रम भी ठीक उसी प्रकार का है जैसा कि चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं। सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में पूर्णचन्द्रसूरि के गुरु का नाम रत्नशेखरसूरि और प्रगुरु का नाम हेमतिलकसूरि दिया गया है। रत्नशेखरसूरि द्वारा रचित सिरिवालचरिय (श्रीपालचरित) रचनाकाल वि० सं० १४२८/ई०स० १३७२; लघुक्षेत्रसमास स्वोपज्ञवृत्ति, गुरुगुणद्वात्रिंशिका, छंदकोश, सम्बोधसत्तरीसटीक, लघुक्षेत्रसमास-सटीक आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं।१६ सिरिवालचरिय की प्रशस्ति१७ में उन्होंने अपने गुरु, प्रगुरु, शिष्य तथा रचनाकाल आदि का निर्देश किया है, जो इस प्रकार है: सिरिवज्जसेणगणहर-पट्टप्पहू हेमतिलयसूरीणां। सीसेहिं रयणसेहरसूरीहिं इमा ऊणा संकलिया ।।३८।। तस्सीसहेमचंदेण साहुणा विक्कमस्स वरिसंमि। चउदस अट्ठावीसे, लिहिया गुरुभत्तिकलिएणं ।।३९।। अर्थात् वज्रसेनसूरि हेमतिलकसूरि रत्नशेखरसूरि हेमचन्द्र For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास ___ यह उल्लेखनीय है कि रत्नशेखरसूरि ने उक्त प्रशस्ति में अपने गच्छ का निर्देश नहीं किया है। यही बात उनके द्वारा रचित अन्य कृतियों के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। वि० सं० १४२२ के एक प्रतिमालेख में तपागच्छीय? किन्हीं रत्नशेखरसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु उपदेशक के रूप में नाम मिलता है ।१८ यदि हम इस वाचना को सही मानें तो उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित रत्नशेखरसूरि को समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर उक्त प्रसिद्ध रचनाकार रत्नशेखरसूरि से समीकृत किया जा सकता है। एक रचनाकार द्वारा अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में अपने गुरु, प्रगुरु, शिष्य तथा रचनाकाल का उल्लेख करना जितना महत्त्वपूर्ण है, वहीं उनके द्वारा अपने गच्छ का निर्देश न करना उतना ही आश्चर्यजनक भी है। कर्पूरप्रकर नामक कृति की प्रशस्ति १९ में रचनाकार हरिषेण ने स्वयं को वज्रसेन का शिष्य और नेमिनाथचरित्र का कर्ता बतलाया है, किन्तु उन्होंने न तो कृति के रचनाकाल का कोई निर्देश किया है और न ही अपने गच्छ आदि का। ऊपर सिरिवालचरिय (रचनाकाल वि० सं० १४२८/ई०स० १३७२) प्रशस्ति में हेमतिलकसूरि के गुरु का नाम वज्रसेनसूरि आ चुका है, अत: नामसाम्य के आधार पर उक्त दोनों प्रशस्तियों में उल्लेखित वज्रसेनसूरि के एक ही व्यक्ति होने की सम्भावना व्यक्त की जा सकती है। इस संभावना के आधार पर कर्पूरप्रकर, नेमिनाथचरित्र आदि के रचनाकार हरिषेण और सिरिवालचरिय तथा अन्य कई कृतियों के कर्ता हेमतिलकसूरि परस्पर गुरुभ्राता माने जा सकते हैं ।। सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में ऊपर हम देख चुके हैं वज्रसेनसूरि के गुरु का नाम जयशेखरसूरि और प्रगुरु का नाम गुणसमुद्रसूरि तथा उनके गुरु का नाम प्रसन्नचन्द्रसूरि बतलाया गया है जो इस परम्परा के आदिपुरुष पद्मप्रभसूरि के शिष्य थे। छन्दकोश पर रची गयी वृत्ति की प्रशस्ति में रचनाकार चन्द्रकीर्तिसूरि ने पद्मप्रभसूरि को दीपकशास्त्र का रचनाकार बतलाया है :२० वर्षेः चतुःसप्ततियुक्तरुद्र शतै ११४७ रतीतैरथ विक्रमार्कात् । वादीन्द्रमुख्योः गुरु-देवसूरिः सूरीश्चतुर्विंशतिभ्यषिंचत् ॥ तेषां च यो दीपकशास्त्रकर्ता पद्मप्रभः सूरिवरो वभूव । यदिय शाखा प्रथिता क्रमेण ख्याता क्षितौ नागपुरी तपेति ॥ For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १३७ ठीक यही बात विक्रम सम्वत् की १८वीं शती के अन्तिम चरण के आस-पास रची गयी नागपुरीयतपागच्छ की पट्टावली२१ में भी कही गयी है, किन्तु वहां ग्रन्थ का नाम भुवनदीपक बतलाया गया है। इसी गच्छ की दूसरी पट्टावली२२ (रचनाकालविक्रम सम्वत् बीसवीं शताब्दी का अन्तिम चरण) में तो एक कदम और आगे बढ़ कर भुवनदीपक का रचनाकाल (वि० सं० १२२१) का भी उल्लेख कर दिया गया किन्ही पद्मप्रभसूरि नामक मुनि द्वारा रचित भुवनदीपक अपरनाम ग्रहभावप्रकाश नामक ज्योतिष शास्त्र की एक कृति मिलती है२३, परन्तु उसकी प्रशस्ति में न तो रचनाकार ने अपने गुरु, गच्छ आदि का नाम दिया है और न ही इसका रचनाकाल ही बतलाया है, फिर भी नागपुरीयतपागच्छीय साक्ष्यों-छन्दकोशवृत्ति की प्रशस्ति तथा इस गच्छ की पट्टावली के विवरण को प्रामाणिक मानते हुए विद्वानों ने इन्हें वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से अभिन्न माना है। नागपुरीयतपागच्छीयपट्टावली (रचनाकाल २० वीं शताब्दी का अन्तिम भाग) में उल्लिखित भुवनदीपक के जहां तक रचनाकाल का प्रश्न है, चूंकि इस सम्बन्ध में किन्ही भी अन्य साक्ष्यों से कोई सूचना नहीं मिलती, दूसरे अर्वाचीन होने से इसमें अनेक भ्रामक और परस्पर विरोधी सूचनायें संकलित हो गयी हैं अतः इसकी प्रामाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। पद्मप्रभसूरि की परम्परा में हुए हरिषेण एवं रत्नशेखरसूरि द्वारा अपने गच्छ का उल्लेख न करना तथा इसी परम्परा में बाद में हुए चन्द्रकीर्तिसूरि, मानकीर्ति, अमरकीर्ति आदि द्वारा स्वयं को नागपुरीयतपागच्छीय और अपनी परम्परा को बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि से सम्बद्ध बतलाना वस्तुत: इतिहास की एक अनबूझ पहेली है जिसे पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में सुलझा पाना कठिन है और यह प्रश्न अभी अनुत्तरित ही रह जाता है। सन्दर्भ १.२. (अ) तीर्थे वीरजिनेश्वरस्य विदिते श्रीकौटिकाख्ये गणे श्रीमच्चान्द्रकुले वटोद्भवबृहद्गच्छे गरिम्नान्विते। श्रीमन्नागपुरीयकाहयतपाप्राप्तावदातेऽधुना स्फूर्जदूरिगुणान्विता गणधर श्रेणी सदा राजते ॥२॥ वर्षे वेद-मुनीन्द्र-शङ्कर (११७४) मिते श्रीदेवसूरि:प्रभुः जज्ञेऽभूत तदनु प्रसिद्धमहिमा पद्मप्रभः सूरिराट् ॥ For Personal & Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ बृहद्गच्छ का इतिहास सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति A.P. Shah, Ed., Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss, Muni Punya Vijayajis Collection, Part II, pp. 376-377. (ब) “नागपुरीयतपागच्छपट्टावली' मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ ४८-५२. (स) “नागपुरीयतपागच्छपट्टावली' मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, नवीनसंस्करण, संपा०- डॉ० जयन्त कोठारी, भाग ९, पृष्ठ ९८-१०५. ३. महोपाध्याय विनयसागर, संपा० प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८६५. वही, लेखांक ९९४. ५. वही, लेखांक ९९५. वही, लेखांक १०९२ सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति : सुबोधिकयां क्लुप्तायां सूरिश्रीचन्द्रकीर्तिभिः, कृत्प्रत्ययानां व्याख्यानं बभूव सुमनोहरम् ॥१॥ तीर्थे वीरजिनेश्वरस्य विदिते श्रीकौटिकाख्ये, गणे श्रीमच्चान्द्रकुले बटोद्भवबृहद्गच्छे गरिम्नान्विते। श्रीमन्नागपुरीयकाह्वयतपाप्राप्तावदातेऽधुना, स्फूर्जद्भरिगुणान्विता गणधरश्रेणी सदा राजते ॥२॥ वर्षे वेद-मुनीन्द्र-शङ्कर (११७४) मिते श्रीदेवसूरिः प्रभुः। जज्ञेऽभूत् तदनु प्रसिद्धमहिमा पद्मप्रभः सूरिराट्। तत्पट्टे प्रथितःप्रसन्नशशिभृत सूरिः सतामादिमः। सूरीन्द्रास्तदनन्तरं गुणसमुद्राह्वा बभूवुर्बुधाः।।३।। तत्पट्टे जयशेखराख्यसुगुरुः श्रीवज्रसेनस्ततस्तत्पट्टे गुरुहेमपूर्वतिलकः शुद्धक्रियोद्योतकः । तत्पट्टे प्रभुरत्नशेखरगुरुः सूरीश्वराणां वरस्तत्पट्टाम्बुधिपूर्णचन्द्रसदृशः श्रीपूर्णचन्द्रप्रभुः॥४॥ तत्पट्टेऽजनि प्रेमहंससुगुरुः सर्वत्र जाग्रद्यशाः आचार्या अपि रत्नसागरवरास्तत्पट्टपद्मार्यमा। श्रीमान् हेमसमुद्रसूरिरभवच्छ्रीहेमरत्नस्ततस्तत्पट्टे प्रभुसोमरत्नगुरवः सूरीश्वराः सद्गुणाः।।५।। तत्पट्टोदयशैलहेलिरमलश्रीजेसवालान्वयाऽलङ्कारः कलिकालदर्पदमन: श्रीराजरत्नप्रभुः। तत्पट्टे जितविश्ववादिनिवहा गच्छाधिपाः संप्रतिसूरिश्रीप्रभुचन्द्रकीर्तिगुरवो गाम्भीर्यधैयाश्रयाः ॥ ६ ॥ For Personal & Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १३९ तैरियं पद्मचन्द्राह्वोपाध्यायाभ्यर्थना कृता । शुभा सुबोधिकानाम्नी श्रीसास्वतदीपिका।।७।। श्रीचन्द्रकीर्तिसूरीन्द्रपादाम्भोजमधुकरः। श्रीहर्षकीर्तिरिमां टीकां प्रथमादर्शकेऽलिखत् ॥८॥ अज्ञातध्वान्तविध्वंसविधाने दीपिकानिभा। दीपिकेयं विजयतां वाच्यमाना बुधैश्चिरम् ।।९।। स्वल्पस्य सिद्धस्य सुबोधकस्य सारस्वतव्याकरणस्य टीकाम् । सुबोधिकाख्यां रचयाञ्चकार सूरीश्वरः श्रीप्रभुचन्द्रकीर्तिः।।१०।। गुण-पक्ष-कला (१६२३) संख्ये वर्षे विक्रमभूपतेः। टीका सारस्वतस्येषा सुगमार्था विनिर्मिता ॥११॥ इति श्रीमन्नागपुरीयतपागच्छाधिराजभट्टारकश्रीचन्द्रकीर्तिसूरिविरचिता श्रीसारस्वतव्याकरणस्य दीपिका समाप्ता ॥ अस्मिन् समाप्ते समाप्तोऽयमिति ग्रन्थः। A.P. Shah, Ibid, Part II, No. 5974, pp. 376-377. ८. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका ८५७. वही, कंडिका ८७२. स्वस्ति श्रीमति सत्प्रभावकलिते विद्वद्गणालंकृते श्रीमन्नागपुरीयसंज्ञकतपागच्छे प्रसिद्ध भुवि। जाग्रद्भारतिसुप्रसादसुरभिस्फारस्फुरत्तेजसि सूरीन्द्रप्रवरे चिरं विजयिनि श्रीचन्द्रकीर्तिप्रभौ ॥१॥ नित्यं तेऽत्र जयन्ति गणैर्मान्याः समासादित (?) क्षेत्राधीशवराश्च पाठकवरा: श्रीपद्मचन्द्राभिधाः।। तच्छिष्योत्तमभावचन्द्रवचसा सारस्वतस्य स्फुटां टीकां चारुविचारसाररुचिरां गोपालभट्टो व्यधात् ।।२।। A.P. Shah, Ibid, Part IV, P- 94-95. No. 954. ११. तैरियं पद्मचन्द्राह्वोपाध्यायाभ्यर्थना कृता। ___ शुभा सुबोधिकानाम्नी श्रीसारस्वतदीपिका।।६।। सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति, द्रष्टव्य - सन्दर्भ क्रमांक ७. १२. श्रीमन्नागपुरीयकाह्वयतपागच्छाधिपाः सत्क्रिया: सूरिश्रीप्रभचन्द्रकीर्त्तिगुरवस्तेषां विनेयो वरः। वाच्यः पाठक हर्षकीतिरकरोत् कल्याणसास्तवे, मेधामन्दिर देवसुन्दरमहोपाध्यायराजो महान् ॥१॥ यत्किंचिन्मतिमन्दत्वात् यच्चात्रानवधानतः। व्याख्यातं वैपरीत्येन तद् विशोध्यं विचक्षणैः।।२।। A.P. Shah, Ibid, Part I, No. 1671, pp. 97-98. For Personal & Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० बृहद्गच्छ का इतिहास १३. इतिश्रीबृहच्छांतिटीका समाप्ताः।। शुभं भवतु ॥ श्रीरस्तुः ॥ संवत् १६७६ वर्षे वैशाख मासे । शुक्लपक्षे । द्वितीयां तिथौ । च (च) द्रवासरे लिपिकृताः ॥ श्रीमन्नागपुरीपतपागच्छे ।। भ० श्रीश्रीमानकीर्तिसूरिस्तेषांपट्टे उ० श्रीहर्षकीर्ति । तशिख्य (ष्य) शिवराजेन लिखितमस्तिः। स्वपठनाय लेखक पाठक (:) श्रीरस्तु । H.R. Kapadia, Ed., Descriptive Catalogue of the Govt. Collections of Mss. Deposited at B.O.R.I. Vol. XVIII, Part IV, p. 121. १४. संवत् १६५७ वर्षे आषाढ़ मासे शुक्लपक्ष। प्रतिपदायां तिथौ। सोमवारे। श्रीनागपुरमध्ये। पातसाहि श्रीअकबर राज्ये। श्रीवर्धमानतीर्थे सुधास्वामिनोऽन्वये। कौटिकगणे। वइरीशाखायां। चन्द्रकुले। पूर्व श्रीमद्वृहद्गच्छे सांप्रतं प्राप्तनागपुरीय तपा इति प्रसिद्धावदाते। वादि श्री देवसूरिसंताने। भ० श्री चन्द्रकीर्तिसूरिवरास्तेषां । पट्टे सर्वत्र जेगीयमानकीर्ति भ० श्रीमानकीर्तिसूरिपुरंदरास्तेषां शिष्या आचार्य श्री श्री ५ अमरकीर्तिसूरयस्तेषां शिष्येण मुनिधर्माह्ययेन लिपीचक्रे। अमृतलाल मगनलालशाह, संपा०, श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ६२८, पृष्ठ १५९-६०. New Catalogus Catalogorum, Vol I, P - 317. १६. देसाई, पूर्वोक्त, कंडिका ६४८. P.Petrson : A Forth Report of Operation in Search of Sanskrit MSS, P. 118, No. 1348. १८. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९२८. १९. श्रीवज्रसेनस्यगुरोस्त्रिषष्टि सारप्रबन्धस्फुटसद्गुणस्य ।। शिष्येण चक्रे हरिणेयमिष्टा, सूक्तावली नेमिचरित्रकर्ता । कर्पूरप्रकर की प्रशस्ति; कर्पूरप्रकर, प्रकाशक- बालाभाई कलकभाई, मांडवीपोल, अहमदाबाद, वि०सं० १९८२ २०. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय संशोधित संस्करण, भाग ९, पृ० ९९, पाद टिप्पणी १. २१-२२. द्रष्टव्य सन्दर्भ क्रमांक १ और २. २३. ग्रहभावप्रकाशाख्यं शास्त्रमेतत्प्रकाशितम्। लोकानामुपकाराय श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः।।१७०॥ भुवनदीपक का अन्तिम श्लोक, प्रकाशक- वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई वि०सं०१९९६ / ई०स० १९३९. ५. For Personal & Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | पिप्पलगच्छ का इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय के अन्तर्गत पूर्वमध्यकाल और मध्यकाल में विभिन्न गच्छों के रूप में अनेक भेद-प्रभेद उत्पन्न हुए । जैसा कि इसी पुस्तक द्वितीय अध्याय के प्रारम्भ में ही हम देख चुके हैं कि चन्द्रकुल (बाद में चन्द्रगच्छ) के आचार्य उद्योतनसूरि ने वि०सं० ९९४/ई०सन् ९३८ में अर्बुदगिरि की तलहटी में स्थित धर्माण (वरमाण) नामक सन्निवेश में वटवृक्ष के नीचे अपने आठ शिष्यों को आचार्य पद प्रदान किया, जिनकी शिष्यसन्तति वटवृक्ष के कारण वडगच्छीय कहलायी।१ इसी गच्छ में विक्रम सम्वत् की १२वीं शती के मध्य में आचार्य सर्वदेवसूरि, उनके शिष्य आचार्य शांतिसूरि और प्रशिष्य विजयसिंहसूरि हुए। पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध उत्तरकालीन साक्ष्यों के अनुसार आचार्य शांतिसूरि ने पीपलवृक्ष के नीचे विजयसिंहसूरि आदि ८ शिष्यों को आचार्य पद दिया, इस प्रकार वडगच्छ की एक शाखा के रूप में पिप्पलगच्छ का उद्भव हुआ। __ अन्यान्य गच्छों की भाँति पिप्पलगच्छ से भी अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ। विभिन्न साक्ष्यों से इस गच्छ की त्रिभवीयाशाखा और तालध्वजीयाशाखा का पता चलता है। पिप्पलगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिए भी साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के परवर्ती मुनिजनों द्वारा रची गयी कुछ कृतियों की प्रशस्तियों में उल्लिखित गुरु-परम्परा के साथसाथ इसी गच्छ के धर्मप्रभसूरि नामक मुनि के किसी शिष्य द्वारा रचित पिप्पलगच्छगुर्वावली तथा किसी अज्ञात कवि द्वारा अपभ्रंश भाषा में रचित पिप्पलगच्छगुर्वावली-गुरहमाल का उल्लेख किया जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की For Personal & Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ बृहद्गच्छ का इतिहास चर्चा की जा सकती है। ऐसे लेख बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। ये वि०सं० १२०८ से वि०सं० १७७८ तक के हैं। यहां उक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। पिप्पलगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है विक्रम संवत् की पन्द्रहवीं शती के तृतीय चरण के आस-पास इस गच्छ के धर्मप्रभसूरि के किसी शिष्य द्वारा रचित पिप्पलगच्छगुरु- स्तुति २ या पिप्पलगच्छगुर्वावली । संस्कृत भाषा में १८ श्लोकों में निबद्ध इस कृति में रचनाकार ने पिप्पलगच्छ तथा इसकी त्रिभवीया शाखा के अस्तित्व में आने एवं अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार -: शीलभद्रसूरि परिपूर्णदेवसूरि महेन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि देवचन्द्रसूरि पद्मचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि जयदेवसूरि हेमप्रभसूरि जिनेश्वरसूरि 1 देवभद्रसूरि I धर्मघोषसूरि विजयसेनसूरि I धर्मदेवसूरि (त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक) 1 धर्मचन्द्रसूरि I सर्वदेवसूरि 1 नेमिचन्द्रसूरि I शांतिसूर For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४३ अध्याय-७ धर्मरत्नसूरि धर्मतिलकसूरि धर्मसिंहसूरि धर्मप्रभसूरि धर्मप्रभसूरिशिष्य (नाम-अज्ञात) (पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति के रचनाकार) पिप्पलगच्छीय सागरचन्द्रसूरि ने वि०सं० १४८४/ई०सन् १४२८ में सिंहासनद्वात्रिंशिका३ की रचना की। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने स्वयं को जयतिलकसूरि का शिष्य बतलाया है : .. - - जयतिलकसूरि सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४८४/ई० सन् १४२८ में सिंहासनद्वात्रिंशिका के रचनाकार) पिप्पलगच्छीय हीराणंदसूरि की कई कृतियाँ मिलती हैं,४ जैसे - वस्तुपालतेजपालरास - रचनाकाल वि०सं० १४८४ विद्याविलासपवाडो . रचनाकाल वि०सं० १४८५ कलिकालरास - रचनाकाल वि०सं० १४८६ जम्बूस्वामी,विवाहलु - रचनाकाल वि०सं० १४९४ दर्शाणभद्ररास - रचनाकाल अज्ञात। स्थूलभद्रबारहमास - रचनाकाल अज्ञात। For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ बृहद्गच्छ का इतिहास अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में उन्होंने अपने को पिप्पलगच्छीय वीरदेवसूरि का प्रशिष्य और वीरप्रभसूरि का शिष्य बतलाया है५ : वीरदेवसूरि वीरप्रभसूरि हीराणंदसूरि (ग्रन्थकार) इस गच्छ के आनन्दमेरुसूरि ने वि०सं० १५१३/ई० सन् १४५७ में कालकसूरिभास की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने खुद को गुणरत्नसूरि का शिष्य बतलाया है : गुणरत्नसूरि आनन्दमेरु (वि०सं० १५१३/ई० सन् १४५७ में कालकसूरिभास के रचनाकार) कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार भी यही आनन्दमेरुसूरि माने जाते हैं। पिप्पलगच्छीय नरशेखरसूरि ने वि०सं० १५८४/ई० सन् १५२८ में पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने खुद को शांति (प्रभ) सूरि का शिष्य बतलाया है : For Personal & Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १४५ शान्तिप्रभसूरि नरशेखरसूरि (वि०सं० १५८४/ई०सन् १५२८ में पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास के रचनाकार) २१ श्लोकों की अज्ञातकृतक पिप्पलगच्छगुर्वावली नामक एक रचना भी उपलब्ध हुई है। श्री भंवरलाल नाहटा ने इसे प्रकाशित कराया है । इसमें उल्लिखित गुरु-परम्परा इस प्रकार है : शांतिसूरि विजयसिंहसूरि देवप्रभसूरि धर्मघोषसूरि शीलभद्रसूरि परिपूर्णदेवसूरि विजयसेनसूरि धर्मदेवसूरि (त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक) धर्मचन्द्रसूरि धर्मतिलकसूरि For Personal & Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ धर्मसिंहसूर 1 धर्मप्रभसूर 1 धर्मशेखरसूरि I धर्मसागरसूरि 1 धर्मवल्लभसूरि यही इस गच्छ से सम्बद्ध प्रमुख साहित्यिक साक्ष्य हैं। धर्मप्रभसूरिशिष्यविरचित पिप्लगच्छगुरु- स्तुति और पिप्पलगच्छीय उपरोक्त गुर्वावली में धर्मप्रभसूरि तक पट्टधर आचार्यों की नामावली और उनका क्रम समान रूप से मिल जाता हैं । जैसा कि इन दोनों गुर्वावलियों के विवरण से स्पष्ट होता है ये पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा से सम्बद्ध हैं । अभिलेखीय साक्ष्य ( यद्यपि पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध उपलब्ध सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य वि०सं० १२९१/ ई० सन् १२३५ का है, किन्तु वि० सं० १४६५ / ई० सन् १४०९ के एक प्रतिमा लेख से ज्ञात होता है कि इस गच्छ के पुरातन ) आचार्य विजयसिंहसूरि ने वि०सं० १२०८ में डीडिला ग्राम में महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी जिसे वि०सं० १४६५ में वीरप्रभसूरि ने पुनर्स्थापित की। १० वर्तमान में यह प्रतिमा कोटा स्थित एक जिनालय में संरक्षित है। यदि उक्त प्रतिमालेख के विवरण को सत्य मानें तो पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य वि०सं० १२०८ का माना जा सकता है। इस गच्छ के कुल १७२ लेख मिले हैं जो वि०सं० १७७८ तक के हैं। इनमें १६वीं शती के लेख सर्वाधिक हैं जबकि १७वीं शती का केवल एक लेख मिला है । बृहद्गच्छ का इतिहास प्रतिमालेखों से इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, परन्तु उनमें से कुछ के ही पूर्वापर सम्बन्ध निश्चित हो पाते हैं और इस प्रकार गुरु-परम्परा की छोटी-छोटी तालिकायें ही बन पाती हैं जो इस प्रकार हैं : For Personal & Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १४७ धर्मशेखरसूरि (वि०सं० १४८४-१५०६) प्रतिमालेख विजयदेवसूरि (वि०सं० १५०३-१५३०) प्रतिमालेख शालिभद्रसूरि (वि०सं० १५१५-१५३४) प्रतिमालेख शांतिसूरि गुणरत्नसूरि (वि०सं० १५०७-१५१७) प्रतिमालेख गुणसागरसूरि (वि०सं० १५१७-१५४६) प्रतिमालेख शांतिप्रभसूरि (वि०सं० १५५४) प्रतिमालेख मुनिसिंहसूरि अमरचन्द्रसूरि (वि० सं० १५१९-१५३६) प्रतिमालेख सर्वदेवसूरि (वि०सं० १५२९) प्रतिमालेख For Personal & Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ बृहद्गच्छ का इतिहास __घोघा स्थित नवखण्डा पार्श्वनाथ जिनालय के निकट भूमिगृह से प्राप्त २४० धातु प्रतिमाओं में से ६ प्रतिमाओं पर पिप्पलगच्छीय मुनिजनों के नाम उत्कीर्ण हैं।११ इन प्रतिमाओं पर ई० सन् १३१५, १४४७, १४४९, १४५० और १४५७ के लेख खुदे हुए हैं। चूँकि ढांकी ने अपने उक्त निबन्ध में प्रतिमा लेखों का मूल पाठ नहीं दिया है, अत: इन लेखों में आये आचार्यों के नाम आदि के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। ___ जैसा कि लेख के प्रारम्भ में कहा जा चुका है इस गच्छ की दो शाखाओं - त्रिभवीया और तालध्वजीया - का पता चलता है। प्रथम शाखा से सम्बद्ध पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति और पिप्पलगच्छ गुर्वावली१२ का पूर्व में उल्लेख आ चुका है। इसके अनुसार धर्मदेवसूरि ने गोहिलवाड़ (वर्तमान गुहिलवाड़, अमरेली, जिला भावनगर, सौराष्ट्र) के राजा सारंगदेव को उसके तीन भव बतलाये इससे उनकी शिष्यसन्तति त्रिभवीया कहलायी । यह सारंगदेव कोई स्थानीय राजा रहा होगा । पिप्पलगच्छीय प्रतिमा लेखों में किन्ही धर्मदेवसूरि द्वारा वि०सं० १३८६ में प्रतिष्ठापित एक जिन प्रतिमा का उल्लेख आ चुका है१३। चूंकि उक्त गुरुस्तुति में रचनाकार ने अपने गुरु धर्मप्रभसूरि को त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक धर्मदेवसूरि से ५ पीढ़ी बाद का बतलाया है, साथ ही पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की पूर्वप्रदर्शित तालिका में भी धर्मप्रभसूरि (वि०सं०१४७१-१४७६) का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है। इस प्रकार अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित धर्मदेवसूरि और धर्मप्रभसूरि के बीच लगभग १०० वर्षों का अन्तर है और इस अवधि में पाँच पट्टधर आचार्यों का पट्टपरिवर्तन असम्भव नहीं, अत: समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर वि०सं० १३८६/ई०सन् १३३० में प्रतिमाप्रतिष्ठापक पिप्पलगच्छीय धर्मदेवसूरि और इस गच्छ के त्रिभवीया शाखा के प्रवर्तक धर्मदेवसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। ठीक यही बात पिप्पलगच्छगुरुस्तुति के रचनाकार के गुरु धर्मप्रभसूरि और पिप्पलगच्छीय धर्मप्रभसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। ४७ ऐसे भी प्रतिमालेख मिलते हैं जिन पर स्पष्ट रूप से पिप्पलगच्छ त्रिभवीयाशाखा का उल्लेख है१।। अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा का जो क्रम निश्चित होता है, वह इस प्रकार है - For Personal & Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १४९ धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १४७१-१४७६) प्रतिमालेख धर्मशेखरसूरि (वि०सं०१४८४-१५०५) प्रतिमालेख देवचन्द्रसूरि (वि०सं० १४८७) प्रतिमालेख धर्मसुन्दरसूरि (वि०सं० १५११) प्रतिमालेख धर्मसूरि (वि०सं० १५२०) प्रतिमालेख धर्मसागरसूरि (वि०सं० १४८४-१५३५) प्रतिमालेख धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १५६१) प्रतिमालेख पिप्पलगच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची में किन्हीं धर्मशेखरसरि (वि०सं० १४८४-१५०५) का नाम आ चुका है१५ जिन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर त्रिभवीयाशाखा के धर्मशेखरसूरि से अभिन्न माना जा सकता है यही बात उक्त सूची में ही उल्लिखित धर्मशेखरसूरि के शिष्य विजयदेवसूरि और प्रशिष्य शालिभद्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इस प्रकार त्रिभवीयाशाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की तालिका को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १४७१-१४७६) प्रतिमालेख धर्मशेखरसूरि (वि०सं० १४८२-१५०५) प्रतिमालेख देवचन्द्रसूरि विजयदेवसूरि धर्मसुन्दरसूरि (वि०सं०१४८७) (वि०सं० १५०३-१५३०) (वि०सं०१५११) प्रतिमालेख प्रतिमालेख प्रतिमालेख धर्मसूरि — (वि०सं०१५२०) प्रतिमालेख For Personal & Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० बृहद्गच्छ का इतिहास शालिभद्रसूरि (वि०सं०१५१६-१५२८) प्रतिमालेख धर्मसागरसूरि (वि०सं०१४८४-१५३५) प्रतिमालेख धर्मप्रभसूरि (वि०सं०१५६१) प्रतिमालेख पिप्पलगच्छीयगुरु-स्तुति द्वारा त्रिभवीयाशाखा के धर्मप्रभसूरि के पूर्ववर्ती आचार्यों के नाम से ज्ञात हो चुके हैं । पिप्पलगच्छगुर्वावली१६ से हमें धर्मसागरसूरि के एक अन्य शिष्य धर्मवल्लभसूरि का भी पता चलता है। इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीयसाक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा की गुरु-परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है - सर्वदेवसूरि (वडगच्छीय) नेमिचन्द्रसूरि (वडगच्छीय) शांतिसूरि (वि०सं०११८१/ई०सन् ११२५ में पिप्पलगच्छ के प्रवर्तक) महेन्द्रसूरि विजयसिंहयसूरि देवचन्द्रसूरि पद्मचन्दसूरि पूर्णचन्द्रसूरि जयदेवसूरि देवप्रभसूरि जिनेश्वरसूरि देवप्रभसूरि धर्मघोषसूरि शीलभद्रसूरि परिपूर्णदेवसूरि For Personal & Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ विजयसेनसूरि धर्मदेवसूरि (त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक वि०सं० १३८६/ई०सन् १३३० के प्रतिमालेख में उल्लिखित) धर्मचन्द्रसूरि धर्मरत्नसूरि धर्मतिलकसूरि धर्मसिंहसूरि धर्मप्रभसूरि (वि०सं० १४७१-१४७६) पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति के रचयिता धर्मप्रभसूरिशिष्य (वि०सं० १४८२-१५१०) प्रतिमालेख देवचन्द्रसूरि विजयदेवसूरि धर्मसुन्दरसूरि धर्मसूरि (वि०सं०१४८७) (वि०सं० १५०३-१५३०) (वि०सं०१५११) (वि०सं०१५२०) प्रतिमालेख प्रतिमालेख प्रतिमालेख प्रतिमालेख शालिभद्रसूरि धर्मसागरसूरि (वि०सं०१५१७-२८) (वि०सं०१४८५-१५३५) प्रतिमालेख प्रतिमालेख धर्मप्रभसूरि धर्मवल्लभसूरि (वि०सं०१५६१) (पिप्पलगच्छगुर्वावली में उल्लिखित) वि०सं०१५२८ और वि०सं०१५५९ के प्रतिमालेखों में पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा का उल्लेख मिलता है। सम्भवत: सौराष्ट्र में स्थित तलाजा नामक स्थान से यह शाखा अस्तित्व में आयी हो। इन प्रतिमालेखों का विवरण इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ बृहद्गच्छ का इतिहास १. सं० १५२८ वर्षे वैशाष (ख) विदि (वदि) सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० सामल भार्या वान्ह सुतसं. हासाकेन भार्या वीजू द्वितीय भार्या सहिजलदे सुत समधर कीका युतेन श्रीचन्द्रप्रभ- चतुर्विशतिपट्ट (:) कारितः प्र० पिप्पलगच्छे तालध्वजीय श्रीगुणरत्नसूरिपट्टे पू० श्रीगुणसागरसूरिभिः घोघा वास्तव्य श्रीः। - विजयधर्मसूरि- सम्पा० प्राचीनलेखसंग्रह, लेखाङ्क ४१६ २. सं० १५५९ फागुण सुदि ७ दिने श्रीश्रीमालज्ञातीय साहमणिकभा० अपूरवपु० भाइआकेन स्वमातृपित्रोः श्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं तलाझीआ श्रीशांतिसूरिभिः प्रतिष्ठितं। - बुद्धिसागरसूरि- सम्पा० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग-२, लेखाङ्क ३०२ प्रथम लेख में गुणरत्नसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों के आधार पर पूर्वप्रदर्शित आचार्यपरम्परा की छोटी-छोटी तालिकाओं में से एक में गुणरत्नसूरि के शिष्य गुणसागरसूरि का नाम आ चुका है। शांतिसूरि गुणरत्नसूरि (वि०सं०१५०७-१५१७) प्रतिमालेख गुणसागरसूरि (वि०सं०१५१७-१५४६) प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित पिप्पलगच्छीय गुणसागरसूरि (वि०सं०१५१७१५४६/प्रतिमालेख) और तालध्वजीयाशाखा के गुणसागरसूरि (वि०सं०१५२८/ प्रतिमालेख) को समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती। ठीक इसी प्रकार तालध्वजीयाशाखा के शांतिसूरि (वि०सं०१५५९/प्रतिमालेख) और पिप्पलगच्छीय शांतिप्रभसूरि (वि०सं०१५५४/ प्रतिमालेख)१७ को एक ही व्यक्ति माना जा सकता है । इसी प्रकार लेख के प्रारम्भ में साहित्यिक साक्ष्यों में उल्लिखित कालकसूरिभास (रचनाकाल वि०सं०१५१४/ई०सन् १४५७) और कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार पिप्पलगच्छीय आनन्दमेरु १८ के गुरु गुणरत्नसूरि भी समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर तालध्वजीयाशाखा के ही गुणसागरसूरि (वि०सं०१५१७-१५४६/प्रतिमालेख) के गुरु गुणरत्नसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। ठीक यही बात पार्श्वनाथपत्नी For Personal & Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १५३ पद्मावतीहरणरास (रचनाकाल वि०सं०१५८४/ई०सन् १५२८) के रचनाकार पिप्पलगच्छीय नरशेखरसूरि१९ और उनके गुरु शांति (प्रभ) सूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह निम्नानुसार है : शांतिसूरि गुणरत्नसूरि आनन्दमेरु (वि०सं०१५१३ में कालकसूरिभास तथा कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार) गुणसागरसूरि (वि०सं०१५१७-१५४६) प्रतिमालेख शांतिप्रभसूरि (वि०सं०१५५४-१५५१) प्रतिमालेख नरशेखरसूरि (वि०सं०१५८४ में पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास के रचनाकार) पिप्पलगच्छ की तालध्वजीयाशाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह गच्छ कब अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। जहाँ तक पिप्पलगच्छगुरुस्तुति में वडगच्छीय शांतिसूरि द्वारा विजयसिंहसूरि आदि ८ शिष्यों को पीपलवृक्ष के नीचे आचार्यपद देने और इस प्रकार पिप्पलगच्छ के अस्तित्व में आने के विवरण की प्रामाणिकता का प्रश्न है और यह सत्य है कि वडगच्छ में शांतिसूरि और उनके शिष्य विजयसिंहसूरि हुए और उनके द्वारा क्रमश: रचित पृथ्वीचन्द्रचरित२° (रचनाकाल वि०सं०११६१/ई०सन् ११०५) और श्रावकप्रतिक्रमण For Personal & Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ बृहद्गच्छ का इतिहास सूत्रचूर्णी२१ (रचनाकाल वि०सं० ११८३/ई०सन् ११२६) उपलब्ध हैं किन्तु इनकी प्रशस्ति में इन्हें कहीं भी पिप्पलगच्छीय नहीं कहा गया है। चूंकि किसी भी गच्छ की अवान्तर शाखायें अपने उत्पत्ति के एक-दो पीढ़ी बाद ही नाम विशेष से प्रसिद्ध होती हैं अतः उक्त गुर्वावली के ऊपरकथित विवरण को प्रामाणिक माना जा सकता है। जैसा कि पीछे कहा जा चुका है पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य वि०सं०१२९१ का है, किन्तु वि०सं० १४६५ में एक प्रतिमालेख से ज्ञात होता है कि वि०सं० १२०८ में वीरस्वामी की एक प्रतिमा को इस गच्छ के विजयसिंहसूरि ने डीडिला नामक ग्राम में स्थापित की थी। यदि इस विवरण को सत्य मानें तो वि०सं०१२०८ में इस गच्छ का अस्तित्व भी मानना पड़ेगा और ऐसी स्थिति में श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी के रचनाकार विजयसिंहसूरि और वि०सं०१२०८ में प्रतिमाप्रतिष्ठापक विजयसिंहसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि विक्रम सम्वत् की तेरहवीं शती के प्रारम्भिक दशक में बृहद्गच्छ की एक शाखा के रूप में यह गच्छ अस्तित्व में आ चुका था और तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पिप्पलगच्छ के रूप में इसका नामकरण हुआ होगा। पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों से यद्यपि इस गच्छ के अनेक मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, किन्तु उनमें से कुछ को छोड़कर शेष मुनिजनों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती, फिर भी इतना स्पष्ट है कि धर्मघोषगच्छ, पूर्णिमागच्छ, चैत्रगच्छ आदि की भाँति पिप्पलगच्छ भी १६वीं शती तक विशेष प्रभावशाली रहा। १७वीं-१८वीं शताब्दी से अमूर्तिपूजक स्थानकवासी सम्प्रदाय के उदय और उसके बढ़ते हुए प्रभाव के कारण खरतरगच्छ, तपागच्छ और अंचलगच्छ को छोड़कर शेष अन्य मूर्तिपूजक गच्छों का महत्त्व क्षीण होने लगा और इनके अनुयायी ऐसी परिस्थिति में उक्त तीनों प्रभावशाली मूर्तिपूजक गच्छों में या स्थानकवासी परम्परा के अनुयायी हो गये होंगे । सन्दर्भ : श्रीमत्यर्बुदतुंगशैलशिखरच्छायाप्रतिष्ठास्पदे धर्माणाभिधसन्निवेशविषये न्यग्रोधवृक्षो बभौ । यत्शाखाशतसंख्यपत्रबहलच्छायास्वपायाहतं सौख्येनोषितसंघमुख्यशटकश्रेणीशतीपंचकम् ॥१॥ For Personal & Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १५५ लग्ने क्वापि समस्तकार्यजनके सप्तग्रहालोकेन ज्ञात्वा ज्ञानवशाद् गुरुं ...... देवाभिधः। आचार्यान् रचयांचकार चतुरस्तस्मात् प्रवृद्धो बभौ वंद्रोऽयं वटगच्छनाम रुचिरो जीयाद् युगानां शतीम्।।२।। बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति (रचनाकाल वि०सं०१२३८/ई०सन् ११८२) की प्रशस्ति Muni Punya Vijaya-Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Combay, Pp.284-286. उक्त प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने बृहद्गच्छ के उत्पत्ति की तो चर्चा की है, परन्तु उक्त घटना की तिथि के सम्बन्ध में वे मौन हैं। मध्यकाल में रची गयी विभिन्न पट्टावलियों यथा तपागच्छीय मुनिसुंदरसूरि द्वारा रचित गुर्वावली (रचनाकाल वि०सं०१४६६/ई०सन् १४०९), तपागच्छीय आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य धर्मसागरसूरि द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली (रचनाकाल वि०सं० १६४८/ई०सन् १५९२), बृहद्गच्छीय मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छगुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १६१० के आस-पास) आदि में यह घटना वि०सं० ९९४ में हुई बतलायी गयी है; किन्तु पश्चात्कालीन होने से उल्लिखित उक्त मत की प्रामाणिकता सन्दिग्ध मानी जा सकती है। इस सम्बन्ध में विस्तार के लिए द्रष्टव्य- "बृहद्गच्छ का संक्षिप्त इतिहास” पं० दलसुख भाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ, वाराणसी १९९२ ई०,पृ० १०५-११७. P.Peterson. Opration in Search of Sanskrit MSS: Vol-V. Bombay 1896 A.D. pp-125-126. पुहवीचंदचरिय (पृथ्वीचंद्रचरित्र), सम्पा०- मुनि रमणीकविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, ग्रन्थांक १६, अहमदाबाद-वाराणसी १९७२ ई० सन्, इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में भी उक्त गुरु-स्तुति प्रकाशित है जिसका आधार प्रो० पीटर्सन का उक्त ग्रन्थ ही है। A.P.Shah, Catalogue of Sanskrit & Parkrit Mss, Muni Shree PunyavijayJis Collection. No. 5479, P-349. ४-५. मोहनलाल दलीचंद देसाई- जैनगूर्जरकविओ, भाग-१, नवीन संस्करण, सम्पा० डॉ० जयन्त कोठारी, पृ० ५२. ६-७. वही, भाग-१, पृ० १०५. ८. वही, भाग-१, पृ० ३९७. ९. “पिप्पलगच्छगुर्वावली” सम्पा० भंवरलाल नाहटा, आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रन्थ, बम्बई १९५६ ई०, हिन्दी खण्ड, पृ० १३-२२. For Personal & Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ बृहद्गच्छ का इतिहास १०. पूर्वं डीडिलाग्राम मूलनायक: श्री महावीर: संवत् १२०८ वर्षे पिप्पलगच्छीय श्रीविजयसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितः पश्चात वीरपल्या प्रा० साह सहदेवकारिते प्रासादे पिप्पलाचार्य श्रीवीरप्रभसूरिभिः स्थापितः। संवत् १४६५ वर्षे । - जैन मंदिर कोरटा, सिरोही, पूरनचन्द नाहर- जैनलेखसंग्रह, भाग-१, कलकत्ता १९१८ ई०, लेखाङ्क ९६६. ११. मधुसूदन ढांकी अने हरिशंकर प्रभाशंकर शास्त्री – “घोघानो जैन प्रतिमा निधि" श्री फार्बस गुजराती सभा पत्रिका, जनवरी-मार्च १९६५ ई०, पृ० १९-२२. धनु धनु धर्मदेवसूरि, सारंग रा प्रतिबोधिउ। उगमतइ नितु सूरि, सुहगुरु नितु नितु पणमीए।।१०।। त्रिनि भव सारंग राय, देवाएसिहिं गुरि कहीय ।। धूधल जग विक्खाय, पडिबोही त्रिनि भव कहीया।।११।। पिप्पलगच्छगुर्वावलि-गुरहमाल, द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९. १३. शिवप्रसाद, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास, भाग-२ पृष्ठ ८४४. १४. वही पृष्ठ ८८४ - ९०० १५. वही, पृष्ठ ८४३-८८५ १६. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९. १७. शिवप्रसाद, पूर्वोक्त, भाग-२ पृष्ठ ८८२, लेख क्रमांक १५६. १८. द्रष्टव्य, सन्दर्भ क्रमांक ६-७. १९. सन्दर्भ क्रमांक ८. २०. पृथ्वीचंद्रचरित- सम्पा० मुनि रमणीकविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, ग्रन्थाङ्क १६, अहमदाबाद वाराणसी १९७२ ई०सन्. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी की प्रशस्ति C.D. Dalal and L.B. Gandhi, Descriptive Catalogue of MSS in the Jaina Bhandas at Pattan, pp.- 389-390. For Personal & Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | पूर्णिमागच्छ का इतिहास | मध्ययुग में श्वेताम्बर श्रमण संघ का विभिन्न गच्छों और उपगच्छों के रूप में विभाजन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। श्वेताम्बर श्रमण संघ की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शाखा चन्द्रकुल से उद्भूत बृहद्गच्छ का विभिन्न कारणों से समय-समय पर विभाजन होता रहा, परिणामस्वरूप अनेक नये-नये गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ, इनमें पूर्णिमागच्छ भी एक है। पाक्षिकपर्व पूर्णिमा को मनायी जाये या चतुर्दशी को? इस प्रश्न पर पूर्णिमा का पक्ष ग्रहण करने वाले बृहद्गच्छ के मुनिगण पूर्णिमापक्षीय या पूर्णिमागच्छीय कहलाये। वि०सं० ११४९/ ई० सन् १०९३ अथवा वि०सं० ११५९/ ई० सन् ११०३ में इस गच्छ का आविर्भाव माना जाता है। चन्द्रकुल के बृहद्गच्छीय आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभसूरि इस गच्छ के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। इस गच्छ में धर्मघोषसूरि, देवसूरि, चक्रेश्वरसूरि, समुद्रघोषसूरि, विमलगणि, देवभद्रसूरि, तिलकाचार्य, मुनिरत्नसूरि, कमलप्रभसूरि आदि तेजस्वी विद्वान् एक प्रभावक आचार्य हुए हैं। इस गच्छ के पूनमियागच्छ, राकापक्ष आदि नाम भी बाद में प्रचलित हुए। इस गच्छ से कई शाखायें उद्भूत हुईं, जैसे प्रधानशाखा या ढंढेरिया शाखा, साधुपूर्णिमा या सार्धपूर्णिमाशाखा, कच्छोलीवालशाखा, भीमपल्लीयाशाखा, वटपद्रीयाशाखा, वोरसिद्धीयाशाखा, भृगुकच्छीयाशाखा, छापरियाशाखा आदि। ___पूर्णिमागच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिए सद्भाग्य से हमें विपुल परिमाण में साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध हैं। साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा लिखित ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ, गच्छ के विद्यानुरागी मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिलिपि करायी गयी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपि की प्रशस्तियाँ तथा पट्टावलियाँ प्रमुख हैं। अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा For Personal & Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ बृहद्गच्छ का इतिहास से प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की चर्चा की जा सकती है। उक्त साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है-. दर्शनशुद्धि यह पूर्णिमागच्छ के प्रकटकर्ता आचार्य चन्द्रप्रभसूरि की कृति है। इनकी दूसरी रचना है – प्रमेयरत्नकोश। इन रचनाओं में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख नहीं किया है, परन्तु इनके प्रशिष्य विमलगणि ने अपने दादागुरु की रचना पर वि०सं० ११८१/ई० सन् ११२५ में वृत्ति लिखी, जिसको प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है। वह इस प्रकार है : सर्वदेवसूरि जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि (दर्शनशुद्धि के रचनाकार) धर्मघोषसूरि विमलगणि (वि०सं० ११८१/ई० सन् ११२५ में दर्शनशुद्धिवृत्ति के रचनाकार) दर्शनशुद्धिबृहवृत्ति - पूर्णिमागच्छीय विमलगणि के शिष्य देवभद्रसूरि ने वि०सं० १२२४/ई० सन् ११६८ में अपने गुरु की कृति दर्शनशुद्धिवृत्ति पर बृहवृत्ति की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है२: For Personal & Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १५९ जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि समन्तभद्रसूरि धर्मघोषसूरि विमलगणि देवभद्रसूरि (वि०सं० १२२४/ई०सन् १९६८ में दर्शनशुद्धिबृहवृत्ति के रचनाकार) प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति यह पूर्णिमागच्छीय हेमप्रभसूरि की कृति है। रचना के अन्त में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा और रचनाकाल का उल्लेख किया है,३ जो इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूरि धर्मघोषसूरि यशोघोषसूरि हेमप्रभसूरि (वि०सं० १२२३/ई० सन् ११६७ में प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति के रचनाकार) अममस्वामिचरितमहाकाव्य पूर्णिमागच्छीय समुद्रघोषसूरि के विद्वान् शिष्य मुनिरत्नसूरि द्वारा यह प्रसिद्ध कृति वि०सं० १२५२/ई० सन् ११९६ में रची गयी है। रचना के अन्त में प्रशस्ति के For Personal & Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० बृहद्गच्छ का इतिहास अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है,४ जो इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक) धर्मघोषसूरि समुद्रघोषसूरि मुनिरत्नसूरि (वि०सं० १२५२/ई० सन् ११९६ में अममस्वामिचरितमहाकाव्य के रचनाकार) प्रत्येकबुद्धचरित पूर्णिमागच्छीय शिवप्रभसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि अपरनाम तिलकाचार्य ने वि०सं० १२६१/ई० सन् १२०५ में इस ग्रन्थ की रचना की। श्रीतिलकसूरि द्वारा रचित कई कृतियां मिलती हैं। श्री मोहनलाल दलीचन्द्र देसाई ने इनकी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है,५ जो इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ के प्रकटकर्ता) धर्मघोषसूरि चक्रेश्वरसूरि शिवप्रभसूरि श्रीतिलकसूरि (वि०सं० १२६१/ई० सन् १२०५ में प्रत्येकबुद्धचरित के रचनाकार) प्रत्येकबुद्धचरित अभी अप्रकाशित है। शान्तिनाथचरित यह कृति पूर्णिमागच्छ के अजितप्रभसूरि द्वारा वि०सं० १३०७ में रची गयी है। जैसलमेर और पाटण के ग्रन्थ भण्डारों में इसकी प्रतियां संरक्षित हैं। कृति के अन्त For Personal & Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १६१ में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु- परम्परा का उल्लेख किया है, ६ जो इस प्रकार है। : चन्द्रप्रभ 1 देवसूरि 1 तिलकप्रभसूर I वीरप्रभसूर 1 अजितप्रभसूरि (वि०सं० १३०७ / ई० सन् १२५१ में शांतिनाथचरित के रचनाकार) पुण्डरीकरित पूर्णिमापक्षीय चन्द्रप्रभसूरि की परम्परा में हुए रत्नप्रभसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि ने वि०सं० १३७२/ई०स० १३१६ में उक्त कृति की रचना की। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का इस प्रकार विवरण दिया है : चन्द्रप्रभसूर 1 चक्रेश्वरसूर 1 त्रिदशप्रभसू 1 धर्मप्रभसूर I अभयप्रभसूर I रत्नप्रभसूर I कमलप्रभसूरि (वि०सं० १३७२ / ई० सन् १३१६ में For Personal & Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ क्षेत्रसमासवृत्ति यह कृति पूर्णिमागच्छीय पद्मप्रभसूरि के शिष्य देवानन्दसूरि द्वारा वि०सं० १४५५ / ई० सन् १३९९ में रची गयी है। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी लम्बी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, ८ जो इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूर धर्मघोषसूर 1 भद्रेश्वरसूरि I मुनिप्रभसूर 1 सर्वदेवसूरि I सोमप्रभसूर | रत्नप्रभसूर 1 चन्द्रसिंहसूर बृहद्गच्छ का इतिहास पुण्डरीकचरित के रचनाकार) 1 देवसिंहसूर 1 पद्मतिलकसूरि 1 श्रीतिलकसूरि I देवचन्द्रसूरि T पद्मप्रभसूर 1 For Personal & Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १६३ देवानन्दसूरि (वि०सं० १४५५ / ई० सन् १३९९ में क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार) श्रीपालचरित पूर्णिमागच्छीय गुणसमुद्रसूरि के शिष्य सत्यराजगणि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित ५०० श्लोकों की यह कृति वि०सं० १५१४ में रची गयी है। इसकी वि०सं० १५७५/ ई० सन् १५१९ की एक प्रतिलिपि जैसलमेर के ग्रन्थभण्डार में संरक्षित है। रचना के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत परिचय न देते हुए मात्र अपने गुरु का ही नामोल्लेख किया है९: गुणसमुद्रसू 1 सत्यराजगणि (वि०सं० १५१४ / ई० सन् १४५८ में श्रीपालचरित के रचनाकार) पूर्णिमागच्छगुर्वावली यह गुर्वावली पूर्णिमागच्छ के सुमतिरत्नसूरि के शिष्य उदयसमुद्रसूरि द्वारा वि०सं० १५८० / ई० सन् १५२४ में रची गयी है। १० इसमें उल्लिखित पूर्णिमागच्छ के आचार्यों का क्रम निम्नानुसार है : चन्द्रगच्छीय चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक) धर्मघोषसूरि 1 देवप्रभसूर I जिनदत्तसूरि I शांतिभद्रसूरि I भुवनतिलकसूर I For Personal & Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ बृहद्गच्छ का इतिहास रत्नप्रभसूरि हेमतिलकसूरि हेमरत्नसूरि हेमप्रभसूरि रत्नशेखरसूरि रत्नसागरसूरि गुणसागरसूरि गुणसमुद्रसूरि सुमतिप्रभसूरि पुण्यरत्नसूरि सुमतिरत्नसूरि उदयसमुद्रसूरि (वि०सं० १५८०/ई० सन् १५२४ में __पूर्णिमागच्छगुर्वावली के रचनाकार) । पूर्णिमागच्छीय रचनाकारों की पूर्वोक्त कृतियों की प्रशस्तियों से उपलब्ध छोटीबड़ी गुर्वावलियों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की एक विस्तृत तालिका की संरचना की जा सकती है, जो इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तालिका-१ प्रशस्तियों के आधार पर निर्मित पूर्णिमापक्ष के आचायों की गुरु-परम्परा सर्वदेवसूरि अध्याय-७ विजयसिंहसूरि चन्द्रप्रमसूरि (पूर्णिमापक्ष के प्रवर्तक वि०सं० ११५९/६० सन् १९०२) धर्मपोषसरि समन्तभद देवमूरि समुदबोबसूरि यशोघोषसूरि मदेवरसूरि तिलकामसूरि विमलंगणि (वि०स०१९८१ में दर्शनरानिवृत्ति के रचनाकार) मुनिप्रभसूरि वीरभसूरि मुनिरत्नसूरि (वि०सं० १२२५ में अममस्वामी- चरितमहाकाव्य के कर्ता) देवभद्रसूरि (दर्शनशुस्मिवृत्ति वि०सं० १२२४) हेमप्रभमूरि शिवत्रमसूरि (वि.सं.१४३ में प्रश्नोत्तरमाला के कर्ता) श्रीतिलकसरि (वि०सं०१२६१ में प्रत्येकनुढचरित के कर्ता) जिनदत्तरि सर्वदेवसूरि अजीतप्रभसूरि (वि०सं० १३०७ शांतिनावचरित के कर्ता) धर्मप्रभसूरि शांतिप्रभसूरि अभयप्रभसूरि भुवनतिलकसरि रत्नप्रभसरि रत्नप्रभसूरि रत्नप्रभसूरि चन्द्रसिंहसूरि For Personal & Private Use Only हेमतितकसूरि कमलप्रभसूरि (वि०सं० १३७२ में पुण्डरीकचरित के रचनाकार) देवसिंहसूरि पञ्चतिलकसूरि हेमरत्नसूरि हेमप्रभसूरि श्रीतिलकसरि रत्नशेखरसूरि देवचन्द्रसूरि रत्नसागरसूरि पप्रभसूरि गुणसागरसूरि देवानन्दसूरि (वि०सं० १४५५ में क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार) गुणसमुद्रसूरि सुमतिप्रभसूरि सत्यराजगणि (वि०सं० १५१४ में श्रीपालचरित के रचनाकार) पुण्यरत्नसूरि सुमतिरत्नसूर उदयसमुद्रसूरि (वि०सं० १५८० में पूर्णिमापक्षगुर्वावली के रचनाकार) Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ बृहद्गच्छ का इतिहास ___पूर्णिमागच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ४०० से अधिक जिनप्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जिनपर वि०सं०१३६८ से वि०सं०१६०४ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनमें इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम मिलते हैं, परन्तु उनमें से कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध ही स्थापित हो पाते हैं और उनके आधार पर गुरु-परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : द्रष्टव्य तालिका -२ तालिका-२ सर्वाणंदसूरि (वि०सं० १४८०-१४८५) गुणसागरसूरि (वि०सं० १४८३-१५११) हेमरत्नसूरि (वि०सं० १४८६) गुणसमुद्रसूरि (वि०सं० १४९२-१५१२) सुमतिप्रभसूरि (मुख्य पट्टधर) पुण्यरत्नसूरि (पट्टधर) गुणधीरसूरि (शिष्यपट्टधर) (वि०सं० १५१२-१५३४) (वि०सं० १५१६-१५३६) प्रतिमालेख प्रतिमालेख इषी प्रकार अभिलेखीत साक्ष्यों के ही आधार पर इस गच्छ के कुछ अन्य मुनिजनों के गुरु-परम्परा की तालिका निर्मित होती है - तालिका-३ मुनिशेखरसूरि साधुरत्नसूरि (वि०सं० १४८५-१५१९)- २३ प्रतिमालेख साधुसुन्दरसूरि (वि०सं० १५०६-१५३३)३७ प्रतिमालेख श्रीसूरि (वि०सं० १४८६)१ प्रतिमालेख देवसुन्दरसूरि (वि०सं० १५४५-१५४८) ३ प्रतिमालेख For Personal & Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १६७ अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छ के कुछ अन्य मुनिजनों के भी पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं, परन्तु उनके आधार पर इस गच्छ की गुरु-परम्परा की किसी तालिका को समायोजित कर पाना कठिन है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : १. जयप्रभसूरि (वि०सं० १४६५) २. जयप्रभसूरि के पट्टधर जयभद्रसूरि (वि०सं० १४८९-१५१९) ३. विद्याशेखरसूरि (वि०सं० १४७३-१४८१) ४. जिनभद्रसूरि (वि०सं० १४७३-१४८१) ५. जिनभद्रसूरि के पट्टधर धर्मशेखरसूरि (वि०सं० १५०३-१५२०) ६. धर्मशेखरसूरि के पट्टधर विशालराजसूरि (वि०सं० १५२५-१५३०) ७. वीरप्रभसूरि (वि०सं० १४६४-१५०६) ८. वीरप्रभसूरि के पट्टधर कमलप्रभसूरि (वि०सं० १५१०-१५३३) अभिलेखीय साक्ष्यों से पूर्णिमागच्छ के अन्य मुनिजनों के नाम भी ज्ञात होते हैं, परन्तु वहां उनकी गुरु-परम्परा का नामोल्लेख न होने से उनके परस्पर सम्बन्धों का पता नहीं चल पाता। साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर संकलित गुरु-शिष्य-परम्परा (तालिका संख्या १) के साथ भी इन मुनिजनों का पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता, फिर भी इनसे इतना तो स्पष्ट रूप से सुनिश्चित हो जाता है कि इस गच्छ के मुनिजनों का श्वेताम्बर जैन समाज के एक बड़े वर्ग पर लगभग ४०० वर्षों के लम्बे समय तक व्यापक प्रभाव रहा। अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित गुरु-शिष्य परम्परा की तालिका संख्या ३ का साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर संकलित गुरु-शिष्य परम्परा की तालिका संख्या १ के साथ परस्पर समायोजन सम्भव नहीं हो सका, किन्तु तालिका संख्या १ और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर संकलित तालिका संख्या २ के परस्पर समायोजन से पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की जो विस्तृत तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : द्रष्टव्य - तालिका संख्या - ४ For Personal & Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागधीय गुरु-शिष्य परम्परा सदिवसूरि १६८ विजयसिंहमूरि चनमसूरि (वि०सं० ११४५/५९ पूर्णिमा के प्रवर्तक) धर्मघोबसूरि समन्तभद्रसूरि देवसूरि समुद्रचोपरि यशोधोवसरि पद्रेश्वरसूरि तिलकामसूरि मुनिप्रभसरि बीयपसूरि मुनिरलसूरि (वि०सं० १२२५ अममस्वामिचरित मझकाव्य) हेमप्रभसूरि (वि०सं० १२४३ प्रश्नोत्तरत्नमाला) विमलमणि (वि०सं० १९८१ | दर्शनशुद्धिवृत्ति शिवामसूरि विदरपरि देवमसूरि (वि०स० १२२४) | दर्शनशुविहदान) श्रीतिलकसरि बिनदतसार (वि०सं० १२६१ प्रत्येकमुबचरित) शांतिपदार सर्वदेवसरि अजितप्रभसरि (वि०सं० १३०७ में शांतिनाथचरित के कर्ता) सोमप्रभरि धर्मप्रभसरि रत्नामसरि For Personal & Private Use Only अपयप्रमसूर रत्नप्रभसूरि चन्द्रसिंहमूरि । रत्नप्रभसूरि हेमतिलकसरि देवसिंहसूरि कमलप्रभसूरि (वि०सं० १३५२ हेमरत्नसरि पथतिलकसरि पुण्डरीकचारत के रचनाकार) । श्रीतिलकसरि रत्नशेखरसूरि देवचन्द्रसूरि सर्वाणदसूरि रत्नसागरसूरि पत्रपरि (वि.सं. १४८०-१४८५ प्रतिमालेख) । गुणसागरसूरि देवानन्दसूरि (वि०सं० १४८३-१५११ प्रतिमालेख) (वि०सं० १४५५ में क्षेत्रसमासवृत्ति के कर्ता) गुणसमुद्रसरि सत्यरावगणि गुणधीरसूरि सुमतित्रपरि (वि०सं० १५१४ में (वि०सं० १५१६-१५३६, प्रतिमालेख) श्रीपालचरित के रचनाकार) पुण्यरत्मसूरि (वि०सं० १५१२-१५३६ प्रतिमालेख) बृहद्गच्छ का इतिहास सुमतिरत्नसूरि उदवसमुद्रसरि (वि०सं० १५८० में पूर्णिमागच्छगुर्वावली के रचनाकार) Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ सन्दर्भ १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. तस्मिन्नुग्रविशालशीलकलितस्वाध्यायध्यानोद्यतात्सर्पच्चारुतपः सुसंयमयुतश्रेयः सुधाः लयः । सच्छीलांगदलः कलंकविकलो ज्ञानादिगंधोद्धुरः सेव्यो देवनृपद्विरेफसुततेः श्रीचन्द्रगच्छोंऽबुजः ।।४।। तस्मिंस्तीर्थविभूषकेऽभवदथ श्रीसर्वदेवप्रभुः सूरिः शीलनिधिर्धिया जितमरुत्सूरिः सतामग्रणीः । तस्याऽप्यद्भुतचारुचंचदमलोत्सर्पद्गुणैकास्पदं स्याच्छिप्यो जयसिंहसूरिरमलस्तस्यापि भूभूषणम् ॥५॥ हेलानिर्जितवादिवृंदकलिकालाशेषलुप्तव्रता- चारोत्सर्पितसत्पथैककदिनः सिंहः कुमार्गद्विपे । चंचच्चंचलचित्तवृत्तिकरणग्रामाश्वघातो वभू श्रीचंद्रप्रभसूरिचारुचरितश्चारित्राणामग्रणीः ।। ६ ।। ज्ञानादित्रयरत्नरोहणगिरिः सच्छीलपाथोनिधिद्धरो धीधनसाधुसंहतिपतिः श्रीधर्मधूर्धारकः । स्यात् सिद्धांतहिरण्यघर्षणकृते पट्टः पटुः शुद्धधीः शिष्यो गच्छपतिः प्रतापतरणिः श्रीधर्मघोषप्रभुः ॥७॥ तच्छिष्यविमलगणिना कृतिना भ्रात्राऽनुजेन शास्त्रस्य । अस्योच्चैर्वृत्तिरियं विहिता साहाय्यतः सुधिया || ८ || दर्शनशुद्धिवृत्ति की प्रशस्ति वही, पृ० ४१०. वही, पृ० ४३२. वही, पृ० ४४४. Muni Punyavijaya, Ed Catalogue of palm-leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay, pp 269-70. C.D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Mss in the Jain Bhandras at pattan, pp 5-7. Muni Punyavijaya, Ed New Catalogue of Sankrit & Prakrit Mss: Jesalmer Collection, pp -79. Muni Punyavijaya, Ed Catalogue of palm-leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay, pp - 349-356. मोहनलाल दलीचंद देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका ४९४ ... १६९ Muni Punyavijaya, Ed New Catalogue of Sankrit & Prakrit Mss: Jesalmer Collection, pp -236. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० ३७९. गुलाबचन्द्र चौधरी - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६ पृ० ५१५. मुनि जिनविजय- संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृ० २३२-२३४. मुनि कल्याणविजय- संपा० पट्टावलीपरागसंग्रह, पृ० २१९. शिवप्रसाद, श्वेताम्बर जैन गच्छों का संक्षिप्त इतिहास, भाग-२, पृ०९४३-९५८. For Personal & Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णिमागच्छ - प्रधानशाखा अपरनाम ढंढेरियाशाखा का इतिहास चन्द्रकुल के आचार्य जयसिंहसूरि के शिष्य आचार्य चन्द्रप्रभसूरि द्वारा वि०सं० ११४९/ई० सन् १०९३ अथवा वि०सं० ११५९/ई० सन् ११०३ में प्रवर्तित पूर्णिमागच्छ की कई अवान्तर शाखायें समय-समय पर अस्तित्व में आयीं, यथा प्रधानशाखा या ढंढेरियाशाखा, कच्छोलीवालशाखा, भीमपल्लीयाशाखा, सार्धपूर्णिमाशाखा, भृगुकच्छीयाशाखा, वटपद्रीयाशाखा आदि। इन शाखाओं में प्रधानशाखा या ढंढेरियाशाखा सबसे प्राचीन मानी जाती है। आचार्य चन्द्रप्रभसूरि के प्रशिष्य समुद्रघोषसूरि के द्वितीय शिष्य सूरप्रभसूरि इस शाखा के प्रथम आचार्य माने गये हैं। इस शाखा में आचार्य जयसिंहसूरि, जयप्रभसूरि, भुवनप्रभसूरि, यशस्तिलकसूरि, कमलसंयमसूरि, पुण्यप्रभसूरि, महिमाप्रभसूरि, ललितप्रभसूरि आदि कई प्रखर विद्वान् आचार्य हो चुके हैं। __ पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा के इतिहास के अध्ययन के लिए इस शाखा के मुनिजनों द्वारा रची गयी कृतियों की प्रशस्तियाँ तथा बड़ी संख्या में दूसरों से लिखवायी गयी अथवा स्वयं उनके द्वारा की गयी प्रतिलिपियों की प्रशस्तियाँ, पट्टावली, प्रतिमालेख आदि उपलब्ध हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए यहाँ सर्वप्रथम ग्रन्थ एवं पुस्तक प्रशस्तियों तत्पश्चात् पट्टावली और अन्त में अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण दिया गया है। _पूर्णिमागच्छ की इस शाखा से सम्बद्ध लगभग ५७ ग्रन्थप्रशस्तियां और पुस्तकप्रशस्तियां या प्रतिलेखनप्रशस्तियां मिलती हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्दर्भ ग्रन्थ all& ducatic notational क्र० | संवत् | तिथि/मिति ग्रन्थ का नाम | मूल प्रशस्ति/ | प्रशस्तिगत आचार्य | प्रतिलिपिकार प्रतिलेखन प्रशस्ति | मुनि का नाम १५२० | चैत्रसुदि ५ | किरातार्जुनीय-अवचूरि | मूल प्रशस्ति । जयप्रभसूरि | जयप्रभसूरि सोमवार अध्याय-७ Catalogue of Sanskrit and Prakrit, Mss. Muniraja Shree Punya Vijaya, Collection. Ed. A.P. Shah. प्रशास्ति क्रमांक ४७५३ पृ०२७७| mi For Pemoonial & Private Use Onliw १५२७ २. १५२० | माघ सुदि ५ | क्रियाकलाप प्रतिलेखनप्रशस्ति | जयप्रभसूरि एवं उनके | जयप्रभसूरि गुरुवार शिष्य पूर्णकलश १५२१ मार्गशीर्ष वदि ४ | नन्दीसूत्र प्रतिलेखनप्रशस्ति जयसिंहसूरि के शिष्य | जयप्रभसूरि रविवार जयप्रभसूरि १५२३ कार्तिक सुदि २ | प्रश्नोत्तररत्नमाला प्रतिलेखनप्रशस्ति | जयप्रभसूरि | जयप्रभसूरि शुक्रवार चैत्र सुदि ७ | शब्दपदार्थीसूत्रवृत्ति । प्रतिलेखनप्रशस्ति जयप्रभसूरि एवं उनके | जयप्रभसूरि गुरुवार शिष्य यशस्तिलकमुनि १५२९ | फाल्गुन सुदि १ | न्यायप्रवेशवृत्ति । प्रतिलेखनप्रशस्ति जयप्रभसूरि एवं उनके जयप्रभसूरि शुक्रवार शिष्य यशस्तिलकमुनि | आश्विन शुक्ल | कर्पूरप्रकरण प्रतिलेखनप्रशस्ति जयप्रभसूरि एवं उनके जयप्रभसूरि प्रतिपदाबुधवार शिष्य जयमेरु १५५३ | चैत्र सुदि ८ । पाक्षिकसूत्रअवचूरि । प्रतिलेखनप्रशस्ति | भुवनप्रभसूरि एवं उनके रविवार शिष्य कमलसंयम तथा वीरकलश स्नात्रपंचशिका | प्रतिलेखनप्रशस्ति | भुवनप्रभसूरि एवं उनके | वीरकलश वही, क्रमांक ६०३३ पृ० ३८८. वही, क्रमांक ७२६, पृ० ६३. वही, क्रमांक ३३९६ पृ० १९३. वही, क्रमांक १५२, पृ० १३. वही, क्रमांक १९०, पृ० १६. वही, क्रमांक ३८०५, पृ० २२०. वही, क्रमांक ९५०, पृ० ७८. ý v www.janeir १५५५ वही, क्रमांक २२७८, १७१ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ Jain Edule of Internat 15 शिष्य वीरकलश पृ० ११०. | संवत | तिथि/मिति | ग्रन्थ का नाम | मूल प्रशस्ति/ | प्रशस्तिगत आचार्य प्रतिलिपिकार सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिलेखन प्रशस्ति मुनि का नाम १०. | १५५५ | भाद्रपद सुदि ९ | चतुःशरणअवचूरि प्रतिलेखनप्रशस्ति जयप्रभसूरि वही, क्रमांक ४६४, पृ० ४३. | मार्गशीर्ष वदि ४ | पाक्षिकसूत्रअवचूरि प्रतिलेखनप्रशस्ति भुवनप्रभसूरि एवं उनके | मुनिरत्नमेरु वही, क्रमांक९५१, रविवार शिष्य मुनि रत्नमेरु पृ० ७८. १२.| १५६५ भाद्रपद वदि ४| प्रज्ञापनासूत्र प्रतिलेखन की भुवनप्रभसूरि वही, क्रमांक ३८८, रविवार दाता प्रशस्ति पृ० ३५. १३.|१५६६ | श्रावण प्रतिपदा | भगवतीसूत्रवृत्ति प्रतिलेखन की भुवनप्रभसूरि वही, क्रमांक २६६, दाता प्रशस्ति पृ० २५. १५६६ | कार्तिक वदि ४ | प्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति प्रतिलेखनप्रशस्ति भुवनप्रभसूरि एवं उनके| मुनि राजसुन्दर | वही, क्रमांक ८००, बुधवार शिष्य मुनि राजसुन्दर | पृ० ७१. |१५७४ | ज्येष्ठ वदि ९ वत्सकुमारकथा प्रतिलेखनप्रशस्ति | भुवनप्रभसूरि एवं उनके राजमाणिक्य । वही, क्रमांक ४८७७, शिष्य कमलप्रभसूरि पृ० ३०७. एवं उनके शिष्य राजमाणिक्य For Perso & Private Only १६. १५७४ | चैत्र सुदि १३ | आदिनाथमहाकाव्य | प्रतिलेखनप्रशस्ति | जयप्रभसूरि के शिष्य | मुनिरत्नमेरु | वही, क्रमांक ४७४८, बुधवार भुवनप्रभसूरि एवं पृ० २७२. शिष्य मुनिरत्नमेरु १७. १५७५ | ज्येष्ठ वदि ४ | कृतकर्मनृपचरित्र | प्रतिलेखनप्रशस्ति | कमलप्रभसूरि एवं उनके | राजमाणिक्य | पूर्वोक्त, क्रमांक ३८९१, गुरुवार शिष्य राजमाणिक्य पृ० २२४. १८. १५८८ | तिथिविहीन | प्रमाणमंजरी प्रतिलेखनप्रशस्ति | जय | जयसिंहसूरि एवं उनके | यशस्तिलकसूरि | वही, क्रमांक १४४, usw.jainelibraoroll बृहद्गच्छ का इतिहास Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० संवत् तिथि/मिति १९. १५९० वैशाख सुदि ५ दशवैकालिकवृत्ति शुक्रवार २०. १५९६ | पौष वदि ५ २१. १५९९ तिथिविहीन २३. १६०५ ग्रन्थ का नाम २२. १५९९ कार्तिक सुदि ६ औपपातिकसूत्र शनिवार प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति दशवैकालिक अवचूरि प्रतिलेखनप्रशस्ति २६. १६११ पौष सुदि ९ मंगलवार संगीतोपनिषतसारोद्धार प्रतिलेखनप्रशस्ति भाद्रपद वदि ५ आचारांगदीपिका शुक्रवार २४. १६०८ वैशाख सुदि १३ | यतिदिनचर्या शुक्रवार २५. १६०९ चैत्र सुदि ५ मूल प्रशस्ति/ प्रतिलेखन प्रशस्ति प्रज्ञापनावृत् जिनस्तवन अवचूरि प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति प्रतिलेखनप्रशस्ति शिष्य यशस्तिलकसूरि प्रशस्तिगत आचार्य/ मुनि का नाम कमलप्रभसूरि एवं उनके पट्टधर पुण्यप्रभसूरि पुण्यप्रभसूरि एवं उनके भीमा शिष्य भीमा पुण्यप्रभसूरि एवं उनके भीमा शिष्य भीमा कमलप्रभसूरि एवं उनके पट्टधर पुण्यप्रभसूर भुवनप्रभसूरि एवं उनके पट्टधर कमलप्रभसूर एवं उनके पट्टधर पुण्यप्रभ प्रतिलिपिकार कमलप्रभरि एवं उनके पट्टधर पुण्यप्रभसूरि भुवनप्रभसूर पट्टधर कमलप्रभसूर पट्टधर पुण्यप्रभसूरि पुण्यप्रभसू पृ० १२. सन्दर्भ ग्रन्थ वही, क्रमांक १०३५, पृ० ८४. वही, क्रमांक १०८४, पृ० ८७. वही, क्रमांक ६३६५, पृ० ४१७-४१८. वही, क्रमांक ३५१, पृ० ३२. वही, क्रमांक २०६, पृ० १८ वही, क्रमांक २८०० पृ० १४०. वही, क्रमांक ३९६, पृ० ३६. वही, क्रमांक ११९३, पृ० ९०. अध्याय-७ १७३ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिलिपिकार सन्दर्भ ग्रन्थ 88 ducation international वही, क्रमांक ३७८३, पृ० २१६-२१७. क्र० | संवत् | तिथि/मिति | ग्रन्थ का नाम | मूल प्रशस्ति/ | प्रशस्तिगत आचार्य प्रतिलेखन प्रशस्ति | मुनि का नाम २७. १६२४ | चैत्र सुदि ५ | त्रिषष्टिशलाकापुरुष- | प्रतिलेखनप्रशस्ति | भुवनप्रभसूरि के शिष्य शनिवार चरित एवं परिशिष्टपर्व पुण्यप्रभसूरि के पट्टधर विद्याप्रभसूरि २८. १६५० | कार्तिक सुदि ५ | तत्त्वचिन्तामणि प्रतिलेखन की विद्याप्रभसूरि के शिष्य दाता प्रशस्ति ललितप्रभसूरि २९. १६५४ | आषाढ़ सुदि १३| पंचवस्तुकवृत्ति प्रतिलेखन की ललितप्रभसूरि शुक्रवार दाता प्रशस्ति ३०. १६७५ | आषाढ़ सुदि १३| कल्पसूत्रान्तर्वाच्य प्रतिलेखन की ललितप्रभसूरि गुरुवार दाता प्रशस्ति ३१.|१६७७ | आश्विन वदि ३/ कल्पान्तरवाच्य प्रतिलेखन की | ललितप्रभसूरि टिप्पनक दाता प्रशस्ति ३२. |१६९८ | ...वदि १० भगवतीबीजक प्रतिलेखनप्रशस्ति | ललितप्रभसूरि के पट्टधर विनयसूरि के पट्टधर मुनिहेमराज |३३. १७०१ | आश्विन १० शब्दशोभा । प्रतिलेखनप्रशस्ति | विनयप्रभसूरि मंगलवार वही, क्रमांक ९५, पृ० १०. वही, क्रमांक २३६२, पृ० १२१. वही, क्रमांक ६९१, पृ० ५९. वाचक गुणजी | वही, क्रमांक ७००, पृ० ६१. Personal M बुधवार ateuse om PU वही, क्रमांक २८०, पृ० २७. वही, क्रमांक ५९५१, पृ० ३७४-७५. ३४. १७१४ | ज्येष्ठ वदि १३ | उत्तराध्ययनसूत्र की | शुक्रवार संस्कृत छाया प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति | विनयप्रभसूरि के शिष्य | विनयप्रभसूरि मुनिकीर्तिरत्न वही, क्रमांक ९९८, पृ० ८१. बृहद्गच्छ का इतिहास Lainelibrarorg Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ ELDARAMMS क्र० | संवत् | तिथि/मिति | ग्रन्थ का नाम | मूल प्रशस्ति/ | प्रशस्तिगत आचार्य | प्रतिलिपिकार सन्दर्भ ग्रन्थ प्रतिलेखन प्रशस्ति | मुनि का नाम ३५. १७२२ | आश्विन वदि ३/ औपपातिकस्तवन | प्रतिलेखन की | विनयप्रभसूरि | विनयप्रभसूरि पूर्वोक्त, क्रमांक ३६०, मंगलवार दाता प्रशस्ति पृ० ३३. ३६. १७३७ | चैत्र १४ न्यायसिद्धान्तमंजरी | प्रतिलेखनप्रशस्ति । महिमाप्रभसूरि | महिमाप्रभसूरि | वही, क्रमांक १०८, मंगलवार लघुचिन्तामणि पृ० १०-११. ३७.१७५० तिथिविहीन | वरडाक्षेत्रपालस्तोत्र- मूलप्रशस्ति | महिमाप्रभसूरि के वही, क्रमांक ४३४३, अवचूरि पट्टधर भावप्रभसूरि पृ० २६५. ३८. |१७६१ | आश्विन वदि २ | तत्त्वार्थसूत्रबालावबोध| प्रतिलेखनप्रशस्ति | महिमाप्रभसूरि के शिष्य | मुनि सहजरत्न | वही, क्रमांक ३४७३, मंगलवार मुनि सहजरत्न पृ० २००. ३९. १७६२ | माघ सुदि १३ | ज्ञानसार अष्टक- | प्रतिलेखनप्रशस्ति | महिमाप्रभसूरि के शिष्य | भावरत्नसूरि | वही, क्रमांक २४८८, मंगलवार बालावबोध भावरत्नसूरि पृ० १२५-२६. ४०. १७६२ | श्रावण सुदि ११ | वीतरागकल्पलता | प्रतिलेखनप्रशस्ति | पुण्यप्रभसूरि के शिष्य वही, क्रमांक २५३३, विद्याप्रभसूरि के शिष्य पृ० १२९-१३०. ललितप्रभसूरि के शिष्य विनयप्रभसूरि के शिष्य महिमाप्रभसूरि ४१. १७६४ संग्रहणीप्रकरण प्रतिलेखनप्रशस्ति | महिमाप्रभसूरि के भावरत्नसूरि | वही, क्रमांक ३०७७, पट्टधर भावरत्नसूरि पृ० १६९. ४२. १७६७ | तिथिविहीन शब्दरत्नाकर प्रतिलेखनप्रशस्ति | विनयप्रभसूरि के | भावरत्नसूरि । वही, क्रमांक ६२१४, पट्टधर भावरत्नसूरि पृ० ४०३-४०४. ratecolh oneinelionairy-org १७५ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० संवत् ४३. १७६७ मार्गशीर्ष वदि ९ अंचलमतदलन बालावबोध ४४. १७७२ | कार्तिक सुदि ५ सिद्धान्तकौमुदी मंगलवार ४६. १७८१ ४५. १७८१ मार्गशीर्ष शुक्ल श्रीपालचरित्र चतुर्दशी Personal & Perate Use Only ४७. १७८२ तिथि/मिति ४८. १७९० ग्रन्थ का नाम ४९. १७९० ५०. १७९१ आष्टाह्निकाधुराख्यान (गद्य) ज्येष्ठ शुक्ल ५ फाल्गुनचातुर्मासी व्याख्यान माघ वदि १३ द्वादशव्रतोच्चारविधि बुधवार माघ सुदि... ? नैषधमहाकाव्य भाद्रपदं वदि ८ जिनधर्मवरस्तव मूल प्रशस्ति/ प्रतिलेखन प्रशस्ति प्रतिलेखनप्रशस्ति प्रतिलेखनप्रशस्ति प्रतिलेखन की दाता प्रशस्ति मूलप्रशस्ति मूलप्रशस्ति प्रतिलेखनप्रशस्ति प्रतिलेखनप्रशस्ति मूल प्रशस्ति प्रशस्तिगत आचार्य/ मुनि का नाम महिमाप्रभसूरि शिष्य मुनिलाल महिमाप्रभसूरि के शिष्य भावप्रभसूर प्रतिलिपिकार विनयप्रभसूरि के पट्टधर महिमाप्रभसूरि के पट्टधर भावप्रभसूरि मुनिलाल महिमाप्रभसूरि के शिष्य भावप्रभसूरि भावप्रभ भावप्रभसूर विद्याप्रभसूरि के पट्टधर भावप्रभसूर ललितप्रभसूर के पट्टधर विनयप्रभसूरि के पट्टधर | महिमाप्रभसूरि के पट्टधर भावप्रभसूर भावप्रभसूर भावप्रभसूर महिमाप्रभसूरि पट्टधर भावप्रभसूरि भावप्रभसूरि एवं उनके मुनिलाल भावप्रभसूर सन्दर्भ ग्रन्थ वही, क्रमांक ३२४७, पृ० १७८-१७९. वही, क्रमांक ५८१२, पृ० ३६९. वही, क्रमांक ४२०६, पृ० २३९. वही, क्रमांक २३३३, पृ० ११७. वही, क्रमांक २३२६, पृ० ११२. वही, क्रमांक २४२४, पृ० १२१. वही, क्रमांक ४७७९, पृ० २७८-२७९. वही, क्रमांक १५११, १७६ बृहद्गच्छ का इतिहास Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ गुरुवार सोमवार गुरुभ्राता मुनिलाल पृ० ९६. संवत् । तिथि/मिति ग्रन्थ का नाम मल प्रशस्ति प्रशस्तिगत आचार्य | प्रतिलिपिकार सन्दर्भ ग्रन्थ | प्रतिलेखन प्रशस्ति | मुनि का नाम १७९२ | पौष वदि २ | कल्पसूत्रअन्तरवाच्य मूल प्रशस्ति । भावप्रभसूरि एवं उनके | भावप्रभसूरि वही, क्रमांक ६६२, शनिवार शिष्य भावरत्न पृ० ५४. ५२. १७९३ | माघ सुदि ७ प्रतिमाशतकलघुवृत्ति | मूल प्रशस्ति भावप्रभसूरि पूर्वोक्त, क्रमांक ३२६३, पृ० १८०-१८१. १७९५ | तिथिविहीन धातुपाठविवरण | प्रतिलेखनप्रशस्ति | भावप्रभसूरि के पट्टधर | भावरत्नसूरि | वही, क्रमांक ६००९, भावरत्नसूरि पृ० ३८७. ५४. १७९५ | भाद्रपद वदि १३| महावीरस्तोत्रवृत्ति | मूल प्रशस्ति | भावप्रभसूरि वही, क्रमांक १७५९, गुरुवार पृ० १००. १७९८ | तिथिविहीन | मुद्रितकुमुदचन्द्र प्रतिलेखनप्रशस्ति | महिमाप्रभसूरि के भावप्रभसूरि वही, क्रमांक ५१९६, . पट्टधर भावप्रभसूरि पृ० ३३७-३३८. For Personal & Private Use Only १७७ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ बृहद्गच्छ का इतिहास प्रशस्तियों की उक्त सूची में उल्लिखित मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्धों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :१. जयसिंहसूरि के पट्टधर जयप्रभसूरि २. जयप्रभसूरि के पट्टधर यशस्तिलकसूरि, भुवनप्रभसूरि और जयमेरुसूरि ३. भुवनप्रभसूरि के पट्टधर कमलप्रभसूरि, मुनि राजसुन्दरसूरि, मुनिरत्नमेरुसूरि, कमलसंयमसूरि और वीरकलशसूरि ४. कमलप्रभसूरि के पट्टधर राजमाणिक्य और पुण्यप्रभसूरि पुण्यप्रभसूरि के पट्टधर विद्याप्रभसूरि ६. विद्याप्रभसूरि के पट्टधर ललितप्रभसूरि ललितप्रभसूरि के पट्टधर विनयप्रभसूरि विनयप्रभसूरि के पट्टधर कीर्तिरत्नसूरि, मुनि हेमराजसूरि और महिमाप्रभसूरि ९. महिमाप्रभसूरि के पट्टधर मुनि सहजरत्न, भावप्रभसूरि, भावरत्नसूरि और मुनिलाल १०. भावप्रभसूरि के पट्टधर भावरत्नसूरि । उक्त विवरण के आधार पर इन मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका अथवा विद्या वंशवृक्ष तैयार होता है, जो इस प्रकार है – द्रष्टव्य-तालिका क्रमांक १ जसरि और महिमा भारत For Personal & Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशस्तियों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छ (प्रधानशाखा) के मुनिजनों का वंशवृक्ष तालिका -१ अध्याय-७ जयसिंहसूरि जयप्रभसूरि (वि०सं० १५२०-१५५१) प्रशस्ति यशस्तिलकसरि भुवनप्रभसूरि (वि०सं० १५२७-१५२९) प्रशस्ति (वि०सं० १५६५-१५६६) प्रशस्ति जयमेरुसूरि (वि०सं० १५५१) प्रशस्ति कमलप्रभसूरि राजसुन्दरसूरि (वि०सं० १५६६) प्रशस्ति रत्नमेरुसूरि (वि०सं०१५७४ में आदिनाथमहाकाव्य के प्रतिलिपिकार) कमलसंयमसूरि (वि०सं० १५५३ में इनके सान्निध्य में पाक्षिकसूत्रअवचूरि की प्रतिलिपि की गयी) वीरकलशसूरि (वि०सं० १५५५ में स्नात्रपंचाशिका के प्रतिलिपिकार) For Personal & Private Use Only पुण्यप्रभसूरि (वि०सं० १५९०-१६११) दाताप्रशस्ति राजमाणिक्य (वि०सं० १५७४ में वत्सकुमारकथा के प्रतिलिपिकर्ता) विद्याप्रभसूरि (वि०सं० १६२४) प्रतिलेखनप्रशस्ति ललितप्रभसूरि (वि०सं० १६५०-१६७७) दाताप्रशस्ति विनयप्रभसूरि (वि०सं० १७१४-१७२२) प्रतिलेखनप्रशस्ति महिमाप्रभसूरि (वि०सं० १७३६) प्रतिलेखनप्रशस्ति कीर्तिरत्न (वि०सं० १७१४ में प्रतिलिपित उत्तराध्ययनसूत्र की दाताप्रशस्ति में उल्लिखित) हेमराजसूरि (वि०सं० १६९८) प्रतिलेखनप्रशस्ति सहजरत्नसूरि (वि०सं० १७६१) प्रतिलिपिप्रशस्ति भावप्रभसूरि (वि०सं०१७८१-१७९३) भावरत्नसूरि (वि०सं०१७६२-१७९२) मुनिलाल (वि०सं० १७६७-१७९१) १७९ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने पूर्णिमागच्छ और उसकी कुछ शाखाओं की पट्टावली दी है। इनमें पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा अपरनाम ढंढेरियाशाखा की भी एक पट्टावली है, १ जिसमें उल्लिखित इस शाखा की गुरु-परम्परा इस प्रकार है : चन्द्रप्रभसूर (पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक) १८० धर्मघोषसूरि I समुद्रघोषसूरि I सुरप्रभसूरि (पूर्णिमापक्षीय प्रधानशाखा के प्रवर्तक) जिनेश्वरसूरि I भद्रप्रभसूर 1 पुरुषोत्तमसूर I देवतिलकसूरि 1 रत्नप्रभसूर 1 तिलकप्रभसूर 1 ललितप्रभसूर 1 हरिप्रभसूरि 1 जयसिंहसूर I For Personal & Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १८१ जयप्रभसूरि भुवनप्रभसूरि कमलप्रभसूरि पुण्यप्रभसूरि विद्याप्रभसूरि ललितप्रभसूरि विनयप्रभसूरि महिमाप्रभसूरि भावप्रभसूरि पूर्णिमापक्षीय प्रधानशाखा के मुनिजनों के उपदेश से प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १५१२ से वि०सं० १७६८ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : जयसिंहसूरि के पट्टधर जयप्रभसूरि इनके उपदेश से प्रतिष्ठापित ९ प्रतिमायें मिली हैं। इनका विवरण इस प्रकार है :वि०सं० १५१२ माघ सुदि ५ सोमवार जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग-२, सम्पा० बुद्धिसागरसूरि, लेखांक ९६३. वि०सं० १५१९ कार्तिक वदि ५ शुक्रवार वही, लेखांक ७४३. वि० सं० १५१९ कार्तिक वदि ५ शुक्रवार प्राचीनलेखसंग्रह, संग्राहक विजयधर्मसूरि, लेखांक ३२९. For Personal & Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ बृहद्गच्छ का इतिहास वि०सं० १५१९ माघ सुदि ५ सोमवार श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा० दौलतसिंहलोढा, लेखांक २६१. वि०सं० १५२१ माघ पूर्णिमा गुरुवार बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखांक ५७८. वि०सं० १५२५ वैशाख वदि ११ रविवार वही, भाग-१, लेखांक १४९२ वि०सं० १५२५ माघ वदि ५ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, सम्पा० विनयसागर, लेखांक ६६७. वि०सं० १५२८ कार्तिक सुदि १२ शुक्रवार जैनलेखसंग्रह, भाग-३, सम्पा० पूरनचन्द नाहर, लेखांक २३४९. वि०सं० १५३१ फाल्गुन सुदि ८ सोमवार राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह सम्पा० मुनि विशालविजय, लेखांक २७४. जयप्रभसूरि के पट्टधर जयभद्रसूरि इनके उपदेश से प्रतिष्ठापित तीन प्रतिमायें प्राप्त हुई है। इनका विवरण इस प्रकार है - वि०सं० १५२५ वैशाख सुदि ३ सोमवार बीकानेरजैनलेखसंग्रह सम्पा० अगरचन्द, __ भंवरलाल नाहटा,लेखांक १३१५ वि०सं० १५३४ आषाढ़ सुदि १ गुरुवार वही, लेखांक १४३४ वि०सं० १५३६ आषाढ़ सुदि ५ गुरुवार विनयसागर, पूर्वोक्त, लेखांक ७९६. जयप्रभसूरि के द्वितीय पट्टधर भुवनप्रभसूरि इनके उपदेश से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें मिलती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : वि०सं० १५५१ पौष सुदि १३ शुक्रवार नाहर, पूर्वोक्त, भाग ३, लेखांक २२०२. वि०सं० १५७२ वैशाख वदि ४ रविवार लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक १०१. कमलप्रभसूरि इनके उपदेश द्वारा प्रतिष्ठापित एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जो सम्भवनाथ की है। यह प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, थराद मे है। इसका विवरण निम्नानुसार है :वि०सं० १५८२ वैशाख सुदि ३ लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक २०७. For Personal & Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १८३ कमलप्रभसूरि के पट्टधर पुण्यप्रभसूरि इनके उपदेश द्वारा प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें मिलती हैं जिनका विवरण इस प्रकार है :वि०सं० १६०८ वैशाख सुदि १३ शुक्रवार बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १२४. वि०सं० १६१० फाल्गुन वदि २ सोमवार मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ३४८. विद्याप्रभसूरि के पट्टधर ललितप्रभसूरि ___ इनके उपदेश द्वारा प्रतिष्ठापित एक प्रतिमा मिली है, जिस पर वि०सं० १६५४ का लेख उत्कीर्ण है : वि०सं० १६५४ माघ वदि १ रविवार बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०१. महिमाप्रभसूरि इनके उपदेश से प्रतिष्ठित वि०सं० १७६८ की एक प्रतिमा मिली है : वि०सं० १७६८ वैशाख सुदि ६ गुरुवार बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३३२. ___ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा पूर्णिमापक्ष की प्रधानशाखा के जिन मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, उनमें जयप्रभसूरि के शिष्य जयभद्रसूरि को छोड़कर शेष सभी नाम पुस्तकप्रशस्तियों में भी मिलते हैं, साथ ही उनका पूर्वापर सम्बन्ध भी सुनिश्चित किया जा चुका है। श्री देसाई द्वारा दी गयी पूर्णिमागच्छ प्रधानशाखा की पट्टावली में सर्वप्रथम पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक चन्द्रप्रभसूरि का उल्लेख है। इसके बाद धर्मघोषसूरि एवं उनके बाद समुद्रघोषसूरि का नाम आता है। उक्त पट्टावली के अनुसार समुद्रघोषसूरि के शिष्य सुरप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा का आविर्भाव हुआ। वि०सं० १२५२ में पूर्णिमागच्छीय मुनिरत्नसूरि द्वारा रचित अममस्वामिचरित्रमहाकाव्य की प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपने गुरुभ्राता सुरप्रभसूरि का उल्लेख किया है।२ पट्टावली में सुरप्रभसूरि के बाद जिनेश्वरसूरि, भद्रप्रभसूरि, पुरुषोत्तमसूरि, देवतिलकसूरि, रत्नप्रभसूरि, तिलकप्रभसूरि, ललितप्रभसूरि, हरिप्रभसूरि आदि ८ आचार्यों का पट्टानुक्रम से जो उल्लेख है, उनके बारे में अन्यत्र कोई सूचना नहीं मिलती। हरिप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि का अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लेख मिलता है। चूँकि जयप्रभसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें For Personal & Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ बृहद्गच्छ का इतिहास वि०सं० १५१२ से वि०सं० १५३१ तक की हैं, अतः उनके गुरु जयसिंहसूरि का समय वि०सं० १५०० के आस-पास माना जा सकता है। चूँकि इस शाखा के प्रवर्तक सुरप्रभसूरि के गुरुभ्राता मुनिरत्नसूरि का समय वि०सं० की तेरहवीं शती का द्वितीयचरण (वि०सं० १२५२) सुनिश्चित है, अतः यही समय सुरप्रभसूरि का भी माना जा सकता है। सुरप्रभसूरि से जयसिंहसूरि तक २५० वर्षों की अवधि तक १० आचार्यों का नायकत्व काल असम्भव नहीं लगता। इस आधार पर सुरप्रभसूरि से जयसिंहसूर तक की गुरु- परम्परा, जो पट्टावली में दी गयी है, प्रामाणिक मानी जा सकती है। इसी प्रकार जयसिंहसूरि और उनके पट्टधर जयप्रभसूरि से लेकर भावप्रभसूरि तक जिन ९ आचार्यों का नाम पट्टावली में आया है, वे सभी पुस्तकप्रशस्तियों द्वारा निर्मित पट्टावली में आ चुके हैं। इस प्रकार श्री देसाई द्वारा प्रस्तुत पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा की एकमात्र उपलब्ध पट्टावली की प्रामाणिकता असन्दिग्ध सिद्ध होती है। ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छ प्रधानशाखा की गुरु परम्परा की तालिका जयसिंहसूरि से प्रारम्भ होती है और जयसिंहसूरि के पूर्ववर्ती आचार्यों के नाम एवं पट्टानुक्रम श्री देसाई द्वारा प्रस्तुत पट्टावली से ज्ञात हो जाते हैं, अतः इस शाखा की गुरु-परम्परा की एक विस्तृत तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १८५ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छप्रधानशाखा के मुनिजनों का विद्यावंशवृक्ष तालिका-२ चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक, वि०सं० ११४९) धर्मघोषसूरि समुद्रघोषसूरि परमारनरेश नरवर्मा (वि०सं० ११५१/ई० स० १०९४- वि०सं० ११९०/ई० स० ११३३ और जयसिंह सिद्धराज (वि०सं० ११५१/ई० स० १०९५- वि०सं० ११९९/ई० स० ११४३ के राजदरबार में सम्मानित) सुरप्रभसूरि (प्रधानशाखा या ढंढेरिया शाखा के प्रवर्तक) जिनेश्वरसूरि भद्रप्रभसूरि पुरुषोत्तमसूरि देवतिलकसूरि रत्नप्रभसूरि तिलकप्रभसूरि ललितप्रभसूरि (प्रथम) हरिप्रभसूरि जयसिंहसूरि For Personal & Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयप्रभसूरि (वि०सं० १५१२-१५५१) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख १८६ जयभद्रसूरि (वि०सं० १५२५-३४) प्रतिमालेख यशस्तिलकसूरि (वि०सं० १५२७-२९) प्रशस्ति में उल्लिखित भुवनप्रभसूरि (वि०सं० १५५१-१५७२) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख जयमेरुसूरि (वि०सं० १५५१) प्रशस्ति कमलप्रभसूरि (वि०सं० १५८२) प्रतिमालेख मुनिराजसुन्दरसूरि (वि०सं० १५६६)प्रशस्ति मुनिवीरकलश (वि०सं० १५५५ में स्नात्रपंचाशिका) मुनिरत्नमेरुसूरि (वि०सं० १५७४ में आदिनाथमहाकाव्य के के प्रतिलिपिकार) कमलसंयमसूरि (वि०सं० १५५३ में इनके सानिध्य में पाक्षिकस्बात्रअवचूरि रचनाकार को प्रतिलिपि की गयी) माणिक्यसूरि पुण्यप्रभसूरि (वि०सं० १५९०-१६११) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख विद्याप्रभसूरि (वि०सं० १६२४) प्रतिलेखन प्रशस्ति For Personal & Private Use Only ललितप्रभसूरि (द्वितीय) (वि०सं० १६५०-१६७७) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख विनयप्रभसूरि (वि०सं० १७१४-१७२२) प्रतिलेखन प्रशस्ति कीर्तिरत्नसूरि (वि०सं० १७१४) प्रतिलिपिप्रशस्ति मुनिहेमराजसूरि (वि०सं० १६८९) प्रतिलेखनप्रशस्ति महिमांप्रभसूरि (वि०सं०१७३६-१७६८) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख सहजरत्लसूरि (वि०सं० १७६१) प्रतिलिपिप्रशस्ति भावप्रभसूरि (वि०सं० १७८३-१७९१) प्रशस्ति भावरत्नसूरि (वि०सं० १७६२-१७९२) प्रशस्ति मुनिलाल (वि०सं० १७६७-१७९१) प्रशस्ति बृहद्गच्छ का इतिहास मुनिज्योतिरत्न Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १८७ सन्दर्भ १. मोहनलाल दलीचन्द्र देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग-३, खण्ड-२, मुम्बई १९४४ ईस्वी, पृ० २२३९ २२४१. २. Muni Punyavijaya- Catalogue of Palm- leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay, pp. 269-270. 2. Muni Punyawijaya, For Personal & Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | पूर्णिमागच्छ - भीमपल्लीयाशाखा का इतिहास । पूर्णिमागच्छ की यह शाखा भीमपल्ली नामक स्थान से अस्तित्व में आयी प्रतीत होती है। इसके प्रवर्तक कौन थे, यह कब और किस कारण से अस्तित्व में आयी, इस सम्बन्ध में आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस शाखा में देवचन्द्रसूरि, पार्श्वचन्द्रसूरि, जयचन्द्रसूरि, भावचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, विनयचन्द्रसूरि आदि कई महत्त्वपूर्ण आचार्य हुए हैं । भीमपल्लीयाशाखा से सम्बद्ध जो भी साक्ष्य आज उपलब्ध हुए हैं, वे वि०सं० की १५वीं शती से वि०सं० की १८वीं शती तक के हैं और इनमें अभिलेखीय साक्ष्यों की बहुलता है। अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम अभिलेखीय और तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। अभिलेखीय साक्ष्य - पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित ५४ जिन प्रतिमायें अद्यावधि उपलब्ध हुई हैं। इन पर वि०सं० १४५९ से वि०सं० १५९८ तक के लेख उत्कीर्ण हैं जिनसे ज्ञात होता है कि ये प्रतिमायें उक्त कालावधि में प्रतिष्ठापित की गयी थी । उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों द्वारा यद्यपि पूर्णिमागच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं; किन्तु उनमें से मात्र ८ मुनिजनों के पूर्वा पर सम्बन्ध ही स्थापित हो सके हैं, जो इस प्रकार है - देवचन्द्रसूरि पार्श्वचन्द्रसूरि (वि०सं० १४५९-१४६१) २ प्रतिमालेख For Personal & Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १८९ जयचन्द्रसूरि (वि०सं० १४८२-१५२७) ३९ प्रतिमालेख जयरत्नसूरि (वि०सं० १५४७) १ प्रतिमालेख भावचन्द्रसूरि चारित्रचन्द्रसूरि (वि०सं० १५३६) १ प्रतिमालेख मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १५५३-१५९१) ९ प्रतिमालेख विनयचन्द्रसूरि (वि०सं० १५९८) १ प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा की उक्त छोटी-छोटी और दो अलग-अलग गुर्वावलियों का उक्त आधार पर परस्पर समायोजन सम्भव नहीं हो सका, अत: इसके लिए पूर्णिमागच्छसी इस शाखा से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों पर भी दृष्टिपात करना अपरिहार्य है। पार्श्वनाथचरित की वि०सं० १५०४ में प्रतिलिपि की गयी एक प्रति की दाताप्रशस्ति में भीमपल्लीयाशाखा के पासचन्द्रसूरि (पार्श्वचन्द्रसूरि) के शिष्य जयचन्द्रसूरि का उल्लेख है।२ प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि एक श्रावक परिवार ने अपने मातापिता के श्रेयार्थ उक्त ग्रन्थ की एक प्रति जयचन्द्रसूरि को प्रदान की। जयचन्द्रसूरि की प्रेरणा से वि०सं० १४८२/ई० सन् १४२६ से वि०सं० १५२६/ई० सन् १४६१ के मध्य प्रतिष्ठापित ३९ जिनप्रतिमायें आज मिलती हैं, जिनका अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत उल्लेख आ चुका है। पूर्णिमागच्छीय किन्हीं भावचन्द्रसूरि ने स्वरचित शांतिनाथचरित ३ (रचनाकाल वि०सं० १५३५/ई० सन् १४७९) की प्रशस्ति में अपने गुरु का नाम जयचन्द्रसूरि बतलाया है, जिन्हें इस गच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के पूर्वोक्त जयचन्द्रसूरि से समसामयिकता, गच्छ, नामसाम्य आदि के आधार पर एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक इसी प्रकार इसी शाखा के भावचन्द्रसूरि (वि०सं०१५३६ के प्रतिमालेख में उल्लिखित) और शांतिनाथचरित के रचनाकार पूर्वोक्त भावचन्द्रसूरि को एक दूसरे से अभिन्न माना जा सकता है । For Personal & Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० बृहद्गच्छ का इतिहास पूर्णिमागच्छीय किन्हीं जयराजसूरि ने स्वरचित मत्स्योदररास (रचनाकाल वि०सं० १५५३/ई० सन् १४९७) की प्रशस्ति में और इसी गच्छ के विद्यारत्नसूरि ने वि०सं० १५७७/ई० सन् १५२० में रचित कूर्मापुत्रचरित५ की प्रशस्ति में मुनिचन्द्रसूरि का अपने गुरु के रूप में उल्लेख किया है। पूर्णिमागच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में प्राप्त अभिलेखीय साक्ष्यों में तो नहीं किन्तु भीमपल्लीयाशाखा से सम्बद्ध वि०सं० १५५३१५९१ के प्रतिमालेखों में मुनिचन्द्रसूरि का उल्लेख मिलता है। अत: समसामयिकता और गच्छ की समानता को देखते हुए उन्हें एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं है। चूंकि पूर्णिमागच्छ की एक शाखा के रूप में ही भीमपल्लीयाशाखा का जन्म और विकास हुआ, अत: इस शाखा के किन्हीं मुनिजनों द्वारा कहीं-कहीं अपने मूलगच्छ का ही उल्लेख करना अस्वाभाविक नहीं प्रतीत होता और सम्भवत: यही कारण है कि उक्त ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों की प्रशस्ति में अपना परिचय पूर्णिमागच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के मुनि के रूप में नहीं अपितु पूर्णिमागच्छ के मुनि के रूप में ही दिया है। विभिन्न गच्छों के इतिहास में इस प्रकार के अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं। ___प्रतिमालेखों और ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की एक तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पूर्णिमापक्ष- भीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों का विद्यावंशवृक्ष चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक) धर्मघोषसूरि (चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज (ई०सन् १०९४-११४२) द्वारा सम्मानित) सुमतिभद्रसूरि For Personal & Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ देवचन्द्रसूरि पासचन्द्र (पार्श्वचन्द्रसूरि) (वि०सं० १४५९-१४६१) प्रतिमालेख जयचन्द्रसूरि (वि०सं० १४८५-१५२६) प्रतिमालेख (वि०सं० १५०४ में लिपिबद्ध पार्श्वनाथचरित में उल्लिखित) भावचन्द्रसूरि (वि०सं० १५३५ शांतिनाथचरित) के कर्ता जयरत्नसूरि (वि०सं० १५४७) प्रतिमालेख चारित्रचन्द्रसूरि (वि०सं० १५३६) प्रतिमालेख मुनिचन्द्रसूरि (वि० सं० १५५३-१५९१) प्रतिमालेख जयराजसूरि विद्यारत्नसूरि विनयचन्द्रसूरि (वि०सं० १५५३ में (वि०सं० १५७७ में (वि०सं० १५९८) मत्स्योदरदास के कर्ता) कूर्मापुत्रचरित्र के कर्ता) प्रतिमालेख सन्दर्भ १. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास, भाग २, पृ. १०२३-१०४३॥ संवत् १५०३ वर्षे आसो वदि ४ गरौ श्रीपार्श्वनाथचरित्र पुस्तकं लिखापितमस्ति।। संवत् १५०४ वर्षे वैशाख सुदि षष्ठी भौमे श्री प्राग्वाट ज्ञातीय मं० धना भार्या धांधलदे पुत्र मं० मारू भार्या चमकू पितृ मातृ स्वश्रेयोऽर्थं श्रीपार्श्वनाथचरित्रपुस्तकं अलेषि।। श्रीभीमपल्लीय श्रीपूर्णिमापक्षे मुक्ष (मुख्य) श्रीपासचन्द्रसूरिपट्टे श्री ३ जयचन्द्रसूरिभिः प्रदत्त।। अमृतलाल मगनलाल शाह- संपा० श्रीप्रशस्ति संग्रह, अहमदाबाद वि०सं० १९९३, भाग २, पृ० १०. इति श्री श्री श्रीभावचन्द्रसरिविरचिते गद्यबंधे श्रीशांतिनाथचरिते द्वादशभववर्णनो नाम षष्टः प्रस्तावः।। H.R. Kapadia Ed. Descriptive Catalogue of Mss in the Govt. Mss deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Serial No. 27, B.O.R.I. Poona 1987 A.D. No. 733, pp. 118-119. पूनिम पक्ष मुनिचन्द्रसूरि राजा, तासु ससि जंयइ पइ जइराजा। पनर त्रिपन्न कीधु रास, भणइ गुणइ तेह पूरि आस।। मोहनलाल दलीचंद देसाई- जैन गूर्जर कविओ, भाग १, द्वितीय संस्करण, संपा० डॉ. जयन्त कोठारी, पृष्ठ २०३-२०४. इति श्रीपूर्णिमापक्षे भट्टारकश्रीमुनिचन्द्रसूरि - शिष्यमुनिविद्यारत्नविरचिते श्रीकुर्मापुत्रकेवलिचरित्रे शिवगतिवर्णनो नाम चतुर्थोल्लास: परिपूर्णस्तत्परिपूर्णोपरिपूर्णतामभजतायमपि ग्रन्थ इति भद्रम्।। A.P.Shah - Catalogue of Sanskrit and Prakit Mss: Muni Shree Punya Vijayajis Collection, Part II, pp. 300-302. For Personal & Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | सार्धपूर्णिमागच्छ का इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल (बाद में चन्द्रगच्छ) की एक शाखा वडगच्छ या बृहद्गच्छ से वि०सं० ११४९ या ११५९ में उद्भूत पूर्णिमागच्छ या पूर्णिमापक्ष से भी समय-समय पर विभिन्न उपशाखायें अस्तित्व में आयीं, इनमें सार्धपूर्णिमागच्छ भी एक है। विभिन्न पट्टावलियों में पूर्णिमागच्छीय आचार्य सुमतिसिंहसूरि द्वारा वि०सं० १२३६/ईस्वी सन् ११८० में अणहिल्लपुरपत्तन में इस शाखा का उदय माना गया है।१ विवरणानुसार श्वेताम्बर श्रमणसंघ में विभिन्न मतभेदों के कारण निरन्तर विभाजन की प्रक्रिया से खिन्न होकर चौलुक्यनरेश कुमारपाल (वि०सं० ११९९-१२२९/ईस्वी सन् ११४३-११७३) ने नये-नये गच्छों के मुनिजनों का अपने राज्य में प्रवेश निषिद्ध करा दिया। वि०सं० १२३८ में पूर्णिमागच्छीय आचार्य सुमतिसूरि विहार करते हुए पाटन पहुंचे। वहां श्रावकों द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने अपने को पूर्णिमागच्छीय नहीं अपितु सार्धपूर्णिमागच्छीय बतलाकर वहां विहार की अनुमति प्राप्त कर ली। इसी समय से सुमतिसूरि की शिष्य-परम्परा सार्धपूर्णिमागच्छीय कहलायी। इस गच्छ के मुनिजन भी पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की भांति प्रतिमाप्रतिष्ठापक न होकर मात्र उपदेशक ही रहे हैं, किन्तु ये संडेरगच्छ, भावदेवाचार्यगच्छ, राजगच्छ, चैत्रगच्छ, नाणकीयगच्छ, वडगच्छ आदि के मुनिजनों की भांति चतुर्दशी को पाक्षिक पर्व मनाते थे।२ यद्यपि इस गच्छ का उदय वि०सं० १२३६ में हुआ माना जाता है, किन्तु इससे सम्बद्ध जो भी साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य आज मिलते हैं वे वि०सं० की १४वीं शती के पूर्व के नहीं हैं । अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम साहित्यिक और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है : १. शांतिनाथचरित - वि०सं० १४१२ में लिपिबद्ध की गयी इस कृति की प्रशस्ति३ में सार्धपूर्णिमागच्छ के आचार्य अभयचन्द्रसूरि का उल्लेख है। उक्त आचार्य For Personal & Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १९३ किनके शिष्य थे, यह बात उक्त प्रशस्ति से ज्ञात नहीं होती। चूंकि सार्धपूर्णिमागच्छ से सम्बद्ध यह सबसे प्राचीन उपलब्ध साहित्यिक साक्ष्य है, इसलिए महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। २. रत्नाकरावतारिकाटिप्पण - वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि की प्रसिद्ध कृति प्रमाणनयतत्त्वावलोक (रचनाकाल वि०सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५) पर सार्धपूर्णिमागच्छीय गुणचन्द्रसूरि के शिष्य ज्ञानचन्द्रसूरि ने मलधारगच्छीय राजशेखरसूरि के निर्देश पर रत्नाकरावतारिकाटिप्पण (रचनाकाल वि०सं० की १५वीं शती के प्रथम या द्वितीय दशक के आसपास) की रचना की। यह बात उक्त कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है। ३. न्यायावतारवृत्ति की दाता प्रशस्ति - आचार्य सिद्धसेन दिवाकर प्रणीत न्यायावतारसूत्र पर निर्वृत्तिकुलीन सिद्धर्षि द्वारा रचित वृत्ति (रचनाकाल- विक्रम सम्वत् की १०वीं शती के तृतीय चरण के आस-पास) की वि०सं० १४५३ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति की दाता प्रशस्ति५ में सार्धपूर्णिमागच्छीय अभयचन्द्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि का उल्लेख है। इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि उक्त प्रति रामचन्द्रसूरि के पठनार्थ लिपिबद्ध करायी गयी थी। इन्हीं रामचन्द्रसूरि ने वि०सं० १४९०/ईस्वी सन् १४३४ में विक्रमचरित की रचना की। ४. सम्यक्त्वरत्नमहोदधि वृत्ति की दाता प्रशस्ति - पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक आचार्य चन्द्रप्रभसूरिकृत सम्यक्त्वरत्नमहोदधि अपरनाम दर्शनशुद्धि (रचनाकाल- विक्रम सम्वत् की १२वीं शती के मध्य के आस-पास) पर पूर्णिमागच्छ के ही चक्रेश्वरसूरि और तिलकाचार्य द्वारा रची गयी वृत्ति (रचनाकाल- विक्रम सम्वत् की १३वीं शती के मध्य के आसपास) की वि०सं० १५०४ में लिपिबद्ध की गयी प्रति की दाताप्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छ के पुण्यप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि का उल्लेख है। उक्त प्रशस्ति से इस गच्छ के किन्हीं अन्य मुनिजनों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । ५. आरामशोभाचौपाई - यह कृति सार्धपूर्णिमागच्छ के विजयचन्द्रसूरि के शिष्य (श्रावक ?) कीरति द्वारा वि०सं० १५३५/ईस्वी सन् १४७९ में रची गयी है। ग्रन्थ की प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ बृहद्गच्छ का इतिहास रामचन्द्रसूरि पुण्यचन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि कीरति (वि०सं० १५३५/ई० सन् १४७९ में ___ आरामशोभाचौपाई के रचनाकार) ६. आवश्यकनियुक्तिबालावबोध की प्रतिलिपि की प्रशस्ति - सार्धपूर्णिमागच्छीय विद्याचन्द्रसूरि ने वि०सं० १६१० में उक्त कृति की प्रतिलिपि करायी। इसकी दाताप्रशस्ति में उनकी गुरु-परम्परा का विवरण मिलता है, जो इस प्रकार है : उदयचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि विद्याचन्द्रसूरि (वि०सं० १६१० में इनके उपदेश से आवश्यक नियुक्ति बालावबोध की प्रतिलिपि की गयी) जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित वि०सं० १३३१ से वि०सं० १६२४ तक की ५० से अधिक सलेख जिनप्रतिमायें मिलती हैं ।१० उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं। उनका विवरण इस प्रकार है : १. धर्मचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर धर्मतिलकसूरि धर्मचन्द्रसूरि की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित १ प्रतिमा मिली है जिस पर वि०सं० १४२१ का लेख उत्कीर्ण है। इनके पट्टधर धर्मतिलकसूरि का ९ जिनप्रतिमाओं में नाम मिलता है। ये प्रतिमायें वि०सं० १४२४ से वि०सं० १४५० के मध्य प्रतिष्ठापित की गयी थीं। इसके अतिरिक्त एक ऐसी भी प्रतिमा मिली हैं, जिस पर प्रतिष्ठावर्ष नहीं दिया गया है। For Personal & Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १९५ २. धर्मतिलकसूरि के पट्टधर हीराणंदसूरि वि०सं० १४८३ और १५०२ में प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमाओं पर इनका नाम मिलता है। ३. हीराणंदसूरि के पट्टधर देवचन्द्रसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें (वि० सं० १५१६ और वि०सं० १५१८) मिली हैं। ४. अभयचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर रामचन्द्रसूरि अभयचन्द्रसूरि की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमाओं (वि०सं० १४२४, १४५८ और १४६६) का उल्लेख मिलता है। इनके पट्टधर रामचन्द्रसूरि का नाम वि०सं० १४९३ के प्रतिमालेख में मिलता है। ५. रामचन्द्रसूरि के पट्टधर पुण्यचन्द्रसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ५ प्रतिमायें मिली हैं जिन पर वि०सं० १५०४, १५०७, १५०८ और १५२४ के लेख उत्कीर्ण हैं। ६. रामचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिचन्द्रगणि आबू स्थित लूणवसही की एक देवकुलिका पर उत्कीर्ण वि०सं० १४८६ के लेख में मुनिचन्द्रगणि, शीलचन्द्र, नयसार, विनयरत्न आदि का नाम मिलता है। ७. रामचन्द्रसूरि के शिष्य चन्द्रसूरि पद्मप्रभ की वि०सं० १५२१ में प्रतिष्ठापित प्रतिमा पर चन्द्रसूरि का नाम मिलता है। ८. पुण्यचन्द्रसूरि के पट्टधर विजयचन्द्रसूरि वि०सं० १५१३, १५२२ और १५२८ में प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमाओं पर विजयचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। ९. विजयचन्द्रसूरि के पट्टधर उदयचन्द्रसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें मिली हैं, जो वि०सं० १५५० और १५५३ की हैं। १०. उदयचन्द्रसूरि के पट्टधर मुनिराजसूरि वि०सं० १५७२ में प्रतिष्ठापित श्रेयांसनाथ की धातुप्रतिमा पर इनका नाम मिलता है। ११. उदयचन्द्रसूरि के पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि वि०सं० १५७५ और १५७९ में प्रतिष्ठापित २ जिन प्रतिमाओं पर इनका नाम है। १२. मुनिचन्द्रसूरि के पट्टधर विद्याचन्द्रसूरि इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ३ जिन प्रतिमायें मिली है, जो वि०सं० १५९६, १६१० और १६२४ की हैं। उक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु परम्परा की दो तालिकायें बनती हैं : For Personal & Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ पुण्यचन्द्रसूरि (वि० सं० १५०४-१५२४) ५ प्रतिमालेख तालिका- १ ? 1 धर्मचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२१) १ प्रतिमालेख 1 धर्मतिलकसूरि (वि०सं० १४२४ - १४५०) ७ प्रतिमालेख 1 हीराणंदसूर (वि० सं० १४८३ - १५०२) २ प्रतिमालेख T देवचन्द्रसूरि (वि०सं० १५१६- १५१८) २ प्रतिमालेख तालिका - २ ? I अभयचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२४ - १४६६) ३ प्रतिमालेख I रामचन्द्रसूरि (वि० सं० १४९३) १ प्रतिमालेख मुनिराजसूरि मुनिचन्द्रगणि (वि० सं० १४८६) १ प्रतिमालेख 1 विजयचन्द्रसूरि (वि०सं० १५१३ - १५२८) ३ प्रतिमालेख 1 उदयचन्द्रसूरि (वि०सं० १५५० - १५५३) २ प्रतिमालेख चन्द्रसूरि (वि० सं० १५२१) १ प्रतिमालेख चन्द्र (वि०सं० १५७५-१५७९) २ प्रतिमालेख 1 बृहद्गच्छ का इतिहास For Personal & Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १९७ विद्याचन्द्रसूरि (वि०सं० १५९६-१६२४) ३ प्रतिमालेख अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित उक्त दोनों तालिकाओं में परस्पर समायोजन सम्भव नहीं होता, किन्तु द्वितीय तालिका के अभयचन्द्रसूरि, रामचन्द्र, विजयचन्द्रसूरि, उदयचन्द्रसूरि आदि मुनिजनों के नाम सार्धपूर्णिमागच्छ के साहित्यिक साक्ष्यों में भी आ चुके हैं, इस प्रकार साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की एक बड़ी तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : तालिका-३ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित सार्धपूर्णिमागच्छ के मुनिजनों का विद्यावंशवृक्ष अभयचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२४-१४६६) प्रतिमालेख वि०सं० १४१२ में लिखित शांतिनाथचरित में उल्लिखित रामचन्द्रसूरि (वि०सं० १४९३) १ प्रतिमालेख वि०सं० १४५३ में इनके पठनार्थ न्यायावतारवृत्ति की प्रतिलिपि की गयी वि०सं० १४९० में विक्रमचरित के रचनाकार पुण्यचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रगणि (वि०सं० १५०४-२४) (वि०सं० १४८६ के ५ प्रतिमालेख प्रतिमालेख में उल्लिखित) शीलचन्द्रसूरि जयसार विनयरत्नसूरि चन्द्रसूरि (वि०सं०१५२१) १ प्रतिमालेख विजयचन्द्रसूरि जयसिंहसूरि (वि०सं०१५०४ में लिखित सम्यक्त्वरत्नमहोदधि (वि०सं०१५१३-१५२८) ३ प्रतिमालेख की प्रशस्ति में उल्लिखित) For Personal & Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ बृहद्गच्छ का इतिहास उदयचन्द्रसूरि (वि०सं०१५५०-१५५३) २ प्रतिमालेख कीरति (वि० सं० १५३५ में आरामशोभाचौपाई के रचनाकार) मुनिराजसूरि मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १५७२) १ प्रतिमालेख (वि०सं० १५७५-१५७९) २ प्रतिमालेख विद्याचन्द्रसूरि (वि०सं०१५९६-१६२४) ३ प्रतिमालेख वि०सं०१६१० में इनके उपदेश से आवश्यकनियुक्ति बालावबोध की प्रतिलिपि की गयी सन्दर्भ षट्व्यर्केषु (१२३६) च सार्धपूर्णिमा...। ___ मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, बम्बई १९६१ ईस्वी, पृ० २१, ३९, ६५, २०१ आदि। त्रिपुटी महाराज - जैनपरम्परानो इतिहास, भाग २, पृ० ५४४-५४६. संवत् १४१२ वर्षे पौष वदि १२ गुरौ अद्येह श्रीमदणहिलपट्टने श्रीसाधुपूर्णिमापक्षीय श्रीअभयचन्द्रसूरीणां पुस्तकं लिखितं पंडित महिमा (पा?) केन। शुभं भवतु। शांतिनाथचरित की दाता प्रशस्ति मुनि जिनविजय - संपा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, बम्बई १९४४ ईस्वी, पृ० १३९, प्रशस्ति क्रमांक ३१०. मूल ग्रन्थ और उसकी प्रशस्ति उपलब्ध न होने से उक्त उद्धरण निम्नलिखित ग्रन्थ के आधार पर दिया गया है : मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, बम्बई १९३२ ई, पृ० ४३७. संवत् १४५३ वर्षे फाल्गुन सुदिपूर्णिमादिने अद्येह श्रीमत्पत्तने श्रीराउतवाटके श्रीसाधुपूर्णिमापक्षीय भट्टारकश्रीअभयचन्दसूरि – शिष्यरामचन्द्रसूरि पठनार्थ ज्ञा (न्या) यावतारवृत्तिप्रकरणं लल (ललित) कीर्तिमुनिना लिखितं शुभं भवतु । A.P. Shah. Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss : Muni Shree Punyavijayaji's Collection, Vol I, No-3494, p-201 For Personal & Private Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ १९९ ६. अगरचन्द नाहटा - "विक्रमादित्य सम्बन्धी जैन साहित्य" विक्रमस्मृतिग्रन्थ, संपा० हरिहर निवास द्विवेदी तथा अन्य, उज्जैन वि०सं० २००१, पृ० १४१-१४८. संवत् १५०४ वर्षे आसो सुदि १० सोमवारे साधुपूण्णिमागच्छे चन्द्रप्रभसूरिसंताने भ० श्रीपुण्यचन्द्रसूरिशिष्यगणिवर-जयसिंहगणिना राणपुरनगरे सम्यकत्वरत्नमहोदधिग्रन्थपुस्तकं लिखितम्।। A.P. Shah. I bid, Vol I, No-2934, P-149-151 पुण्यइं लाभई सुखसंयोग, पुण्यइं काजइं देवगह भोग, पण्यई सवि अंतराय टलइ, मनवंछित फल पुण्य लहइ। साधपूनिम पक्ष गच्छ अहिनाण, श्रीरामचन्द्रसूरि सुगुरु सुजाण, नवरसे फरइ अमृत वखाणि, चतुर्विध श्री संघ मनि आण। तस पाटधर साहसधीर, पाप पखाइल जाणे नीर, पंच महाव्रत पालणवीर, श्रीपुण्यचन्द्रसूरि गुरु बा गंभीर। तास पट्ट उदया अभिनवा भाणु, जाणे महिमा मेरु सम्मान, गिरुआ गुणह तण् निधान, श्री विजयचन्द्रसूरि युगप्रधान। संवत पंनर पांत्रीसु जाणि, आसोइ पूनमि अहिनाणि, गुरुवारइ पूक्ष नक्षत्र होइ, पूरव पुण्य तणां फल जोई। कर जोड़ी कीरति प्रणमइ, आरामसोभा रास जे सुणइ। भणइ गुणइ जे नर नि नारि, नवनिधि वलसई तेह घरबारि। - इति आरामसोभा रास समाप्त। मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीय संस्करण- संपा० जयन्त कोठारी, बम्बई १९८६ ईस्वी, पृ० ४८३-४८४. इतिश्रीआवश्यकसूत्रस्य बालावि (व) बोध समाप्त। श्रीरस्तु संवत् १६१० वर्षे वैशाख वदि ३ शुक्रे म० गोवाल लिखितं श्रीसाधुपूर्णिमापक्षे मुख्य भट्टारकश्रीउदयचन्द्रसूरि तत्पट्टे पु (पू) ज्यराज्य (ध्य) श्रीमुनिचन्द्रसूरि तत्पट्टे गच्छाधिराज भारधुरिधरश्रीश्रीश्री विद्याचन्द्र (?सू) रिद्रे एषा पुस्तिका लिखापिता।। सर्वेषां शश्याना वाचनार्थ।। H.R. Kapadia. Ed. Descriptive Catalogue of the Govt Collection of the Mss : deposited at the B.O.R.T., Vol XVII, p-456. १०. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास, भाग २, पृष्ठ ९९८-१०२२ For Personal & Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मडाहडागच्छ का इतिहास : एक अध्ययन निर्ग्रन्थ-परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से उद्भूत गच्छों में बृहद्गच्छ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह गच्छ विक्रम सम्वत् की १०वीं शती में उद्भूत माना जाता है। उद्योतनसूरि, सर्वदेवसूरि आदि इस गच्छ के पुरातन आचार्य माने जाते हैं। १ अन्यान्य गच्छों की भाँति इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न कारणों से अनेक शाखाओं-प्रशाखाओं का जन्म हुआ और छोटे-छोटे कई गच्छ अस्तित्व में आये। बृहद्गच्छ गुर्वावली २ ( रचनाकाल वि०सं० १६२० ) में उसकी अन्यान्य शाखाओं के साथ मडाहडाशाखा का भी उल्लेख मिलता है। यही शाखा आगे चलकर मडाहडागच्छ के रूप में प्रसिद्ध हुई। यहां इसी गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है मडाहडा नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया होगा । मडाहडा की पहचान वर्तमान मडार नामक स्थान से की जाती है जो राजस्थान प्रान्त के सिरोही जिले में डीसा से चौबीस मील दूर ईशानकोण में स्थित है।३ चक्रेश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। यह गच्छ कब औरौं किस कारण से अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । अन्य गच्छों की भाँति इस गच्छ से भी कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ। विभिन्न साक्ष्यों से इस गच्छ की रत्नपुरीयशाखा, जाखड़ियाशाखा, जालोराशाखा आदि का पता चलता है। मडाडगच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं, किन्तु अभिलेखीय साक्ष्यों की तुलना में साहित्यिक साक्ष्य संख्या की दृष्टि से स्वल्प हैं। साथ ही वे १६वीं शताब्दी के पूर्व के नहीं हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए तथा प्राचीनता की दृष्टि से पहले अभिलेखीय साक्ष्यों तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है। For Personal & Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ अभिलेखीय साक्ष्य इस गच्छ से सम्बद्ध ७८ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं जो वि०सं० १२८७ से लेकर वि०सं० १७८७ तक के हैं४ । अध्याय-७ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नामों का पता चलता है, किन्तु उसके आधार पर उनके गुरु-शिष्य परम्परा की कोई विस्तृत तालिका की संरचना कर पाना तो सम्भव नहीं है। फिर भी कुछ मुनिजनों की गुरुपरम्परा की छोटी-छोटी गुर्वावलियों की संरचना की जा सकती है, जो इस प्रकार है - चक्रेश्वरसूरि चक्रेश्वरसूरि 1 पद्मचन्द्रसूरि I जयचन्द्रसूरि — ? 1 मानदेवसूरि I यशोदेवसूरि I शांतिसूरि (वि०सं० १३७० - ८७ प्रतिमालेख) जयसिंहसूर I सोमप्रभसूरि 1 वर्धमानसू (वि०सं० १३३५ प्रतिमालेख ) I सोमचन्द्रसूरि (वि०सं०१४३७ - ५९ प्रतिमालेख) I ज्ञानचन्द्रसूरि (वि०सं० १४९३ प्रतिमालेख) ? I हरिभद्रसूरि साहित्यिक साक्ष्य मडाहडगच्छ से सम्बद्ध प्रथम साहित्यिक साक्ष्य है कालिकाचार्यकथा की ९ श्लोकों की दाताप्रशस्ति'। यह प्रति श्री अगरचन्द नाहटा के संग्रह में संरक्षित है। इस प्रशस्ति For Personal & Private Use Only कमलप्रभसू (वि० सं०१५२० प्रतिमालेख) Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ बृहद्गच्छ का इतिहास के प्रथम ६ श्लोकों में सितरोहीपुर (वर्तमान सिरोही, राजस्थान) निवासी श्रावक तिहुणा-महुणा के पूर्वजों का उल्लेख है। अन्तिम तीन श्लोकों में उक्त श्रावक द्वारा लक्षभूपति (राणालाखा अपरनाम राणालक्षसिंह६ वि०सं० १४६१-१४७६/ईस्वी सन् १४०५-१४२०) के शासनकाल में मडाहडगच्छीय आचार्य कमलप्रभसूरि के शिष्य वाचनाचार्य गुणकीर्ति को कल्पसूत्र के साथ उक्त ग्रन्थ की एक प्रति भेंट में देने का उल्लेख है। ___ मडाहडगच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची (लेख क्रमांक ६२, वि०सं० १५२०) में हरिभद्रसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि का नाम आ चुका है । यद्यपि एक मुनि या आचार्य का नायकत्त्वकाल सामान्य रूप से ३०-३५ वर्ष माना जाता है, किन्तु कोईकोई मुनि और आचार्य दीर्घजीवी भी होते हैं, इसी कारण स्वाभाविक रूप से उनका नायकत्त्वकाल सामान्य से कुछ अधिक अर्थात् ४०-४५ वर्ष का होता रहा। अत: वि०सं० की १५वीं शताब्दी के तृतीय चरण में भी इन्हीं कमलप्रभसूरि का विद्यमान होना असम्भव नहीं लगता। इसलिए उक्त प्रतिमालेख (वि०सं० १५२०) में उल्लिखित हरिभद्रसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि उपरोक्त कालिकाचार्यकथा के प्रतिलेखन की दाताप्रशस्ति (लेखनकाल वि०सं० १४६१-१४७६) में उल्लिखित कमलप्रभसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। श्री अगरचन्द नाहटा ने अपनी सिरोही यात्रा के समय वहाँ स्थित मडाहडगच्छीय उपाश्रय में रहने वाले एक महात्मा-(गृहस्थ कुलगुरु) से ज्ञात इस गच्छ के मुनिजनों की एक नामावली प्रकाशित की है, जो इस प्रकार है: १. चक्रेश्वरसूरि १६. उदयसागरसूरि २. जिनदत्तसूरि १७. देवसागरसूरि ३. देवचन्द्रसूरि १८. लालसागरसूरि ४. गुणचन्द्रसूरि १९. कमलसागरसूरि ५. धर्मदेवसूरि २०. हरिभद्रसूरि ६. जयदेवसूरि २१. वागसागरसूरि पूर्णचन्द्रसूरि २२. केशरसागरसूरि ८. हरिभद्रसूरि २३. भट्टारकगोपालजी For Personal & Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ २०३ ९. कमलप्रभसूरि २४. यशकरणजी १०. गुणकीर्तिसूरि २५. लालजी ११. दयानन्दसूरि २६. हुकमचन्द १२. भावचन्द्रसूरि २७. इन्द्रचन्द १३. कर्मसागरसूरि २८. फूलचन्द १४. ज्ञानसागरसूरि २९. रतनचन्द १५. सौभाग्यसागरसूरि ३०. ...... श्री नाहटा द्वारा प्रस्तुत उक्त नामावली में गच्छ के प्रवर्तक या आदिम आचार्य के रूप में चक्रेश्वरसूरि९ का उल्लेख है। अभिलेखीय साक्ष्यों से भी यही संकेत मिलता है, क्योंकि कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य को चक्रेश्वरसूरिसंतानीय कहा गया है। नामावली में उल्लिखित द्वितीय पट्टधर जिनदत्तसूरि, तृतीय पट्टधर देवचन्द्र और चतुर्थ पट्टधर गुणचन्द्र के बारे में किन्हीं अन्य साक्ष्यों से कोई सूचना नहीं मिलती। पञ्चम पट्टधर धर्मदेवसूरि से लेकर अष्टम पट्टधर हरिभद्रसूरि तक के नाम अभिलेखीय साक्ष्यों में भी मिल जाते हैं तथा नवें पट्टधर कमलप्रभसूरि का साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों साक्ष्यों में उल्लेख मिलता है। उक्त नामावली के अन्य मुनिजनों के बारे में (ज्ञानसागर को छोड़कर) किन्हीं अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी नहीं मिलती। (जय) देवसूरि, पूर्णचन्द्रसूरि और हरिभद्रसूरि का नाम अभिलेखीय साक्ष्यों में भी मिलता है१०, परन्तु उनके बीच गुरु-शिष्य सम्बन्धों का ज्ञान उक्त नामावली से ही हो पाता है। इस दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है। चक्रेश्वरसूरि धर्मदेवसूरि (जय)देवसूरि पूर्णचन्द्रसूरि For Personal & Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ गुणकीर्तिसूरि कालिकाचार्यकथा की प्रशस्ति (वि०सं० १४६१-७६ में उल्लिखित) हरिभद्रसूरि T कमलप्रभसूरि (वि० सं० १५२० में सिरोही के अजितनाथ जिनालय में प्रतिमा प्रतिष्ठापक) बृहद्गच्छ का इतिहास धनकीर्तिसूरि (वि० सं० १५२० के प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक कमलप्रभसूरि के साथ उल्लिखित) लिंबडी के हस्तलिखित जैन ग्रन्थ भण्डार में वि०सं० १५१७ में लिखी गयी कल्पसूत्रस्तवक ११ और कालिकाचार्यकथा १२ की एक - एक प्रति उपलब्ध है जिसे ग्रन्थ भण्डार की प्रकाशित सूची में मडाहडगच्छीय रामचन्द्रसूरि की कृति बतलाया गया है। चूँकि उक्त ग्रन्थभण्डार में संरक्षित हस्तलिखित ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ अभी अप्रकाशित हैं, अतः ग्रन्थकार की गुरु-परम्परा, ग्रन्थ के रचनाकाल आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलपाती । इसी गच्छ में विक्रम सम्वत् की १६वीं शताब्दी के तृतीयचरण में मुनिसुन्दरसूरि के शिष्य पद्मसागरसूरि १३ नामक एक विद्वान् मुनि हो चुके हैं, जिनके द्वारा रचित कयवन्नाचौपाइ, स्थूलभद्रअठवीसा शांतिनाथस्तवन, वरकाणापार्श्वनाथस्तवन, सोमसुन्दरसूरिहिंडोला, आदि कुछ कृतियाँ मिलती हैं। ये मरु-गुर्जर भाषा में रचित हैं। कयवन्नाचौपाई की प्रशस्ति १४ में रचनाकार ने अपने गुरु तथा रचनाकाल आदि का उल्लेख कियाहै— आदि : सरस वचन आपे सदा, सरसति कवियण माइ, पणमणि कवइन्ना चरी, पभणिसु सुगुरु पसाइ । मम्माडहगच्छे गुणनिलो श्रीमुनिसुन्दरसूरि पद्मसागरसूरि सीस तसु पभणे आणंदसूरि । For Personal & Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ २०५ अन्त : दान उपर कइवन्न चोपई, संवर पनर त्रिसठे थई, भाद्र वदि अठमी तिथि जाण, सहस किरण दिन आणंद आणि। पद्मसागरसूरि इम भणंत, गुणे तिहिं काज सरंति, ते सवि पामे वंछित सिद्धि, घर नीरोग घरे अविचल रिद्धि। यद्यपि उक्त ग्रन्थकार और उनके गुरु का अन्यत्र कोई उल्लेख नहीं मिलता और यह रचना भी सामान्य कोटि की है फिर भी मडाहडगच्छ से सम्बद्ध होने के कारण इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से इसे महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। विक्रम सम्वत् की सत्रहवीं शताब्दी के द्वितीय-तृतीय चरण में इस गच्छ में सारंग नामक एक विद्वान् हुए हैं, जिनके द्वारा रचित कविविल्हणपंचाशिकाचौपाई (रचनाकाल वि०सं० १६३९), मुंजभोजप्रबन्ध (रचनाकाल वि०सं० १६५१), किसनरूक्मिणीवेलि पर संस्कृतटीका (रचनाकाल वि०सं० १६७८) आदि कृतियाँ प्राप्त होती हैं।१५ इनके गुरु का नाम पद्मसुन्दर और प्रगुरु का नाम धर्मसुन्दर था। मडाहडगच्छ से सम्बद्ध अब तक उपलब्ध यह अन्तिम साहित्यिक साक्ष्य कहा जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्यों से इस गच्छ की रत्नपुरीयशाखा और जाखडियाशाखा का अस्तित्व ज्ञात होता है। इनका विवरण निम्नानुसार है - रत्नपुरीयशाखा- जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है, रत्नपुर नामक स्थान से यह अस्तित्व में आयी प्रतीत होती है। इस गच्छ से सम्बद्ध १४ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं जो वि०सं० १३५० से वि० सं० १५५७ तक के हैं। इन लेखों में धर्मघोषसूरि, सोमदेवसूरि, धनचन्द्रसूरि, धर्मचन्द्रसूरि, कमलचन्द्रसूरि आदि का उल्लेख मिलता है। इनका विवरण निम्नानुसार है : धर्मघोषसूरि के पट्टधर सोमदेवसूरि इनके द्वारा वि०सं० १३५० में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की धातु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। मुनि विद्याविजयजी१६ ने इसकी वाचना की है, जो निम्नानुसार है : ___ सं० १३५० वर्षे माह वदि ९ सोमे ...... कानेन भ्रातृरा ...... निमित्तं श्रीपार्श्वनाथबिंब का०प्र० मड्डाहडगच्छे रत्नपुरीय श्रीधर्मघोषसूरिपट्टे श्रीसोमदेवसूरिभिः।। वर्तमान में यह प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, पूना में है । For Personal & Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छ का इतिहास सोमदेवसूरि के पट्टधर धनचन्द्रसूरि इनके द्वारा प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की धातु की एक प्रतिमा प्राप्त हुईहै। इस पर वि०सं० १४६३ का लेख उत्तकीर्ण है। श्री पूरनचन्द्र नाहर१७ ने इसकी वाचना दी है, जो निम्नानुसारहैः २०६ सं० १४६३ वर्षे आषाढ सुदि १० बुधे प्रा०ज्ञा० व्य ० हेमा० भा० हीरादे पु० अजाकेन श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं मडाहडगच्छे श्रीसोमदेवसूरिपट्टे श्रीधनचन्द्रसूरिभिः । धनचन्द्रसूरि के पट्टधर धर्मचन्द्रसूरि इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ६ प्रतिमायें मिलती हैं। इनका विवरण निम्नानुसारहैः वि०सं० १४८० वि०सं० १४८५ वि०सं० १४९३ माघ वदि २ बुधवार वि०सं० १५०१ ज्येष्ठ सुदि १० रविवार फाल्गुन वदि ३ बुधवार वि०सं० १५०७ वि०सं० १५१० मार्ग ? सुदि १० रविवार फाल्गुन सुदि १०, बुधवार प्राचीनलेखसंग्रह वैशाख सुदि ३ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, बीकानेरजैनलेखसंग्रह प्रतिष्ठालेखसंग्रह, भाग १, बीकानेरजैनलेखसंग्रह प्राचीन लेखसंग्रह धर्मचन्द्रसूरि के पट्टधर कमलचन्द्रसूरि इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : लेखांक १०८१ वि०सं० १५३४ ज्येष्ठ सुदि १० सोमवार वही लेखांक १०९१ वि०सं० १५३५ आषाढ़ सुदि ५ गुरुवार वि०सं० १५४५ माघ सुदि २ गुरुवार वही लेखांक २४१३ वि०सं० १५५७ के एक प्रतिमालेख में इस शाखा के गुणचन्द्रसूरि एवं उपाध्याय आनन्दसूरि का उल्लेख मिलता है। १८ रत्नपुरीयशाखा का उल्लेख करने वाला यह अन्तिम साक्ष्य है। लेखांक १२४ लेखांक २५३ लेखांक ७६८ लेखांक ३३९ लेखांक ९२० लेखांक २५६ बीकानेरजैनलेखसंग्रह रत्नपुरीयशाखा के उक्त प्रतिमालेखों में प्रथम (वि०सं० १३५०) और द्वितीय (वि०सं० १४६३) लेख में सोमदेवसूरि का उल्लेख मिलता है। प्रथम लेख में वे प्रतिमाप्रतिष्ठापक हैं तथा द्वितीय लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के सोमदेवसूरि के बीच प्रायः १०० से अधिक वर्षों का अन्तराल है। अतः इस आधार पर दोनों अलग-अलग व्यक्ति सिद्ध होते हैं। यहाँ यह भी विचारणीय है कि इन सौ गुरु । किन्तु दोनों For Personal & Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ २०७ वर्षों में (वि०सं० १३५० से वि०सं० १४६३ ) इस शाखा से सम्बद्ध कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अतः यह सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि दोनों सोमदेवसूरि एक ही व्यक्ति हो सकते हैं और लेख के वाचनाकार की भूल से वि०सं० १४५० की जगह वि०सं० १३५० लिख दिया गया। इस सम्भावना को स्वीकार कर लेने पर रत्नपुरीयशाखा की वि०सं० १४५० से वि०सं० १५५७ की एक अविच्छिन्न परम्परा ज्ञात हो जाती है : I धर्मघोषसूरि (वि०सं० १३(४)५०) 1 सोमदेवसूरि (वि०सं० १३ (४) ५०) एक प्रतिमालेख I धनचन्द्रसूरि (वि०सं० १४६३) एक प्रतिमालेख 1 धर्मचन्द्रसूरि (वि०सं० १४८० - १५१० ) छह प्रतिमालेख I कमलचन्द्रसूरि (वि०सं० १५३४ - १५४५) चार प्रतिमालेख इस शाखा के प्रवर्तक कौन थे, यह शाखा कब अस्तित्व में आयी, इस बारे में प्रमाणों के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है। अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर वि०सं० की १५वीं शताब्दी के मध्य से वि०सं० की १६वीं शताब्दी के मध्य तक इस शाखा का अस्तित्व सिद्ध होता है। जाखड़ियाशाखा मडाहडगच्छ की इस शाखा का उल्लेख करने वाले ५ प्रतिमालेख प्राप्त होते हैं। इनमें कमलचन्द्रसूरि तथा गुणचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। इनका विवरण इस प्रकार है : वि०सं० १५३५ माघ वदि ६ मंगलवार वि०सं० १५४७ ज्येष्ठ सुदि २ मंगलवार वि०सं० १५६० वैशाख सुदि ३ बुधवार वि०सं० १५७५ फाल्गुन वदि ४ गुरुवार अर्बुप्राचीन जैनलेखसंदोह बीकानेरजैनलेखसंग्रह बीकानेरजैनलेखसंग्रह वही For Personal & Private Use Only लेखांक ६५५ लेखांक १११२ लेखांक २७५१ लेखांक १६३० Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ बृहद्गच्छ का इतिहास _ वि०सं० १५७५ के लेख१९ में मडाहडगच्छ की शाखा के रूप में नहीं अपितु स्वतन्त्र रूप से जाखड़ियागच्छ के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। इस शाखा के भी प्रवर्तक कौन थे तथा यह कब और किस कारण से अस्तित्व में आयी, इस बारे में आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। सन्दर्भ १. बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति (रचनाकाल वि०सं० १२३८/ईस्वी सन् ११८२) की प्रशस्ति Muni Punya Vijaya - Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti Nath Jain Bhandar, Cambay, pp. 284 - 286. तपागच्छीय मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रचित गुर्वावलि (रचनाकाल वि०सं० १४६६/ईस्वी सन् १४०९) तपागच्छीय हीरविजयसूरि के शिष्य धर्मसागर द्वारा रचित तपागच्छपट्टावली (रचनाकाल वि०सं० १६४८/ईस्वी सन् १५९२). इस सम्बन्ध में विस्तार के लिए द्रष्टव्य इसी पुस्तक के अन्तगर्त अध्याय २. २. मुनि जिनविजय, सम्पा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृ० ५२-५५. ३. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, पृ० ६७-७७. ४. मडाहडा गच्छ से सम्बन्ध प्रतिमालेखों के विस्तृत विवरण के लिये द्रष्टव्य शिवप्रसाद, जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास, भाग २, पृ० ११४०-११७४. ५. अगरचन्दनाहटा, “मडाहडागच्छ” जैनसत्यप्रकाश, वर्ष २१, अंक ३, पृ० ४७-४८. ६. R.C. Majumdar and A.D. Pusalkar, The Delhi Sultanate, Bombay 1960 A.D., pp. 331,384. ७. द्रष्टव्य संदर्भ क्रमांक ४. ८-९. अगरचन्द भंवरलाल नाहटा – “मड्डाहडागच्छ की परम्परा", जैनसत्यप्रकाश, वर्ष २०, अंक ५, पृ० ९५-९८. १०. चक्रेश्वरसूरि बृहद्गच्छ के प्रभावक आचार्य थे, उनके द्वारा वि०सं० ११८७ से वि०सं० १२०८ तक प्रतिष्ठापित कई जिनप्रतिमायें उपलब्ध हुई हैं, ग्रन्थप्रशस्तियों में भी इनका उल्लेख प्राप्त होता है। मोहनलालदलीचन्द देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, बम्बई १९३३ ईस्वी, पृ० २८०. For Personal & Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय-७ २०९ ११. मुनि चतुरविजय - सम्पादक - लींबडीस्थहस्तलिखित जैनज्ञानभण्डार सूचीपत्रम् आगमोदयसमिति, ग्रन्थांक ५८, बम्बई १९२८ ईस्वी, क्रमांक ५०१. १२. वही, क्रमांक ६७१. १३. Vidhatri Vora - Catalogue of Gujrati Manuscripts Muniraja Sri Punyavijayaji's Collection, Ahmedabad 1978, pp. 563. १४. मोहनलालदलीचन्द देसाई - जैन गूर्जर कविओ, भाग १, नवीन संस्करण, सम्पादक डॉ० जयन्त कोठारी, पृ० २२४-२२५. १५. वही, भाग २, पृ० १७६-१७७. १६. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४९. १७. जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २१७८. १८. वही, भाग २, लेखांक ११३०. १९. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १६३०. For Personal & Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट -१ 50 बृहद्गच्छीय लेख समुच्च्य For Personal & Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (१) ऋषभदेव - पंचतीर्थी: संवत् ११४३ वैशाख सुदि ३ बृहस्पतिदिने श्रीवीरनाथदेवस्य श्रावको नाम। जरुकः कारयामास सह्येवं देवि मनातु । श्रीअजितदेवाख्यसूरिशिष्येण सूरिणा श्रीमद्विजयसिंहेन जिनयुग्मं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छे । (२) शिलालेख संवत् ११४८ आषाढ़ सुदि ७ बुधे, श्रीपार्श्वनाथदेवस्य पाहाडेन सुधी ( ? म ) ना (ता)। संतुकसुतसुज्जेन प्रतिमेयं कारिता सु (शु) भा ।। १ ॥ श्रीवटपालसद्गच्छे श्रीसर्व्वदेवसूरिभिः । विहितो वासनिक्षेपः श्रीमदादिजिनालये ॥ २ ॥ (३) ऋषभदेवः सं. ११८७ फागुण वदि ४ सोमे भद्रसिणकद्रा स्थानीय प्राग्वाटवंशान्वय श्रे० वाहिल संताने संतणागदेव देवचंद्र आसधर आंबा अंबकुमार श्रीकुमार श्रावक श्राविकासमुदायेन अर्बुदचैत्यतीर्थे रिखभदेवबिंबं निःश्रेयसे कारितं। बृहद्गच्छीय श्रीसंविग्नविहारि श्रीवर्द्धमानसूरिपट्टे पद्मसूरि श्रीभद्रेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। लाखण ४. (४) शिलालेख सं (वत्) ११८७ (वर्षे) फागु (ल्गुण वदि ४ सोमे रूद्रसिणवाडास्थानीय प्राग्वाटवंसा (शा) - न्वये श्रे० साहिलसंताने पलाद्वंदा ( ? ) श्रे० पासल संतणाग देवचंद आसधर आंबा अंबकुमार श्रीकुमार लोयण प्रकृति श्वासिणि शांतीय रामति गुणसिरि प्रडूहि तथा पल्लडीवास्तव्य अंबदेवप्रभृतिसमस्तश्रावकश्राविकासमुदायेन अर्बुदचैत्यतीर्थे श्री रि (ऋषभदेव बिंबं निःश्रेयसे कारितं बृहद्गच्छीय श्रीसंविज्ञविहारि श्रीवर्द्धमानसूरिपादपद्मोप (सेवि) श्रीचक्रेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठितं । मंगलं महाश्रीः ॥ १. ऋषभदेव का मन्दिर, कोरटा, प्रा०ले०सं०, लेखांक ३. २. शांतिनाथ जिनालय, कुंभारिया की ५वीं देवकुलिका का लेख, आ०अ०कु०, विमलवसही, आबू, प्रा० जै० ले०सं०, भाग २, लेखांक, ३. १८४. विमलवसही, आबू, अ० प्रा० जै० ले० सं० ( आबू, भाग-२) लेखांक ११४. २११ For Personal & Private Use Only लेखांक २६-१४६. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ बृहद्गच्छ का इतिहास (५) अरिष्टनेमिः संवत् ११९१ वर्षे फाल्गुन सुदि २ सोमे श्रीअरिष्टनेमिः प्रतिष्ठितः श्रीदेवाचार्यगच्छे श्रीविजयसिंहाचार्येन प्रतिष्ठाकृता जिनदेवगुरुभक्तानां भक्तेन सकलगोष्ठीसु (षु) स्थायित्ये (त्वे) न छेहडेन ब्यं (बिं) बं कृतं सुतो (त:) श्री................... दुल्लहं सुतेन पुन्नदेव्योदरो.... (६) मुनिसुव्रतः संवत् १२०० ज्येष्ठ वदि १ शुक्रे म० वीरसंताने महं चाहिल्ल सुत रांणाका तत्सुत नरसिंहेन कु (टुं) बसहितेनात्मश्रेयोऽर्थं मुनिसुव्रतप्रतिमा कारितेति। प्रतिष्ठिता श्रीनेमिचंद्रसूरिभिः।। (७) शांतिनाथः संवत् १२०४ फाल्गुन वदि ११ कुजे श्रीप्राग्वाटवंशीय श्रे० सहदेवपुत्र वटतीर्थवास्तव्यमहं रिसिदेवश्रावकेन स्वपितृव्यसुतभ्रातृ उद्धरण स्वभ्रातृ सरणदेवसुतपूता रिसिदेव (*) भार्या मोहीसुत शुभंकर शालिग बाहड क्रमेण तत्पुत्र धवल घूचू पारसपुत्रपुत्रीप्रभृतिस्वकुटुंबसमेतेन आरासनाकरे श्रीनेमिनाथचैत्ये मुखमंडपखत्तके श्री (*) शांतिनाथबिंबं आत्मश्रेयसे कारितं ।। श्रीचंद्रबृहद्गच्छे श्रीवर्धमानसूरीयैः श्रीसंविग्नविहारिभिः प्रतिष्ठितमिदं बिंबं श्रीचक्रेश्वरसूरिभिः।। (८) आदिनाथः ॐ ॥ संवत् १२०५ ज्येष्ठ सुदौ ९ भौमे नीतोडकवास्तव्य प्राग्वाटवंशसमुद्भव श्रेष्ठी ब्रह्माकसत्क सत्पुत्रेण देवचं (*) द्रेण अंबा वीर तनुजसमत्वितेन श्रेयोमालानिमित्तं आत्मनः श्रीयुगादिदेवप्रतिमा कारिता श्रीबृहद्गच्छे (*) मेरुकल्पतरुकल्पपूज्यश्री बुद्धिसागरसूरिविनेयानां श्रीअभयदेवसूरीणां शिष्यैः श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठित।। ५. अरिष्टनेमि की प्रतिमा का लेख, नेमिनाथ जिनालय, कुंभारिया, आ०अ० कु०, परिशिष्ट, लेखांक १. ६. विमलवसही, आबू, अ० प्रा० जै०ले०सं०, (आबू-भाग-२) लेखांक ५३. ७. रेसिपथ का मन्दिर, कुंभारिया, आ० अ० कु., परिशिष्ट, लेखांक ३. ८. नेमिनाथ का मन्दिर, कुंभारिया, आ० अ० कु., परिशिष्ट, लेखांक ७. For Personal & Private Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (९) पार्श्वनाथः संवत् १२०५ ज्येष्ठ सुदि ९ भौमे प्राग्वाटवंशज श्रे० नींबकसुत श्रे० सोहिकासत्क सत्पुत्र श्रीवच्छेन श्रीधर निजानुजसहितेन (*) स्वकीयसामंततनूजानुगतेन स्वजननी जेइकाश्रेयसे आत्मकल्याणपरंपराकृतये च अन्येषां चात्मीयबन्धूनां भाग्यहे (?) (*) निवहनिमित्तं श्रीमन्नेमिजिनराजचैत्ये श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं श्रीबृहद्गच्छगगनांगणसोमसमानपू (*) ज्यपादसुगृहीतनामधेयश्रीबुद्धिसागरसूरिविनेयानां श्रीअभयदेवसूरीणां शिष्यैः श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (१०) महावीर चौबीसी-धातु संवत् १२०७ वर्षे माघ सुदि ५ शुक्रे श्रे० वढपाल श्रे० (?) जमदेवाभ्यां श्रेयार्थं पुत्र सालदेवेन भ्रातृ प्रनसिंह समेतेन चतुर्विंशतिपट्टकारित: प्रतिष्ठित बदहछीयैः (बृहद्गच्छीयैः) श्रीशांतिप्रभसूरिभिः। (११) नेमिनाथः ॐ । संवत् १२०८ फागुण सुदि १० रवौ श्रीबृहद्गच्छीयसंविग्नबिहारी (रि) श्रीवर्धमानसूरिशिष्यैः श्रीचक्रेश्वरसूरि (*) भि: प्रतिष्ठितं प्राग्वाटवंशीय श्रे० पूतिग सुत श्रे० पाहडेन वीरक भा० देझली भार्या पुत्र यशदेव पूल्हण पासू पौत्र (*) पार्श्ववधादिमानुषैश्च समेतेन आत्मश्रेयसे आरासनाकरे श्रीनेमिनाथचैत्यमुखमंडपे श्रीने (*) मिनाथबिंबं कारितं इति मंगलं महाश्री:।। (१२) सुपार्श्वनाथः ___संवत् १२१४ फाल्गुन वदि ७ शुक्रवारे श्रीबृहद्गच्छोद्भवसंविग्नविहारिश्रीवर्धमानसूरीयश्रीचक्रेश्वरसूरिशिष्य ------------- श्रीपरमानंदसूरिसमेतैः ------------- प्रतिष्ठितं ॥ तथा पुरा नंदिग्रामवास्तव्यप्राग्वाटवंशोद्भव महं० वरदेव तत्सुत वनुयतत्सुत वाहड तत्सुत ------------ तद्भार्या दुल्हेवीसुतेन आरासनाकरस्थितेन श्रे० कुलचंद्रेण भ्रातृ रावण ९. नेमिनाथ का मन्दिर, कुंभारिया, आ०अ० कु., परिशिष्ट, लेखांक ८. १०. प्रमोद कुमार त्रिवेद्वी “गुजरात से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण जैन प्रतिमायें", पं० दलसुखभाई मालवणिया . अभिनन्दन ग्रन्थ, वाराणसी १९९१ई०, हिन्दी खण्ड, पृष्ठ १७४. ११. नेमिनाथ जिनालय, आरासणा, आ० अ० कु., परिशिष्ट,लेखांक ११. १२. नेमिनाथ का मन्दिर, आरासणा, आ०अ०कु., परिशिष्ट, लेखांक १३. For Personal & Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ बृहद्गच्छ का इतिहास वीरूय पुत्र घोसल पोहडि भ्रातृव्य बुहा० चंद्रादि। तथा पुनापुत्र पाहड (?) वीरा पाहडपुत्र जसदेव पूल्हण पासू तत्पुत्र पारस पासदेव शोभनदेव जगदेवादि वीरापुत्र छाहड आमदेवादि सूमासुत साजन तत्पुत्र प्रभृति गोत्रस्वजनसंतुकं फु (?) पुनदेव सावदेवादि दूल्हेवि राजी सलखणी वाल्हेवि आपी रतनी फूदी सिरी साती रूपिणि देवसिरि प्रभृतिकुटुंबसमेतेन श्रेयोर्थं श्रीअरिष्टनेमिचैत्ये श्रीसुपार्श्वजिनबिंबमिदं कारापितमिति । (१३) पार्श्वनाथः संवत् १२१४ फागुण वदि ७ शुक्रवारे श्रीबृहद्गच्छोद्भवसंविग्नविहारि श्रीवर्धमानसूरीय श्रीचक्रेश्वरसूरिशिष्य ----------- परमानंदसूरिसमेतैः ----------- प्रतिष्ठितं। तथा पुरा नंदिग्रामवास्तव्यप्राग्वाटवंशोद्भवमहं० वरदेव तत्सुत वनुय तत्सुत वाहड तत्सुत --------- तद्भार्या दुल्हेवीसुतेन आरासनाकरस्थितेन श्रे० कुलचन्द्रेण भ्रातृ रावण वीरूयपुत्र घोषल पोहडि भ्रातृत्य बुहा० चन्द्रादि। तथा पुनापुत्र पाहड (?) वीरा पाहडपुत्र जसदेव पूल्हण पासू तत्पुत्र पारस पासदेव शोभनदेव जगदेवादि वीरापुत्र छाहड आमदेवादि सूमासुत साजन तत्पुत्रप्रभृति गोत्रस्वजनसंतुकं फु (?) पुनदेव सावदेवादिदुल्हेवि राजी सलखणी वाल्हेवि आपी रतनी फूदी सिरी साती रूपिणि देवसिरि प्रभृतिकुटुंबसमेतेन श्रेयोर्थं श्रीअरिष्टनेमिचैत्ये श्रीपार्श्वजिनबिंबं कारापितमिति । (१४) नेमिनाथः (१) संवत् १२१५ ॥ वैशाख शुदि १० भौमे वीसाडास्थाने श्रीमहावीर चै(त्ये समु)दा(२) यसहितैः देवणाग नागड जोगडसुतैः देम्हाज धरण जसचंद्र ज(३) सदेव जसधवल जसपालैः श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं । बृह(द्गच्छी) (४) य श्रीमद्देवसूरिशिष्येण पं० पद्मचन्द्रगणिना प्रतिष्ठितं । (१५) शिलालेख (१) संवत् १२१५ वैशाख शुदि १० भौमे वीसाडास्थाने श्रीमहावीरचैत्ये समुदायस(२) हितैः देवणाग नागड जोगडसुतैः देम्हाज धरण जसचंद्र जसदेव १३. नेमिनाथ का मन्दिर, आरासणा, आ० अ० कु., परिशिष्ट,लेखांक १४. १४. पद्मप्रभजिनालय, नाडोल, प्रा० जै० ले०सं०, भाग २, लेखांक ३६४. १५. जैन मन्दिर, नाडोल, प्रा० जै० ले० सं०, भाग २, लेखांक ३६५. For Personal & Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (३) जसधवल जसपालैः श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद(४) च्छीय श्रीमन्मुनिचंद्रसूरिशिष्य श्रीमद्देवसूरिविनेयेन पाणिनीय पं० पद्मचं(५) द्रगणिना यावद्दिवि चंद्ररवी स्यातां धर्मो जिनप्रतीतोस्ति ताव(ज्जी)यादेत (६) (ज्जि)नयुगलं वीरजिनभुवने।। (१६) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी ॥ सं. १२१५ माघ वदि ४ शुक्रे। सागरतनुजयशोभद्रनामा श्रीपार्श्वनाथजिनपिंपं (बिंबं) । पुत्र यश:पालच्छिरदेवीभार्या सप्तं चक्रे ॥ श्रीहेमचन्द्रसूरि (णा) प्रत्रि (ति) ष्टि (ष्ठि) तं।। (१७) शिलालेख संवत् १२१६ वैशाख सुदि २ श्रे० पासदेवपुत्र वीरापुनाभ्यां भ्रातृजेहडश्रेयो) श्रीपार्श्वनाथप्रतिमेयं कारिता श्रीनेमिचन्द्राचार्यशिष्यैः श्रीदेवाचार्यै: प्रतिष्ठिता।। (१८) शांतिनाथ-पंचतीर्थी ॥ संवत् १२२० आषाढ़ सुदि १० श्रीबृहद्गच्छे श्रे० जसहड़ पुत्र दूसलेन माता प्रियमति श्रेयार्थं शांतिनाथ प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता सूरिभिः। (१९) तीर्थंकर-पंचतीर्थी सं. १२२७ (?) ठ० --------------- बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधनेश्वरसूरिभिः।। (२०) जिनप्रतिमा-पंचतीर्थी संवतु १२३४ गोला भत सावड़ तत्पुत्र थिरादेवेन सावड़ श्रेयोर्थं प्रतिमाकारिता बृहद्गच्छीयैः श्रीधनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता । १६. सीमंधरस्वामी का मंदिर, तालावाले की पोल, सूरत, प्रा०ले०सं०, लेखांक १८. १७. पार्श्वनाथ का मंदिर, कुंभारिया, आ० अ० कुं०, परिशिष्ट, लेखांक ४-९१. १८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक ८४. १९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ८९. २०. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ९१. For Personal & Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ बृहद्गच्छ का इतिहास (२१) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी संवत् १२३६ वर्षे फागुण वदि ३ गुरौ श्रे० वोसरि सुत वरश्रावक आसदेवस्य स्वपितुः श्रेयो) लिंबदेवआस ------------- पार्श्वनाथबिंबं कारितं बृहद्गच्छीय श्रीअभयदेवसूरिविनेय श्रीजिनभद्रसूरि श्रीधनेश्वरसूरिभिः श्रीधृतिप्रदं प्रतिष्ठितं मंगलं महाश्रीः। (२२) पाषाण मातृपट्टिका पट्टः श्री शं. ........ ........................१२३८ वर्ष माघ सुदि ३शनौ श्रीसोमप्रभसूरिर्जिनमातृपट्टिका प्रतिष्ठिता..............................त्राभ्यां राजदेव । रत्नाभ्यां स्वमातु.... ...............॥ कल्याणमस्तु श्रीसंघस्य ॥ (२३) शिलालेख ___ संवत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ श्रीबृहद्गच्छेश्रीमदारासणसत्क श्रीयशोदेवसूरिशिष्य श्रीदेवचंद्रसूरिभिः श्रीश्रेयांसप्रतिमा प्रतिष्ठिता। प्राग्वाटज्ञातीय महामात्य श्रीपृथ्वीपालसत्कप्रतीहार पूनचंद ठ० धामदेव भ्रातृ सिरपाल भ्रातृव्यक देसल ठ० जसवीर धवल ठ० देवकुमार ब्रह्मचंद्र ठ० आमचंद्र लखमण गुणचंद्र परमार वनचंद्र ठ० डुंगरसी आसदेव ठ० चाहड गोसल बीसल रामदेव आसचंद्र जाजा प्रभृतीनां ॥ (२४) पार्श्वनाथः संवत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ श्रीबृहद (गच्छे) श्रीमदारासनसत्क श्रीयशोदेवसूरिशिष्य श्रीदेवचंद्रसूरिभिः श्रीधर्मनाथप्रतिमा प्रतिष्ठिता। (२५) कुन्थुनाथः संवत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ श्रीयशोदेवसूरिशिष्यैः श्रीदेवचंद्रसूरिभिः श्रीकुंथुनाथ प्रतिमा प्रतिष्ठिता। (२६) मल्लिनाथः संवत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ श्रीयशोदेवसूरिशिष्यैः श्रीदेवचंद्रसूरिभिः श्रीमल्लिनाथप्रतिमा प्रतिष्ठिता। २१. नेमिनाथ का मंदिर, कुंभारिया, आ० अ० कुं० जी तीर्थ, लेखांक १५. २२. देवकुलिका क्रमांक ५५ शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय, शेखेश्वर - शं.म.ती., लेखांक-९, पेज-१८४ २३. विमलवसही, आबू, प्रा०जै० ले०सं०, भाग २, लेखांक १९२. २४. विमलवसही, आबू, प्रा० जै०ले०सं०, भाग २, लेखांक १९५. २५. विमलवसही, आबू, प्रा० जै०ले०सं०, भाग २, लेखांक २००. विमलवसही, आबू, प्रा००ले०सं०, भाग २, लेखांक २०४. For Personal & Private Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २१७ (२७) वासुपूज्यः संवत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ श्रीबृहद्गच्छे श्रीमदारासन सत्क श्रीयशोदेवसूरिशिष्यैः श्रीदेवचंद्रसूरि-भिर्वासुपूज्यप्रतिमा प्रतिष्ठिता । (२८) अजितनाथः संवत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ श्रीयशोदेवसूरिशिष्यैः श्रीदेवचंद्रसूरिभिः श्रीअजितनाथप्रतिमा प्रतिष्ठिता। (२९) नेमिनाथः संवत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ श्रीबृहद्गच्छे श्रीमदारासनक सत्क श्रीयशोदेवसूरि शिष्यैः श्रीदेवचंद्रसूरिभिः श्रीनेमिनाथप्रतिमा प्रतिष्ठिता कारिता च पुत्र महं० आमवीर श्रेयोर्थं ठ० श्रीनागपालेन। (३०) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थीः ___ सं० १२४९ ज्येष्ठ सु० १०श्री ऊकेशवंशीय संघपति सावडभार्या धणसी श्रेयसे तत्पुत्रेः नारद प्रभृतिभिः श्रीपार्श्वनाथबिंब (बं) कारित (तं) श्री बृहद्गुरु श्री मुनिरत्नसूरिभिः। (३१) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थीः ____संवत् १२५१ वैशाख सुदि ९ श्रीवच्छ भार्या सूहव तत्पुत्र आसदेव यशोदेव य (श) श्चंद्र श्रीवच्छेन आत्मश्रेयोर्थं बिंब कारितं प्र० श्रीदेवाचार्यांयश्रीहेमसूरिभिः।। (३२) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थीः सं. १२६० वर्षे आषाढ़ वदि २ सोमे बृहद्गच्छे श्रे० राणिगेन पुत्र पाल्हण देल्हण जाल्हण आल्हण सहितेन भार्या वासली श्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं हरिभद्रसूरि शिष्यैः श्रीधनेश्वरसूरिभिः।।। २७. विमलवसही, आबू, प्रा० जे०ले०सं०, भाग २, लेखांक २०५. २८. विमलवसही, आबू, प्रा०जै०ले०सं०, भाग २, लेखांक २०७. २९. विमलवसही, आबू, प्रा०० ले०सं०, भाग २, लेखांक २०८. ३०. वासुपूज्य जिनालय, शेख पाडो,अहमदाबाद, Jain Image linscripations of Ahmedabad - (JII A) ३१. महावीरस्वामी का मंदिर, अजारी, अ० प्रा० जै० ले०सं०, (आबू, भाग ५) लेखांक ४१६. ३२. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर, बी० जै० ले०सं०, लेखांक १०५. For Personal & Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ बृहद्गच्छ का इतिहास (३३) शिलालेख (१) ओं ॥ संवत् १२२१ श्रीजावालिपुरीयकांचर्नी (ग) रिगढस्योपरि प्रभुश्रीहेमसूरिप्रबोधितश्रीगूजर-धराधीश्वरपरमार्हतचौल्लक्य (२) महारा(ज)ाधिराजश्री (कु) मारपालदेवकारिते श्रीपा (4) नाथसत्कम(ल) विव (बिंब)सहितश्रीकुवरविहाराभिधाने जैनचैत्ये। सद्विधिप्रव (त)नाय वृ(बृ)हद्गच्छीयवा (३) दींद्रश्रीदेवाचार्याणां पक्षे आचंद्राकर्क समर्पिते ।। सं० १२४२ वर्षे एतद्देसा(शा) धिपचाहमानकुलतिलकम- हाराजश्रीसमरसिंहदेवादेशेन भां० पासूपुत्र भां० यशो (४) वीरेण स(मु)द्धृते श्रीमद्राजकुलादेशेन श्रीदे(वा)चार्यशिष्यैः श्रीपूर्णदेवाचार्यैः। सं० १२५६ वर्षे ज्येष्ठसु० ११ श्रीपार्श्वनाथदेवे तोरणादीनां प्रतिष्ठाकायें कृते। मूलशिख (५) रे व (च) कनकमयध्वजादंडस्य ध्वजारोपणप्रतिष्ठायां कृतायां ॥ सं० १२६८ वर्षे दीपोत्सवदिने अभिनव-निष्पन्नप्रेक्षामध्यमंडपे श्रीपूर्णदेवसूरिशिष्यैः श्रीरामचंद्राचार्य (:) सुवर्णमयकलसारोपणप्रतिष्ठा कृता॥ सु (शुभं भवतु ॥ (३४) तीर्थङ्कर की धातु प्रतिमा सं. १२७३ ठ० ------------------ य बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधनेश्वरसूरिभिः। (३५) आदिनाथ-पंचतीर्थीः संवत् १२७५ ज्येष्ठ सुदि १३ भौमे श्रे० साढापुत्रहरिश्चन्द्रेण स्वश्रेयोऽर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छीयश्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीधनेश्वरसूरिभिः ॥ (३६) धातु-प्रतिमा . __सं. १२७९ वैशाख सुदि ३ बुधे श्रे० आसधर पुत्र बहुदेव वोडाभ्यां भगिनी भूमिणि सहिताभ्यां स्व श्रेयोर्थं प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता श्रीहरिभद्रसूरि शिष्यैः श्रीधनेश्वरसूरिभिः।। ३३. तोपखाना, जालोर, प्रा० जै० ले०सं०, भाग २, लेखांक ३५२. ३४. भण्डारस्थ जिनप्रतिमा, चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ११४. ३५. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात, जै०धा०प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक ५५५. ३६. भण्डारस्थ जिनप्रतिमा, चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले० सं०, लेखांक ११६. For Personal & Private Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१९ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (३७) आदिनाथ-पंचतीर्थी : __सं. १२८४ वैशाख वदि सोमे श्रीमालज्ञातीय श्रे० जसवीरेण जीवितस्वामी श्रीआदिनाथ कारापितं बृहद्गच्छे श्रीधर्मसूरि शिष्य श्रीधनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठित।। (३८) शिलालेख __संवत् १२८८ वर्षे चैत्र वदि ३ शुक्रे धर्कटवंशीय वाहटि सुत श्रे० भानू सुत श्रे० भाइलेन श्रे० लिंबा भ्रातृ केल्हण देदा अचल भावदेव बाहड़ भादा वोहडि वोसरि पाल्हण कोहल सांवत जक्षदेव धीणा ।। ऊधरण जगसीह विजय (सिं) सीह भोजा प्रभृति कुट(टुं)ब सहितेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं ॥ प्रतिष्ठितं वृ(बृ)हद्गच्छीय वादि श्रीदेवसूरिसंताने श्रीपूर्णभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपद्मदेवसूरिभिः ॥ (३९) चतुर्विंशतिपट्ट : ___ संवत् १२९० वर्षे माघ सुदि ५ शुक्रे श्रे० वढपाल श्रे० जगदेवाभ्यां श्रेयो) पुत्र सामदेवेन भ्रातृ पून सिंह समेतेन चतुर्विंशति पट्ट कारितः प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छीयैः श्रीशांतिप्रभसूरिभिः।। (४०) देवकुलिका का लेख ॥ स्वस्ति श्रीनृपविक्रमसंवत् १२९३ वर्षे चैत्र वदि ८ शुक्रे अद्येह श्रीअर्बुदाचलमहातीर्थे अणहिल (ल्ल) पुरवास्तव्य श्रीप्राग्वाटज्ञातीय ठ० श्रीचंडप ठ० श्रीचं (*) ॥ ड प्रसाद महं० श्रीसोमान्वये ठ० श्रीआसराज सुत महं० श्रीमल्लदेव महं० श्रीवस्तुपालयोरनुज मह० श्रीतेजःपालेन कारित श्रीलूणसीहवसहि (*) ॥ कायां नेमिनाथदेवचैत्ये जगत्यां चंद्रावतीवास्तव्य प्राग्वाट्ज्ञातीय महं० कउडि सुत श्रे० साजणेन स्वपितृव्यकसुत भ्रातृ० वरदेव । कडूया । धामा (*) देवा सीहड। तथा भ्रातृज आसपाल प्रभृतिकुटुम्बसहितेन श्रीनागेन्द्रगच्छे श्रीविजसेनसूरिप्रतिष्ठित ऋषभदेवप्रतिमालंकृता देवकुलिकेयं कारिता ॥छ।। (*) बाई देवइ । तथा रतनिणि । तथा झणकू । तथा वडग्रामवास्तव्य प्राग्वाट्ज्ञातीय व्यव० मूणचन्द्र भार्या लीविणि मांटवास्तव्य व्यव० जयता। ३७. भण्डारस्थ जिनप्रतिमा, चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक १२३. ३८. विमलवसही, आबू, अ० प्रा० ० ले० सं०, (आबू - भाग -२) लेखांक १२५. ३९. रेनूपुर तीर्थ, मारवाड़, जै० ले०सं०, भाग १, लेखांक ७०२., जैनमन्दिर, राणकपुर, प्रा०ले० सं०, लेखांक ३५. ४०. लूणवसही, आबू अ० प्रा० ० ले०सं० (आबू - भाग २), लेखांक २८९. For Personal & Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० बृहद्गच्छ का इतिहास आंबवीर । विजइपाल । (*) ॥ दूती वीरा । साजण भार्या जालू । दुती सरसइ श्रीवडगच्छे श्रीचक्रेश्वरसूरिसंतानी(य)स्रा(श्रा)वक साजणेन कारिता । (४१) पार्श्वनाथः सवंत् १२९३ वर्षे श्रीवृ (ब) हद्गच्छे वादिश्रीदेवसूरिसंताने श्रे० भइल.....पु० भाटा (दा ?)केन श्रीपार्श्वनाथ बिंब करितं। प्रतिष्ठितं श्रीपद्मदेवसूरिभि ॥छ।। (४२) शिलालेख ०। संवत् १३०५ वर्षे वैशाख शुदि ३ शनौ श्रीपत्तनवास्तव्य श्रीमालज्ञातीय ठ० वा (चा) हड सुत महं० पद्मसिंह पुत्र ठ० पथिमिदेवी अंगज (महणसिंहा) नुज महं० श्रीसामतसिंह तथा महामात्य श्रीसलखणसिंहाभ्यां श्रीपार्श्वनाथबिंबं पित्रोः श्रेयसेत्र कारितं ततो बृहद्गच्छे श्रीप्रद्युम्नसूरिपटोद्धरण श्रीमानदेवसूरि शिष्य श्रीजयानं (द सूरिभिः) प्रतिष्ठितं ॥ (४३) महावीरः संवत् १३०७ वर्षे ज्येष्ठवदि ५ गुरौ श्रीबृहद्गच्छे वादि श्रीदेवसूरिसंताने श्रे० भाइल सुत वोसरिणा श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णभद्रसूरिशिष्यैः श्री(ब्रह्मदेवसूरिभिः।। छ । (४४) शिलालेख ॐ । संवत् १३१० वर्षे चैत्र वदि २ सोमे प्राग्वाटान्वय श्रे० छाहड़भार्या वीरीपुत्र श्रे ब्रह्मदेवभार्या लषमिणि भ्रातृ श्रे० सरणदेवभार्या सूहवपुत्र श्रे० वीरचंद्रभार्या सुषमिणि भ्रातृ श्रे० पासडभार्या पद्मसिरि भ्रातृ श्रे० आंबडभार्या अभयसिरि भ्रातृ श्रे० राम्बण १ पूनाभार्या सोहगपुत्र आसपाल भार्या वस्तिणिपुत्र बीजापुत्र महणसीहपुत्र जयतापुत्र कर्मसीहपुत्र अरसीह लूणसीभार्या हीरूपुत्र पुनासहितेन श्रीनेमिनाथचैत्ये श्रीसत्तरिसयबिंबान् कारापितः ॥ बृहद्गच्छीयश्रीअभयदेवसूरिसि(शि)ष्यः श्री जिनभद्रसूरि(शिष्यः श्रीशांतिप्रभ४१. हस्तिशाला, विमलवसही, आबू, अ० प्रा० जे०ले०सं० (आबू, भाग २), लेखांक २३१. ४२. पार्श्वनाथ की प्रतिमा के नीचे चरणचौकी पर उत्कीर्ण लेख, वस्तुपाल द्वारा निर्मित मंदिर, गिरनार, प्रा०जै० ले०सं०, भाग २, लेखांक ५३. ४३. लूणवसही, अ० प्रा० जै० ले०सं०, (आबू भाग २), लेखांक ३३३. ४४. नेमिनाथ मंदिर, कुंभारिया, आ०अ० कु०, परिशिष्ट, लेखांक १८. For Personal & Private Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २२१ सूरिसि(शिष्यः श्रीरत्नप्रभसूरि(शिष्यः श्रीजिनभद्रसूरि सि (शिष्यः श्री शांतिप्रभसूरिसि (शिष्यः श्रीरत्नप्रभसूरि (शि)ष्यः श्रीहरिभद्रसू(रि) शिष्यः श्रीपरमानन्दसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ शुभं भवतु श्रीसंघस्य कारापकस्थ देवगुरुप्रसादात् ॥ (४५) शांतिनाथ-पंचतीर्थीः सं. १३१० ------------------- शुदि ८ शुक्रे प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० उदा भार्या आल्हदेवि ------------ श्रीशांतिबिंब कारितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीमानदेवसूरिभिः।। (४६) यंत्रलेख संवत् १३१० सत्तरीसययंत्रक (कं) बृहद्गच्छी (य) श्रीअभयदेवसूरिशिष्य श्रीजिनभद्रसूरिशिष्य श्रीशांतिप्रभसूरिशिष्य श्रीहरिभद्रसूरिशिष्य श्रीपरमाणंदसूरिभिः प्रतिष्ठित।। (४७) आदिनाथः ___ॐ । सं. १३१४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि सोमे आरासनाकरे श्रीनेमिनाथचैत्यै बृहद्गच्छीय श्रीशांतिप्रभशिष्यैः श्रीरत्नप्रभसरिपट्टे श्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपरमानंदसूरिभिः प्रतिष्ठितं प्राग्वाटान्वये श्रे० माणिभद्रभार्या माऊ पु० थिरदेव धामडभार्या कुमारदेविसुत आसचंद्र वा० मोहिणि चाहिणि, सीतू दि० भार्या लखमिणी पुत्र कुमरसीहभार्या लाडीपुत्र कडुआ पु० कर्मिणि जगसीहभार्या सहजू पु० आसिणि बाइ आल्हणिकुटुंबसमुदायेन श्रे० कुमारसीह जगसीहाभ्यां पितृ-मातृश्रेयोर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च मंगलमस्तु श्रमणसंघस्य कारापकस्य च।। शुभमस्तु ॥ (४८) शिलालेख ॐ । संवत् १३१४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ सोमे आरासनाकरे श्रीनेमिनाथचैत्ये बृहद्गच्छीय श्रीशांतिप्रभसूरिशिष्य श्रीरत्नप्रभसूरिशिष्य श्रीहरिभद्रसूरिशिष्य श्रीपरमानंदसरिभिः प्रतिष्ठितं प्राग्वाटान्वय श्रे० मणिभद्रभार्या माऊपुत्र थिरदेव धामड थिरदेवभार्या रूपिणि पुत्र वीरचंदभार्या वाल्ही सु० वीदाभार्या सहजूसुत वीरपालभार्या रत्निणिसुत आसपाल बाइ ४५. भाभापार्श्वनाथ देरासर, पाटण, जै० घा०प्र० ले०सं०, भाग १, लेखांक २२६. ४६. जैन मंदिर, आरासणा, मुनि विशालविजय, आ०अ० कु०, लेखांक ७, तथा अ०प्र० जे०ले०सं०, (आबू- भाग ५), लेखांक २५. ४७. आ० अ० कु०, परिशिष्ट, लेखांक २१. ४८. वही, लेखांक २२. For Personal & Private Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ बृहद्गच्छ का इतिहास पूनिणि सुषमिणि भ्रा० श्रे० आदाभार्या आसमति पुत्र अमृतसीहभार्या राजल लघुभ्रातृ अभयसीह भार्या सोल्हू द्वि. वील्हूपुत्र खीमसीह सोमसीह पु० रयण फू० अमलबाइ वयजूचांदू श्रे० आदासुत अभयसीहेन पितृमातृश्रेयार्थं आदिनाथ जिनयुगलबिंबं कारित।। मंगलमस्तु श्रीश्रमणसंघस्य कारापकस्य च ॥ (४९) महावीर पंचतीर्थी : ___ॐ श्रे० शुभंकर भार्या देवुः तयोः पुत्रेण श्रे० सोमदेवेन भार्या पूनादेवि पुत्र वच्छ नागदेवादियुतेन आत्मश्रेयोर्थं श्रीवीरजिनबिंब कारितं । संवत १३१६ चैत्र वदि ६ भौमे श्रीबृहद्गच्छीय श्रीउद्योतनसूरिशिष्यैः श्रीहरिभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (५०) शिलालेख ___ॐ । संवत् १३२३ वर्षे माघशुक्लषष्ठयां ६ प्राग्वाटवंशोद्भवनिजसद्गुरुपदपद्मार्चनप्रणामरसिकः श्रे० माणिभद्रभार्या माऊ ( )सुत थिरदेव-निव्यूढसर्वज्ञपदाब्जसेव: श्रे० धामड: भार्या सच्छीलगुणाद्यलंकरणैर्निरवद्याद्या कुमरदेवि पु० आसचंद्र मोहिणि चाहिणि (*) सीतू द्वि० भार्या लाडी पु० कर्मिणि द्वि० जगसिंहः तद्भार्या प्र० सहज् द्वि० अनुपमा सु० पूर्णसिंहः सुहडादेवि वा० माल्हणि समस्तकुटुंबसहिताभ्यां आरासनाकरसरोवरराजहंससमानश्रीमन्नेमिजिनभुवने विमलशरन्निशाकराभ्यां श्रे० (*) कुमारसिंह जयसिंहाभ्यां स्वदोर्दण्डोपात्तवित्तेन शिवाय लेखितशासनमिव श्रीनंदीश्वरवरः कारितः ॥ तथा द्रव्यव्ययात् कृतमहामहोत्सवप्रतिष्ठायां समागतानेकग्रामनगरसंघसहितेन श्रीचंद्रगच्छगगनांगणभूषणपार्वणशरश्चंद्रसन्निभपूज्य (*) पदपद्मश्रीशांतिप्रभसूरिविनेय श्रीरत्नप्रभसूरितच्छिष्यविद्वञ्चक्रचूडामणि श्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपरमानंदसूरिभिः प्रतिष्ठितः। मंगलमस्तु समस्तसंघस्य कारापकस्य च।। (५१) महावीर-पंचतीर्थी सं० १३२७ फा०सु० ८ ---------- पलीवालज्ञातीय ---------- कुमरसिघ भार्या कुमरदेवि सुत सामंत भार्या सिंगारदेवि पित्रोः पुण्यार्थं --------- विक्रमसिंह ठ० लूणा ठ० सांगाकेन श्रीमहावीरबिंबं का०प्र० वडगच्छे कूबडे श्रीपडोचंद्रसूरिशिष्य श्रीमाणिक्यसूरिभिः।। ४९. शांतिनाथ मंदिर, नागौर, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ७०. ५०. आ० अ० कु. लेखांक २४. ५१. चौमुखीजी देरासर, अहमदाबाद, जै० धा०प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक १३७. For Personal & Private Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (५२) नेमिनाथ पंचतीर्थी ॐ ।। सं० १३३१ ज्येष्ठ सुदि ११ श्रीबृहद्गच्छे प्राग्वाटवंशे सा० धणदेव संताने श्रे० छूहदेव पुत्र श्रे० सांति पुत्र श्रे० सालिग पुत्र श्रे० आमकुमार पुत्र श्रे० संकर पुत्र श्रे० चाहड भार्या रीठी पुत्र झांझणजगडाभ्यां सकलनिजकुटुम्बश्रेयसे श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीपरमानन्दसूरिभिः ।। (५३) तीर्थंकर - पंचतीर्थी : सं० १३३४ वैशाख सुदि ५ गुरौ श्रे० गदा भार्या सुखमिणि सुत पस्ता तेजा भा। बिंबंकारिता प्रति श्री हरिभद्रसूरि शि० श्रीपरमाणंदसूरिभिः ॥ २२३ (५४) पार्श्वनाथ पंचतीर्थी : ११ सं० १३३४ वर्षे वैशाख सुदि १० श्रीबृहद्गच्छे श्रीधर्कटवंशे सा० देवचंद्र भार्या धणसिरी पुत्र सा० वानरेण भार्या लाडी पुत्र खेता तथा देदा पिथिमसीहु चांगदेव प्रभृति कुटुंब सहितेन पूर्वज श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारिता प्रतिष्ठितं च श्रीजयदेवसूरि शिष्यैः श्रीमाणदेव (सूरिभि:) (५५) सुपार्श्वनाथः ॐ । संवत् १३३५ मार्ग वदि १३ सोमे पोषपुरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीयठक्कर श्रीदेवसावडसंतानीय श्रे० सोमाभार्या जयतुपुत्र सादाभार्या लखमीपुत्र सालिगभार्या ( * ) कडूपुत्र खिताभार्या लूणीदेवीसहितेन सुपार्श्वबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छीय श्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपरमानंदसूरिभिः श्रेष्ठिसोमासुत प्रा० छाडाकेन कारापितं ॥ (५६) आदिनाथः संवत् १३३५ वर्षे माघ सुदि १३ शुक्रे श्रे० अभइभार्या अभयसिरिपुत्र कुलचन्द्रभार्या ललतुपुत्र बूटाभार्या सरसर तथा सुमणभार्या सीतूपुत्र सोहड नयणसी लूणं (*) सीह खेतसीह सोढलप्रमुखकुटुंबसमुदायेन श्री ऋषभबिंबं पित्रोः श्रेयार्थं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छ श्रीविजयसिंहसूरिसंताने श्रीश्रीचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीवर्द्धमानसूरिभिः ।। ५२. नेमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, पार्श्वनाथ मंदिर, बूंदी, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ८०. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक १८४. ५४. वही, लेखांक १८५. ५३. ५५. नेमिनाथ का मंदिर, कुंभारिया, आ० अ० कु०, ५६. नेमिनाथ जिनालय, कुंभारिया, वही, परिशिष्ट, लेखांक २९. परिशिष्ट, लेखांक २७. For Personal & Private Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ बृहद्गच्छ का इतिहास (५७) आदिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १३३५ माघ सुदि १३ शुक्रे प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० गोसलसुत साजणभार्या पदमु तत्पुत्रिकया खेतुश्राविकया स्वश्रेयोर्थं श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठित बृह० श्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपरमानन्दसूरिभिः ॥ (५८) शिलालेख ___ संवत् १३३५ माघ सुदि १३ शुक्रे प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० वयजाभार्या- लूड तत्पु-----भार्यया अनुपमश्राविकया स्वश्रेयोर्थं मुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृह० श्रीपरमानंदसूरिभिः।। (५९) देवकुलिका का लेख संवत् १३३५ वर्षे माघ सुदि १३ चंद्रावत्यां जालणभार्या -------- भार्या मोहिनीसुत सोहड भ्रातृसांगाकेन आत्मश्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारपितं प्रतिष्ठतं च वर्धमानसूरिभिः ।। (६०) अजितनाथः ॐ । सं० १३३५ माघ सुदि------ शुक्रे प्राग्वाटज्ञा० श्रे० सोमाभार्या माल्हणिपुत्राः वयर श्रे० अजयसिंह छाडा सोढा भार्या वास्तिणि राज (*) ल छाडु धांधलदेवि सुहडादेविपुत्र वरदेव झांझण आसा कडुवा गुणपाल पेथाप्रभृतिसमस्तकुटुंबसहिताभ्यां छा (*) डा-सोढाभ्यां पितृ-मातृ-भ्रातृ अजाश्रेयोर्थं श्रीअजितस्वामिबिंब देवकुलिकासहितं कारितं प्रतिष्ठितं बृह० श्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपरमानन्दसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ (६१) शिलालेख ___ संवत् १३३७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ शुक्रे बृहद्गच्छीय श्रीचक्रेश्वरसूरिसंताने पूज्यश्रीसोमप्रभसूरिशिष्यैः श्रीवर्धमानसूरिभिः श्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं कारितं श्रेष्ठि आसलभार्या मंदोदरी तत्पुत्र श्रेष्ठि गला भार्या शीलू तत्पुत्र मेहा तदनुजेन साहु खांखणेन निजकुटुंबश्रेयसे स्वकारितदेवकुलिकायां स्थापितं च ॥ मंगलमहाश्रीः । भद्रमस्तु । ५७. नेमिनाथ का मंदिर, कुंभारिया, वही, परिशिष्ट, लेखांक ३१. ५८. नेमिनाथ का मंदिर, कुंभारिया, वही, परिशिष्ट, लेखांक ३२. ५९. नेमिनाथ का मंदिर, आरासणा, अ०प्र० जै० ले०सं०, (आबू- भाग ५), लेखांक २९. ६०. नेमिनाथ का मंदिर, कुंभारिया, आ०अ० कु०, परिशिष्ट, लेखांक २६. तथा अ०प्र० जे०ले०सं० (आबू, भाग ५), लेखांक २८. ६१. देवकुलिका का लेख, नेमिनाथ मंदिर, आरासणा, प्रा० जे०ले०सं०, भाग २, लेखांक २९२. For Personal & Private Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २२५ (६२) शिलालेख संवत् १३३८ ज्येष्ठ सुदि १४ शनौ श्रीनेमिनाथचैत्ये बृहद्गच्छीय श्रीरत्नप्रभसूरिशिष्य श्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपरमानन्दसूरिभिः प्रतिष्ठितं प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० शरणदेवभार्या सुहडदेवी तत्पुत्र श्रीवीरचंद्रभार्या सुषमिणिपुत्र पुना भार्या सोहगदेवी (पुत्र) आंबडभार्या अभयसिरि पुत्र बीजा खेता रावण भार्या हीरू पुत्र बोडसिंह भार्या जयतलदेवी प्रभृति स्वकुटुंबसहितैः रावणपुत्रैः स्वकीयसर्वजनानां श्रेयोऽर्थं श्रीवासुपूज्यदेवकुलिकासहितं कारितं प्रतिष्ठापितं च । (६३) चन्द्रप्रभः संवत् १३३८ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १४ शुक्रे बृ० श्रीकनकप्रभसूरिशिष्यैः श्रीदेवेन्द्रसूरिभिः श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं प्रतिष्ठितं प्रा (*) ग्वाटज्ञातीय श्रे० शुभंकरभार्या संतोसपुत्र श्रे० पूर्णदेव पासदेवभार्या धनसिरिपुत्र श्रे० कुमरसिंहभार्या सील्हूपुत्र महं झांझणानुजमहं० (*) जगस तथा श्रे० पासदेवभार्या पद्मसिरिपुत्र श्रे० बूटा श्रे० लूगा इति महं झांझणपुत्र काल्हू महं जगसभार्या रूपिणिपुत्रकडूया वयजल अभयसिंह (*) पु० नागल जासल देवलप्रभृतिकुटुंबसमन्वितेन महं जगसाखे (ख्ये) न मातृ-पितृ-भ्रातृश्रेयो) बिंबं कारितं ॥ (६४) वासुपूज्यः संवत् १३३८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ श्रीनेमिनाथचैत्ये बृहद्गच्छीय श्रीरत्नप्रभसूरिशिष्य श्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपरमानन्दसूरिभिः प्रतिष्ठितं प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० शरणदेवभार्या सुहडदेवी तत्पुत्र श्रीवीरचन्द्रभार्या सुषमिणीपुत्र पुनाभार्या सोहगदेवी आंबडभार्या अभयसिरिपत्र बीजा खेता रावणभार्याहीरूपुत्र वोडसिंहभार्या जयतलदेवीप्रभृतिस्वकुटुंबसहितैः रावणपुत्रैः स्वकीयसर्वजनानां श्रेयोऽर्थं श्रीवासुपूज्य (देव) देवकुलिकासहितं प्रतिष्ठापित च ॥ (६५) शिलालेख सं० १३३८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ शुक्रे श्रीनेमिनाथचैत्ये संविज्ञविहारिश्रीचक्रेश्वरसूरिसंताने श्रीजयसिंहसूरिशिष्य-श्रीसोमप्रभसूरिशिष्यैः श्रीवर्द्धमानसूरिभिः प्रतिष्ठितं। आरासण (णा) ६२. देवकुलिका का लेख, नेमिनाथ जिनालय, आरासणा, प्रा० ०ले०सं०, भाग २, लेखांक २९०. विजय, पूर्वोक्त, लेखांक १५. ६३. आ०अ० कु०, लेखांक ३६. ६४. नेमिनाथ जी का मंदिर, आरासणा, अ०प्र०० ले०सं० (आबू, भाग ५), लेखांक ३२ तथा मुनि . विशाल विजय, पूर्वोक्त, लेखांक १४. ६५. नेमिनाथ जी का मंदिर, आरासणा, अ०प्र०० ले०सं० (आबू, भाग ५), लेखांक ३१, मुनि विशाल विजय, पूर्वोक्त, लेखांक १३. For Personal & Private Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ बृहद्गच्छ का इतिहास करवास्तव्य (*) प्रागवाटज्ञातीय श्रे० गोनासंताने श्रे० आमिग भार्या रतनी पुत्र तुलहारि आसदेव भ्रा० पासड तत्पुत्र सिरिपाल तथा आसदेवभार्या सहजू पुत्र तु० आसपालेन भा० धरणि --------- सीत्त सिरिमति तथा (*) आसपालभार्या आसिणि पुत्र लिंबदेव हरिपाल तथा धरणिग भार्या --------------- ऊदा भार्या पाल्हणदेविप्रभृतिकुटुंबसहितेन श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं आश्वावबोधसमलिकाविहार-तीर्थोद्धारसहितं कारितं ।। मंगलमहाश्रीः ।। (६६) शिलालेख संवत् १३३८ ज्येष्ठ सुदि १४ शुक्रे बृहद्गच्छीय श्रीचक्रेश्वरसूरिसंताने पूज्यश्रीसोमप्रभसूरिशिष्यैः श्रीवर्धमानसूरिभिः श्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं कारितं श्रेष्ठिआसलभार्या मंदोदरी तत्पुत्र श्रेष्ठि गलाभार्या शीलू तत्पुत्र मेहा तदनुजेन साहुखांखणेन निजकुटुंबश्रेयसे स्वकारितदेवकुलिकायां स्थापितं च। मंगलं महाश्रीः । भद्रमस्तु । (६७) शांतिनाथः ___ संवत् १३३८ ज्येष्ठ सुदि १४ सत् महं सोमा पुत्र तद्भार्यया जासल नाम्न्या स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रति० बृहद्गच्छीय श्री वारि ? चन्द्रसूरि शिष्य श्रीपरमानंदसूरि । (६८) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३३९ फागु(ल्गु)ण सु० ८ श्रीबृहद्गच्छे श्रीश्रीमालवंशे सा० सादा भार्या माकू पुत्र धणसी (सिं)हभार्या चांपल पुत्र भीम अर्जुन भीमभार्या नीनू पितृश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्र० माण(न)देवसूरिभिः ।। (६९) महावीर-पंचतीर्थी : सं० १३४१ वर्षे महा० वुहड़ भा० कपूरदे पु० जगपालेन आ० जाल्हणदे पु० गंगा सहितेन श्री महावीर: का०प्र० श्रीपरमानंदसूरिभिः ।। ६६. ६७. ६८. ६९. नेमिनाथ जी का मंदिर, आरासणा, अ०प्र० जै० ले०सं० (आबू, भाग ५), लेखांक ३३. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक १९१. जैन मंदिर, लींच, प्रा०ले०सं०, लेखांक ४५. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै०ले०सं०, लेखांक १९७. For Personal & Private Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २२७ (७०) नेमिनाथः सं० १३४३ माघ सुदि १० शनौ बृ० श्रीहरिभद्रसूरिशिष्यैः श्रीपरमानंदसूरिभिः प्रतिष्ठितं प्राग्वाटज्ञा० श्रे० माहिल्लपुत्र श्रे० थिरदेव श्रे० धामड थिरदेवभार्या माउ (*) पुत्र वीरचंद्र आद्यभार्या आसमतिपुत्र श्रे० अभयसिंह भार्या सोदु द्वि० वील्ह (ण) पुत्र भीमसिंह खीमसिंह देवसिंह नरसिंह वील्हणपुत्रिका हीरल प्रथमपुत्र प(*)। --------- लिंबिणिपुत्र जयतसिंह द्वि० पुत्र भार्या खेतलदेवि पु० रिणू तृती० भार्या देवसिरिपुत्र सामंतसिंह चतु० भार्या ना---------- देवी पंचमभार्या विजयसिरि पभृतिकुटुंबसहितेन श्रीनेमिनाथबिंबं श्रीमद्रिष्टनेमिभवने आत्मश्रेयोर्थं श्रेष्ठिवीरचंद्रेन कारितं ॥ (७१) शिलालेख ॥ ॐ ॥ प्राग्वाटवंशे श्रे० वाहडेन श्रीजिन(*)चंद्रसूरिसदुपदेशेन पादपराग्रामे उं(*)देरवसहिकाचैत्यं श्रीमहावीरप्रतिमा(*)युतं कारितं। तत्पुत्रौ ब्रह्मदेव शरणदे(*)वौ। ब्रह्मदेवेन सं० १२७५ अत्रैव श्रीने(*) मिमंदिरे रंगमंडपे दाढाधर: कारितः ॥ (*) श्रीरत्नप्रभसूरिसदुपदेशेन। तदनुज श्रे० (*) सरणदेवभार्या सूहडदेवि तत्पुत्राः श्रे०(*) वीरचंद्र पासड आंबड रावण। यैः श्रीपर(*)मानंदसूरिणामुपदेशेन सप्ततिशततीर्थं का(*) रितं ।। सं० १३१० वर्षे। वीरचंद्रभार्या सुषमिणि (*)पुत्र पुनाभार्या सोहग पुत्र लूणा झांझण । आं(*)बडपुत्र बीजा खेता । रावणभार्या हीरू पुत्र वो० (*)डा भार्या कामलपुत्र कडुआ द्वि० जयता भार्या मूंट(*)या पुत्र देवपाल । कुमारपाल तृ० अरिसिंह ना(*)गउरदेविप्रभृतिकुटुंबसमन्वितैः श्रीपरमा(*)नंदसूरीणामुपदेशेन सं० १३३८ श्रीवासुपूज्य(*) देवकुलिकां। सं० १३४५ श्रीसंमेताशिखर(*)तीर्थे मुख्यप्रतिष्ठां महातीर्थयात्रां विधाप्या(*) त्मजन्म एवं पुण्यपरंपरया सफलीकृत:(तं) ।। (*) तदद्यापि पोसीनाग्रामे श्रीसंघेन पूज्यग्राम (मान ?) (*) मस्ति ॥ शुभमस्तु श्रीश्रमणसंघप्रसादतः ॥ (७२) मुनिसुव्रत-पंचतीर्थी : सं० १३४६ आषाढ़ वदि १ शुक्रे श्रीबृहद्गच्छ उपकेशज्ञातीय श्रे० अल्हण पुत्र गांगा भार्या जिरोत श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीदेवेन्द्रसूरिभिः । ७०. नेमिनाथ जी का मंदिर, आरासणा, आ० अ० कु०, लेखांक ४०. ७१. देवकुलिका में उत्कीर्ण लेख, नेमिनाथ जी का मंदिर, आरासणा, अ०प्र० जै०ले० सं० (आबू, भाग ५), लेखांक ३०, तथा आ०अ०कु० लेखांक १३ ७२. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जै० ले०सं०, लेखांक २०२. For Personal & Private Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ बृहद्गच्छ का इतिहास (७३) शीतलनाथ-पंचतीर्थी : ॥ सं० १३४९ज्येष्ट (ठ) सुदि १० श्री ऊकेश वंशे सं० सावदपुत्र सा० नरदाकेन पितामही पउमसिरि श्रेयसे श्री शीतलनाथबिंब कारितं पु० श्री बृहद्गच्छे श्रीमुनिरत्नसूरिभिः ।। (७४) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३४३ ज्येष्ठ सुदि १० श्रीदुस्साव्वान्वये महं० हरिराजपुत्रेण समरसिंहेन स्वपितामहामही हासलदेविश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० बृहद्गच्छे श्रीमुनिरत्नसूरिभिः । (७५) चन्द्रप्रभ-पाषाण संवत् १३५१ वैशाख सुदि --------- पोसीनास्थानीय कोष्ठा० श्रीवन्कुमारसुत कोष्ठा० आसल देल्हण भ्रातृ वाल्हेवीश्रेयो) श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंब कारितं श्रीपरमानन्दसूरिशिष्यैः श्रीवीरप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं मंगलं महाश्रीः।। (७६) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : __ संवत् १३५२ वर्षे वैशाख सुदि ५ बृहद्गच्छे सं० करमण भार्या सोखी पुत्र घणसी पुत्र वागडसिंह केल्हण राजई बृहद्गच्छे प्र० श्रीप्रभाणंद सूरिभि (७७) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३५६ ज्येष्ठ वदि ८ श्रे० दीणासुत श्रे० आजाश्रे० बीकमाभ्यां मातृलाछिश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छे श्रीहेमप्रभसूरिशिष्यैः श्रीपद्मचंद्रसूरिभिः ॥ (७८) महावीर-पंचतीर्थी : संवत् (१३) ५७ फागुण सुदि ७ गुरौ गूर्जर ज्ञातीय श्रे० पद्मसीह भार्या पद्मश्री श्रेयो) पुत्र जयताकेन श्रीमहावीरबिंबं कारितं वादि श्रीदेवसूरिसंताने श्रीधर्मदेवसूरिभिः ॥ ७३. जैन मंदिर, मोतीपोल, अहमदाबाद, J. I. I. A., No. 8. ७४. विमलवसही, आबू, अ० प्रा० जे०ले०सं०, आबू भाग-२ लेखांक १५, आबू, भाग ५, लेखांक २८२ (महावीर मंदिर, ब्राह्मणवाड़ा) ७५. नेमिनाथ का मंदिर, कुंभारिया, आ० अ० कु०, परिशिष्ट, लेखांक ४५. ७६. पुरातत्त्व संग्रहालय, सिरोही, सोहनलाल पटनी, अ०प००या०प्र०, लेखांक २९, पृष्ठ ४५. ७७. विमलनाथ जी का मंदिर, चौकसीपोल, खंभात, जै०या०प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक ८०३. ७८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक २३०. For Personal & Private Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (७९) शांतिनाथ - पंचतीर्थी : सं० १३५९ सा० शु० ९ परी आंबवीर सुत साजण भार्या सोमसिरि सा० कुमारपालाभ्यां निज मातृ पितृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का०प्र० श्रीजयमंगलसूरिशिष्यैः; श्रीअमरचन्द्रसूरिभिः । (८०) शिलालेख सं० १३६० वर्षे आषाढ़ वदि ४ वृ (वृ) हद्गच्छे श्रीमानदेवसूरिपट्टनायक श्रीसर्वदेवसूरिशिष्य पं० उदयचंद्र (द्रः) श्रीआदिनाथनेमिनाथौ नित्यं प्रणमति । (८१) महावीर पंचतीर्थी : २२९ सं० १३६७ वर्षे माघ वदि ९ गुरु श्रे० अजयसीह पुत्र वीकम भार्या वालू पुत्र वणपाल भ्रा० हरपाल सहितेन पिता माता टा श्रेयोर्थं वीर बिंबं कारितं प्रति० बृहद्गच्छे श्रीयशोभद्रसूरिभिः ॥ (८२) पार्श्वनाथ- पंचतीर्थी : सं० १३६८ वर्षे माघ सुदि ९ श्रे० पाहलण सुत धाधल श्रेयार्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० वादीन्द्र श्रीदेवसूरिगच्छे श्रीधर्म्मदेवसूरिभिः ॥ (८३) चतुर्विंशतिपट्ट - पंचतीर्थी : संवत् १३६९ वर्षे फागुण वदि १ सोमे प्राग्वाटज्ञातीय व्यव० हावीया भर्या सूहवदेवि सुत व्या० श्रे० अमरसिंह मातृ सलल श्रेष्ठि महा सुत ५ व्य० पितृव्य सोमा भार्या सोमलदेवि समस्त पूर्वजानां श्रेयोर्थं व्यव० अर्जुनेन भार्या नायिकदेवि सहितेन चतुर्विंशतिपट्टः कारितः मंगलं शुभं भवतु ॥ बृहद्गच्छीय प्रभुश्रीपद्मदेवसूरि शिष्य श्रीवीरदेवसूरिभिः प्रतिष्ठितः चतुर्विंशतिपट्टः ॥ ७४ ॥ ७९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक २१९. ८०. हस्तिशाला, लूणवसही, आबू, अ० प्रा० जै० ले०सं०, ( आबू, भाग २) लेखांक ३१८. ८१. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक २३८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक २४३. ८२. ८३. भण्डारस्थ पट्ट, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै०ले०सं०, लेखांक २४७. For Personal & Private Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० बृहद्गच्छ का इतिहास (८४) धातु-प्रतिमा श्री प्रश्न वा० १३६९ ---------- तिहुअणपालः भार्या रूपल सहिता ----- पित्रोः श्रेयार्थं श्रीआणंदसूरि श्रीहेमप्रभसूरिभिः बृहद्गच्छेः ।। (८५) आदिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३७१ श्री बृहद्गच्छे श्रे० अहडू भा० वसुमति पु० शरत्सिंघ सहितेन खेतसिंह भार्या लखमसिरि पुत्र राजड़युतेन मातुः श्रेयसे आदिनाथ का०प्र० श्रीअमरप्रभसूरिभिः ।। (८६) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : ॥ सं० १३७३ फागुण सुदि प्राग्वाट रतन श्रेयोर्थं सुत वीरमेन श्रीपार्श्वबिंबं कारितं प्र० श्रीहेमप्रभसूरिशिष्यैः श्रीपद्मचन्द्रसूरिभिः ॥ (८७) आदिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १३८३ वर्षे महा वदि १ शुक्रे श्रीबृहद्गच्छे प्राग्वाट ज्ञा० सा० आसदेव भार्या लुणी पुत्र चाहुड ठहरा घेतारणमल्ल वीकलश्रेयोर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीकनकसूरिभिः ॥ (८८) महावीर-पंचतीर्थी : सम्वत् १३८५ फा०सु० ८ श्रे० वयजा भार्या वयजलदे पुत्र कडुआकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीमहावीर बिं०का०प्र० बृहद्गच्छीय श्रीभद्रेश्वरसूरिपट्टे श्रीविजयसेनसूरिभिः ॥ माहरउलि गोष्ठिक ॥ (८९) आदिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३८६ व० ज्येष्ठ वदि ४ सोमे श्रे० केल्हा भार्या नाल्हू पुत्र सहजाकेन पितामह कान श्रेयसे श्रीआदिनाथबिंब का०प्र० बृहद्गच्छे श्रीभद्रेश्वरसूरिपट्टे श्रीविजयसेणसूरिभिः । ८४. जैन श्वे. मंदिर, नागपुर, जै० धा०प्र०ले०, लेखांक २४.. ८५. गौड़ी पार्श्वनाथ मंदिर के अन्तर्गत आदिनाथ जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक १९६०. . ८६. सीमंधरस्वामी का मंदिर, दोशीवाडा, अहमदावाद J. I. I. A, No. 13. ८७.. धर्मनाथ जी का मंदिर, डभोई, जै० धा०प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ५१. ८८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै०ले० सं०, लेखांक ३०४. ८९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ३०५. For Personal & Private Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २३१ (९०) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३८७ फागुण सुदि ४ सोमे कोल्हण गोत्रे सा० मोहण श्रेयोर्थं सुत मीझाकेन श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्र० बृहद्गच्छे श्रीमुनिशेखरसूरिभिः ॥ (९१) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३८८ वैशाख सुदि १५ शनौ व्य० धांधापुत्र श्रे० सागर संतानीय श्रे० महणसीह पु० महं० वीरपाल पु० महं रूपा भार्या कूती पुत्र देवसीहेन आ० मुगतासहितैः पित्रो श्रेयसे श्रीपार्श्व बिं० कारतं प्र० ब्रह्माणेस श्रीभद्रेश्वरसूरिपट्टे श्रीविजयसेनसूरिभिः बृहद्गच्छीय । (९२) महावीर-पंचतीर्थी : सं० १३९० वर्षे वैशाख वदि ११ शनौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय ठाकुर करउर राणोकेन भार्या कामलदे भार्या कील्हणदे श्रेयोर्थं श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रति० श्रीबृहद्गच्छे पिप्पलाचार्य श्रीगुणाकरसूरिशिष्य श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ॥ (९३) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३९१ वर्षे प्रा० श्रे० नागडभार्या साऊपुत्र माकन भीमासमुदायेन श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छीय श्रीविजयचंद्रसूरिपट्टे श्रीभावदेवसूरिभिः । (९४) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३९२ व० फागुण व० ११ जावडागोत्रे -------- श्रीशांतिनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीरामचन्द्रसूरिविनेयैः श्रीपासभद्रसूरिभिः ॥ (९५) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १३९३ वर्षे वापणा गोत्रे सोमलियान्वये सा० भोजाकेन पित्रो हेमल विमलिकयोः पुत्र चूचकोदयपालयौ स्व श्रे० श्रीशांतिनाथाबिंबं का०प्र० श्री बृ०(ग)च्छीय श्रीमुनिशेखरसूरिभिः ॥ ९०. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ३१९. ९१. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ३२५. ९२. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ३४०. ९३. नेमिनाथ का मंदिर, कुंभारिया, आ० अ० कु०, परिशिष्ट, लेखांक ५३. ९४. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख, विमलनाथ मंदिर, सवाई माधोपुर, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक १३६. ९५. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ३५२. For Personal & Private Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ (९६) अभिनन्दन - पंचतीर्थी : नाटके ।। संवत् १४०१ वर्षे चइत (चैत्र) सुदि ७ बुधे बृहद्गच्छे उप० टगडग ? गोत्रे त्र मझा भा० नाहना पु० खेता भा० खेतलदेव्या अभिनन्दन कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्मचन्द्रसूरिभिः ॥ (९७) आदिनाथ- पंचतीर्थी : साह भा० सं० १४०६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ९ रवौ उपकेशज्ञा० दो सिंगारदेव्या पुत्र साजणेन पितृ मातृ श्रेयोर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरामचन्द्रसूरिभिः बृहद्गच्छीयै ॥ (९८) आदिनाथ- पंचतीर्थी : सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ गुरौ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० सोभनपाल भार्या बाल्हू सुत आसधरेण भ्रातृ आल्हणसीह श्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० बृहद्गच्छीय श्रीसर्वदेवसूरिभिः । (९९) आदिनाथ- पंचतीर्थी : सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ उपकेश पा । रगहटपाल सुतेन साटाणेन पित्रो श्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं का०प्र०वृ० श्रीधर्मतिलकसूरिभिः । (१००) कायोत्सर्ग प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संवत् १४११ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ शनौ श्रे० भीमड भार्या नयणा श्रापा भार्या कडू द्वि० वयजलदेवि पुत्रलाषासहितेन बृहद्गच्छीय श्री (प) रमाणंदसूरिशिष्यैः श्री बृहद्गच्छ का इतिहास ➖➖➖➖➖➖➖➖ -11 (१०१) शिलालेख ।। ॐ ।। पातु वः पार्श्वनाथाय ( योऽयं ) सकल (लैः) सप्तभिः फणैः । भयानां नरकाणां च जगद्रक्षति संघकान् ॥ १ ॥ ( प्र ) तिमा कारिता प्र० ९६. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ४००. ९७. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले० सं०, लेखांक ४०५. ९८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ४१४. ९९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ४२०. १००. शांतिनाथ जी का मंदिर, दीयाणा, अ० प्र०जै० ले०सं० (आबू, भाग ५), लेखांक ४९१. १०१. वारशाख (दरवाजे के ऊपर) का लेख, महावीरस्वामी का मंदिर, जीरावला, अ० प्र०जै० ले० सं० ( आबू, भाग ५), लेखांक १२०. For Personal & Private Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २३३ संवत् १४१२ वर्षे ------- वदि १ स्वाति नक्षत्रे बृहद्गच्छीय श्रीदेवेन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनचंद्रसरिपट्टालंकारहारैः श्रीरामचंद्रसूरिभिरात्मश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथस्थ भु(भ)वने श्रीपार्श्वनाथस्य देवस्य देवकुलिकाकारिता । यावद्भूमौ स्थिरो मेरुर्यावचंद्रदिवाकरौ । आकाशे तपतस्तावत्रंदतादेवकुलिका ॥ २ ॥ शुभं भवतु सकलसंघस्य जीरापल्लीयाना गच्छस्य च ॥ (१०२) नमिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४१४ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ रवौ ओसवालज्ञा० श्रे० लषमण आ० लषमादेनिमित्तं पु० रूदाकेन आत्मश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का० श्रीबृहद्गच्छे श्रीसत्यगुरु श्रीअमरचन्द्रसूरिभिः प्र० ॥ (१०३) आदिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४१७ ज्येष्ठ सुदि ९ व्य० सोनपाल भा० धरणू पु० सीहड़ वाहड़ सागण पितामह -------- श्रीआदिनाथ बिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे ब्रह्माणीय श्रीविजयसेनसूरिपट्टे श्रीरत्नाकरसूरिभिः ॥ (१०४) स्तम्भलेख ॥ ० ॥ संवत् (१४१७ ?) आषाढ़ सुदि ५ गुरौ श्रीवृ(बृ)हद्गच्छीय श्रीमुनिशेखरसूरिशिष्यो मुनिनायक: श्रीनेमिनाथं नित्यं प्रणमति । (१०५) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४१८ वर्षे वैशाख सुदि ७ -------- श्रीमालज्ञा० श्रे० -------- डा भार्या भाऊ पुत(त्र)रणसीहेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारा० प्रतिष्ठितं वृ(बृहद्गच्छेश श्रीहेमरत्नसूरिपट्टे शिष्यश्रीरत्नशेष(ख)रसरीणामपदेशेन । १०२. अजितनाथ जी का मंदिर, वीरमगाम, जै० धा०प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक १४९०. १०३. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक ४३८. १०४. लूणवसही, आबू, अ० प्रा० जे०ले०सं०, (आबू- भाग-२) लेखांक ३८०. १०५. अनुपूर्ति लेख, आबू, अ० प्रा० ० ले०सं०, (आबू, भाग ५), लेखांक ५७४. For Personal & Private Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ बृहद्गच्छ का इतिहास (१०६) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : सम्वत् १४२२ वैशाख वदि ११ उपकेशज्ञातीय -------- भा० कपूरदे पुत्र ४ जगासिंह ---------- श्रीपार्श्वपंचतीर्थी कारिता बृहद्गच्छे महिंदसूरिभिः ॥ (१०७) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४२२ वैशाख सुदि ११ ऊकेशज्ञा०श्रे० गीगदेव आ० ऊमल पुत्र ३ रणसीहतेजाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ॥ (१०८) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १४२३ वर्षे फागुण सुदि ९ सोमे श्री श्रीमालज्ञातीय पितामह आजा तत्भार्या लषमादेवि श्रेयसे सउंदारामा परिवारे श्रीपार्श्वनाथ: कारित: । प्रति० बृहद्गच्छीय पिप्पलाचार्य श्रीगुणसमुद्रसूरिभिः ॥ (१०९) देवकुलिका का लेख सं० १४२४ वर्षे वैशाख वदि ३ गुरौ कलवावास्तव्योपकेशज्ञातीय सा० धवकर्मणेन या० कर्मादेवी खीमादेवी सहितेन खीमदेवीश्रेयसे श्रीजीउलीलीपार्श्वनाथदेवकुलिका कारापिता बृहद्गच्छेश श्रीदिन्नविजयसूरेरूपदेशेन । (११०) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : ___ संवत् १४२४ वर्षे आषाढ़ सुदि ५ गुरौ ऊकेशवंशे श्रे० वीरा भार्या टउलसिरि पुत्र चांदण मांडणाभ्यां मातृ श्रेयोर्थं श्रीपद्मप्रभ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ॥ (१११) पद्मप्रभ-पंचतीर्थी : सं० १४२४ आषाढ़ सुदि ६ गुरौ ऊकेश वंशे व्यव जगसीह भा० देवलदे पुत्रपाता भार्या वोभादेवि सकुटुंबेन निज मातृ पुण्यार्थं श्रीपद्मप्रभ बिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ॥ १०६. प्राचीन जैन मन्दिर नासिक, जै० धा०प्र०ले०, लेखांक ३९. १०७. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, बीकानेर, जै० ले० सं०, भाग ३, लेखांक २२७०. १०८. संभवनाथ मंदिर, कालूपुर, अहमदाबाद, J. I. I. A, No. 39. १०९. जीरावला तीर्थ देवकुलिका २२, श्री०प्र०ले०सं०, लेखांक २९२अ. ११०. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै०ले०सं०, लेखांक ४६३. १११. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ४६८. For Personal & Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २३५ (११२) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १४२५ वर्षे वैशाख सांख्ला ११ सौमे उपकेशज्ञातीय श्रे० मदन भा० पाथलदे पुत्र देपाल भा० देल्हणदे सुत मेघाकेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च बृहद्गच्छे नाथ माल्य श्रीबदरिसेणसूरिभिः ॥ (११३) तीर्थङ्कर-पंचतीर्थी : सं० १४३० माहवदि २ सोमे --------- ज --------- नावलपु० -------- - भ्रातृधारणापुर्व्यार्थं पंचतीर्थी का०प्र० श्रीधनदेवसूरिभिः बृहद्गच्छे ॥ (११४) चन्द्रप्रभ-पंचतीर्थी : सं० १४३२ वर्षे फागुण सुदि ३ शुक्रे ओसवाल ज्ञा० श्रे० भाहा भार्या तेजलदे सुत पदमसी सांगा तेषां श्रेसये सुतदेवसहितेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे सैद्धान्तिकश्रीनाणचंद्रसूरिपट्टे श्रीअक्षतचंद्रसूरिभिः ॥ (११५) विमलनाथ-पंचतीर्थी : ___ सं० १४३३ वैशाख सुदि ६ शनौ श्रीबृहद्गच्छे उपकेशज्ञा० व्य० षीमा भा० कमणि सु तेजसीषेतसीहयोर्निमित्तं भ्रा० पूना तेन श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनरदेवसूरिभिः ॥ (११६) संभवनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४३४ व० वैशाख वदि २ बुधे ऊकेश ज्ञा० श्रेष्ठि तिहुणा पु० मामट भा० मुक्ती पु० जाणा सहितेन पित्रो श्रेयसे श्रीसंभव वि०का०प्र० श्रीबृहद्गच्छीय श्रीमहेन्द्रसूरि पट्टे श्रीकमलचन्द्रसूरिभिः ॥ (११७) संभवनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४३४ व० वैशाख वदि २ बुधे प्राग्वाट ज्ञा०दो० झाँझा भार्या हीमादे पु० थेराकेन पितृ भ्रातृ श्रेयो० श्रीसंभवनाथ पंचतीर्थी का०प्र० श्रीबृहद्गच्छीय श्रीमहेन्द्रसूरिपट्टे श्रीकमलचन्द्रसूरिभिः ॥ ११२. पुरातत्त्व संग्रहालय, सिरोही, अ०प-जै० घा०प्र०, पृष्ठ ५४, लेखांक २१. ११३. आदिनाथजिनालय, मांडवीपोल, खंभात, जै०धा०प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक ६२४. ११४. शांतिनाथ जी का मंदिर, कनासा पाडो, पाटण, वही, भाग १, लेखांक ३२१. ११५. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, जैसलमेर, जै०ले०सं०, भाग-३ लेखांक २२७५. ११६. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ५०९. ११७. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ५१०. For Personal & Private Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ (११८) पार्श्वनाथ- पंचतीर्थी : सं० १४३६ वैशाख सुदि १३ सोमे श्रीनाहरगोत्रे सा० श्रीराजा पुत्रेण सा० ---पार्श्व बिं०का०प्र० बृहद्गच्छे श्रीमुनिशेखरसूरि पट्टे श्रीतिलकसूर भीमसिंहेन सा०शिष्यैः श्रीभद्रेश्वरसूरिभिः ॥ (११९) पद्मप्रभ - पंचतीर्थी : संवत् १४४० वर्षे माघ सुदि ४ भौमे श्रीबृहद्गच्छे ऊकेश ज्ञा०सा० तिहुण पु० पद्मसी -- पूना भा० हररिवणि पु० चापा केन पितृ पितामह श्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीसागरचन्द्रसूरिभिः ॥ रत्नना (१२० ) शिलालेख (१) ओं ॥ स्वस्ति श्रीनृपविक्रमसम (२) यातीत सं (१) ४४३ वर्षे कार्त्ति (३) क वदि १४ शुक्रे श्रीनडूलाई - (४) नगरे चाहुमानान्वय महाराजाधिराजश्रीवणवीरदे (५) (६) (७) (८) (९) पम श्रीमानतुंगसूरिवंशोद्भ (व) (१०) श्रीधर्म्मचंद्रसूरिपट्टलक्ष्मी श्र (११) वणोउणोत्पलायमानैः श्रीविन (१२) यचंद्रसूरिभि रन ल्पगुणमाणि - वसुतराजश्री(र)णवीरदेववि जयराज्ये अ (त्रस्थ) स्वच्छ श्रीमद (द्) बृहद्ग(च्छ) नभस्तलदिनकरो बृहद्गच्छ का इतिहास ११८. नमिनाथ का मंदिर, लक्ष्मीनारायण पार्क, बीकानेर, वही, लेखांक ११९७. ११९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, १२०. नेमिनाथ मंदिर, नाडलाइ प्रा० जै० ले०सं०, भाग २, लेखांक ८५८. बी०जै० ले० सं०, लेखांक ५४३. लेखांक ३३५, जै० ले०सं०, भाग १, For Personal & Private Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २३७ (१३) क्यरत्नाकरस्य यदुवंशशृंगा(१४) रहारस्य श्रीनेमीश्वरस्य निरा(१५) कृतजगद(द्)विषाद; प्रसाद(दः) स-' (१६) मृद्दधे (धे) आचंद्रार्क नंदतात(त्) ॥ श्री ॥ (१२१) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १४४५ वर्षे ज्येष्ठ वदि १२ शुक्रे उपकेश ज्ञा०श्रे० कालू भार्या भोली पुत्र नींवाकेन पितृ मातृ श्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छे श्रीधर्मदेवसूरिभिः ॥ (१२२) मुनिसुव्रत-पंचतीर्थी : सं० १४४५ फा० वदि १० र० श्रीबृहद्गच्छे श्री (प्रा० )ग्वटज्ञातीय श्रीरत्नाकरसूरिणा भार्या साऊ सुत धीणकेन भ्रातृधारानिमित्तं श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं वडगच्छा आचार्येन ॥ (१२३) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १४४५ वर्षे फागुण सुदि ९ सोमे उपकेश ज्ञा० हींगड़ गोत्रे सा० पाहट भा० पाल्हणदे पुत्र गोविंद ऊदाभ्यां मिलित्वा पितृत्थ मटकू निमित्तं श्रीशांतिनाथ बिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णचन्द्रसूरिभिः ॥ (१२४) सुमतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४४९ वर्षे वैशाख सुदि ६ शुक्रे उसवा० ज्ञा० व्यव० छाहड़ भा० चाहिणदेपुत्र आनु भा० झनू पुत्र वियरसी श्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथ बिंबं का०प्र० श्रीबृह० श्रीअभयदेवसूरिभिः श्रीअमरचंद्रसूरि सं ---------- १२१. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै०ले०सं०, लेखांक ५४८. १२२. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, जैसलमेर, जै०ले०सं०, भाग ३, लेखांक २२७९. १२३. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ५५२. १२४. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ५५५. For Personal & Private Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ (१२५) पार्श्वनाथ- पंचतीर्थी : सं० १४४९ वर्षे वैशाख सुद शुक्र ३३ विविक्षाथक छाहड़भार्या वाहरादि पु० आथू भा० मनु पु० रायणजी रमादे श्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का०प्र० बृह ग श्री अभयदेवसू । (१२६) चन्द्रप्रभ - पंचतीर्थी : सं० १४५४ वर्षे माह सुदि ८ शनौ उपकेश ज्ञा०श्रे० कर्म्मा भा० आल्हणदे पुत्र नराकेन भा० सोनलदे स० आत्म श्रेय श्रीचन्द्रप्रभ बिंबं का०प्र० बृहद्गच्छीय रामसेनीयावटंक श्रीधर्मदेवसूरिभिः ॥ बृहद्गच्छ का इतिहास (१२७) चन्द्रप्रभ - पंचतीर्थी : सं० १४५७ व० वैशाख सु० ३ शनौ उपकेश ज्ञा० बलदउठा गोत्रे खहू जइता भा० जइतलदे पुत्र जूठाके भा० सिरियादे सहितेन भ्रातृखेता निमित्तं श्री चंद्रप्रभ बिंबं का० प्रतिष्ठ रामसेनीय श्रीधर्मदेवसूरिभिः ॥ (१२८) महावीर - पंचतीर्थी : १ सं० (१४) ५७ फागुण सु० ७ गुरौ गुर्जर ज्ञातीय से० पदमसीह भार्या पदमसिरि श्रेयोर्थं पुत्र जयताकेन श्रीमहावीर बिंबं कारितं वादिदेवसूरिसंताने श्रीधर्मदेवसूरिभिः ॥ (१२९) वासुपूज्य - पंचतीर्थी : संवत् १४६५ वैशाख सुदि ३ गुरौ उपकेश ज्ञा०सा० आसाभार्या पूनादे पुत्र पुना भार्या सुहागदे पित्रो श्रेसये श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीधर्मदेवसूरिपट्टे श्रीधर्मसिंहसूरिभिः ॥ (१३०) सुमतिनाथ - पंचतीर्थी : सं० १४६५ वैशाख सुदि ३ गुरौ दि० उपकेशज्ञातीय श्रे० आका भा० सजखणदे पु० मोकल भारया ( भार्या) साल्हणदे रानूसहितेन पित्रोः सुमतिबिंबं कारितं प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीधर्मसिंहसूरिभिः ॥ १२५. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, नौहर, वही, लेखांक २४८१. १२६. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ५६६. १२७. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ५७५. १२८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ५८१. १२९. महावीर जिनालय बीकानेर, वही, लेखांक १३४५. १३०. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, जैसलमेर, जै०ले०सं०, भाग ३, लेखांक २२८६. For Personal & Private Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (१३९) पद्मप्रभ - पंचतीर्थी : सं० १४७२ फागुण सुदि ९ शुक्रे श्री बृहद्गच्छे उपकेशवंशे सा० सोढा भा० मोहणदे पु०सा० हाडाकेन पितृ श्रेयोर्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं कारितं प्रति० श्रीगुणसागरसूरिभिः ॥ (१३२) शांतिनाथ - पंचतीर्थी : २३९ संवत् १४७२ वर्षे फाल्गुन शुक्ला ९ शुक्रे ऊकेश वंशे श्रे० टापर भार्या माल्ही पुत्र लाखमण छाभाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री बृहद्गच्छे श्री कमलचन्द्रसूरिभिः ॥ (१३३) नमिनाथ- पंचतीर्थी : संवत् १४७२ वर्षे फाल्गुन सुदि ९ शुक्रे ऊकेश ज्ञातीय मलाण पुत्र गेलाकेन पित्र पितृव्य भ्रातृ निमित्तं श्रीनमिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहद्गच्छे श्री कमलचंद्रसूरिभिः ।। (१३४) सपरिकर पार्श्वनाथ चौबीसी - पंचतीर्थी : ॥ संवत् १४७२ वर्षे श्री श्रीमाल ज्ञा० श्रेष्टि गोवल भा० बा० तहकूसुत वर्द्धमानेन आत्मश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारित: 1 प्रतिष्ठिता श्रीजयतिलकसूरिभिः बृहद्गच्छेयम् ॥ (१३५) पद्मप्रभ - पंचतीर्थी : संवत् १४६२ वर्षे फागुण सुदि ९ शुक्रे श्रीबृहद्गच्छे उपकेशवंशे सा० सोढा भा० मोहणदे पु०सा० हाडाकेन पितृ श्रेयोर्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीगुणसागरसूरिभिः । (१३६) मुनिसुव्रत - पंचतीर्थी : संवत् १४७३ वर्षे माह सुदि ९ बुधवासरे उपकेशज्ञातीय व्य० धर्मा भा० रत्नादे पु० गोइंद पितृ-मातृ श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीकमलचंद्रसूरिभिः ॥ छ ॥ १३१. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ६६२. १३२. पुरातत्त्व संग्रहालय, सिरोही, अ०प०जै०धा०प्र०, लेखांक १११, पृष्ठ ६५. १३३. पुरातत्त्व संग्रहालय, सिरोही, वही, लेखांक ११२, पृष्ठ ६५. अहमदाबाद, J. I. I.A, No. 88. १३४. भगवान् वासुपूज्य का मंदिर, शेखनो पाडो, १३५. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ६६२. १३६. मुनिसुव्रतकी प्रतिमा माणिकसागर जी का मंदिर, कोटा, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक २१२. For Personal & Private Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० बृहद्गच्छ का इतिहास (१३७) श्रेयांसनाथ-पंचतीर्थी : __सं० १४७८ वर्षे फागुण वदि ८ रवौ उ०ज्ञा० श्रेष्ठि वीरड स०सा० गोणाल भा० सुहडादे पु० नोडा भा० नायकदेसहितेन पित्रो (:) श्रीश्रेयांस: का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीदेवाचार्यसं(०) श्रीदेवचंद्रसूरिपट्टे भ० श्रीपूंन (पूर्ण) चंद्रसूरिभिः ॥ (१३८) संभवनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४७८ वर्षे फागुण वदि ८ रवि दिने उ० ज्ञातीय खडहय भा० कस्मीरदे पु० मेघाकेन रीसंभवनाथबिंबं का० प्रति० श्रीबृ० श्रीनरचंद्रसूरिभिः ॥ (१३९) धर्मनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४७९ वर्षे वैशाख सुदि ३ शुक्रे उ० ज्ञातीय श्रे० रा ------ द्र पुत्र खीमा भा० रूपी श्रेयसे श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीश्रीमुनीश्वरसूरिभिः ।। (१४०) वासुपूज्य-पंचतीर्थी : ॥ सं० १४७९ वर्षे पोस (पौष) वदि ५ शुक्रे श्री उ०स० वंसी(शी)य महं सांगा भार्या सीणलदेवि सुत महं सोडण भार्या बाइ साजणि आत्मश्रेयोर्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं श्रीबृहद्गच्छीय श्रीपूर्णचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री ॥ श्री || श्री || श्री । (१४१) आदिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४८० वर्षे फागुण सुदि १० बुधे उपेशज्ञातीय व्यव सहजा भार्या सोनलदे पुत्र कूताकेन भार्या कपूरदे सपरिकरेण निज पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीवृद्धगच्छे भनवाला भ० श्रीरामदेवसूरिभिः । (१४२) आदिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १४८२ ज्येष्ठ वदि ५ शनि० दुगड़ गोत्रे सा० धीड़ा पु० डाड़ा पुत्र साटा हारा रग सुकनाभ्या डाडा पितृव्य सा० रूल्हा पु० रेडा श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र० बृहद्गच्छीय श्रीअमरप्रभसूरिभिः ।। शुभ भवतुः ॥ १३७. आदिनाथ जिनालय, पूना, प्रा०ले०सं०, लेखांक ११९. १३८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ६९१. १३९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ६९३. १४०. आदिनाथ जी का मंदिर, पूना, प्रा०ले० सं०, लेखांक १२२. १४१. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक ७०१. १४२. विमलनाथ मंदिर, मुर्शिदाबाद, जै० ले०सं०, भाग १, लेखांक ३९. For Personal & Private Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २४१ (१४३) नमिनाथ-पंचतीर्थी : ___ सं० १४८२ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे उपकेश ज्ञातीय श्रे० लूणपाल भा० पूजी पु० गांगाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं कारितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीनरचन्द्रसूरिपट्टे प्र० श्रीवीरचन्द्रसूरिभिः ॥ (१४४) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४८२ वर्षे माघ वदि ९ बुधे उपकेशज्ञातीय सा० पाता भा० णे (पो) मादे बूल्हाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिपट्टे भ० श्रीकमलचंद्रसूरिभिः ॥ (१४५) चन्द्रप्रभ-पंचतीर्थी : सं० १४८२ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे उपकेश ज्ञातीय सा० रूदा भा० रूपादे० पु० उधरण सामल सहितेन श्री चंद्रप्रभस्वामि बिंबं का० श्रीबृहद्गच्छे प्र० श्रीकमलचन्द्रसूरिभिः ॥ (१४६) आदिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १४८५ वर्षे ज्येष्ठ (ष्ठ) सुदि १३ सोमे उपकेशज्ञातीय सा० घेता भा० रांकुं पुत्र सलषा भा० राजलदे सं० पितृमातृश्रे० श्रीआदिनाथबिंब का० श्रीबृहद्गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीगुणसागरसूरिभिः ॥ (१४७) चन्द्रप्रभ-पंचतीर्थी : सं० १४८६ वर्षे वैशाख सुदि ७ सोमे श्री श्री दूगड़गोत्रे सा० अर्जुन पुत्रेण सा० उदयसिंहेन भार्या जयताही पु०सा० मूला सा० नागराज सा० श्रीपालादियुतेन आत्मश्रेयसे श्रीचंदप्रभं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छीय श्रीमुनीश्वरसूरिपट्टे (रत्न)प्रभसूरिभिः ॥ १४३. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक ७१८. १४४. अनुपूर्ति लेख, आबू, अ० प्रा० जे०ले०सं०, (आबू - भाग-२) लेखांक ६२०. १४५. महावीर स्वामी का मंदिर, डागों की गुवाड़, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक १५३० १४६. भण्डारस्थ प्रतिमा, गौडी जी का मंदिर, उदयपुर, प्रा०ले०सं०, लेखांक १३३. १४७. जैन मंदिर, पटना, जै० ले० सं०, भाग १, लेखांक २७४. For Personal & Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ बृहद्गच्छ का इतिहास (१४८) अजितनाथ-पंचतीर्थी : सम्वत् १४८६ वर्षे वैशाख सुदि १३ सोमे दूगडगोत्रे मं०डीडा पु० वील्हाकेत निजश्रेयसे श्रीअजितनाथा बिंब कारतिं प्रतिष्ठितं बृहद् गच्छे श्री मुनिसुश्वरसूरिपट्टधरैः श्री रत्नप्रभसूरिभिः ॥ (१४९) सुमतिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १४८६ वर्षे वैशाख सुदि १३ शनौ उ०ज्ञा०व्य० अमई भा० चांपलदे पुत्र सांगाकेन मूमण निमित्तं श्रीसुमतिनाथबिंबं का०प्र० श्रीसत्यपुरीय गच्छे भ० श्रीललितप्रभसूरिभिः ॥ (१५०) सुमतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ सोमे केल्हण गोत्रे सा० शिवराज भार्या नत्थि पुत्रेण साह आसुकेन स्व पित्रो श्रेयसे श्रीसुमतिजिन बिंबं प्र० बृहद्गच्छे श्रीमुनीश्वरसूरिपट्टे श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ॥ (१५१) नमिनाथ-पंचतीर्थी : ____ सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ सोमे श्रीनागूणागोत्रे सोमलशाखायां सा० वीरपाल जेसा ------------ नमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीमुनीश्वरसूरिपट्टे श्रीचन्द्रप्रभसूरिभिः ॥ (१५२) वासुपूज्य-पंचतीर्थी : ____ सं० १४८७ वर्षे माह वदि ९ भौमे उपकेश सा० मणुन भा० माल्हणदे पुत्र तिहुणा तोडा भार्या पूरि पु० सहजा सहि० पितृनि० श्रीवासुपूज्यबिंबं का०प्र० श्री बृ०भ० श्रीधर्मसिंहसूरिभिः ॥ सं० १४८६ जो कि यो जोमाया महापा १४८. मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक २५७. १४९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ७३१. १५०. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ७३५. १५१. विमलनाथ मंदिर, सवाई माधोपुर, प्र० ले० सं०, भाग १, लेखांक २५९. १५२. चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, किशनगढ़, वही, भाग १, लेखांक २६९. For Personal & Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (१५३) विमलनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४८८ वर्षे महा शुदि ५ सोमे उपकेशज्ञा० बेगड़गोत्रे सा० जूला पुत्र सा० हरष भार्या पेतलदे पु० बीढ भा० वीमलदे पित्रोः श्रेयसे श्रीविमलनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छेश श्रीवीरभद्रसूरिभिः ॥ (१५४) मूलनायक शान्तिनाथ-पाषाण ॥ ६० ॥ सं० १४८९ वर्षे मार्ग० सुदि ११ गुरौ रेवत्यां । श्री तातेहड़ गोत्रे : सा० (भा ?) पुत्र गह्नार गोसलणीधर --------- भधा गोसल भक्त घट्ट सलिग सारंग संघी (? जी) प्रभृति तत्र साधु ----------श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्ग(च्छे) श्रीभद्रेश्वरसूरि (?) (१५५) मुनिसुव्रत-पंचतीर्थी : ____सं० १४८९ पौष सुदि १२ शनौ उ० बलहउती गोत्रे सा० पूना भा० पूनादे पुत्र भीलाकीता भाडा लौपितदे श्रे० श्रीमुनिसुव्रत बिंबं का०प्र० श्रीबृहदके (बृहद्गच्छे) श्रीधर्मदेवसूरिपट्टे श्रीधर्मसिंहसूरिभिः ॥ श्री ॥ (१५६) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४८९ वर्षे माघ वदि २ शुक्रे प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० महणसी भा० महाल्हणदे पु० टोलाकेन बाई वील्हणदे न(न) मित्तं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छीय श्रीलल(लि)तप्रभसूरिभिः ॥ (१५७) शीतलनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४९२ वर्षे वैशाख सुदि २ बु० उपकेश ज्ञातीय सा० साल्हा भा० चांपल पु० सामंत आत्मश्रेयो) श्रीशीतलनाथ बिंबं का० श्रीबृहद्गच्छे प्र० श्रीगुणसागरसूरिभिः ॥ १५३. कल्याण पार्श्वनाथ जी का मंदिर, वीसनगर, जै० धा०प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ५००. १५४. पार्श्वनाथ जी का मंदिर, हनुमानगढ़, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक २५२६. १५५. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ७४३. १५६. चन्द्रप्रभ जिनालय, जालना, प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक ५३. १५७. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले० सं०, लेखांक ७५९. For Personal & Private Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ (१५८) पद्मप्रभ - पंचतीर्थी : ॥ संवत् १४९२ वर्षे मार्ग वदि ५ गुरुवारे ओसवंशे नक्षत्र गोत्रे सा० काला भा० पूरी पु०सा०भाऊ खीमा श्रवणैः भ्रातृ नानिग ताल्हण श्रेयसे श्रीपद्मप्रभ बिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीसागरचन्द्रसूरिभिः ॥ बृहद्गच्छ का इतिहास (१५९) विमलनाथ- पंचतीर्थी : सं० १४९३ जेठ वदि ३ मंगले उप० ज्ञा० पावेचा गोत्रे सा० वीरा भा० वील्हणदे पुत्र कुंभाकेन भा० कामलदे युतेन स्वश्रे० विमल बिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे देवाचार्यान्वये श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः ॥ छ । (१६०) चन्द्रप्रभ - पंचतीर्थी : संवत् १४९५ वर्षे फाल्गुन वदि ९ रविवारे ऊके० वंशे पावेचा गोत्रे सा० नींबा भा० कपूरदे पु० जगमालेन भा० मानू पु० चांपादि युतेन श्रीचंद्रप्रभ बिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे श्रीहेमचंद्रसूरि ॥ (१६१) संभवनाथ- पंचतीर्थी : सं० १४९७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ व्य० पर्वत सुत व पुरप सामल पु० भादा भा० हांसादे पु० देवसीकेन भा० हीरादे सहितेन स्व श्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंबं का०वृ०भ० श्रीअमरचन्द्रसूरिभिः ॥ (१६२) वासुपूज्य - पंचतीर्थी : सं० १४९८ वर्षे फाल्गुण वदि १० सोमे उपकेशज्ञातीय वरडीया गोत्रे सा० पदमसीह भार्या पदमश्री पु० अर्जुन निजमातृपुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे भ० मुनीश्वरसूरिपट्टे श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ।। १५८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ७६४. १५९. धर्मनाथ जी का मंदिर, जोधपुर, जै० ले०सं०, भाग १, लेखांक ६१९. १६०. आदिनाथ जिनालय, कारंजा, प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक ६१. १६१. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै०ले०सं०, लेखांक ७९४. १६२. महावीर जिनालय, चोथ का बरवाड़ा, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ३२५. For Personal & Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २४५ (१६३) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : ॐ ॥ संवत् १४९९ वर्षे सावण वदि २ शनिवारे मूलनक्षत्रे लोढ़ागोत्रे सा० महणसीह पुत्र सा० पन्ना नेना भार्या मुनी तत्पुत्र सा० खीमराज भ्रातृ करमसिंह निजमातृपितृश्रे० पुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंब का०प्रति० बृहद्गच्छे श्रीपद्माणंदसूरिभिः ॥ (१६४) कुन्थुनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४९९ वर्षे माह सुदि ६ उपकेशज्ञातीयसूरोठागोत्रे सा० सिंगारदेव्याभ्यां निजपुण्यार्थं श्रीकुथुनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीबृहद्गच्छे श्रीअमरप्रभसूरिपट्टे श्रीसागरचंद्रसूरिभिः ।। (१६५) संभवनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४९९ वर्षे फागुण वदि, २ गुरौ उपकेशज्ञाती० श्रीधरकटगोत्रे सा० हीरराज प्रसिद्धनाम सा० बगुला पुत्रेण सा० लाखा श्रावकेण भार्या गजसीरी पुत्र बलिराजयुतेन श्रीसंभवनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीरत्नप्रभसूरिभिः।। (१६६) श्रेयांसनाथ-पंचतीर्थी : सं० १४९९ वर्षे फागुण वदि २ गुरौ उपकेशज्ञातीय वरहडीयागोत्रे सा० गोसल पुत्रेण सा० दुलहत द्वे० नाम राउलेन भा० हर्षमदे पु० अर्जुन सदारङ्ग सहितेन आत्मश्रे० श्रीश्रेयांसबिंबं का०प्र० बृहद्ग० श्रीरत्नप्रभसूरिभिः।। (१६७) आदिनाथः १. ॥ संवत् १५०० वर्षे मार्गशिर वदि २. २ शनौ ओसवाल ज्ञातीय श्रीनाह ३. र गोत्रे सा० मोहिलसुत सं० नयणा ४. तद्भार्या सं० कुंता नाम्न्यां स्वभर्तुः पु ५. ण्यार्थं श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र१६३. पार्श्वनाथ मंदिर, बूंदी, वही, भाग १, लेखांक ३२८. १६४. मनमोहन पार्श्वनाथ जी का मंदिर, खजुरीपाड़ा, पाटण, जै०धा०प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक २४६. १६५. प्रा०ले०सं०, लेखांक १७६ तथा नया मंदिर, जयपुर, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ३३२. १६६. आदिनाथ जिनालय, गागरडू, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ३३३. १६७. श्री गंगा गोल्डेन जुवली म्यूजियम, बीकानेर, बी० जे०ले०सं०, लेखांक २१५७. For Personal & Private Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ ६. तिष्ठितं श्रीरत्नप्रभसूरिपट्टे ॥ ७. श्रीमहेन्द्रसूरिभिः श्रेयसे भवतु ८. श्रीबृहद्गच्छे ॥ श्री ॥ (१६८) महावीर - पाषाण (ए) ।। सं० १५०१ अक्षयतृतीयां भ० श्रीमुनीश्वरसूरि पुण्यार्थ का० देवभद्रगणेन ॥ शुभं भवतु ॥ (बी) ।। ६० ।। संवत् १५०१ वर्षे वैशाख सुदि अक्षयतृतीयां श्रीभट्टनगरे श्रीवृद्धगच्छे देवाचार्यसंताने श्रीजिनरत्नसूरि श्रीमुनिशेखरसूरि श्रीतिलकसूरि श्रीभद्रेश्वरसूरि तत्पट्टोदयशैलदिनमणि । वादीन्द्रचक्रचूडामणि शिष्य जन चिन्तामणि भ० श्री मुनीश्वरसूरि पुर्ण्यं वा । देवभद्रगणि श्री महावीर बिंबं कारितं । प्र० श्रीरत्नप्रभसूरिपट्टे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः चिरं नंद्यात् शुभम् । (१६९) अजितनाथ: २. ३. ४. संवत् १५०१ वैशाख शुक्ल २ सोमे रोहिणीनक्षत्रे जंवडगोत्रे । सं० गे डा संताने सा० सच्चा पुत्रसा० केण्ह ण भार्या श्राविका हेमी नाम्न्या स्वपति पुण्यार्थं श्रीअजितनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीदेवाचार्य सं ५. ६. ७. ताने। श्रीरत्नप्रभसूरिपट्टे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः । (१७०) संभवनाथ - पाषाण बृहद्गच्छ का इतिहास ( ) वा० देवभद्रगाणिना बिंबं कारितं ॥ ( १ ।। ६० ।। स्वस्ति श्री संवत् १५०१ वर्षे वैशाख सुदि ३ तृतीयायां बृहद्गच्छे श्रीदेवाचार्य संताने श्रीमुनीश्वरसूरिवादीन्द्रचक्रचूड़ामणि राजात्रलीत कला १६८. श्री गंगा गोल्डेन जुबली म्यूजियम, बीकानेर, वही, लेखांक २१५२. १६९. श्री गंगा गोल्डेन जुबली म्यूजियम, बीकानेर, बी०जै० ले० सं०, लेखांक २१५४. १७०. श्री गंगा गोल्डेन जुबली म्यूजियम, बीकानेर, वही, लेखांक २१५३. For Personal & Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २४७ २ प्रकाश नभोमणि वर शिष्य वाचनाचार्य देवभद्रगणिवरेण श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं ॥ श्रीरत्नप्रभसूरिपट्टे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः शुभं भवतु ॥ (१७१) नमिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १५०१ ज्येष्ठ वदि १२ सोमे उप० ज्ञा० स० जेसा भा० जसमा दे०पु० कान्हा रता रामा कान्हा भा० श्याणी स० पितृ श्रे० श्रीनमिनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीनरचन्द्रसूरिपट्टे श्रीवीरचन्द्रसूरिभिः ॥ (१७२) सुविधिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १५०१ वर्षे माह सुदि १० सोमे उपकेश० छोहरयागोत्रे साह नेतसी पुत्र सोना भार्या नइणसिरी पुत्र तेजा भार्या पाल्हू पुत्र हांसाकेन पारस ----------- श्रेयसे आत्मश्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिंबं का० बृहद्गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीमुनिदेवसूरिभिः ॥ (१७३) सुविधिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १५०४ वर्षे ज्येष्ठ वदि ३ सोमे उप ज्ञा० बोकड़िया गोत्रे सा० पाल्हा भा० पाल्हणदे पु० भांडा भा० जासल दे० पुत्र जातेन आत्मा श्रे० श्रीसुविधिनाथ बिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे भ० श्रीधर्मचन्द्रसूरिपट्टे भ० श्रीमलयचन्द्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ (१७४) शीतलनाथ-पंचतीर्थी : सं० १५०४ वर्षे मार्गशिर सु० ६ सोमे उपकेशज्ञातीय छोहरिया गो० सा० बोहित्थ भा० बुहश्री पु०सा० फलहू आत्म पु० श्री शीतलनाथबिंबं का०प्र० श्री बृहद्गच्छे पू०भ० श्रीसागरचन्द्रसूरिभिः ॥ (१७५) शीतलनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १५०४ वर्षे फागुण सुदि ११ उपकेश ज्ञा० उच्छित्रवाल गोत्रे सा० पला भा० भानादे पु० भांडा भा० पाल्हणदे युतेन मातृ पितृ नि० श्रीशीतलनाथ बिंबं का०प्र० श्रीवृद्ध० भ० श्रीअमरचंद्रसूरिभिः ॥ १७१. महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक १३६०. १७२. चन्द्रप्रभ जिनालय, कोटा, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ३४५. १७३. महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक १३२०. १७४. महावीर स्वामी का मंदिर, वैदों का चौक, बीकानेर, बी० जे०ले० सं०, लेखांक १२९५. १७५. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ८८८. For Personal & Private Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ बृहद्गच्छ का इतिहास (१७६) वासुपूज्य-पंचतीर्थी : सं० १५०५ वर्षे फागु० वदि ७ बुध दिने उप०सा० धागा भार्या सुहागदे ध --------- भा० सूमलदे पुत्र उलल भा० मूलसिरि सहि० पित्रोः श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिंबं का०प्र० श्रीअमरचंद्रसूरिभिः । (१७७) सुमतिनाथ-पंचतीर्थी : सं० १५०६ वैशा(ख) सु० ८ भूमे उ० मंडलेचा गोत्रे सा० डूदा भा० रंगादे पु० जपुता तासर जइता भा० जिणमादे खे -------- भा० तारादे पु० अमरा श्रे० सुमतिनाथ बिंबं का०प्र०बृ०ग० पुण्यप्रभसूरिभिः । (१७८) चन्द्रप्रभ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५०६ वर्षे फागुण सुदि ३ रवौ ओसवाल ज्ञातीय दूगड़ गोत्रे सा० खेतात्मज सं० सुहड़ा पुत्रेण स० सहजाकेन । सा० खिल्लण पु०सा० खिमराज युतेन पितामही माथुरही पुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभ बिंबं का०प्र०बृ० गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरि श्रीरत्नाकर सूरिभिः । (१७९) मुनिसुव्रत-पंचतीर्थी : ॥ सं० १५०७ वर्षे जेठ सु० १० सोमे उ०ज्ञा०सं० साता भा० माल्हणदे पु० नइणा भा० मेहिणि पु० हांसा नापु स० पितृ श्रे० श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे भ० श्रीवीरचंद्रसूरिभिः ॥ (१८०) विमलनाथ-पंचतीर्थी : ॥ ॐ ॥ संवत् १५०७ वर्षे मार्गसिर सुदि ६ शुक्रे उपकेशज्ञातीय जावड़गोत्रे सं० धणसीह भार्या दादह वीसल भार्ता (भ्राता) महिपाल पु० नगराज साधो आत्मपुण्यार्थं श्रीविमलनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीसागरसूरिभिः॥ १७६. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ८४५. १७७. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ८९९. १७८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ९०५. १७९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक ९१७. १८०. चन्द्रप्रभ जिनालय, आमेर, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ४१९. For Personal & Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (१९८१) सुमतिनाथ - पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५०८ वर्षे वैशा साजण भार्या मेघी आत्मपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारा० बृहद्गच्छे भ० श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ॥ (१८२) संभवनाथ सं० १५०८ वर्षे मार्गशिर वदि २ बुधे श्रीडीडूगोत्रे सा० मूणा भार्या मोल्ही एतयोः पुत्रेण सा०नानिग श्रीसंभवनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे रत्नप्रभसूरि पट्टे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ।। (१८३) चन्द्रप्रभ - पंचतीर्थी : सं० १५०८ वर्षे मार्गसिर वदि २ बुधे श्रीउताडगोत्रे सा० भूणा भार्या तोल्ह मोल्ही एतयोः पुत्रेण तातिनाम्न्या पित्रोः पु० श्रीचंद्रप्रभबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीरत्नप्रभसूरिपट्टे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ॥ (१८४) पार्श्वनाथ- पंचतीर्थी : ॥ सं० १५१० वर्षे चैत्र वदि ८ बुधे श्रीमालज्ञा० काणागोत्रे सा० जयता भा० कान्हू पुत्र । सा० हांसा - चांपाभ्यां स्वश्रेयोर्थं श्रीअभिनन्दनबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीमतिसुन्दरसूरिभिः ॥ (१८५) पार्श्वनाथ- पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५१० चैत्र वदि वदि ८ बुधे श्रीमालज्ञा० चढचहयागोत्रे पं० गोसल भा० गुरादे पुत्र अर्जुनेन स्वश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीसांतिसुन्दरसूरिभिः ॥ (१८६) शांतिनाथ - पंचतीर्थी : २४९ ॥ सं० १५१० वर्षे आषाढ़ सुदि २ गुरौ श्री सोनी गोत्रे सा० मूग संताने सा० भिखू पु० सा० कालू भार्या कमलसिरि पुत्र पूना । सा० कालूकेन आत्मपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं श्रीबृहद्गच्छे भ० श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ॥ १८१. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक ९२३. १८२. शाकरचन्द्र प्रेमचन्द्र की टूंक शत्रुंजय, श० वै०, लेखांक १२०. १८३. हेमाभाई ट्रंक, शत्रुंजय, श०गि०५०, लेखांक ४२१. १८४. शांतिनाथ मंदिर, चांदलाई, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ४५२. प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ४५३. चूरू, राजस्थान, बी०जै० ले०सं०, लेखांक २४०९. १८५. सुमतिनाथ मंदिर, रतलाम, १८६. शांतिनाथ जी का मंदिर, For Personal & Private Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० बृहद्गच्छ का इतिहास (१८७) कुन्थुनाथ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५१० वर्षे माघ सुदि ५ दूगड़गोत्रे सा० सीहा भा० इदी पु० सहदे साऊँ सोढा सहजा सलखा तेषु सहदेव गौरीपुण्यार्थं कुन्थुनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीअमरप्रभसूरिपट्टे श्रीरत्नचन्द्रसूरिभिः ॥ (१८८) पद्मप्रभ-पंचतीर्थी : सं १५१० वर्षे श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० भीमसी भा० हरखूसुत आल्हाकेन भा० कउतिगदे सुत सहिसा शिवदासलखराजादिकुटुंबयुतेन स्वश्रेयोऽर्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं का०प्र० वडगच्छे श्रीपूर्णचन्द्रसूरिभिः ॥ (१८९) पद्मप्रभ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५११ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरौ श्रीहंगडगोत्रे सा० श्रीपोपासंताने सं० अर्जुनभार्या सखणी पु०सं० सिवराज सु० धनराज भार्या० सालिगही सुतेन भावदेवेन भा० वीरी पु० जगमलयुतेन श्रीपद्मप्रभस्वामिबिंबं का०प्र०बृ० श्रीमहेन्द्रसूरिपट्टे श्रीरत्नाकरसूरिभिः शुभम् ॥ (१९०) चन्द्रप्रभ-पंचतीर्थी : संवत् १५११ वर्षे ज्ये०सु० ३ गुरौ दिने ऊ० ज्ञातीय श्री वरलद्धगोत्रे नाथु संताने राजा भार्या राजलदे सुत सह सावलू राणा हुदा श्री मल्लयुतौ पितृ मातृ श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभस्वामी बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री बृहद्गच्छे श्रीमुनिशेखरसूरिसंताने श्रीमहेन्द्रसूरि श्री श्री श्री रत्नाकरसूरिभिः शुभं ॥ (१९१) अजितनाथ-पंचतीर्थी : सं० १५१२ व०वै०शु० १० सोमे उसवंशे लोढागोत्रे सा० चाहड़ भार्या देल्हू पु० निल्हा भा० सोनी करमी सु०सा० हासकेन भातृ सानाउ साखेऊ हासा भार्या रत्नी सु०सा० ठाकुर सा० ईसर सा० ऊँधारी प्रमुखयुतेन स्वश्रेयसे श्रीअजितनाथबिंबं का० प्रति० श्रीबृहद्गच्छे श्रीसूरिभिः प्रतिष्ठितं । १८७. महावीर मंदिर, सांगानेर, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ४६६. १८८. चन्द्रप्रभजी का मंदिर, जानी शेरी, बड़ोदरा, जै०या०प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक १५४. १८९. माणिकसागर जी का मंदिर, कोटा, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ४७१. १९०. संभवनाथ का मंदिर, अजीमगंज, जै० ले०सं०, भाग १, लेखांक २३. १९१. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ६११. For Personal & Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (१९२) अजितनाथ-पंचतीर्थी : ___ सं० १५१३ वर्षे मार्गसिर सुदि १० सोमे श्रीवरलद्ध गोत्रे सा० दोदा पुत्र सा० हेमराजेन पत्रा (?) हेमादे पुत्र बालू धनू सहसू अलणा युतेन श्रीअजितजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरिपट्टे श्रीराजरत्नसूरिभिः।। (१९३) पद्मप्रभ-पंचतीर्थी : सं० १५१३ वर्षे माघ सुदि ३ शुक्रे श्रीउपकेशज्ञातीय परवजगोत्रे व्य० सिवा पुत्र देवाकेन भा० देवलसहितेन मातृ संसारदे पुण्यार्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं कारितं श्रीवडगच्छे श्रीसर्वदेवसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु । (१९४) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५१६ वर्षे आषाढ सुदि ४ शुक्रे उपकेशज्ञा० बरहडीयागोत्रे कुंरसी भार्या कपूरदे पु० रेडा-टीलाभ्यां स्वपित्रो (:) श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरिभिः ॥ (१९५) पद्मप्रभ-पंचतीर्थी : सं० १५१६ वर्षे मार्ग वदि ५ उपकेशज्ञातौ दूगड़गोत्रे सा० सिवराज पु० सं० भिक्खा हांसा भल्हयुतौ भ्रातृ सोहिल पुण्यार्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं का० बृहद्गच्छे श्रीसागरचंद्रसूरिभिः ॥ (१९६) सुमतिनाथ-पंचतीर्थी : ___ सं० १५१७ वर्षे ज्येष्ठसुदि ५ गुरु प्राग्वाटज्ञातीय परिखभादाभार्यामाकूसुतजीवामूलासहितेन आत्मश्रेयोऽर्थं श्रीसुमतिनाथजीवितस्वामिबिंब का०प्र० बृहद्गच्छे सत्यपुरीशाखायां भ० श्रीपासचंद्रसूरिभिः झायणाग्रामे ॥ १९२. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी० जे०ले० सं०, लेखांक ९७३. १९३. ऋषभदेव का बड़ा मन्दिर, थराद, श्री०प्र० ले०सं०, लेखांक २२०. १९४. विमलनाथ जिनालय, कोटा, प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक १०४. १९५. चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर, जैसलमेर, जै०ले०सं०, भाग ३, लेखांक २३३८. १९६. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात, जै० धा०प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक ५८४. For Personal & Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ बृहद्गच्छ का इतिहास (१९७) धर्मनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १५१८ वर्षे माघ सुदि ५ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० मं० बीसल भा० लाडी पु० आसाभा० जसमादे पु० तेजाकालाभा० ठवीचमकूसहिताभ्यां श्रीधर्मनाथबिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे श्रीजयमंगलसूरिसंताने श्रीपुनचंदसूरिपट्टे श्रीकमलप्रभसूरिभिः ॥ (१९८) शान्तिनाथ : संवत् १५१८ वर्षे माघ सुदि १० सोमवारे उपकेशवंशे। श्रीवरहुडियागोत्रे । सा० अमरा पुत्र सा० दूसल पु०सा० खीमा भार्या श्रा० खेतलदे नाम्नी स्वश्रेयसे ------ - पु० मेडा सा० धरमा सहितेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीमुनीश्वरसूरिपट्टे श्रीरत्नप्रभसूरिपट्टे श्रीमहेन्द्रसूरिपट्टे श्रीरत्नाकरसूरिपट्टे श्रीगुणनिधानसूरि श्रीमेरुप्रभसूरिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ (१९९) कुन्थुनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १५१९ वर्षे वैशाख वदि १० ऊकेश ज्ञा०व्य० कृपा भा० सोषल सुत सूराकेन भा० शाणी सुत ठाकुर मेघादि कुटुंब युतेन श्रेयार्थं श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः बृहद्गच्छे जीराउला श्रीउदयचंद्रसूरिभिः।। (२००) कुन्थुनाथ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५१९ वर्षे वैशाख वदि ११ शुक्रे उसवालज्ञातीय हारगोत्रे सं० रामा पु० सामंत भार्या सहजदे पु०सं० सिवाकेन आत्मश्रे० श्रीकुंथुनाथबिंबं का० बृहद्गच्छीय प्रत० श्रीदेवचंद्रसूरिभिः ॥ (२०१) सुमतिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १५१९ वर्षे ज्येष्ट (ष्ठ) सुदि ९ शुक्रे प्राग्वाट ज्ञा०व्य० नरपाल भा० भामलदे पु० रामाकेन भा० रामादे सुत सलिग जेसासहि० श्रीसुमतिनाथपंचती० बि०प्र० वृ(बृ)हद्ग० ब्रह्माणीय श्रीउदयप्रभसूरिभिः ।। १९७. अजितनाथ जी का मंदिर, सुतार की खड़की, अहमदाबाद, जै०या०प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक १३३९. १९८. शांतिनाथ मंदिर, भंडारस्थ प्रतिमा, पंचतीर्थी मंदिर, नाकोड़ा, नाकोड़ा तीर्थ श्रीपार्श्वनाथ, संपा० विनयसागर, लेखांक ३४. १९९. पुरातत्त्व संग्रहालय, सिरोही, पटनी, पूर्वोक्त, लेखांक ६७, पृष्ठ ८४. २००. चन्द्रप्रभस्वामी का मंदिर, जैसलमेर, जै०ले०सं०, भाग ३, लेखांक २३४३. २०१. अनुपूर्ति लेख, आबू, अ० प्रा० जै०ले०सं०(आबू - भाग २), लेखांक ६४३. For Personal & Private Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (२०२) आदिनाथ- पंचतीर्थी : संवत् १५१९ वर्षे पौष वदि ५ शुक्रे उ०ज्ञा० कूकूलोलगोत्रे महं० गोपालपु० जावडभा० २ संपूरी जीवादेपु० अदाहरराज सोमाएतैः मं० जावडनिमित्तं पितृनिमित्तं श्री आदिनाथबिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे श्रीजयमंगलसूरिसं० श्रीकमलप्रभसूरिभिः शुभं भवतु ॥ (२०३) शीतलनाथ चौबीसी - पंचतीर्थी : ॥ ए सं० १५१९ वर्षे माघ सुदि ९ शनौ उ०ज्ञा० धनणिया गोत्रे भ० पीमा गोपा माला पोमादे पु० षेतामाता वेला भा० पूजलदे सहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथ बिं० का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीजयमंगलसूरीणां शिष्ये । श्रीहेमचंद्रसूरिपट्टे श्रीकमलप्रभसूरिभिः श्री पत्तन । ऊचीशेरी वास्तव्य ॥ ॥ ( २०४) अनन्तनाथ- पाषाण संवत् १५- सुदि १० सोमे ऊकेशवंशे वरहुडीयागोत्रे सा० अमरा पुण्यार्थं दूसल पु०सा० खीमा पु०सं० सहजा पुण्यार्थं श्री अनन्तनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीरत्नाकरसूरिपट्टे श्रीमुनिनिधानसूरिभिः -1 २५३ ➖➖➖➖➖➖ (२०५) आदिनाथ- पंचतीर्थी : संवत् १५२० वर्षे वै० सुदि ५ भौमे श्रीज्ञातीय श्रीपल्हयउ गोत्रै सा० भीषात्मज सा० घेल्हा तत्पुत्र सा० सांगा प्रभृतिभिः स्वपितृ पुण्यार्थं श्री आदिनाथ बिंबं कारितं बृहद्गच्छे श्रीरत्नप्रभसूरिपट्टे प्रतिष्ठितं श्री महेन्द्रसूरिभिः ॥ (२०६) संभवनाथ - पंचतीर्थी : ॥ सं० १५२१ आषाढ़ वदि १३ उप० ज्ञातीय गुहउचागोत्रे मं० भडा भा० गांगी पु० देल्हा हेमादेल्हा भा० चनकू पु० दीता हेमा भा० अमरी पु० दूल्हा सहि० मं० भडानि० श्रीसंभवनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः श्रीः ॥ २०२. पद्मप्रभ का मंदिर, दलाल का टेकरा, खेड़ा, जै०धा०प्र०ले० सं०, भाग २, लेखांक ४३७. २०३. शामला पार्श्वनाथ मंदिर, लाम्बाशेरी पोल, अहमदाबाद; J.I. I. A No. 462. २०४. भण्डारस्थ प्रतिमा, शांतिनाथ मंदिर, नाकोड़ा, नाकोड़ा श्री पार्श्वनाथतीर्थ, लेखक- विनयसागर, लेखांक ६५. २०५. संभवनाथ जी का मंदिर, अजमेर, जै०ले०सं०, भाग १, लेखांक ५५९. २०६. पंचायती मंदिर, जयपुर, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ६१६. For Personal & Private Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ (२०७) अजितनाथ - पंचतीर्थी : ॥ सं० १५२३ वर्षे मार्गसिर सुदि १० सोमे श्रीवरलद्धगोत्रे । सा० दोदा पुत्र सा० हेमराजेन पत्नी हेमादे पुत्र बालू धनू सहसू डालण युतेन श्री अजितजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरिपट्टे श्रीराजरत्नसूरिभिः ।। (२०८) कुन्थुनाथ- पंचतीर्थी : सं० १५२४ वैशा० सु० ६ गुरौ ऊकेश ज्ञाती मंडवेचा गोत्रे सा० नाल्हा भा० नींबू पु० सहसा भा० संसारदे पु० वीरम सहितेन आ० श्रे० श्रीकुंथुनाथ बिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीजयमंगलसूरि संताने भ० श्रीकमलप्रभसूरिभिः ॥ बृहद्गच्छ का इतिहास (२०९) शांतिनाथ - पंचतीर्थी : ।। ६० ।। सं० १५२४ वर्षे मार्गसिर वदि १२ सोमे श्रीनाहरगोत्रे सा० राजा पुत्र सा० पुनपाल भार्या चोखी नाम्न्या पुत्र डालू धणपाल देवसीह पुतया श्रीशांतिनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छीय श्रीमेरुप्रभसूरिपट्टे श्रीराजरत्नसूरिभिः ॥ (२१०) कुन्थुनाथ- पंचतीर्थी : संवत् १५२४ वर्षे फागुण सुदि ७ बुधे श्रीमालज्ञातीय श्रीपल्हवडगोत्रे सुन श्रीपाल कुमरपाल यु० पूर्ववालियपुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं श्रीबृहद्गच्छीय श्रीरत्नाकरसूरिपट्टे प्र० श्रीमेरुप्रभसूरिभिः ।। -1 (२११) सुपार्श्वनाथ- पंचतीर्थी : सं० १५२५ चैत्र वदि १० गुरौ उसवंशे मांडलेचा बुहरा रूदा भा० मेहिणि सुत ताला भा० हांसू सुत माऊ दास भार्या वीरु रामा समरु पु० श्रीसुपासबिंबं का० वडगच्छे प्र० कमलप्रभसूरि० ॥ २०७. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक १०३१. २०८. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक १०३५. २०९. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक १०३७. २१०. आदिनाथ जी का मंदिर, पूना, प्रा०ले०सं०, लेखांक ३८०. २११. महावीर मंदिर, पनवाड़, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ६५५. For Personal & Private Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (२१२) आदिनाथ- पंचतीर्थी : ॥ सं० १५२५ वर्षे ज्येष्ठ व० १ शुक्रे श्रीउपकेश गुंडूचा गोत्रे मं० हांसा भा० लालू सुत० पदमउलेचा सहितेन पितृहांसा निमित्तं श्रीआदिनाथबिंबं कारि० प्रतिष्टि(ष्ठि) तं श्रीबृहद्गच्छे श्रीअमरचंद्रसूरिपट्टे श्रीदेवचंद्रसूरिभिः ॥ संकलपुरा ॥ (२१३) सुमतिनाथ - पंचतीर्थी : सं० १५२५ वर्षे आषाढ़ सुदि ९ शंनौ ऊपकेशज्ञा ० सा० सामल भा० सारू पु० देधर मांजा चाईया मांजा भा० मल्ही पु० सोमा सहि० समसा भ्रातृयु० पितृव्य भ्रातृ हेमा भा० सोहतीपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारापितं प्र० बृहद्गच्छे बोकडीयावट ० श्रीधर्म्मचंद्रसूरिपट्टे श्रीमलयचंद्रसूरिभिः ।। (२१४ ) शांतिनाथ - पंचतीर्थी : संवत् १५२५ वर्षे मार्ग शुदि ३ शुक्रवासरे श्रीमालज्ञातीय तातरहीलागोत्रे संघवी कान पुत्र सारंग सेगा सांतिनाथबिंबं कारपितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीहेमशेखरसूरिगच्छे तत्पटे श्रीप्रेमप्रभसूरितत्पटे श्रीशालिभद्रसूरि प्रतिष्ठितं स निमिरो ( ? )|| २५५ (२१५) सुमतिनाथ - पंचतीर्थी : ।। संवत् १५२५ वर्षे मार्ग० सुदि ९ बुधे । ओसवालान्वये स्वयंभगोत्रे सा० साल्हा भा० गांगी । सा० मोल्हा भा० गेली सा० गोला भा ०खेतू पुत्र धन्ना । आत्मश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारापितं । प्र० बडगच्छे श्रीगुणसुन्दरसूरिपट्टे श्रीविनयप्रभसूरिभिः ॥ श्रीरस्तु ॥ (२१६) सुविधिनाथ- पंचतीर्थी : संवत् १५२६ वर्षे मार्ग० वदि ५ सोमे प्रा० ज्ञातीय व्य० विजा भा० लाबलदे पु० राणा भा० सहितेन स्व श्रेयसे श्रीसुविधिनाथ बिंबं का० प्र० बृहद्गच्छे श्री देवचंद्रसूरिभिः ।। २१२. आदीश्वर मंदिर, राजामेहतापोल कालूपुर, अहमदाबाद; J.I.I.A, No. 600. २१३. आदिनाथ जी का मंदिर, जामनगर, प्रा०ले० सं०, लेखांक ४०२. २१४. आदिनाथ जिनालय, कोटा, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ६६५. २१५. शांतिनाथ मंदिर, भोजपुर, वही, भाग १, लेखांक ६६६. २१६. पुरातत्त्व संग्रहालय, सिरोही, पटनी, पूर्वोक्त, लेखांक ९८, पृष्ठ For Personal & Private Use Only ८७. Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ बृहद्गच्छ का इतिहास (२१७) आदिनाथ-पंचतीर्थी : ॥ सं० १५२८ वर्षे चैत्र वदि ५ सो० उसवाल ज्ञातीय वीराणेचा गोत्रे सा० तोल्हा पुत्रेण सा० सहदेवेन भा० सुहागदे पु० डूंगर जिनदेव युतेन स्वपुण्यार्थं श्री आदिनाथबिंब कारितं प्र० श्री बृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरि भ० श्रीराजरत्नसूरिभिः ॥ (२१८) वासुपूज्य-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५२८ वर्षे वैशाख वदि ५ रवौ उपके० ज्ञा०सा० महिपा भा० राजू पु० जेसा माईया भा० धरमिणी सहिते पित्रोः श्रेयसे श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्रतिष्ठितं . श्रीबृह० श्रीवीरचन्द्रसूरि आ० श्रीधरप्रभसूरिसहितेन।। (२१९) शीतलनाथ-पंचतीर्थी : ॥ सं० १५२८ वर्षे वैशाख वदि ६ चंद्रे उपकेशज्ञातौ दूगड़गोत्रे । सा० शिखर भा० घेली पुत्र धनपालेन भा० पासू नानिग सोनपाल प्रमुखसहितेन स्वश्रेयसे श्रीशीतलनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरिभिः ॥ (२२०) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १५२८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्रे श्रीमालवंशीय चहचहियागोत्रे सा० देवा भा० हाली पु० रूडा भा० मंदोअरि पु० देवण बाला भा० थारू पु० टेका गिरराज बांलाकेन स्वपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीमाणिक्यसुन्दरसूरिभिः ॥ (२२१) संभवनाथ-पंचतीर्थी : ____ सं० १५३० वर्षे माघ सुदि रवौ उपकेश ज्ञातीय श्रेष्ठि प्रथमा भार्या पांचीपुत्र परवत भार्या पाल्हणदे सहितेन मातृ सहितेन आत्मश्रेयो) श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छे वोकंडीयावंटके श्रीधर्मचंद्रसूरिपट्टे श्रीमलयचंद्रसूरिभिः ॥ २१७. महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै०ले०सं०, लेखांक १३३७. २१८. पंचायती मंदिर, जयपुर, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ७०१. २१९. बड़ा मंदिर, नागोर, वही, लेखांक ७०३. २२०. गौडी पार्श्वनाथ मंदिर, पालिताणा, श०वै०, लेखांक १९६. २२१. वासुपूज्य मंदिर, रूपसुरचन्द्र की पोल, अहमदाबाद; J.I.I.A, No. 654. For Personal & Private Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय ( २२२) विमलनाथ- पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५३१ वर्षे माघ सुदि पंचमी शुक्रवारे पल्लीवालज्ञाती साह राज तत्पुत्र धर्मसी तत्पुत्र पियंवर। विमलनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीशालिभद्रसूरिभिः 11 31 11 (२२३) कुन्थुनाथ- पंचतीर्थी : संवत् १५३२ वर्षे चैत्र सुदि ११ दिने बरहडियागोत्रे सा० इसर भा० इहवदे पु० सालिग भा० सुण सा० देवा धर्म्मसी देवा भा० देवश्री पु० तारायुतेन श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीबृहद्गच्छे भ० श्रीमेरुप्रभसूरिपट्टे आचार्य श्रीराजरत्नसूरिभिः शुभंभवतु श्रेयस्तात् ।। २५७ (२२४) कुन्थुनाथ- पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि १ गुरुवारे श्रीपल्हवडगोत्रे सं० घेल्हसंताने सं० छाहड पुत्र सा० शिवराजभार्या संसारदे पुत्र कल्हणयुतेन स्वश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छीय श्रीमेरुप्रभसूरिभिः श्रीराजरत्नसूरिभिः ।। (२२५) कुन्थुनाथ - पाषाण संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि १ गुरौवारे श्रीवरलच्छ गोत्रे सं० कर्मण संताने सा० वणपालात्मज सा० सिधा भार्या सिंगारदे पुत्र खेता चितहंद पुत्रा युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद्गच्छीय श्रीमेरुप्रभसूरिपट्टे श्रीराजरत्नसूरिभिः ॥ (२२६) शांतिनाथ - पंचतीर्थी : सं १५३४ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोपतवा भा० अगणी पुत्र नापा सादा नापल पणदे सूरमदे षुजसवानाथ तेजा नाल्हा स० श्रीशांतिनाथ बिंबं आत्मश्रेयसे का०प्र० बृहद्गच्छे भ० कलशचंद्रसूरिभिः ॥ २२२. पार्श्वनाथ मंदिर, बूंदी, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ७३८. २२३. विमलनाथ मंदिर, बेंतेड, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ७४२. २२४. पार्श्वनाथ मंदिर, बूंदी, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ७७४. २२५. मुनिसुव्रत का मंदिर, नाल, बीकानेर, बी०जै०ले०सं०, लेखांक २२८१. २२६. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक १०८०. For Personal & Private Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ (२२७) चन्द्रप्रभ - पंचतीर्थी : संवत् १५३४ वर्षे माह सुदि ६ शनौ ऊके० मूंदो गो० साढ़ा भा० नेतू पु० गंगा भा० लिक्ष्मी पु० चांपा भा० चांपलदे पित्रौ श्रीबृहद्गच्छे श्रीवीरचन्द्रसूरि पट्टे श्रीधनप्रभसूरिभिः ॥ ध आभा महिया भा० कान्ह पु० श्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभ बिंबं का० प्रति० बृहद्गच्छ का इतिहास (२२८) वासुपूज्य पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५३५ वर्षे माह सुदि ९ प्राग्वाटज्ञातीय सांभरयागोत्रे सा० समरा भा० हानी पु० आल्हा देवसी आल्हा भा० आल्ही पु० ऊधा पद्मसी चांदा पंचायणयुतेन स्वश्रेयसे । श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्र० श्रीबृहद्गच्छीय भ० ज्ञानचन्द्रसूरिभिः ॥ (२२९) आदिनाथ- पंचतीर्थी : संवत् १५३६ वर्षे का०सु० १५ बु० गोखरूगोत्रे सा० लोहट भा० संपई पुत्र सा० टिला भा० कउतिगदे भ्रातृ पारस भा० पाल्हणदे पु० छीता धर्मसी पितृ - आत्मश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं का०प्र० बृहद्गच्छे ज्ञानचन्द्रसूरिभिः ।। (२३०) सुमतिनाथ - पंचतीर्थी : सं० १५३६ वर्षे वैशाख सुदि ८ भूमे उ० मंडलेचा गोत्रे सा० कूदा भार्या रंगादे पु० जइता ता आर जइता भा० जिस्मादे तास्मा भा० नारादे पु० अमरा आ० ० सुमतिनाथबिंबं का०प्र०बृ०ग० पुण्यप्रभसूरिभिः ।। (२३१) शांतिनाथ - पंचतीर्थी : सं० १५३६ फागुण सुदि ३ बाफणा गोत्रे सा० मूला भा० महगलदे पु०सा० धर्माकेन भा० अमरी पु० पेथाकाजासांतलसामल सकुटुंबयुतेन श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीबृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरिभिः ।। २२७. महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर, वही, लेखांक १२९८. २२८. चन्द्रप्रभ मन्दिर, कोटा, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ७९२. २२९. पंचायती मंदिर, जयपुर, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ७९७. २३०. भण्डारस्थ प्रतिमा, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर, बी०जै० ले०सं०, लेखांक १०९६. २३१. सुपार्श्वनाथ का मंदिर, जैसलमेर, जै० ले०सं०, भाग ३, लेखांक २१९६. For Personal & Private Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५९ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (२३२) महावीर-पाषाण सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीवरहुडिया गोत्रे सा० खीमा पुत्र स० धरमा भार्या --------- सा० खीमा पु०सा० माडा० देऊ पुत्र गढमल्ल धरमा नाम्ना निजभार्या पुण्यार्थं श्रीमहावीर बिंबं कारितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीरत्नाकरसूरिपट्टे श्रीमेरुप्रभसूरिभिः।। (२३३) कुन्थुनाथ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५३७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ भोमे बगलथिआण श्रीश्रीमालज्ञातीय सा० सोमिल भा० सहजलदे द्वि० सोनलदे पु० सांगा भार्या रतनादे पुत्र खेता खीमा पुण्यार्थं श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीबृहद्गच्छे भ० श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः -------------|| (२३४) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १५३८ वर्षे ज्येष्ठ शुक्लपक्षे दशमीतिथौ शुक्रे श्रीमालीज्ञातीय- चहचइयागोत्रे मा० दवा० भा० दीलु पुत्र सुरा भा० मंदोयरि पु० देवण बाभा भाथा रूयु । टे । काजिरराज बालाकेन स्वपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीबृहद्गच्छेराश्रीमाणिकसुंदरसूरिभिः ॥ (२३५) ......... पंचतीर्थी : संवत् १५३९ वर्षे ---------- गुर्जरज्ञातीय व्य० वना पुत्र तेजाकेन पुत्र झांझण -------- श्रीबृहद्गच्छे प्र० श्रीगुणप्रभसू० प्रतिष्ठितं श्रेयनिमित्तं ॥ (२३६) मुनिसुव्रत-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५४२ वर्षे वैशाख वदि ९ शुक्रे उपकेशज्ञा० सिंघाडियागोत्रे सं० रेडा सं० सा० ऊदा भार्या ऊदलदे पु०सा० छाजू श्रीमल जिणदत्त पारसयुतेन आ०पु० श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का०प्र० ॥ श्रीबृहद्गच्छे भ० श्रीमेरुप्रभसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ श्रीः ॥ २३२. अष्टापद जी का मंदिर, जैसलमेर, बी० जै० ले०सं०, लेखांक २७२१. २३३. आदिनाथ मंदिर, चाडसू, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ८१२. २३४. देरी क्रमांक १८२, शत्रुजय, श०गि०द०, लेखांक १८२. २३५. महावीर मंदिर, सांगानेर, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ८२०. २३६. नया मंदिर, जयपुर, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ८२८ तथा प्र०ले०सं०, लेखांक ४८५. For Personal & Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० बृहद्गच्छ का इतिहास (२३७) धर्मनाथ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५४३ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे श्री उसवंशे बृद्धशाखयां साह मांडूण पुत्र साह नाथ भा० नासलदेपुत्र साह जीवाकेन भार्या बीजलि पु० हर्षायुतेन आत्मश्रेयसे श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं श्रीवडगच्छे भ० श्रीदेवकुंवरसूरिभिः प्र० भल्लाडी गामो ।।। (२३८) श्रेयांसनाथ-पंचतीर्थी : सं० १५४८ वर्षे पौष सुदि १३ सोम दिने उस० फूलपरगगोत्रे सा० डूंगर भा० लीलू पु० नरसिंघ भ० कूप पु० चोली सहितेन पुण्यार्थं कारापितं श्रीश्रेयांसबिंबं । प्र० बृहद्गच्छे श्रीवीरचन्द्रसूरि पट्टे श्री धनप्रभसूरिभिः श्रेयोथ।। (२३९) सपरिकर अजितनाथ-पंचतीर्थी : . सं० १५४९ वर्षे माह सु० ५ सोमे उपकेश ज्ञा० धनपति गोत्रे सा० जिणदत्त भा० चांदू पु०सा० नीसल भा० हर्षाई पितृ मातृ आत्मश्रेयसे श्रीअजितनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीजयमंगलसूरिन्वये श्रीकमलप्रभसूरिपट्टे प्र० श्रीपुण्यप्रभसूरिभिः ॥ (२४०) संभवनाथ-पंचतीर्थी : ___ संवत् १५५० वर्षे माह सुदि ५ गुरु उ० ज्ञातीय धनाणेचागोत्रे सा० वीसल भा० नायवदे पु०सा० वणा भा० वाल्हादे पु० रायमल आत्म० श्रीसंभवनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीजयमंगलसूरिसंताने भ० श्रीपुण्यप्रभसूरिभिः।। (२४१) शिलालेख (१) ॥ ८० ॥ श्री जिनाय नम: जयति परमतत्त्वानंदकेलीविलास: त्रिभुवनमहनीय: सर्व्वसंपन्निवास: (२) दलितविषयेदोषो रिक्तजन्मप्रयास:। प्रचुरनुपमधामालंकृत: श्री सुपास: ॥ १ संवत् १५५१ वर्षे शाके (३) १४१६ (प्र) वैशाख सुदी पष्टी तिथौ शुक्रवासरे पुनर्वसुनक्षत्रे खलची वंशे सुरताण श्रीग्यासदीन विजय (४) राज्ये । तस्य पुत्र सुलताण श्री नासिरसाहि युवराज्या मंत्रीश्वर माफरल मलिक श्री पुंजराज बांधव मुंजराज (५) संहिते। श्री श्रीमालज्ञातिय बुहरा गोत्रे । बुहरा रणमल्लभार्या रयणादे । पुत्र बुहरा श्री पारसभार्या २३७ चन्द्रभ जिनालय, मांडवी पोल, अहमदाबाद J. I. I.A, No. 734. २३८. शांतिनाथजिनालय, उज्जैन, प्र०ले०सं०, भाग २, लेखांक १७५. २३९. अजितनाथ मंदिर, बाघनपोल, अहमदाबाद; J. I.I. A, No. 747. २४०. शान्तिनाथ मंदिर, रामपुरा, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ८५९. २४१. तारापुर मंदिर, माण्डवगढ, "माण्डवगढ के तारापुर मंदिर का शिलालेख", जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ३, अंक १, पृ० ४४-४८ For Personal & Private Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २६१ उभया (६) कुलानंददायिनी सव्पुरत्नगर्भा मटकू । सत्पुत्र बुहरा गोपाला उभय कुलालंकरणा। सुशीला भार्या पुनी (७) पुत्र संग्राम जीझा । बुहरा संग्राम भार्या करमाई। जीझाभार्या जीवादे प्रमुख सुकुटुम्ब युतेन।। श्री भिन्नमाल । (८) वडगच्छे श्री वादीदेवसूरिसंताने। सुगुरु श्री वीरदेवसूरिः। तत्पट्टे श्री अमरप्रभ सूरिः तत्पट्टालंकार विजयवतां (९) गच्छ नायक पूज्य श्री श्री कनकप्रभसूरीश्वराणां। उपदेशेन ॥ प्रगट प्रतापमल्लेन । परोपकारकरणचतुरेण (१०) निजभुजोपर्शित वित्तव्यय पुण्य कार्य सुजन्म सफलीकरणेन । राजराजेन्द्र सभासंशोभितेन । सज्जन जन (११) मानस राजहंसेन । श्रीशQजयादि तीर्थावतार चतुष्टय पट्टनिर्मापणेन। श्री देवगुरु आज्ञा पालन तत्परेण। सर्व (१२) कार्य विदुरेण । श्रीमाल ज्ञाति बुहरा (?) विभूषणेन । सर्वदा श्री जिनधर्म सकर्मकरण निर्दूषणेन । श्रीमन् । (१३) मंडपाचल निवासीय विजयवन् बुहारा श्री गोपालेन । मंडपपुर्यात् दक्षिण दिग् विभागे । तलहट्यां । श्री तारापुरे (१४) सुपुण्यार्थं । मनोवांधित दायक सप्तम श्री सुपार्श्व जिनेद्रस्य सर्वजनसंजनिताल्हाद: सुप्रसाद: - प्रसाद: कारित: (१५) स गोपाल: शिलाभरण विलसत्वृत्तिरमलो। विनीत: प्रज्ञावान् विविध मुक्तारम्भ निपुणः ॥ जिनाधीनः स्वांत: (१६) सुगुरुचरणाराधनपर: पुनीभार्यायुक्तो नुभवति गृहस्थाश्रमसुखं ॥ १ ॥ चिरं नंदतु ॥ सर्वशुभं भवतु ॥ श्रीरस्तु ।। (२४२) मुनिसुव्रत-पंचतीर्थी : ॥ सं० १५५१ वैशाख सुदि ११ सोमे उपकेशज्ञातीय माडदेचागोत्रे सा० मेलात्मज । सा० झांझा भा० पदी पु० भूदावर स्वनिमित्तं बिंबं मुनिसुव्रत। प्र० बृह० भ० श्रीधनप्रभसूरिभिः ॥ (२४३) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : ॥ संवत् १५५२ वर्षे फागुण वदि ८ सोमे सोनगोत्रे सा० नाथू पु०सा० साधारण पु०सा० देदा भा० देवलदे नाम्न्या स्वपुण्यार्थं कुटुम्बश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छे श्रीज्ञानचन्द्रसूरिभिः श्रीछल्ली वास्तव्यम् ॥ (२४४) शांतिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १५५६ वर्षे वैसाख सुदि १३ रवौ उसवालज्ञातीय श्रे० खेता भा० संपुरी सु०श्रे० खोना भा० वीरु सुत लखा भार्या लखमादेभ्यां सहितेन स्वश्रेयोऽर्थं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं वडगच्छे प्र० देवचंद्रसूरिभिः ।शेरपुरग्रामे। २४२. सेठ जी का घर देरासर, कोटा, प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक ८६०. २४३. विजयगच्छीयमंदिर, जयपुर, वही, भाग १, लेखांक ८७०. २४४. गणेशमल सौभाग्यमल का मंदिर, बम्बई, जै० धा०प्र०ले०, लेखांक २६९. For Personal & Private Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ (२४५) कुन्थुनाथ- पंचतीर्थी : संवत् १५५७ वर्षे आषाढ़ वदि १० शुक्रे रेवत्यां श्रीदूगड़गोत्रे सं० रूपा पु०सा० सहसू भार्या लूणाही पु० सालिगेन पुत्र अभयराज सहितेन स्वपित्रो पुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारितं श्रीबृहद्गच्छे पू० श्रीरत्नाकरसूरिपट्टे श्रीमेरुप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (२४६) कुन्थुनाथ- प - पंचतीर्थी : बृहद्गच्छ का इतिहास संवत् १५५९ आषाढ़ सुदि बुधे । श्रीपल्हुवडगोत्रे । सा० तोला सन्ताने कुंवर पालहण साधुकेन भा० देवल पु० पासु रूपचन्द युतेनात्मश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्र० बृहद्गच्छे भ० श्रीमेरुप्रभसूरिपट्टे श्रीमुनिदेवसूरिभिः ।। श्री ।। (२४७) आदिनाथ - पाषाण संवत् १५६६ वर्षे अश्विन सुदि ४ भौमवासरे श्रीबृहद्गच्छे श्रीप्रानास संतति भ। श्रीमुनिदेवसूरि शिष्य वा० न्यानप्रभ श्रीआदिनाथबिंबं पुत्रसा० वरगषण अभ्यथतैन सीयात्रसे रोषेन ? ॥ श्री ॥ — सा (२४८) अजितनाथ पंचतीर्थी : संवत् १५६६ वर्षे माह सुदि ४ गुरौ ओसवालज्ञातीया बूवादेचागोत्रे सा० हांसा भा० हांसलदे पुत्र सा० होला भा० हीरादे पुत्र लोलासहितेन श्रीअजितनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे बोक० वटंके श्रीमलयहंससूरिभिः ।। (२४९) नमिनाथ- पंचतीर्थी : For Personal & Private Use Only (?) संवत् १५६९ माघ सुदि १५ गुरौ अहिमदाबादवास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञा० पं० सादा भा० चमकू सुत वरजांगेन भा० हांसी भ्रातृ भोला वृद्ध गोमादिकुटुंबयुतेन स्वमातृश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का०प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीकमलप्रभसूरिभिः ॥ २४५. शांतिनाथ जी का मंदिर, नाहटों में, बीकानेर, बी०जै०ले०सं०, लेखांक १८३०. २४६. बड़ा मंदिर, नागोर, प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक ९०२. बी०जै० ले०सं०, लेखांक २५२७. २४७. शांतिनाथ जी का मंदिर, हनुमानगढ़, बीकानेर, २४८. सुपार्श्वनाथ का मंदिर, जैसलमेर, जै० ले०सं०, २४९. शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथपोल, अहमदाबाद, जै० धा० प्र०ले० सं०, भाग १, लेखांक १३२०. भाग ३, लेखांक २२०५. Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६३ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय (२५०) आदिनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १५७२ वर्षे वैशाख सुदि ५ सोमे ऊ०ज्ञा० फूलपगरगोत्रे सा० दधीरथ पु०सा० धर्मा भा० २ पाबू साल्ही पाबू -------- पु० जांजा भा० पूरी -------- --- पुत्र मोकल प्रमुख समस्त कुटुम्बेन स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्री वडगच्छे श्रीश्री चंद्रप्रभसूरिभिः ॥ श्री ॥ जावर वास्तव्य ॥ (२५१) चन्द्रप्रभ-पंचतीर्थी : संवत् १५८१ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ ओसवाल ज्ञा० साह रत्ना भा० रत्नादे पुत्र वाघा सौधलगोत्रे भा० पूतली आत्मश्रेयसे पितृनिमित्तं श्रीचंद्रप्रभबिंब का० श्रीबृहद्गच्छे भ० श्रीदेवकुंजरसूरिपट्टे श्रीदेवेन्द्रसूरि प्रतिष्ठितम् ॥ (२५२) स्तम्भलेख ___ संवत् १६१३ वैशाख सुदि ९ दिने श्रीबृहद्गच्छे भट्टारक श्री ७ पुण्यप्रभसूरि तत्शिष्य मुनिविजयदेवः श्रीनेमिनाथः प्रणमिति ॥ वक्रेतरचेतसा यात्रा कृता सफला भवतु ।। नित्यं पुनरपि दर्शनमस्तु मंगलं श्री । (२५३) शिलालेख ॥ संवत् १६१३ वर्षे वैशाष (ख) सुदि ८ दिने श्रीवृ(बृ)हद्गच्छे भट्टारकश्री ७ पुरण (पूर्ण) प्रभसूरि तत्सिक्ष (च्छिष्य) मुनिविजयदेवेन यात्रा कृता सफला भवतु ॥ (२५४) पार्श्वनाथ-पंचतीर्थी : संवत् १६३९ वर्षे चैत्र वदि ११ भूमे खरदूथ भा० भीऊ पुत्र सोमा महरा स्वश्रेयोऽर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंब कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीउदयसिंहसूरिभिः वडगच्छे ॥ २५०. पंचायती मंदिर, लस्कर, ग्वालियर, जै०ले०सं०, भाग २, लेखांक १३८६. २५१. जैन मंदिर, ऊंझा, जै० धा०प्र०ले०सं०, भाग १, लेखांक १८३. २५२. लूणवसही, आबू, अ० प्रा० जे०ले० सं०, (आबू - भाग २)लेखांक ३८९. २५३. विमलवसही, आबू, वही, लेखांक १९९. २५४. शांतिनाथ जी का मंदिर, चोकसीपोल, खंभात, जै० धा०प्र०ले० सं०, भाग २, लेखांक ८४७. For Personal & Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - २ बृहद्गच्छीय अभिलेखों का मूल पाठ अथवा बृहद्गच्छीय लेख संग्रह । बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय । संस्कृति के विकास में जितना महत्त्वपूर्ण स्थान इतिहास का है, ठीक उसी प्रकार उतना ही महत्त्व इतिहास में साक्ष्यों का है । प्रामाणिकता से अभाव में इतिहास धीरेधीरे किन्वदन्तियों का रूप ग्रहण कर लेता है । ___इतिहास के साक्ष्यों की विभिन्न कड़ियों में एक है शिलाओं और मूर्तियों पर उत्कीर्ण लेख । जैन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के स्रोत हैं । प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों से अनेक महत्त्वपूर्ण बिन्दु स्वतः प्रामाणित हो जाते हैं । उनके निर्माता उपासकों का समय, उनकी ज्ञाति, उनका गोत्र तथा आचार्यों एवं पदवीधारी मुनिजनों का काल-निर्धारण होने के साथ-साथ गुरु-परम्परा भी निश्चित हो जाती है । उनके गच्छ का भी निर्धारण होने के साथ-साथ गुरु-परम्परा भी निश्चित हो जाती है । कुछ लेखों में उस काल के राजाओं तथा ग्रामों-नगरों के नामोल्लेख भी प्राप्त होते हैं । कई विस्तृत शिलालेख प्रशस्तियों में उस राजवंश का और उनके निर्माताओं के वंश का भी वर्णन होता है और उनके कार्यकलापों का भी ।। २०वीं शती के प्रारम्भ से ही जैन परम्परा के शिलालेखों - प्रतिमालेखों के संकलन को महत्त्व देना प्रारम्भ हुआ और पूरनचंद नाहर, मुनि जिनविजय, आ० बुद्धिसागरसूरि, आ० विजयधर्मसूरि, मुनि जयन्तविजय, मुनि विशालविजय, आ० यतीन्द्रसूरि, महो० विनयसागर, अगरचन्द नाहटा-भवरलाल नाहटा, मुनि कान्तिसागर, नन्दलाल लोढा, प्रवीणचंद्र परीख आदि विभिन्न विद्वानों में अत्यंत परीश्रम के साथ इसे संकलित और For Personal & Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २६५ संपादित कर विभिन्न संस्थाओं से इसे समय-समय पर प्रकाशित कराया तथा यह प्रक्रिया आज भी जारी है । गच्छ विशेष से सम्बन्धित अभिलेखीय साक्ष्यों के अब तक दो महत्त्वपूर्ण संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, इनमें प्रथम है अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, जो श्रीपार्श्व द्वारा संकलित और ई० स०....... में अंचलगच्छ......... द्वारा प्रकाशित है । इसमें उस समय तक प्रकाशित सभी लेख संग्रहों से लेखों का कालक्रमानुसार संकलन किया गया है । इसी प्रकार का दूसरा संकलन है खरतरगच्छीय प्रतिष्ठा लेख संग्रह, जो महो० विनयसागरजी द्वारा संकलित और प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर द्वारा ई०स० २००६ में प्रकाशित किया गया है । उसी कड़ी में यह तीसरा संकलन है बृहदगच्छीय लेख समुच्चय, जो आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की प्रेरणा से ॐ कारसूरि आराधना भवन - सुरत से प्रकाशित हो रहा है । इस संग्रह में अब तक प्रकाशित और प्रायः ज्ञात सभी लेख संग्रहों से बृहद गच्छ से सम्बद्ध लेखों का संकलन करते हुए उन्हें कालक्रमानुसार संयोजित किया गया है । प्रत्येक लेख किस प्रतिमा या शिला पर है, तथा कहां है और किस लेख संग्रह से उसे लिया गया है इसका भी उल्लेख पादटिप्पणी के अन्तर्गत उसी स्थान पर कर दिया गया है । परिशिष्ट के अन्तर्गत आधार सामग्री का अकारादिक्रम से पूर्ण उल्लेख करते हुए उनके नामों का संक्षिप्तीकरण भी दे दिया गया है जो इस संकलन में प्रयुक्त हुए हैं । For Personal & Private Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट चामुंडा प्रशस्ति लेख का मूल पाठ* चामुण्डा प्रशस्ति लेख - ओं।। श्वेतांभोजातपत्रं किमु गिरि दुहितुः स्तटिन्या गवाक्षः किंवा सौख्यासनं वा महिम मुख महासिद्ध देवी गणस्य। त्रैलोक्यानंदहेतोः किमदितमनघं श्लाघ्य नक्षत्र मुच्चै शंभोर्भालस्थलेंदुः सुकृति कृतनुतिः पातु वो राज लक्ष्मीं ॥ १ ॥ ईशस्यांकावनिरनुपमानंद संदोह मूला चंचद्वासोंचल दलमयी भूषण प्रौढ पुष्पा । सल्लावण्योदय सुफलिनी पार्व्वती प्रेम वल्ली लक्ष्मी पुष्णात्वनु दिन मति व्यक्त भक्त्या नतानां ॥ २ ॥ विकट मुकुट माद्यत्तेजसा व्योम्नि दैत्यानिव भुवि मणिमय्या मेखलायाः क्वणेन । अनणुरणित लीला हंसकेस्त्रासयंती फणि पति भुवनांतश्चंडिका वः श्रियेस्तु || ३ || श्री मद्वत्समहर्षि हर्ष नयनो भूतां पूर प्रभा पूर्व्वेर्व्वीधर मौलि मुख्य शिखरालंकार तिग्मद्युतिः । पृथ्वीं त्रातु मपास्त दैत्य तिमिरः श्री चाहमानः पुरा वीरः क्षीर समुद्र सोदर यशो राशि प्रकाशो भवत् ॥४॥ रत्ना वल्यामिव नृपततो तत्क्रमे विश्रुतायां घर्म्मस्थान प्रकर करण प्राप्त पुण्योत्सवायां । श्री नदूलाधि पतिर भव ल्लक्ष्मणो नाम राजा लक्ष्मीलीला सदन सदृशाकार शाकंभरींद्रः ।। ५ ।। आपाताला त्समर जलधिं मदरो यस्य खड्गो मुष्टिव्याजाद्भुजग पतिना शृंखले नावबद्धः । निर्म्मथ्योच्चैः सपदि कमलां लीलयोद्धृत्यमत्तश्चक्रे नृत्तं रणित कटक: केलि कंपच्छलेन ।। ६ ।। तस्माद्धि माद्रि भवनाय यशो पहारी श्रीशोभितो जनि नृपो स्य तनूद्भवोथ । गांभीर्यधैर्य सदनं बलि राज देवो यो मुञ्जराजबल भंगमचीकरतं ॥ ७ ॥ साम्राज्याशा क रेणुं रिपु नृपति गज स्तोम माक्रम्य जहे यत्खङ्गो गंध हस्ती समर रस भरे विंध्य शैलाय माने । मुक्ता शुक्तींदु कांतोज्ज्वल रुचिषु लसत्कीर्त्तिरेवातटेषु प्रौढ़ाने F. Keilhorn, “Sundha Hill Inscription of Cacigadlva, Vikram Samvat 1319.” Epigraphia Indica, Vol IX, 1907-08, p. 79, पूरनचन्द्र नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ९४३-४४. For Personal & Private Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २६७ दोपचारो ल्वण पुलकततिः पुष्कराणां छलेन ॥ ८ ॥ तत्पितृव्य जतयाय बांधवः श्री महीदुर जनिष्ट भूपतिः। यत्कृपाण लतिकामुपेयुषां छायया विरहितं मुखं द्विषां ॥ ९ ॥ जज्ञे कांतस्तदनुचभुवस्तत्तनुजो श्वपालः काल: क्रूरे द्विषि सुचरिते पूर्ण चंद्रायमानः। यः संलग्नो न खलु तमसा नैव दोषाकरात्मा तेजो भक्तः क्वचिदपि न य: किंच मित्रोदयेषु ॥ १० ॥ केयूराग्र निविष्ट रत्न निकर प्रोद्यत्प्रभाडंवरं व्यक्तं संगर रंग मंडपतले यं वैरिलक्ष्मीः श्रिता। वीरेषु प्रसृतेषु तेषु रजसा नीतेषु दुर्लक्ष्यतां लब्धो पायबलापि निर्मल गुणैर्वश्या प्रशस्या कृतिः ।। ११ ॥ पुत्रस्तस्याहिल इति नृपस्तन्मयूख च्छलेन स्रष्टा यस्य व्यधित यशसां तेजसा तोलनां नु । गंगा तोले शशि तपनयो भतश्चारु चेले मध्यस्थायि ध्रुवमिष लसत् कंटके कौतुकेन ॥ १२ ।। गुर्जराधिपति भीम भूभुजः सैन्य पूर मजयद्रणेषु यः । शंभुवत् त्रिपुर संभवं बलं वाडवानल इवांबुधे जेलं ॥ १३ ॥ सैन्या क्रांता खिल वसुमती मंडलस्तत्पितृव्यः श्रीमान् राजा भवदथ जिताराति मल्लो णहिल्लः। भीम क्षोणी पति गज घटा येन भग्ना रणाग्रे हृद्यार्थी भोनिधि रघु कृते वहे पंक्तिः खलानां ।।१४।। अंभोजानि मुखान्यहो मृग द्वशां चंद्रो दयानां मुदो लक्ष्मीर्यत्र नरोत्तमानुसरण व्यापार पारंगमा। पानानि प्रसभं शुभानि शिखरि श्रेणीव गुप्यद्गुरुस्तोमो यस्य नरेश्वरस्य तुलनां सेनांबु राशेर्दधौ ॥ १५ ॥ उव्वीरुद विटपावलंब सुगृही हर्येषु दत्त्वा दृशं ध्यातात्यंत मनोहराकृति निज प्रासाद वातायन: । भूस्फोटानि वनांतरेषु विततान्या लोक्य हाहेति वाक् सस्मारा तपवारणानि शतशो यद्वैरि राज व्रज - ॥ १६ ॥ दृष्टः कैर्न चतुर्भुजः स समरे शाकंभरी यो बलाज्जग्राहानुजधान मालव पतेर्भोजस्य साढाह्वयं । दंडाधीशम पार सैन्य विभवं तीव्र तुरुष्कं च यः साक्षाद्विष्णुर साधनीय यशसा शृंगारिता येन भूः ॥ १७ ॥ जज्ञे भूभृत्तदनु तनयस्तस्य बाल प्रसादो भीमक्ष्मा भृच्चरण युगली मईन व्याजतो यः । कुर्वन्पीडा मति बलतया मोचयामास कारागाराद् भूमी पति मपि तथा कृष्णदेवाभिधानं ॥ १८ ॥ श्रीकोजलदभ्रमं दधुरहो सैन्येस्य सेवारसा यातर्तुप्रतिमे समुज्ज्वल पटा वासा मराल श्रियं । कंपं वायु वशेन केतु निवहाः शस्यानुकारं च ते सङ्गीतानि च कोकिलारव तुलां चित्तेतु तापं द्विषः ॥ १९ ॥ श्रीमांस्तस्याजनि नर पतिर्बाधवो जिंदुराजो य: संडेरेऽर्क इव तिमिरं वैरि वृंदं विभेद । यस्य ज्योति: प्रकरमभितो विद्विषः कौशिकाभा द्रष्टुं शक्ता न हि गिरि गुहा मध्यमध्या श्रितास्तत् ॥ २० ॥ गच्छतीनां रिपु मृगदृशां भूषणानां प्रपाते वाष्पासायैर्घनतति तुलां बिभ्रतीनामरण्ये। दूर्वा भ्रांतिं मरकत मणि श्रेणयोयत्प्रयाणे तांबूलीय भ्रममिव चिरं चक्रिरे पद्म रागाः ॥ २१ ॥ पृथ्वीं पालयितुं पवित्र मतिमान् यः कषुकाणां करं मुंचन् प्राप यशांसि कुंद धवला न्यानंद हृद्याननः । पृथ्वी पाल इति ध्रुवंक्षिति पति For Personal & Private Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ बृहद्गच्छ का इतिहास स्तस्यांग जन्माभवत्प्रत्येक्षीरु निधिः स गूर्जर पतेः कर्णस्य सैन्या पहः ॥ २२ ॥ यत्सेना किल कामधेनु सदृशी कीर्ति स्रवंती पय: स्वच्छंदं सचराचरेपि भुवने शत्रूस्तृणीकुर्वती । धर्मं वत्समिव स्वकीय मनघं वृद्धिं नयंती मुदा कस्यानंदकरी बभूव न भुवोभीष्टं समातन्वती ॥ २३ ॥ श्री योजकी भूपतिरस्य बंधुर्विवेक सौध प्रबल प्रतापः। श्वेतात पत्रेण विराजमानः शक्त्याणहिल्लाख्य पुरेपि रेमे ॥ २४ ॥ त्यक्त्वा सौघमुदार केलि विपिनं क्रीडाचले दीर्घिकां पल्यंका श्रयणं करेणुषु मुदां स्थानं समंतादपि । यस्यारि क्षितिपाल वाल ललना: शैले वने निर्झरे स्थूल ग्रावशिरस्सु संस्मृति भगुः पूर्वोपभुक्तश्रियां ॥ २५ ॥ श्री आशा राज नामा समजनि वसुधा नायक स्तस्य बंधुः साहाय्यं मालवानां भुवि यदसि कृतं वीक्ष्य सिद्धाधिराजः। तुष्टो धत्ते स्म कुंभं कनक मय महो यस्य गुप्यद्गुरु स्य तं हर्तुं नैव शक्तः कलुषित हृदय: शेष भूपाल वाग्मि: ।। २६ ॥ उदय गिरि शिरः स्यं किं सहस्त्रांशु बिंबं वितत विशदं कीर्तेर्मूर्ध्नि र्किनु प्रतापः । उपरि सुभग ताया उद्गता मंजरी किं कनक कलश आभाद्यस्य गुप्यद्गुरु स्थः ॥ २७ ॥ कनक रुचि शरीर: शैलसाराभिरामः फणि पति मयनीयस्थावतारः स विष्णोः । सलिल निधि सुताया मंदिरे स्कंध देशे दधदवनि मुदारामग्रिमः पुण्य मूर्तिः ॥ २८ ॥ सत्रागार तड़ाग-कानन-हरप्रासाद-वापी-प्रपा-कूपादीनि विनिर्ममे द्विज जनानंदी क्षमा मण्डले । धर्मस्थान शतानि यः किल बुध श्रेणीषु कल्पद्रुमः कस्तेस्यंदु तुषार शैल धवलं स्तोतुं यश: कोविदः ।। २९ ।। श्वेतान्येव यशांसि तुंगतुरग स्तोमः सितः सुभ्रुवां चंचन्मौक्तिकभूषणानि धवलान्युच्चैः समग्राण्यपि। प्रेमालाप भवं स्मितं च विशदं शुभ्राणि वस्त्रोकसां वृंदानीति नृपस्य यस्य पृतना कैलास-लक्ष्मीं श्रिता ।। ३० ॥ प्रशस्तिरियं बृहद्गच्छीय-श्री जयमंगलाचार्य-कृतिः ॥ भिषग्विजयपाल-पुत्र-नाम्व सिंहेन लिखिता । सूत्र जिसपाल-पुत्र-जिसरविणोत्कीर्णा ॥ (२) ॐ ॥ जटा मूले गंगा प्रबल लहरी पूरकुहना समुन्मील च्छत्र प्रकर इव नम्रेषु नृपतां । प्रदातुं श्री शंभुः सकल भुवनाधीश्वर तया तया वा देयाद्वः शुभ मिह सुगंधाद्रि मुकुटः ॥ ३१ ॥ आशा राज क्षितिप तनयः श्री मदाल्हादनाह्वो जज्ञे भूभृद्भुवन विदित श्चाहमानस्य वंशे। श्रीनझूले शिव भवन कृद्धर्म सर्वस्व वेत्ता यत्साहाय्यं प्रति पद महो गूजरेश श्चकांक्ष ॥ ३२ ॥ चंचत्केतक चम्पक प्रविलसत्ताली तमाला गुरु स्फूज च्चन्दन नालिकेर कदली द्राक्षाम्र करें गिरौ । सौराष्ट्र कुटिलोग्र कण्टक भिदात्युद्दाम कीर्तेस्तदा यस्या भूदभिमान आसुर तया सेनाचराणां रवः ॥ ३३ ॥ श्री मांस्तस्यांगज इह नृपः केल्हणो दक्षिणा शाधीशोदचद्भिलिम नृपते नि हृत्सैन्य सिंधु: । निर्भिद्योच्चैः प्रबल कलितं For Personal & Private Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय २६९ य स्तुरुष्कं व्यधत्त श्री सोमेशास्पद मुकुट वत्तोरणं कांचनस्य ॥ ३४ ॥ धातास्य प्रबल प्रताप निलयः श्री कीर्तिपालो भवद् भूनाथ: प्रति पक्ष पार्थिव चमूदाशंबु वाहो पमः। यत्खङ्गां बुनिघौ हतारि करिणां कुंभस्थलीभ्यः क्षरन्मुक्तानां निकरो पराल ललितं धत्ते स्म धारा श्रयः ।। ३५ ।। यो दुर्दात किरात कूट नृपतिं भित्वाशरैरासलं तस्मि न्कांसहदे तुरुष्क निकरंजित्वारण प्रांगणे । श्री जावालिपुरे स्थितिं व्यरचयन्नदुल राज्येश्वर चिंता रत्न निभः समग्र विदुषां निःसीम सैन्याधिपः ॥ ३६ ॥ श्री समर सिंह देवस्तत्तनयः क्षोणि मण्डलाधिपतिः । इन्द्र इव विबुध हृदयानन्दी पुरुषोत्तमो हरिवत् ॥ ३७ ॥ प्राकारः कनका चले विरचितो येनेह पुण्यात्मना नाना यंत्र मनोज्ञ कोष्ठक ततिर्विद्याधरी शीर्षवान्। किं शेष: फण वृंदमेदुर तनुर्वक्षस्थलेवा भुवो हार: किं भ्रमण श्रमादुडु गण: किं वैष भेज स्थितिं ॥ ३८ ॥ कमल वनमिवेदं वप्रशीर्षा लि दंभान्निखिल विपुल देश श्री समा कर्षणाय । लिखित विशद् विंदु श्रेणिवन्मत्त वैरि क्षितिपति विफला जिस्तोम संख्या निमित्तं ।। ३९ ॥ तोलयामास य: स्वण्र्णैरात्मानं सोमपर्वणि । आराम रम्यं समरपुरं यः कृतवानय ॥ ४० ॥ श्रीकीर्ति पाल भूपति पुत्रो जावालि पुरवरे चक्रे । श्री रूदल देवी शिव मंदिरयुगलं पवित्र मतिः ॥ ४१ ॥ श्री समरसिंह देवस्य नंदनः प्रबल शौर्य रमणीयः । श्री उदयसिंह भूपतिरभूत्प्रभाभास्वदुपमानः ॥ ४२ ॥ श्री नव्ल-श्री जावालिपुरमाण्डव्यपुर-वाग्भटमेरु-सूराचंद्रराटद-खेड-रामसैन्य श्री माल-रत्नपुर-सत्यपुर-प्रभृति देशा नामय मधिपतिः ॥ ४३ ॥ शेषः स्तोतुमिव प्ररूढ रसना भारः समंतादभूत् क्षीराब्धि: परिरब्धु मुधुरभुजः कल्लोल माला मिषात्। द्रष्टुं चानि मिषाक्षि -पंकज वनो वास्तोः पतिर्यस्य तां विश्व श्री हृदयस्य हारलतिकां कीर्तिं सितांशूज्ज्वलां ॥ ४४ ॥ श्री प्रह्लादनदेवी राज्ञो यस्यां गजं प्रसूते स्म । श्री चाचिग देवाझं तथैव चामुंडराजाख्यं ॥ ४५ ॥ धीरो दात्तस्तुरुष्काधिपमददलतो गूर्जरेंद्रेर जेयः सेवायात क्षितीशोचित करण पटुः सिंधु राजांतको यः। प्रोद्दामन्याय हेतु भरत मुख महा ग्रन्थ तत्त्वार्थवेत्ता श्री मज्जावालिसंज्ञे पुरि शिव सदन द्वंद्व कर्ता कृतज्ञः ॥ ४६ ।। तत्पट्टोदय शैल भानुरनघप्रोद्दाम धर्म क्रिया निष्णात: कमनीय रूप निलयो दानेश्वर: सु प्रभुः । सौम्यः शूर शिरोमणिश्च सदयः साक्षादिवेंद्र: स्वयं श्री मांश्चिाचिग देव एव जयति प्रत्यक्ष कल्पद्रुमः ॥ ४७ ।। मूभंगेन भयंकरेण विजित प्रत्यथिं भूमी पतिः श्री मांश्चाचिग देव एव तनुते निर्विघ्न वृत्तिं भुवं । द्वैजिह्वयं विदधातु पन्नग पतिर्वक्रं वराहो मुखं कूर्मों नक्रततिं करींद्र निवहः संघात सौस्थ्यं परं ॥ ४८ ॥ मेरोः स्थैर्य वचन रचनं वाक्पते यस्य तुल्यं पृथ्वी भारोद्धरणमसमं पन्नगेंद्रानुषंगि । लाक्षाद्राम: किमयमथवा पूर्ण पीयूष रश्चिश्चिंता रत्नं प्रणयिनि जने देव एवैष तस्मात् ॥ ४९ ॥ For Personal & Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० बृहद्गच्छ का इतिहास स्फूर्जद्वीरम गूजरेश दलनीय: शत्रु शख्यं द्विषंश्चंचत्पातुक पातनैकरसिकः संगस्य रंगा पहः । उन्माद्यन्नहरा चल स्य कुलिशा कार स्त्रिलोकी तल भ्राम्यत्कीतिर शेष वैरि दहनोदन प्रतापोल्वणः ॥ ५० ॥ श्री माले द्विज जानुवाटिक कर त्यागी तथा विग्रहादित्य स्यापि च राम सैन्य नगरे नित्यार्चनार्थ प्रद। प्रोत्तुंगेप्य पराजितेश भवने सौवर्ण-कुंभध्वजारोपी रूप्यज मेखला वितरण स्तस्यैवदेवस्य य: ॥ ५१ ।। चक्रे श्री अपराजितेश भवने शाला तथास्यां रथं कैलास प्रतिमस्त्रिलोक कमलालंकार रत्नोच्चयः । येन क्षोणि पुरंदरेण कृतिना मानंद संवित्तये भाग्यं वा निज मेव पर्वत तुलां नीतं समंतादपि ॥ ५२ ॥ कर्णे दान रुचिर्बलिश्च सुकृती श्लाघ्यो दधीचि स्तथा हृद्य: कल्पतरुः प्रकाम मधुराकारश्च चिन्तामणिः । श्री मच्चाचिगदेव दान मुदितां स्तन्नाम गृह्णति यत्तत्कीर्तेरपि नूतनत्व मभवद्भूमीभुजां सद्मसु ॥ ५३ ॥ स्फूर्जा निर्झर झांकृतेन सुभगं तत्केतकीनां वनं मिश्री भूतमनेक कस्र कदली वृंदेन धत्तेऽत्र यः । आम्राणां विपिनं च देव ललना वक्षोरुह स्पर्द्धये वोद्यत्प्रोढ़ फलावली कवचितं जम्बू वने नाचितं ।। ५४ ॥ मरौ मेरो स्तुल्यस्त्रिदश ललना केलि सदनं सुगन्धा दिर्नानातरु निकर सन्नाह सुभगः । नृपेणेंद्रेणेव प्रसृमर तुरङ्गोच्चय खुर प्रकं प्रोर्वी पीठ रतिरस वशात्तेन ददृशे ॥ ५५ ॥ तन्मूर्दिघ्न त्रिदशेंद्र पूजिता पदां भोज द्वयां देवतां चामुंडा मघटेश्वर रीति विदिताम भ्यर्चितां पूर्वजैः । नत्वा भ्यर्च्य नरेश्वरोथ विदधेस्या मंदिरे मंडपं क्रीडत्किंनर किन्नरी कल रवो न्माद्यन्मयूरी कुलं ।। ५६ ॥ सम्वत् १३१९ त्रयोदश शतै कीन विशतौ मासि माधवे । चक्रेऽक्षय तृतीयायां प्रतिष्ठा मंडपे द्विजैः ।। ५७ ।। संपल्लाभं घटयतु शुभं कुंक्षि वक्त्रो गणेश: सिद्धिं देयाद्रभि मत तमां चंडिका चारु मूर्तिः । कल्याणाय प्रभवतु सतां धेनु वर्ग: पृथिव्यां राजा राज्यं भजतु विपुलं स्वस्ति देव द्विजेभयः ॥ ५८ ॥ स श्रीकरी सप्तक वादिदेवा चार्यस्य शिष्योऽजनि रामचन्द्रः । सूरिविनेयो जय मङ्गलोऽस्य प्रशस्तिमेतां सुकृती व्यधत्त ॥ ५९ ॥ भिषग्वर-विजय पाल-पुत्रेण नाम्बसीहेन लिखिता ॥ सूत्रधार-जिसपाल-पुत्रेण-जिसरविणोत्कीर्णा ॥ For Personal & Private Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक ग्रन्थसूची जैन साहित्य आख्यानकमणिकोशवृत्तिसह, संपा० मुनि पुण्यविजय, वाराणसी १९६२ ई० कथाकोशप्रकरण, संपा० मुनि जिनविजय, मुम्बई १९८८ ई० कर्पूरप्रकर टीकासाहित, अहमदाबाद १९०१ ई० कुमारपालप्रतिबोध, संपा० मुनि जिनविजय, बडोदरा १९२० ई० पुहवीचंदचरिय, संपा० मुनि रमणीकविजय, वाराणसी १९६२ ई० प्रमाणनयतत्वालोक संपादिका साध्वी महायशाश्रीजी, सुरत २००३ ई० प्रवचनसारोद्वार, संपा० मुनि दर्शनविजय, वापी वि०सं० २०५४ ई० प्रवचनसारोद्वार, संपा० मुनि मुनिचन्द्रजी, सुरत १९८८ ई० भुवनदीपक, मुम्बई सं० १९९६. यन्त्रराज टीका सहित, मुम्बई १९३६ ई० १. Operation in search of Sanskrit Mss in Bombay Circle, Vol-I,VI Ed. P. Perterson, Bombay 1884-1899 A.D. २. A Descriptive Catalogue of Manuscripts at Jain Bhandars at Pattan, Ed. C.D. Dalal, Baroda 1937 A.D. Descriptive Catalogue of Government Collection of Manuscripts deposited at Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona, Vol XVII - XIX, Ed. H. R. Kapadia, Poona 1935-77 A.D. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ग्रन्थभंडार सूची Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandar Cambay, Vol I, II, Ed. Mani PunyaVijaya, Baroda 1961-66 A.D. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss: Muni Shree PunyaVijayajis Collection, Vol I-III, Ed. A. P. Shah, Ahmedabad 1963 A.D. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss: Acarya Khantisurij Collection, Vol IV, Ed. A.P. Shah, Ahmedabad 1960 A.D. New Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss: Jesalmer Collection, Ed. Muni PunyaVijaya, Ahmedabad 1972 A.D. Catalogue of Gujarati Mss: Muni Shree Punya Vijayajis Collection, Ed. Vidhatri Vora, Ahmedabad 1978 A.D. ९. जैन ग्रन्थावली, मुम्बई सं० १९६५. १०. लिम्बडीस्थ हस्तलिखित जैन ज्ञानभंडार सूची पत्रम् संपा० मुनि चतुरविजय, मुम्बई १९२८ ई० ११. जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार जैसलमेर के हस्तलिखित ग्रन्थों का सूचीपत्र, संपा० जौहरीमल पारेख, जोधपुर १९८८ ई० For Personal & Private Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ बृहद्गच्छ का इतिहास प्रशस्ति संग्रह १. श्रीप्रशस्तिसंग्रह, संपा० अमृतलालमगनलाल शाह, अहमदाबाद वि०सं० १९९३. २. जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, संपा० मुनि जिनविजय, मुम्बई १९४४ ई० ३. प्रशस्तिसंग्रह, संपा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर १९५० ई० ४. जैनग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह, संपा० जुगलकिशोर मुख्तार, दिल्ली १९५४ ई० पट्टावलियां १. पट्टावलीसमुच्चय, भाग-१ संपा० मुनि दर्शनविजय, वीरमगाम १९३३ ई० २. पट्टावलीसमुच्चय, भाग-२, संपा० त्रिपुटीमहाराज, अहमदाबाद १९५० ई० ३. पट्टावलीपरागसंग्रह, संपा० मुनि कल्याणविजय, जालोर १९६६ ई० ४. विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, संपा० मुनि जिनविजय, मुम्बई १९६१ ई० जैन अभिलेख साहित्य १. अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह (आबू, भाग-२),संपा० मुनि जयन्तविजय, उज्जैन वि०सं० १९९४. २. अर्बुदपरिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मंदिरावलि, संपा० सोहनलाल पटनी, सिरोही २००२ ई० ३. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह (आबू, भाग-५), संपा० मुनि जयन्तविजय, भावनगर वि० सं० २००५. ४. आरासणा अने कुंभारिया, संपा० मुनि विशालविजय, भावनगर १९६१ ई० ५. जैनधातुप्रतिमालेख, संपा० मुनि कांतिसागर, सुरत १९५० ई० ६. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भाग १-२,संपा०आचार्य बुद्धिसागरसूरि, पादरा १९२६-२७ ई० ७. जैनप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० दौलतसिंह लोढा, धामणिया (मेवाड) १९५१ ई० ८. जैनलेखसंग्रह, भाग १-३, संपा० पूरनचन्द्र नाहर, कलकत्ता १९१८-२८ ई० जैनशिलालेखसंग्रह, भाग २-४, संपा० विजयमूर्ति शास्त्री, मुम्बई १९५२-६४ ई० १०. पाटणजैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० लक्ष्मण भोजक, दिल्ली २००२ ई० ११. प्रतिष्ठालेखसंग्रह भाग-१, संपा० महो० विनयसागर, कोटा १९५३ ई०; भाग-२, जयपुर २००३ ई० १२. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग-२, संपा० मुनि जिनविजय, भावनगर १९२१ ई० १३. प्राचीनलेखसंग्रह, संपा० विद्याविजयजी, भावनगर १९२९ ई० १४. बाड़मेर के जैन शिलालेख, संपा० चंपालाल सालेचा, मेवानगर-बाड़मेर १९८६ ई० १५. बीकानेर जैनलेखसंग्रह, संपा० अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता १९५६ ई० १६. मालवांचल के जैनलेख, संपा० नन्दलाल लोढा, उज्जैन १९९५ ई० १७. राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, संपा० मुनि विशालविजय, भावनगर १९६० ई० For Personal & Private Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८. शंखेश्वरमहातीर्थ, लेखक मुनि जयन्तविजय, भावनगर वि०सं० २००३. १९. शत्रुजयवैभव, संपा० मुनि कांतिसागर, जयपुर १९९० ई० po. Jain Image Inscriptions of Ahmedabad Ed. P.C. Parikha & Bharti Shelat, Ahmedabad 1997 A.D. आधुनिक ग्रन्थ अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, कालिकाचार्यकथासंग्रह, अहमदाबाद १९४९ ई० केशवराम काशीराम शास्त्री, गुजरातना सारस्वतो, अहमदाबाद १९६६ ई० गुलाबचन्द चौधरी, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, वाराणसी १९७६ ई० गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत, जयपुर १९६३ ई० चतुरविजयजी संपा० जैनस्तोत्रसंदोह, भाग १-२, अहमदाबाद १९३३-३६ ई० चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, संपा० प्राचीनगूर्जरकाव्यसंग्रह, बडोदरा १९१० इ० जयन्तविजय मुनि, आबू, भाग-१, भावनगर वि०सं० १९८५. जयन्तविजय मुनि, अर्बुदाचलप्रदक्षिणा (आबू भाग-३) भावनगर वि०सं० २००५. जिनविजय मुनि, गुजरात का जैनधर्म, वाराणसी १९४८ ई० भोगीलाल सांडेसरा, महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मंडल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, वाराणसी १९५८ ई० मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैन गूर्जर कविओ, नवीन संस्करण, भाग १-१०, संपा० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६-९६ ई० मोहनलाल दलीचंद देसाई,जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास,प्रथम संस्करण, मुम्बई १९३२ ई० द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि, सुरत २००६ ई० यतीन्द्रसूरि, यतीन्द्रविहारदिग्दर्शन, भाग १-४, १९२८-३६ ई० रसिकलाल छोटालाल परीख और हरिप्रसाद शास्त्री, संपा० गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास, भाग ४-६, अहमदाबाद १९७६-७८ ई० लालचंद भगवानदास गांधी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, बडोदरा १९६३ ई० शीतिकंठ मिश्र, हिन्दी जैनसाहित्य का इतिहास, (मरु-गूर्जर) भाग१-४, वाराणसी १९९०-९८ई० हस्तिमलजी महाराज, जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग-२, जयपुर १९६७ ई० हीरालाल रसिकलाल कापडिया, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग १-३, द्वितीय संस्करण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि सुरत २००४ ई० त्रिपुटी महाराज, जैन परम्परानो इतिहास, द्वितीय संस्करण, भाग १-३, संपा० आचार्य विजयभद्रसेनसूरि, सुरत २००१-२००३ ई० । C. B. Shetha, Jainism in Gujarat, Bombay 1956 A.D. G C. Chaudhari, Political History of Northern India from Jain Sources, Amritsar 1963 A.D. For Personal & Private Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ बृहद्गगच्छ का इतिहास K. C. Jain, Ancient Cities and Towns of Rajasthan, Delhi 1972 A.D. M. R. Majamudar, Cultural History of Gujarat, Bombay 1965 A.D. P. K. Gode, Studies in Indian Literary History Vol-I, Bombay 1953 A.D. U. P. Shah Treasures of Jaina Bhandars, Ahmedabad 1970 A.D. U. P. Shah, Akota Bronges, Bombay 1956 A.D. स्मारकग्रन्थ-अभिनन्दन ग्रन्थ ज्ञानाञ्जलि (मुनि पुण्यविजय अभिनन्दन ग्रन्थ), बडोदरा १९६९ ई० दलसुखभाई मालवणिया अभिनन्दन ग्रन्थ, वाराणसी १९९२ ई० प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ, टीकमगढ १९४६ ई० पं० बेचरदास दोशी स्मृतिग्रन्थ, वाराणसी १९८६ ई० यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, आहोर १९५८ ई० . विक्रमस्मृतिग्रन्थ, उज्जैन वि०सं० २००२ ई० विजयवल्लभसूरि स्मारकग्रन्थ, मुम्बई १९५६ ई० महावीर जैनविद्यालय रौप्यजयन्ती स्मारकग्रन्थ, मुम्बई १९४० ई० महावीर जैनविद्यालय सुवर्णमहोत्सव अंक, भाग १-२, मुम्बई १९६५ ई० H.G. Shastri Felicitation Volume, Ahmedabad 1994 A.D. Jambu - Jyoti (Manivara Jambuvijaya Festschrift) Ahmedabad 2004 A.D. कोश ग्रन्थ गुजराती साहित्य कोश, भाग १-२, अहमदाबाद १९८८-८९ ई० जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार, वाराणसी १९५० ई० Jinaratnakosh, Poona 1944 A.D. New Cataloges Catalogorum, Vol 1-XIII, Madras 1968-84 A.D. Georaphical Dictionary of Ancient & Mediaeval India, Reprint Delhi 1994 A.D. Prakrit Proper Names, Vol. I, II, Ahmedabad, 1970-72 A.D. पत्र पत्रिकायें जैनसत्यप्रकाश, अहमदाबाद फार्बसगुजरातीसभापत्रिका, अहमदाबाद शोधादर्श लखनऊ श्रमण वाराणसी सम्बोधि अहमदाबाद सामीप्य अहमदाबाद संस्कृति संधान वाराणसी सम्मेलन पत्रिका पटना Epiraphiya Indica Indian Antiquary Journal of the Royal Asiatic Society of Bombay Jain Journal For Personal & Private Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट -४ अजारी अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अजमेर अजीमगंज १०८ आबू २७५ परिशिष्ट -४ सम्बधित लेखों के वर्तमान प्राप्तिस्थान लेख क्रमांक महावीर जिनालय ३० आदीश्वर जिनालय, राजामेहता पोल, कालपुर २१२ अजितनाथ जिनालय सुथार की खड़की १९७ अजितनाथ जिनालय, बाघन पोल २३९ चन्द्रप्रभ जिनालय, मांडवी पोल २३७ चौमुखजी देरासर ५१ जैनमंदिर, मोतीपोल ७३ वासुपूज्य जिनालय, रूपसुरचन्द्र की पोल २२१ वासुपूज्य जिनालय, शेख पाडो २९, १३४ शामला पार्श्वनाथ जिना०, लाम्बा शेरी पोल २०५ सीमंधर स्वामी का मंदिर, दोशीवाडा ८५. संभवनाथ जिनालय, कालुपुर संभवनाथ जिनालय २०३ संभवनाथ जिनालय १९० लूणवसही २९, ३३, १०४, २५२ विमलवसही ३ ४ ६ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ ३७ ७४ २५३ विमलवसही, हस्तिशाला ३० ८० चन्द्रप्रभ जिनालय ४६, ४७, ४८, ५०, ६३ शांतिनाथ जिनालय २३८ भंडारस्थ प्रतिमा, गौडीजी का मंदिर १४६ जैन मंदिर २५१ आदिनाथ जिनालय १६० चितामणि पार्श्वनाथ जिनालय १५२ नेमिनाथ जिनालय ५ ७ ८ ९ ११ १२ १३ २१ ४४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५९ ६० ६१ ६२ ६४ ६५ ६६ ७० ७१ ७५ ९३ शांतिनाथ जिनालय पार्श्वनाथ जिनालय आदिनाथ जिनालय २१४ आबू १८० आबू आमेर आरासणा उज्जैन उदयपुर ऊंझा कारंजा किशनगढ कुंभारिया कुंभारिया कुंभारिया कोटा For Personal & Private Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ कोटा बृहद्गच्छ का इतिहास लेख क्रमांक १६२ २२८ १९४ १३५ १८९ २४२ ११३ ७७ कोटा कोटा कोटा कोरटा खंभात खंभात खंभात खंभात खेड़ा गिरनार चाडसू चांदलाई २५४ ३४, १९६ २०१ ३२ चुरू जयपुर जयपुर जयपुर जयपुर जयपुर जामनगर जालना जालौर जीरावला जैसलमेर जैसलमेर जैसलमेर जोधपुर डभोई थराद हीमाणा नाकोड़ा नागपुर नाडोल नासिक नागौर नागौर नाडलाई चन्द्रप्रभ जिनालय विमलनाथ जिनालय माणिकसागरजी का मंदिर सेजी का घर देरासर ऋषभदेव जिनालय आदिनाथ जिनालय, मांडवी पोल विमलनाथ जिनालय, चौकसी पोल शांतिनाथ जिनालय, चौकसी पोल चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय पद्मप्रभ जिनालय, दलाल का टेकड़ा वस्तुपाल द्वारा निर्मित जिनालय आदिनाथ जिनालय शांतिनाथ जिनालय शांतिनाथ जिनालय महावीर जिनालय, चोथ का वरवाड़ा नया मंदिर पंचायती मंदिर विजयगच्छीय मंदिर श्रीमालों का मंदिर आदिनाथ जिनालय चन्द्रप्रभ जिनालय तोपखाना महावीर जिनालय अष्टापदजी का मंदिर चन्द्रप्रभ जिनालय सुपार्श्वनाथ जिनालय धर्मनाथ का मंदिर धर्मनाथजी का मंदिर ऋषभदेव का बड़ा मंदिर शांतिनाथ जिनालय भण्डारस्थ प्रतिमा, शांतिनाथ जिनालय श्वे० जैनमंदिर पद्मप्रभ जिनालय प्राचीन जैनमंदिर शांतिनाथ जिनालय बड़ा मंदिर नेमिनाथ जिनालय २३३ १८४ १८६ १६२ १६५, २३६ २०६, २१८, २२९ २४३ १९१ २१३ १५३ ३२ १०१, १०९ २३२ ११५, १२२, १३०, १९५, २०० २३१ १५९ ८७ १९३ १०० १९८, २०२ ८४ १४, १५ १०६ ४९ २१९ १२० For Personal & Private Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट पटना पनवाड़ पाटण पाटण पाटण पालिताना पूना बडोदरा - ४ ब्राह्मणवाडा बीकानेर बीकानेर बीकानेर बीकानेर बीकानेर कार बीकानेर बीकानेर बीकानेर बीकानेर बूंदी बैड भोजपुर माण्डवगढ मालपुरा मुर्शिदाबाद जैनमंदिर महावीर जिनालय भाभा पार्श्वनाथ देरासर मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, खजुरीवाडा शांतिनाथ जिना० कनासानो पाडो गौडपार्श्वनाथ जिनालय आदिनाथ जिनालय चन्द्रप्रभ जिनालय, जानी शेरी महावीर जिनालय भंडारस्थ प्रतिमा, चित्तामणिजी का मंदिर नमिनाथ जिनालय, लक्ष्मीनारायण पार्क गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय चन्द्रप्रभ जिनालय महावीर जिनालय, डागों की गुवाड़ पार्श्वनाथ जिनालय, हनुमानगढ महावीर स्वामी का मंदिर, बैदों का चौक मुनिसुव्रत जिनालय, नाल पार्श्वनाथ जिनालय नौहर गंगागोल्डेन जुबली म्यूजियम पार्श्वनाथ जिनालय विमलनाथ जिनालय शांतिनाथ जिनालय तारापुर मंदिर मुनिसुव्रत जिनालय विमलनाथ जिनालय For Personal & Private Use Only लेख क्रमांक १४७ २११ ४५ १६४ ११४ २२० १३७, १४०, २१० १८८ ७४ १८ १९ २० ३१ ३३ ३५ ३६ ५३ ५४ ६७ ६९ ७२ ७८ ७९ ८१ ८२ ८३ ८८ ९९ १०३ ११० १११ ११६ ११७ ११९ १२१ १२३ १२४ १२६ १२७ १२८ १३१ १३६ १३८ १३९ १४१ १४३ १४९ १५० १५५ १५७ १५८ १६१ १७५ १७६ १७७ १७८ १७९ १८११९२ २०७ २०८ २०९२२६ २३० ११८ ८६ १०७ १२९ १४५ १५४ १७१ १७३ १७४ २१७ २२५ १२५ १६७ १६८ १६९ १७० ५२ १६३ २२२ २२४ २२३ २१५ २४१ १४८ १४२ २७७ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ मुम्बई रतलाम राणकपुर रामपुरा लींच वीरमगाम वीसनगर शत्रुंजय शत्रुंजय शत्रुंजय सवाईमाधोपुर सांगानेर सिरोही सुरत अक्षतचन्द्रसूरि अजितदेवसूर अमरचन्द्रसूर अमरप्रभसूर अभयदेवसूर आणंदसूर उदयचन्द्रसूरि उदयप्रभसूरि सिंहसूर प्रभ भ कमलचन्द्रसूर कनकसूरि गणेशमल सौभाग्यमल का मंदिर सुमतिनाथ जिनालय जैनमंदिर (त्रैलोक्य दीपक जिनालय) शांतिनाथ जिनालय जैन मंदिर अजितनाथ जिनालय कल्याण पार्श्वनाथ जिनालय हेमाभाई की ट्रंक साकरचन्द्र प्रेमचन्द्र की टंक देरी क्रमांक १८२ विमलनाथ जिनालय महावीर जिनालय पुरातत्त्व संग्रहालय सीमंधर स्वामी का मंदिर, तालेवाले की पोल परिशिष्ट - ५ लेखस्थ आचार्य व मुनिजनों के नाम लेख क्रमांक ११४ कलशचन्द्रसूरि निधार १ ७९, १०२, १२४, १७५, १७६, २१२ ८६, १४२, १६४, १८७, २४१ ८, ९, २१, ४४, ४६, १२४, १२५ ८४ ८०, १९९ २०४ २५४ ६३, २४१ १९७, २०१, २०५, २०८, २११, २३९, २४९ जयानंदसूर ११६, ११७, १३२, १३३, जयसिंहसूरि १३५, १४४, १४५ जिनचन्द्रसूरि जिनभद्रसूरि गुणप्रभसूरि गुणसमुद्र गुणसागर सुन्दरसूरि चक्रेश्वरसूरि चन्द्रप्रभसूर जयतिलकसूरि जयदेवसूर मंगल For Personal & Private Use Only बृहद्गच्छ का इतिहास लेख क्रमांक २४४ १८५ ३८, ३९ २४० ६८ १०२ १५३ १८३ १८२ २३४ ९४ १५१ १८७ २३५ ७६, ११२, १३२, १३३, १९९, २१६ १६ लेख क्रमांक २२६ १९८ २३५ १०८ १३१, १३६, १४६, १५७ २१५ ९२ ४, ७, ११, १२, १३, ४०, ६१, ६५, ६६ १५१, २५० १३४ ५४ ७९, १९७, २०१, २०५, २०८, २४० ४२ ६५ ७१, १०१ २१ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७९ १०९ लेख क्रमांक ९४ ३७, ४३ १७७, २३०, २४०, २५२ ३२ ४२ ७६ २१४ ११२ ४३ ३, ८८, ८९, ९१, ११८, १५४ परिशिष्ट -५ लेख क्रमांक नाण (ज्ञान) चन्द्रसूरि ११४, २२२, २२४, २४३ पासभद्रसूरि ज्ञानप्रभवाचक २४७ पूर्णभद्रसूरि दिन्नविजयसूरि पुण्यप्रभसूरि देवचन्द्रसूरि २२, २३, २४, २५, २६, पूर्णदेवसूरि २७, २८ प्रद्युम्नसूरि देवकुंजरसूरि २५१ प्रभाणंदसूरि देवचन्द्रसूरि १३७, २००, २१२, २४४ प्रेमप्रभसूरि देवभद्रगणि १६८, १७० वदरिसेणसूरि देवसूरि १४, १५, १७, ३०, ३२, बुद्धिसागरसूरि ३७, ७८, १७० ब्रह्मदेवसूरि देवेन्द्रसूरि ६३, ७२, १०१, २५१ भद्रेश्वरसूरि धनदेवसूरि ११३ धनप्रभसूरि २२७, २३८, २४२ | भावदेवसूरि धनेश्वरसूरि १९, २०, २१, ३०, ३३, मतिसुन्दरसूरि ३४, ३५ मलयचन्द्रसूरि धर्मतिलकसरि ९८ महेन्द्रसूरि धर्मचन्द्रसूरि ९६, १२०, १७३, २२१ धर्मदेवसूरि ७८, ८२, १२१, १२६, १२७, १२८, १२९, १५५ धर्मसिंहसूरि १२९, १३०, १५२, १५५ धरप्रभसूरि २१८ माणिक्यसूरि शरचन्द्रसूरि १३८, १४३, १७१ माणिक्यसुन्द्रसूरि नरदेवसूरि ११५ मानतुंगसूरि नेमिचन्द्रसूरि मानदेवसूरि पद्मचन्द्रगणि १४, १५ मुनिचन्द्रसूरि पद्मचन्द्रसूरि ७७, ८५ मुनिदेवसूरि पद्मदेवसूरि ३७, ४१, ८३ मुनिरत्नसूरि पद्मसूरि मुनिशेखरसूरि पद्माणंदसूरि १६३ मुनीश्वरसूरि पडोचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि १२३, १३७, १४०, १८८, १९७ मेरुप्रभसूरि परमानंदसूरि १२, १३, ४४, ४८, ५०, ५२, ५३, ५५, ५७, ५८, ६०, ६२, ६४, ६७, ७०, ७१, ७५, १०० यशोदेवसूरि पासचन्द्रसूरि १९६ १८४ १७३, २२१ १०६, १०७, ११०, १११, ११६, ११७, १४४, १६७, १६८, १६९, १७०, १७८, १८१, १८३, १८६, १९०, १९८, २०३ ५१ २२०, २३४ १२० ४२, ४५, ५४, ६८, ८० १५ १७२, २४६, २४७ २९, ७३, ७४ ९५, १०४, ९०, ११८ १३९, १४७, १४८, १५०, १५१, १६२, १६८, १७०, ५१ १९८ १९२, १९४, १९८, २०७, २०९, २१०, २१७, २१९, २२३, २२४, २२५, २३१, २३२, २३६, २४५, २४६ २२, २३, २४, २५, २६, २७, २८ For Personal & Private Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ बृहद्गच्छ का इतिहास लेख क्रमांक ७५ १४३, १७१, १७९, २१८, २२७, २३८ ८३, २४१ १५३ २१४, २२२ १८५ ९, १०, ३८, ३९, ४४, ४६, ४८ २८० लेख क्रमांक यशोभद्रसूरि वीरसूरि रत्नप्रभसूरि ४४, ४७, ४८, ६२, ६४, वीरचन्द्रसूरि ७१, ९२, १४७, १४८, १५०, १६२, १६५, वीरदेवसूरि १६६, १६७, १६८, १६९, वीरभद्रसूरि १७०, १८३, १८८, २०३ शांतिभद्रसूरि रत्नाकरसूरि १०३, १२२, १७८, १९०, | शांतिसुन्दरसूरि १९८, २१०, २३२, २४५ शांतिप्रभसूरि रत्नशेखरसूरि १०५, १२३ रामदेवसूरि १४१ श्रीचन्द्रसूरि राजरत्नसूरि १९२, २०७, २०९, २१७, श्रीतिलकसूरि २२३, २२४, २२५ सर्वदेवसूरि रामचन्द्रसूरि ३४, ९४, ९९, १०१, सागरचन्द्रसूरि १८७ ललितप्रभसूरि १४९, १५६ सागरसूरि वर्धमानसूरि ३, ४, ७, ११, १२, १३, | सोमप्रभसूरि ५६, ५९, ६१, ६५, ६६ | सोमसुन्दरसूरि वादिदेवसूरि ४३, ८२, १२८, १३७, हरिभद्रसूरि २४१ विजयचन्द्रसूरि ९३ विजयदेवमुनि २५२, २५३ विजयसिंहसूरि १, ५, ५६ हेमचन्द्रसूरि विजयसेनसूरि ४० हेमचन्द्रसूरि (नागेन्द्रगच्छीय) (जयमंगलसूरि विजयसेनसूरि ८८, ९९, ९१, १०३ के शिष्य) (भद्रेश्वरसूरि के शिष्य) हेमरलसूरि विजयचन्द्रसूरि १२० हेमसूरि विनयप्रभसूरि २१५ हेमप्रभसूरि हेमशेखरसूरि ११८ २, ८०, ९७, १९३ ११९, १५८, १६४, १७४, १९५ १८० २१ए, ६१, ६५, ६६ २३३ ३१, ३४, ३५, ४४, ४६, ४७, ४८, ४९, ५०, ५३, ५५, ५७, ६०, ६२, ६४, ७० १६, १६० २०५, २०६ १०५ ३०, ३२ ७७, ८४, ८५ २१४ For Personal & Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट -६/७ ओसवाल, उपकेश २८१ परिशिष्ट-६ लेखस्थ ज्ञाति सूची लेख क्रमांक ७२, ७३, ९६, ९९, १०२, १०६, १०७, ११२, ११४, ११५, ११६, ११९, १२१, १२३, १२४, १२६, १२७, १२९, १३०, १३१, १३२, १३३, १३५, १३६, १३७, १३८, १३९, १४०, १४१, १४३, १४४, १४५, १४६, १४९, १५२, १५३, १५७, १५८, १५९, १६०, १६२, १६४, १६५, १६६, १६७, १७१, १७२, १७३, १७४, १७५, १७६, १७७, १७८, १७९, १८०, १९०, १९१, १९३, १९४, १९५, १९७, १९९, २००, २०१, २०२, २०५, २०६, २०८, २११, ११२, ११३, २१५, २१७, २१९, २२१, २२७, २३०, २३६, २३७, २३८, २३९, २४०, २४२, २४४, २४८, २५०, २५१ ५१, २२२ ३, ४, ७, ८, ९, ११, १२, १३, २२, ३६, ४०, ४४, ४५, ४७, ४८, ५०, ५२, ५५, ५७, ५८, ६०, ६२, ६३, ६४, ६५, ७०, ७१, ८३, ८७, ९३, ९७, ११७, १२२, १५६, १९६, २०४, २१६, २२८ ४२, ६८, ९२, १०५, १०८, ११०, १११, १३४, १८५, १८८, २०३, २१०, २१४, २२०, २३३, २३४, २४१, २४९ परिशिष्ट-७ लेखस्थ गोत्र सूची लेख क्रमांक १७५ १८३ १५० पल्लीवाल प्राग्वाट श्रीमाल ९० २०१ उच्छित्रवाल उताड केल्हण कोल्हण कूकूलोल गुर्जर गोखरू गुहउचा-गुंडूचा चहचहिया छोहरिया जंवड १२८ जावड़ डीडू २२९ २०६, २१२ १८५, २२० १७२, १७४ १६९ ९४, १८० १८२ २१४ १५४ १४२, १४७, १४८, १७८, १८७, १९५, २१९, २४५ तातरहीला तातेड़ दूगड़ For Personal & Private Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ दुस्साव धनणिया धनपति धनाणेचा धर्कट नक्षत्र नागूणा नाहर परवज पल्हवड पल्हयउ पावेचा फूलपरग बरडीया बाफणा बलदउठा बलहउती बेगड बुहप बोकडिया मंडलेचा मूंदो लोढा वरबद्ध (वरलच्छ) वरडीया वरहुडिया वीराणेचा वृद्धशाखा सांभरया सिंघाणिया सुरोङ्गा सोन सोनी स्वयंभ हींगड़ हार हंगड़ लेख क्रमांक ७४ २०५ २३९ २४० ३७, ५४, १६५ १५८ १५१ ११८, १६७, २०९ १९३ २१०, २२४, २४६ २०५ १५९, १६० २३८, २५० १९४, १९८, २०२, २२३ ९५, २३१ १२७ १५५ १५३ २४१ १७३ १७७, २०८, २३०, २४२ २२७ १६३, १९१ १९०, १९२, २०७, २२५ १६२, १६६ २३२ २१७ २३७ २२८ २३६ १६४ २४३ १८६ २१५ १२३ २०० १८९ For Personal & Private Use Only बृहद्गच्छ का इतिहास Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट -८ वि० सं० ११४३ ११४८ ११८७ ११९१ १२०० १२०४ १२०५ १२०७ १२१४ १२१५ १२१६ १२२० १२२७ १२३४ १२३६ १२४५ १२४९ १२५१ १२६० १२६८ १२७३ १२७५ १२७९ १२८४ १२८८ १२९० १२९३ १३०५ १३०७ १३१० १३१४ १३१६ लेखक्रमांक १ २ ३ ४ ५ ६ परिशिष्ट-८ संवत् सूचा (विक्रमीय) वि० सं० ८९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३९ ४०-४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७ ४८ ४९ १३२३ १३२७ १३३१ १३३४ १३३५ १३३७ १३३८ १३३९ १३४१ १३४३ १३४५ १३४६ १३४९ १३५१ १३५२ १३५६ १३५७ १३५९ १३६० १३६७ १३६८ १३६९ १३७१ १३७३ १३८३ १३८५ १३८६ १३८७ १३८८ १३९० १३९१ For Personal & Private Use Only लेखक्रमांक ५० ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५९ ६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९ ७० ७१ ७२ ७३ ७४ ७५ 5 5 3 5 8 ° ° ≈ 3 ७६ ७७ ७८ ७९ ८० ८१ ८२ ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ २८३ ८८ ८९ ९० ९१ ९२ ९३ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ लेखक्रमांक ९४ ९५ वि०सं० १४८७ १४८८ १४८९ १४९२ १४९३ १४९५ १४९७ १४९८ १४९९ वि०सं० १३९२ १३९३ १४०१ १४०६ १४०८ १४११ १४१२ १४१४ १४१७ १४१८ १४२२ १४२३ १४२४ १४२५ १४३० १४३२ १४३३ १४३४ १४३६ १४४० १४४३ १४४५ १४४९ १४५४ १४५७ १४६५ १४७२ १५०० १५०१ बृहद्गच्छ का इतिहास लेखक्रमांक १५२ १५३ १५४ १५५ १५६ १५७ १५८ १५९ १६० १६१ १६२ १६३ १६४ १६५ १६६ १६७ १६८ १६९ १७० १७१ १७२ १७३ १७४ १७५ १७७ १७८ १७९ १८० १८१ १८२ १८३ १८४ १८५ १८६ १८७ १८८ १८९ १९० १५०४ ९७ ९८, ९९ १०० १०१ १०२ १०३ १०४ १०५ १०६ १०७ १०८ १०९ ११० १११ ११२ ११३ ११४ ११५ ११६ ११७ ११८ ११९ १२० १२१ १२२ १२३ १२४ १२५ १२६ १२७ १२८ १२९ १३० १३१ १३२ १३३ १३४ १३५ १३६ १३७ १३८ १३९ १४० १४१ १४२ १४३ १४४ १४५ १४६ १४७ १४८ १४९ १५० १५१ १५०६ १५०७ १५०८ १५१० १९१ १५११ १५१२ १५१३ १५१६ १५१७ १५१८ १५१९ १४७३ १४७८ १४७९ १४८० १४८२ १५२० १५२१ १५२३ १५२४ १५२५ १९२ १९३ १९४ १९५ १९६ १९७ १९८ १९९ २०० २०१ २०२ २०३ २०५ २०६ २०७ २०८ २०९ २१० २११ २१२ २१३ २१४ २१५ २१६ २१७ २१८ २१९ २२० १४८५ १४८६ १४२६ १५२८ For Personal & Private Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ९ वि० सं० १५३० १५३२ १५३४ १५३५ १५३६ १५३७ १५३८ १५३९ १५४२ १५४३ १५४८ १. २. ३. ४. १४. १५. १६. १७. लेखक्रमांक २२१ २२२ २२३ २२४ २२५ २२६ २२७ २२८ २२९ २३० २३१ २३२ २३३ २३४ २३५ २३६ २३७ २३८ वि० सं० १५४९ १५५० १५५१ १५५२ १५५६ १५५७ १५५९ १५६६ १५६९ १५७२ १५८१ १६१३ १६३९ परिशिष्ट - ९ संदर्भग्रन्थनाम संकेत - विवरण ५. ६. ७. ८. ९. १०. प्रतिष्ठा लेख संग्रह ( भाग १-२ ) प्र०ले०सं० ११. नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ ना०पा०ती० १२. बीकानेर जैन लेख संग्रह बी०जै० ले० सं० १३. बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख वा०जि० प्रा० जै०शि० पाटण जैन प्रतिमा लेख संग्रह पा०जै० प्र०ले० सं० मालवांचल के जैन लेख मा०जै० ले० राधनपुर प्रतिमा लेख संग्रह रा०प्र०ले०सं० श्री प्रतिमा लेख संग्रह श्री०प्र०ले० सं० आरासणा अने कुंभारिया आ०अ०कु० जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह भाग १-२ जै०धा०प्र०ले०सं० जैन धातु प्रतिमा लेख जै०धा०प्र०ले० जैन लेख संग्रह ( भाग १-३) जै०ले०सं० प्राचीन जैन लेख संग्रह (भाग - २) प्रा०जै० ले०सं० प्राचीन लेख संग्रह प्रा०ले०सं० अर्बुद प्राचीन जैन लेख संदोह (आबू, भाग-२) अ० प्रा० जै०ले० सं० अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह (आबू, भाग-५) अ०प्र०जै० ले० सं० अर्बुद परिमंडल की जैन धातु प्रतिमायें एवं मंदिरावलि अ० प्र०जै०धा० मं० १८. शत्रुंजय गिरिराज दर्शन श०गि०द० १९. शत्रुंजय वैभव श० वै० २०. Jain Image Inscriptions of Ahmedabad JIIA. लेखक्रमांक २३९ २४० २४१ २४२ २४३ २४४ For Personal & Private Use Only २४५ २४६ २४७ २४८ २४९ २५० २५१ २५२ २५३ २५४ २८५ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ बृहद्गच्छ का इतिहास (પૂજ્યપાદ્ આચાર્યદિવ કારસૂરીશ્વરજી મહારાજ જ્ઞાનમંદિર ગ્રંથાવલીમાં પ્રાણ પુસ્તકો... પૂ. આચાર્યદેવ મુનિચન્દ્રસૂરિજી મ. સંપાદિત - સંકલિત પ્રેરિત ગ્રંથો વીર નિર્વાણ સંવત ઔર જૈન કાલગણના : લે. પં.શ્રી કલ્યાણવિજયજી ગણિ શ્રમણ ભગવાન મહાવીર : ૫. શ્રી કલ્યાણવિજયજી ગણિ (હિન્દી) . જૈન સાહિત્યનો સંક્ષિપ્ત ઈતિહાસ લે. મોહનલાલ દેસાઈ v જૈન સંસ્કૃત સાહિત્યનો ઈતિહાસ ભાગ ૧-૨-૩ : લે. હીરાલાલ ૨. કાપડિયા v પાઈઆ ભાષાઓ અને સાહિત્ય - હીરાલાલ કાપડિયા - વ્યવહાર સૂત્ર ભાગ-૧ થી ૬, વ્યવહાર સૂત્ર પ્રતાકારે ભાગ-૧ થી ૭ • દસ વૈકાલિક સૂત્ર : પૂ. આ. ભદ્રકરસૂરિજી મ.સા.ના વિવેચન સાથે • પ્રસંગવિલાસ પ્રસંગ અંજન , પ્રસિદ્ધિ (હિન્દી) . પ્રસંગ રંગ . પ્રસંગ સરીતા પ્રવિણ (હિન્દી) . પ્રસંગ કલ્પલત્તા . હીર સૌભાગ્ય (સટીક) . પ્રવચન સારોદ્ધાર વિષમપદ વ્યાખ્યા પ દસસાવગચરિયા ધર્મરત્નકરંડક કથારત્નાકર : પ્રભાવકચરિત્ર (ગુજરાતી ભાષાંતર) . ઉપમિતિ કથોદ્ધાર કર્તા : પં. શ્રી હંસરત્નવિજયજી ગણિ ઉવાઈયસૂત્તમ 1 સુરસુંદરી ચરિયું (સંસ્કૃત છાયા સાથે) - સંપાદિકા સા. મહાયશાશ્રીજી મ, પ્રમાણનયતત્કાલોક (વિવેચન સા. મહાયશાશ્રીજી મ.) - ચૈત્યવંદન ચતુર્વિશતિકા - સંપાદિકા સા. મહાયશાશ્રીજી મ. કર્મગ્રંથ : ઉપશમ શ્રેણિ, ક્ષપક શ્રેણિ, શાંતિનાથ ચરિત્ર સાનુવાદ, દાનોપદેશ-માલા સવિવેચન રમ્ય રે, પૂ. આચાર્યદેવ યશોવિજયસૂરીશ્વરજી મહારાજની વાચનાઓ... દરિસણ તરસિએ ભાગ ૧-૨ પ બિછુરત જાયે પ્રાણ , સો હિ ભાવ નિગ્રંથ : આપ હિ આપ બુઝાય . પ્રગટ્યો પૂરન રાગ આતમજ્ઞાની શ્રમણ કહાવે v મેરે અવગુણ ચિત્ત ન ધરો . ઋષભ જિનેશ્વર પ્રિતમ માહરો : પ્રભુનો પ્યારો સ્પર્શ . પરમ ! તારા માર્ગે આત્માનુભૂતિ - અસ્તિત્વનું પરોઢ અનુભૂતિનું આકાશ . રોમે રોમે પરમ પર્શ પ્રભુના હસ્તાક્ષર . ધ્યાન અને કાયોત્સર્ગ . માણ્યું તેનું સ્મરણ રસો હૈ સઃ v પ્રવચન અંજન જો સદ્ગુરુ કરે એકાન્તનો વૈભવ સાધનાપથ પ સમાધિશતક ભાગ-૧ થી ૪ : સમુંદ સમાના બુંદ મેં : સંપર્કઃ આ. શ્રી ૐકારસૂરિ આરા. ભવન ગોપીપુરા, સુરત ૧, ટેલી : ૨૪૨૬૫૩૧ . શ્રી વિજય ભદ્ર ચે. ટ્રસ્ટ, ભીલડીયાજી, ૩૮૫૫૩૦, ટેલી : ૦૨૭૪૪/૨૩૩૧૨૯ • આ. શ્રી 3ૐકારસૂરિ જ્ઞાનમંદિર, વાવ પથકની વાડી, દશા પોરવાડ સોસા., પાલડી, અમદાવાદ, ૩૮૦૦૦૭, ટેલી : ૨૬૫૮૬૨૯૩. For Personal & Private Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ આચાર્યશ્રી ૐૐકારસૂરિ જ્ઞાન મંદિર ગ્રંથાવલી પ્રભુવાણી પ્રસાર સ્થંભ (યોજના-૧,૧૧,૧૧૧) ૧. શ્રી સમસ્ત વાવ પથક શ્વેતાંબર મૂર્તિપૂજક જૈન સંઘ-ગુરુમૂર્તિ પ્રતિષ્ઠા-સ્મૃતિ 2. શેઠશ્રી ચંદુલાલ કકલચંદ પરીખ પરિવાર, વાવ ૩. શ્રી સિદ્ધગિરિ ચાતુર્માસ આરાધના (સં. ૨૦૫૭) દરમ્યાન થયેલ જ્ઞાનખાતાની આવકમાંથી. હસ્તે : શેઠશ્રી ધુડાલાલ પુનમચંદભાઈ હેક્કડ પરિવાર, ડીસા, બનાસકાંઠા ૪. શ્રી ધર્મોત્તેજક પાઠશાળા, શ્રી ઝીંઝુવાડા જૈન સંઘ, ઝીંઝુવાડા ૫. શ્રી સુઈગામ જૈન સંઘ, સુઈગામ શ્રી વાંકડિયા વડગામ જૈન સંઘ, વાંકડિયા વડગામ ૬. ૭. શ્રી ગરાંબડી જૈન સંઘ, ગરાંબડી ૮. શ્રી રાંદેર૨ોડ જૈન સંઘ-અડાજણ પાટીયા, રાંદેરોડ, સુરત ૯. શ્રી ચિંતામણી પાર્શ્વનાથ જૈન સંઘ પાર્લા (ઈસ્ટ), મુંબઈ ૧૦. શ્રી આદિનાથ તપાગચ્છ શ્વેતાંબર મૂ.પૂ.જૈન સંઘ, કતારગામ, સુરત ૧૧. શ્રી કૈલાસનગર જૈન સંઘ, કૈલાસનગર, સુરત ૧૨. શ્રી ઉચોસણ જૈન સંઘ, સમુબા શ્રાવિકા આરાધના ભવન, સુરત જ્ઞાનખાતેથી ૧૩. શ્રી વાવ પથક જૈન શ્વે. મૂ.પૂ. સંઘ, અમદાવાદ ૧૪. શ્રી વાવ જૈન સંઘ, વાવ, બનાસકાંઠા ૧૫. કુ. નેહલબેન કુમુદભાઈ (કટોસણ રોડ)ની દીક્ષા પ્રસંગે થયેલ આવકમાંથી ૧૬. શ્રી આદિનાથ શ્વેતાંબર મૂર્તિપૂજક જૈન સંઘ, નવસારી ૧૭. શ્રી ભીલડીયાજી પાર્શ્વનાથ જૈન દેરાસર પેઢી, ભીલડીયાજી ૧૮. શ્રી નવજીવન જૈન શ્વે. મૂ.પૂ. સંઘ, મુંબઈ ૧૯. શ્રી જશવંતપુરા જૈન સંઘ - શ્રાવિકા બહેનોના જ્ઞાનદ્રવ્યમાંથી પ્રભુવાણી પ્રસારક (યોજના-૬૧,૧૧૧) ૧. શ્રી દિપા શ્વેતાંબર મૂર્તિપૂજક જૈન સંઘ, રાંદેરરોડ, સુરત ૨. શ્રી સીમંધરસ્વામી મહિલા મંડળ, પ્રતિષ્ઠા કોમ્પલેક્ષ, સુરત ૩. શ્રી શ્રેણીકપાર્ક જૈન શ્વેતાંબર મૂર્તિપૂજક સંઘ, ન્યૂ રાંદેર૨ોડ, સુરત ૪. શ્રી પુણ્યપાવન જૈન સંઘ, ઈશિતા પાર્ક, સુરત ૫. શ્રી શ્રેયસ્કર આદિનાથ જૈન સંઘ, નીઝામપુરા, વડોદરા ૬. શ્રી અમરોલી જૈન સંઘ - અમરોલી, સુરત For Personal & Private Use Only २८७ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ ૧. ૨. શ્રી ઉમરા જૈન સંઘ, સુરત શ્રી મોરવાડા જૈન સંઘ, મોરવાડા પ્રભુવાણી પ્રસાર અનુમોદક (યોજના ૩૧,૧૧૧) ૩. શ્રી શત્રુંજય ટાવર જૈન સંઘ, સુરત ૪. શ્રી ચૌમુખજી પાર્શ્વનાથ જૈન મંદિર ટ્રસ્ટ શ્રી જૈન શ્વેતાંબર તપાગચ્છ સંઘ ગઢસિવાના (રાજ.) ૫. શ્રીમતી તારાબેન ગગલદાસ વડેચા–ઉચોસણ ૬. શ્રી સુખસાગર અને મલ્હાર એપાર્ટમેન્ટ સુરતની શ્રાવિકાઓ તરફથી રવિજ્યોત એપાર્ટમેન્ટ, સુરતની શ્રાવિકાઓ તરફથી ૭. ૮. અઠવાલાઈન્સ જૈન સંઘ, પાંડવબંગલો, સુરત શ્રાવિકાઓ તરફથી ૯. શ્રી આદિનાથ તપાગચ્છ શ્વે.મૂર્તિપૂજક જૈન સંઘ, કતારગામ, સુરત ૧૦. શ્રીમતી વર્ષાબેન કર્ણાવત, પાલનપુર ૧૧. શ્રી શાંતિનિકેતન સરદારનગર જૈન સંઘ, સુરત ૧૨. શ્રી પાર્શ્વનાથ જૈન સંઘ, ન્યુ રામારોડ, વડોદરા ૧૩. પાંડવ બંગલો (અઠવાલાઇન્સ) સુરતની આરાધક બહેનો તરફથી, સુરત પ્રભુવાણી પ્રસાર ભક્ત (યોજના - ૧૫,૧૧૧) ૧. શ્રી દેસલપુર (કંઠી) શ્રી પાર્શ્વચંદ્રગચ્છ ૨. શ્રી ધ્રાંગધ્રા શ્રી પાર્શ્વચંદ્રસૂરીશ્વરગચ્છ ૩. શ્રી અઠવાલાઈન્સ જૈન સંઘ, સુરત શ્રાવિકા ઉપાશ્રય बृहद्गच्छ का इतिहास વાવ નગરે પૂજ્ય આચાર્ય ભગવંત ૐકારસૂરિ મહારાજાની ગુરૂ મૂર્તિ પ્રતિષ્ઠા સ્મૃતિ ૧. રૂા.૨,૧૧,૧૧૧ શ્રી વાવ શ્વેતાંબર મૂર્તિપૂજક જૈન સંઘ ૨. રૂા.૧,૧૧,૧૧૧ શ્રી વાવ પથક શ્વે. મૂર્તિપૂજક જૈન સંઘ, અમદાવાદ ૩. રૂ।. ૩૧,૦૦૦ શ્રી સુઈગામ જૈન સંઘ ૪. રૂા. ૩૧,૦૦૦ શ્રી બેણપ જૈન સંઘ ૬. ૭. રૂા. ૩૧,૦૦૦ ૧૫. રૂા.૩૧,૦૦૦ શ્રી ઉચોસણ જૈન સંઘ રૂા. ૩૧,૦૦૦ શ્રી ભરડવા જૈન સંઘ શ્રી અસારા જૈન સંઘ રૂા. ૩૧,૦૦૦ શ્રી ગરાંબડી જૈન સંઘ ૯. રૂા. ૩૧,૦૦૦ શ્રી માડકા જૈન સંઘ ૧૦. રૂા.૩૧,૦૦૦ શ્રી તીર્થગામ જૈન સંઘ ૧૧. રૂા.૩૧,૦૦૦ શ્રી કોરડા જૈન સંઘ .. ૧૨. રૂા. ૩૧,000 ૧૩. રૂ।. ૩૧,૦૦૦ ૧૪. રૂ।. ૩૧,૦૦૦ ૧૫. રૂા.૩૧,૦૦૦ ૧૬. રૂા. ૧૧,૧૧૧ શ્રી ઢીમા જૈન સંઘ શ્રી માલસણ જૈન સંઘ શ્રી મોરવાડા જૈન સંઘ શ્રી વર્ધમાન શ્વે.મૂ.પૂ.જૈન સંઘ, કતારગામ દરવાજા, સુરત શ્રી વાસરડા જૈન સંઘ, સેવંતીલાલ મ. સંઘવી For Personal & Private Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Samjaulsageandebara 60 daarulemand निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से अस्तित्व में आये प्राचीनतम गच्छों में बृहद्गच्छ या वडगच्छ भी एक है / इस गच्छ की मान्यतानुसार चन्द्रकुल के आचार्य उद्योतनसूरि ने अर्बुदगिरि की तलहटी में स्थित धर्माण (वरमाण) सन्निवेश में वटवृक्ष के नीचे श्री सर्वदेव सहित आठ मुनिजनों को एक साथ आचार्य पद प्रदान किया, जिससे उनकी शिष्यसंतति बडगच्छीय कहलायी / वटवृक्ष की भांति इस गच्छ की अनेक शाखायेंप्रशाखायें हुईं, अतः इसका एक नाम बृहद्गच्छ भी प्रचलित हुआ। KIRIT GRAPHICS : 079-25330095