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मडाहडागच्छ का इतिहास : एक अध्ययन
निर्ग्रन्थ-परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से उद्भूत गच्छों में बृहद्गच्छ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह गच्छ विक्रम सम्वत् की १०वीं शती में उद्भूत माना जाता है। उद्योतनसूरि, सर्वदेवसूरि आदि इस गच्छ के पुरातन आचार्य माने जाते हैं। १ अन्यान्य गच्छों की भाँति इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न कारणों से अनेक शाखाओं-प्रशाखाओं का जन्म हुआ और छोटे-छोटे कई गच्छ अस्तित्व में आये। बृहद्गच्छ गुर्वावली २ ( रचनाकाल वि०सं० १६२० ) में उसकी अन्यान्य शाखाओं के साथ मडाहडाशाखा का भी उल्लेख मिलता है। यही शाखा आगे चलकर मडाहडागच्छ के रूप में प्रसिद्ध हुई। यहां इसी गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है मडाहडा नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया होगा । मडाहडा की पहचान वर्तमान मडार नामक स्थान से की जाती है जो राजस्थान प्रान्त के सिरोही जिले में डीसा से चौबीस मील दूर ईशानकोण में स्थित है।३ चक्रेश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। यह गच्छ कब औरौं किस कारण से अस्तित्व में आया, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । अन्य गच्छों की भाँति इस गच्छ से भी कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ। विभिन्न साक्ष्यों से इस गच्छ की रत्नपुरीयशाखा, जाखड़ियाशाखा, जालोराशाखा आदि का पता चलता है।
मडाडगच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं, किन्तु अभिलेखीय साक्ष्यों की तुलना में साहित्यिक साक्ष्य संख्या की दृष्टि से स्वल्प हैं। साथ ही वे १६वीं शताब्दी के पूर्व के नहीं हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए तथा प्राचीनता की दृष्टि से पहले अभिलेखीय साक्ष्यों तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है।
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