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अध्याय-७
१९९ ६. अगरचन्द नाहटा - "विक्रमादित्य सम्बन्धी जैन साहित्य" विक्रमस्मृतिग्रन्थ, संपा० हरिहर निवास द्विवेदी तथा
अन्य, उज्जैन वि०सं० २००१, पृ० १४१-१४८. संवत् १५०४ वर्षे आसो सुदि १० सोमवारे साधुपूण्णिमागच्छे चन्द्रप्रभसूरिसंताने भ० श्रीपुण्यचन्द्रसूरिशिष्यगणिवर-जयसिंहगणिना राणपुरनगरे सम्यकत्वरत्नमहोदधिग्रन्थपुस्तकं लिखितम्।। A.P. Shah. I bid, Vol I, No-2934, P-149-151 पुण्यइं लाभई सुखसंयोग, पुण्यइं काजइं देवगह भोग, पण्यई सवि अंतराय टलइ, मनवंछित फल पुण्य लहइ। साधपूनिम पक्ष गच्छ अहिनाण, श्रीरामचन्द्रसूरि सुगुरु सुजाण, नवरसे फरइ अमृत वखाणि, चतुर्विध श्री संघ मनि आण। तस पाटधर साहसधीर, पाप पखाइल जाणे नीर, पंच महाव्रत पालणवीर, श्रीपुण्यचन्द्रसूरि गुरु बा गंभीर। तास पट्ट उदया अभिनवा भाणु, जाणे महिमा मेरु सम्मान, गिरुआ गुणह तण् निधान, श्री विजयचन्द्रसूरि युगप्रधान। संवत पंनर पांत्रीसु जाणि, आसोइ पूनमि अहिनाणि, गुरुवारइ पूक्ष नक्षत्र होइ, पूरव पुण्य तणां फल जोई। कर जोड़ी कीरति प्रणमइ, आरामसोभा रास जे सुणइ। भणइ गुणइ जे नर नि नारि, नवनिधि वलसई तेह घरबारि।
- इति आरामसोभा रास समाप्त। मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीय संस्करण- संपा० जयन्त कोठारी, बम्बई १९८६ ईस्वी, पृ० ४८३-४८४. इतिश्रीआवश्यकसूत्रस्य बालावि (व) बोध समाप्त। श्रीरस्तु संवत् १६१० वर्षे वैशाख वदि ३ शुक्रे म० गोवाल लिखितं श्रीसाधुपूर्णिमापक्षे मुख्य भट्टारकश्रीउदयचन्द्रसूरि तत्पट्टे पु (पू) ज्यराज्य (ध्य) श्रीमुनिचन्द्रसूरि तत्पट्टे गच्छाधिराज भारधुरिधरश्रीश्रीश्री विद्याचन्द्र (?सू) रिद्रे एषा पुस्तिका लिखापिता।। सर्वेषां शश्याना वाचनार्थ।। H.R. Kapadia. Ed. Descriptive Catalogue of the Govt Collection of the Mss :
deposited at the B.O.R.T., Vol XVII, p-456. १०. जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास, भाग २, पृष्ठ ९९८-१०२२
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