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बृहद्गच्छ का इतिहास
उदयचन्द्रसूरि (वि०सं०१५५०-१५५३)
२ प्रतिमालेख
कीरति (वि० सं० १५३५ में आरामशोभाचौपाई के रचनाकार)
मुनिराजसूरि
मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १५७२) १ प्रतिमालेख (वि०सं० १५७५-१५७९) २ प्रतिमालेख
विद्याचन्द्रसूरि (वि०सं०१५९६-१६२४) ३ प्रतिमालेख वि०सं०१६१० में इनके उपदेश से आवश्यकनियुक्ति बालावबोध की प्रतिलिपि की गयी
सन्दर्भ
षट्व्यर्केषु (१२३६) च सार्धपूर्णिमा...। ___ मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, बम्बई १९६१ ईस्वी, पृ० २१, ३९, ६५, २०१
आदि। त्रिपुटी महाराज - जैनपरम्परानो इतिहास, भाग २, पृ० ५४४-५४६. संवत् १४१२ वर्षे पौष वदि १२ गुरौ अद्येह श्रीमदणहिलपट्टने श्रीसाधुपूर्णिमापक्षीय श्रीअभयचन्द्रसूरीणां पुस्तकं लिखितं पंडित महिमा (पा?) केन। शुभं भवतु। शांतिनाथचरित की दाता प्रशस्ति मुनि जिनविजय - संपा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, बम्बई १९४४ ईस्वी, पृ० १३९, प्रशस्ति क्रमांक ३१०. मूल ग्रन्थ और उसकी प्रशस्ति उपलब्ध न होने से उक्त उद्धरण निम्नलिखित ग्रन्थ के आधार पर दिया गया है : मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, बम्बई १९३२ ई, पृ० ४३७. संवत् १४५३ वर्षे फाल्गुन सुदिपूर्णिमादिने अद्येह श्रीमत्पत्तने श्रीराउतवाटके श्रीसाधुपूर्णिमापक्षीय भट्टारकश्रीअभयचन्दसूरि – शिष्यरामचन्द्रसूरि पठनार्थ ज्ञा (न्या) यावतारवृत्तिप्रकरणं लल (ललित) कीर्तिमुनिना लिखितं शुभं भवतु । A.P. Shah. Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss : Muni Shree Punyavijayaji's Collection, Vol I, No-3494, p-201
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