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देवकीर्तिसूरि
चन्द्रकीर्तिसूरि I सोमकीर्तिसूरि
वि०सं० १५९६ के प्रतिमा लेख में उल्लिखित रत्नकीर्तिसूरि और वि० सं० १६६७ के उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित चन्द्रकीर्ति के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध था, यह बात उक्त प्रतिमालेख से ज्ञात नहीं होता है ।
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बृहद्गच्छ का इतिहास
अमर (कीर्तिसूरि)
(वि० सं० १६६७ में श्रेयांसनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक
नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध यही चार अभिलेखीय साक्ष्य आज मिलते हैं, किन्तु इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से ये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। नागपुरीयतपागच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्य
पद्मप्रभसूर
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प्रसन्नचन्द्रसूरि
I
गुणसमुद्रसूर
1 जयशेखरसूरि
नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है इस गच्छ के आचार्य चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा वि० सं० १६२३ / ई० स० १५६७ में रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति ७, जिसमें रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी गुर्वावली दी है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से अति मूल्यवान है। गुर्वावली इस प्रकार है :
वादिदेवसूर
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