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अध्याय-७
१२७
सोमरत्नसूरि
राजरत्नसूरि
रत्नकीर्तिसूरि (वि० सं० १५९६ में आदिनाथ की
प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं नागपुरीयतपागच्छीय सोमरत्नसूरि का वि० सं० १५५१ के एक लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है। अत: इन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर रत्नकीर्ति के प्रगुरु और राजरत्नसूरि के गुरु सोमरत्नसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। ___ इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अन्तिम अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १६६७ का है। इस लेख का मूलपाठ भी हमें विनयसागर जी द्वारा ही प्राप्त होता है,६ जो इस प्रकार है :
सम्वत् १६६७ फाल्गुन कृष्णा ६ गुरौ..............उसवालज्ञातीय दूगड़गोत्रे सा० सलिग पुत्र साह राजपाल पुत्र सा० खीमाकेन भार्या कुशलदे पुत्र गिरधर सा० मानसिंघयुतेन श्री श्रेयासनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनागौरीतपागच्छे श्रीचन्द्रकीर्तिसूरिपट्टे श्रीसोमकीर्तिसूरिपट्टे श्रीदेवकीर्तिसूरि श्रीअमर .................................। प्रतिष्ठितं नागौरी तपागच्छ श्री आगरानगरे मानसिंघेन लिपीकृतं ॥
मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ जिनालय, हिंडोन
इस प्रकार इस अभिलेख में नागपुरीयतपागच्छ के चार मुनिजनों के नाम मिल जाते हैं, जो इस प्रकार हैं :
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