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________________ १२६ बृहद्गच्छ का इतिहास प्रतिष्ठान स्थान – ऋषभदेव जिनालय, मालपुरा आदिनाथ जिनालय, नागौर में एक शिलापट्ट पर उत्कीर्ण वि० सं० १५९६ का एक खण्डित अभिलेख प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख में राजरत्नसूरि और उनके शिष्य रत्नकीर्तिसूरि का नाम मिलता है। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है: ॥ॐ॥ स्वास्तिश्रीसंवत् १५९६ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे नवमी तिथौ सोमवारे नागपुरकोटे श्रीमालवंशे संकियाप्य (?) गोत्रे सं० नोल्हा पु० सं० चूहड़ सं० लक्ष्मीदास सं० भवानी सं० लक्ष्मीदास भार्या सं० सरूपदे नाम्नी है............................... श्रीराजरत्नसूरिपट्टे सं० श्रीरत्नकीर्तिसूरि प्रतिष्ठिता।। ...................। शिलापट्ट प्रशस्ति, आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर उक्त अभिलेख से राजरत्नसूरि और उनके शिष्य रत्नकीर्तिसूरि किस गच्छ के थे, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती किन्तु उक्त जिनालय में ही मूलनायक के रूप में स्थापित आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख से इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। महोपाध्याय विनयसागर जी५ ने इस लेख का मूलपाठ दिया है, जो निम्नानुसार है: ॥ॐ।। सं० १५९६ वर्षे फाल्गुन सुदि नवम्यां तिथौ.................गोत्रे.. ........... सं० नोल्हा पु० सं० तेजा पु० सं० चूहड भा० सं० रमाइं पु० सं० लक्ष्मीदास सं० भवानी सं० लक्ष्मीदास भा०... .......कल्याणमल्ल तत्र लक्ष्मीदास भार्या सरूपदेव्यौ कर्मनिर्जरार्थं श्री आदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं.... .......भट्टारक श्रीसोमरत्नसूरिपट्टे भट्टारिक श्री श्रीराजरत्नसूरयस्तत्पट्टे श्रीरत्नकीर्तिसूरि................... श्रीसंघस्य। मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर इस अभिलेख में रत्नकीर्तिसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलने के साथ साथ उनके गुरु राजरत्नसूरि और प्रगुरु सोमरत्नसूरि का भी नाम मिलता है: .......... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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