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________________ अध्याय- ४ सन्दर्भ १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८-९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कण्डिका ३३२-३३४. श्रीनवलमल जी बिनौलिया, “श्रीवादिदेवसूरि" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ३, अंक १०-१२, ५१ पृ० ३७५-३८२. देसाई, पूर्वोक्त कण्डिका ३४३, पृ० २४७-४८. बिनौलिया, पूर्वोक्त, पृ० ३८२. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ४८७, जिनरत्नकोश, पृ० १००. P. Peterson, Opration in Search of Sanskrit & Prakrit MSS in Bombay Circle, Vol. I, App. p-6, Vol. III, App. p-65. Vol. 4, p-XCV. Muni Punya Vijaya, Ed., New Catalogue of Mss in the Jaina Bhandars at Jesalmer, No. 90,p 192. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ५९४. वही, कण्डिका ६४२-६४४. गुलाबचन्द चौधरी, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० २२३-२४. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ६३०,६३३. रत्नप्रभसूरि द्वारा रचित उपदेशमालाप्रकरणवृत्ति (जिसका संशोधन इनके ज्येष्ठ गुरुभ्राता भद्रेश्वरसूरि ने किया) तथा अपने गुरु वादिदेवसूरिकृत स्याद्वादरत्नाकर पर रचित लघु टीका नामक कृतियां प्राप्त होती हैं । देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ४८३. अध्याय ५ के अन्तर्गत लेख तालिका में इसका विवरण प्रस्तुत किया गया है । मुनि जिनविजय, संपा०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३५२. मुनि चतुरविजयजी, संपा० जैनस्तोत्रसन्दोह, प्रथम भाग, प्रस्तावना, पृष्ठ ४८-४९. मुनि चतुरविजयजी ने उक्त रामचन्द्रसूरि को कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि के शिष्य सुप्रसिद्ध नाट्यकार रामचन्द्रसूरि से अभिन्न माना है । त्रिपुटी महाराज ने भी मुनि चतुरविजयजी के मत का समर्थन किया है । इसके विपरीत मुनि कल्याणविजयजी और पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह उक्त रामचन्द्रसूरि को बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि के प्रशिष्य और पूर्णदेवसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि से अभिन्न बतलाया है । प्रो० एम. ए. ढांकीने भी विभिन्न अकाट्य साक्ष्यों के आधार पर मुनि कल्यणविजयजी एवं शाहजी के मत की पुष्टि की है । " कवि रामचन्द्र अने कवि सागरचन्द्र', सम्बोधि, वर्ष ११, अंक १-४, पृष्ठ ६८-७८. F. Keilhorn, "Sundha Hill Inscription of Cacigadeva, Vikram Samvat 1319. " Epigraphiya Indica, Vol IX - 1907-08, p. 79. पूरनचन्द्र नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ४३. हीरालाल रसिकलाल कापडिया, जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास, द्वितीय संस्करण, संपा० आ० मुनिचन्द्रसूरि, भाग-२, पृष्ठ ३२६. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ३५४. A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Ac. Vijayadevasuries and Ac Ksantisuries collections, Part IV, L. D. Series No. 20, p. 95. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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