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________________ ५२ २१. २५ बृहद्गच्छ का इतिहास १७. A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts : Muniraj Shree Punya VijayaJis Collections, Part I, p. 182. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ३६५. अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, संपा० कालिकाचार्यकथा संग्रह, पृ० १७-१८ । C. D. Dalal, Ed. A Descriptive Catalogue of Manuscriptive in the Jain Bhandar's at Patan Vol. I, P-62. वही, लेखांक ३६४, ३६५. २२-२३. अध्याय ७ के अन्तर्गत इस सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डाला गया है । देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ४८४. वही, कण्डिका ४८२. मुनि जिनविजय, संपा०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५३. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ५०५. अध्याय ५ के अन्तर्गत लेख तालिका में इसका विवरण प्रस्तुत किया गया है । Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan, Introduction, p. 50. जिनरत्नकोश, पृष्ठ २१०. मुनि जिनविजय, सम्पा०- कुमारपालप्रतिबोध (सोमप्रभाचार्य; रचनाकाल वि०सं० १२४१), गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, ग्रन्थांक १४, बड़ोदरा १९२० ई०, प्रस्तावना, पृ० १-४. पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पृ० ८२-८४. सोमप्रभाचार्य द्वारा रचित सुमतिनाथचरित, सूक्तिमुक्तावली एवं शतार्थीकाव्य नामक कृतियां भी मिलती हैं। मुनि जिनविजय, कुमारपालप्रतिबोध, प्रस्तावना, पृ० ४-७. देसाई, पूर्वोक्त, कण्डिका ५५१. वही, कण्डिका ६३०. A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss Muniraja Shri Punya VijayaJi's Collection , Part-III, P. 443. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया के अनुसार यह कृति ई०स० १८८३ में सुधाकर द्विवेदी और एल०शर्मा द्वारा वाराणसी से प्रकाशित हुई है। जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, खण्ड १, द्वितीय संस्करण, संपा० आचार्य मुनिचन्द्रसूरि, सूरत २००४ ईस्वी, पृष्ठ १३९, पाद टिप्पणी. १. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार यह ग्रन्थ निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से भी प्रकाशित हुआ है । भारतीय ज्योतिष, द्वितीय संस्करण, काशी १९६०ई०, पृष्ठ ६२२. यंत्रराज के सम्बन्ध में विस्तार के लिए द्रष्टव्य, नेमिचन्द्र शास्त्री, पूर्वोक्त, पृष्ठ १६१. अध्याय ५ के अन्तर्गत लेख क्रमांक ८६-८८.. मुनि जिनविजय, सम्पा०- विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृ०५२-५५. अमृतलाल मगनलाल शाह, सम्पा०- श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक १४९, पृ० ३५. शीतिकण्ठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास- मरु-गूर्जर, भाग १, पृ० ११५. अमृतलाल मगनलाल शाह, पूर्वोक्त, भाग-२, प्रशस्ति क्रमांक ४३६, पृ० ११५. Muni Punya Vijaya Ji, Ed., New Catalogue of Mss in the Jain Bhandar's at Jesalmer, No. 1829, p. 330. ४०. ४१. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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