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________________ बृहद्गच्छ का इतिहास वादिदेवसूरि की परम्परा के मुनीश्वरसूरि मेरुप्रभसूरि राजरत्नसूरि मुनिदेवसूरि वाचक महीरत्न मुनिसार वाचक विनयरत्न (वि०सं० १५४९ में सुभद्राचउपई के रचनाकार) वि०सं० १६१९ में श्राद्धजीतकल्पवृत्ति के प्रतिलिपिकार शीलदेव भी बृहद्गच्छ के थे।४० उक्त प्रति की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को भावदेवसूरि का शिष्य कहा है। मुनिमाल द्वारा रचित बृहद्गच्छगुर्वावली में भी भावदेवसूरि का नाम ऊपर हम देख चुके हैं। शीलदेव के शिष्य मांडण ने वि०सं० १६५८ में योगरत्नाकर का प्रतिलिपि की।४१ भावदेवसूरि (वि०सं० १६०४ में भट्टारक पद प्राप्त) शीलदेव (वि०सं० १६१९ में श्राद्धजीतकल्पवृत्ति के प्रतिलिपिकार) मांडण (वि०सं० १६५८ में योगरत्नाकर के प्रतिलिपिकार) अगले अध्याय में बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों का विस्तृत विवरण और उनके आधार प्राप्त इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की तालिकाओं का साहित्यिक साक्ष्यों से प्राप्त विभिन्न गुरु-परम्पराओं से परस्पर समायोजन की संभावना प्रस्तुत है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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