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________________ अध्याय- ४ मेरुप्रभसूर 1 राजरत्नसूर 1 मुनिदेवसूर 1 रत्नशेखरसूरि Jain Education International 1 पुण्यप्रभसूर I संयमरत्नसूरि (वि०सं० १५६९ में पद स्थापना ) 1 भावदेवसूरि (वि०सं० १६०४ में भट्टारक पद प्राप्त) आवश्यकनिर्युक्ति के प्रतिलिपिकार मुनि जयशेखर ३८ भी मुनिमाल द्वारा दी गयी गुर्वावली में उल्लिखित मुनीश्वरसूरि की परम्परा के माने जा सकते हैं। उक्त कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु- परम्परा दी है, जो इस प्रकार है: मुनीश्वरसूर 1 वाचक भद्रमेरु 1 वाचक मनोदय ४९ 1 मुनि जयशेखर (वि०सं० १५३२ / ई०स० १४७६ में आवश्यक नियुक्ति के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १५४९ ( ई०स० १४९३ में रची गयी सुभद्राचउपई के रचनाकार वाचक विनयरत्न भी बृहद्गच्छ के मुनीश्वरसूरि की ही परम्परा के थे । ३९ उक्त कृति की प्रशस्ति में उन्होंने जो गुरु-परम्परा दी है, वह इस प्रकार है : For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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