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| पूर्णिमागच्छ - भीमपल्लीयाशाखा का इतिहास ।
पूर्णिमागच्छ की यह शाखा भीमपल्ली नामक स्थान से अस्तित्व में आयी प्रतीत होती है। इसके प्रवर्तक कौन थे, यह कब और किस कारण से अस्तित्व में आयी, इस सम्बन्ध में आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस शाखा में देवचन्द्रसूरि, पार्श्वचन्द्रसूरि, जयचन्द्रसूरि, भावचन्द्रसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, विनयचन्द्रसूरि आदि कई महत्त्वपूर्ण आचार्य हुए हैं । भीमपल्लीयाशाखा से सम्बद्ध जो भी साक्ष्य आज उपलब्ध हुए हैं, वे वि०सं० की १५वीं शती से वि०सं० की १८वीं शती तक के हैं और इनमें अभिलेखीय साक्ष्यों की बहुलता है। अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम अभिलेखीय और तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
अभिलेखीय साक्ष्य - पूर्णिमापक्ष-भीमपल्लीयाशाखा के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित ५४ जिन प्रतिमायें अद्यावधि उपलब्ध हुई हैं। इन पर वि०सं० १४५९ से वि०सं० १५९८ तक के लेख उत्कीर्ण हैं जिनसे ज्ञात होता है कि ये प्रतिमायें उक्त कालावधि में प्रतिष्ठापित की गयी थी ।
उक्त प्रतिमालेखीय साक्ष्यों द्वारा यद्यपि पूर्णिमागच्छ की भीमपल्लीयाशाखा के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं; किन्तु उनमें से मात्र ८ मुनिजनों के पूर्वा पर सम्बन्ध ही स्थापित हो सके हैं, जो इस प्रकार है -
देवचन्द्रसूरि
पार्श्वचन्द्रसूरि (वि०सं० १४५९-१४६१) २ प्रतिमालेख
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