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________________ अध्याय-३ आम्रदेवसूरि ‘प्रथम’ 1 नेमिचन्द्रसूरि जिनदेवसूर हरिभद्रसूरि (प्रसिद्ध ग्रन्थकार) श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य एवं आम्रदेवसूरि के मुख्य पट्टधर हरिभद्रसूरि अपने युग के प्रसिद्ध रचनाकार थे। चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज (वि०सं०११५०-११९९) और कुमारपाल (वि०सं० १९९९-१२३०) के शासनकाल में महामात्य के पद पर आसीन मंत्रीश्वर पृथ्वीपाल की प्रार्थना पर इन्होंने चौबीस तीर्थङ्करों के जीवनचरित्र का प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं प्रणयन किया। इनमें से चन्द्रप्रभचरित, मल्लिनाथचरित और नेमिनाथचरित आज उपलब्ध हैं। चन्द्रप्रभचरित की प्रशस्ति २१ में इन्होंने अपनी गुरुपरम्परा दी है जो इस प्रकार है : “नियय महिमा तिरोहिय-चिंतामणि- कामधेणु-माहप्पो । चउवीसइमजिणिंदो, जाओ सिरिबद्धमाहपहू || तत्तित्थंमि य कोडियगणंमि विउलाए वइरसाहाए । चंदकुलंमि य चंदुज्जलमि वडगच्छगयणससी । तरणि व्व गरुअ-तेओ, सयंभुरमणु व्व पत्त-परम-दओ । हंसो व्व विमलपक्खो, सुरगिरिरिव लोय मज्झत्थो । लच्छी-कलाकलावासमाणमेहाहिं सच्चवियनामो । जाओ पत्तपसिद्धी, भयवं जिणचंदसूरि त्ति ॥ - वियसंत- कुमुय-कमला, निय-निय - पहविभु (बु) ह चक्क - कय-तोसा । तत्सासि दोन्नि सीसा, रयणीयर- सहस्सकिरण व्व ॥ Jain Education International तत्थ य सुरसो विरइय- परप्पबंधो य धरणिनाहु व् । सिरिअम्बएवसूरी, गुण- रयण-महोयही पढमो ॥ अणवरय-धम्मकम्मोवउत्त-चित्तो वि निच्चमपहरणो । कय-करणायारो वि हु, अविहिय-रायट्ठिइविसेसो ॥ २९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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