________________
२८
बृहद्गच्छ का इतिहास बृहद्गच्छीय आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं। वि०सं० ११७२/ई०स० १११६ में इन्होंने बन्यस्वामित्ववृत्ति, आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणवृत्ति
और श्रेयांसनाथचरित की रचना की। वि०सं० ११८५/ई०स० ११२९ में पाटण में श्रेष्ठी यशोनाग के उपाश्रय में रहते हुए प्रशमरतिप्रकरण पर वृत्ति की रचना की। अपनी कृतियों की प्रशस्ति२० में इन्होंने मानदेवसूरि को अपना प्रगुरु तथा जिनदेवसूरि को गुरु बतलायाहै:
मानदेवसूरि
जिनदेवसूरि
हरिभद्रसूरि हरिभद्रसूरि के प्रगुरु मानदेवसूरि को आख्यानकमणिकोश के रचनाकार देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि के प्रगुरु उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन ५ आचार्यों - यशोदेवसूरि, प्रद्युम्नसूरि, मानदेवसूरि, (सर्व) देवसूरि और आनन्दसूरि – में से तीसरे मानदेवसूरि से प्राय: समसामयिकता, नामसाम्य और गच्छसाम्य को देखते हुए अभिन्न मानने की सम्भावना व्यक्त की जा सकती है। द्रष्टव्य तालिका-४
तालिका क्रमांक -४ उद्योतनसूरि 'प्रथम'
सर्वदेवसूरि
देवसूरि ‘विहारुक'
नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम'
उद्योतनसूरि ‘द्वितीय'
यशोदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि (सर्व)देवसूरि
आनन्दसूरि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org