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अध्याय-६ लक्ष्मीनिवास (रत्नप्रभ के शिष्य), खंडप्रशस्तिटीका (संस्कृत), एवं मेघदूतवृत्ति (संस्कृत);
हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग
२, पृष्ठ ३३३. वर्धमानसूरि (अभयदेवसूरि के शिष्य) आदिनाथचरित्र, (प्राकृत), वि० सं० ११६०,
जिनरत्नकोश, पृ० २८. मनोरमाकहा, (प्राकृत), वि० सं० ११४०,
वही, पृ० ३०१. धर्मकरण्डक, वि० सं० ११६२, वही, पृ० १९२. वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्र के शिष्य); उपदेशकुलक; (संस्कृत); उपधानस्वरूप, (संस्कृत);
कलिकुंडपार्श्वस्तवनम्, (संस्कृत); प्रमाणनयतत्त्वालोक, (संस्कृत); मुनिचन्द्रगुरुस्तुति, (संस्कृत); मुनिचन्द्रगुरुविरहस्तुति, (संस्कृत) प्रभातस्मरणस्तुति, (संस्कृत); यतिदिनचर्या, (संस्कृत); संसारोद्विग्नमनोरथकुलक, (संस्कृत); स्याद्वादरत्नाकर (प्रमाणनयतत्त्वालोक की टीका) देसाई, पूर्वोक्त, कंडिका
३४३-४५. विद्याकरगणि (मानभद्रसूरि के शिष्य) हैमव्याकरणवृत्ति पर दीपिका, (संस्कृत), वि०
सं० १३६८, देसाई, जैनसाहित्य...,कंडिका ६३०. विनयरत्न (मुनिसार के शिष्य) सुभद्राचौपाई, मरु-गूर्जर, वि० सं० १५४९,
शांतिकंठ मिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, मरु-गूर्जर, भाग-१,
पृ० ४९७. शांतिसूरि (नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य) पुहवीचंदचरिय, (प्राकृत), वि० सं० ११६१, प्राकृत अपरनाम टेक्स्ट सोसायटी से १९६२ ई० में प्रकाशित. शान्त्याचार्य शालिभद्रसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य) भरतबाहुबलिरास, (वि० सं० १२४१), गुजराती
साहित्यकोश, पृ० ४६८. सुमतिप्रभसूरि (सुखप्रभसूरि के शिष्य) चौबीसी, मरु-गूर्जर, (वि० सं० १८२१), जैन
गुर्जर कविओ, भाग-४, पृ. २३०. सोमचन्द्र वृत्तरत्नाकरवृत्ति, (संस्कृत), (वि० सं० १३२९).
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