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________________ १४ बृहद्गच्छ का इतिहास जिनवल्लभसूरि भी प्रारम्भ में एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे, परन्तु बाद में अपने चैत्यवासी गुरु की आज्ञा लेकर अभयदेवसूरि से उपसम्पदा ग्रहण की । २० खरतरगच्छीय परम्परा एक स्वर से सुविहितमार्गीय आचार्य वर्धमानसूरि, उनके पट्टधर और दुर्लभराज की राजसभा में वाद विजेता जिनेश्वरसूरि, प्रसिद्ध रचनाकार जिनचन्द्रसूरि, नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि आदि को अपने गच्छ का घोषित करती है, किन्तु इन रचनाकारों जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि ने अपनी कृतियों में कहीं भी अपने को खरतरगच्छीय नहीं कहा है और न ही कहीं इस गच्छ का नामोल्लेख ही किया है अपितु वे स्वयं को चन्द्रकुल का बतलाते हैं। ऐसी परिस्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि किसके कथन को प्रामाणिक माना जाये । वस्तुतः वर्धमानसूरि और जिनेश्वरसूरि द्वारा प्रवर्तित सुविहितमार्गीय आन्दोलन को उनकी शिष्य सन्तति ने ही आगे बढ़ाया। इसी क्रम में अभयदेवसूरि के कई शिष्यों में से एक जिनवल्लभसूरि एवं उनके पट्टधर जिनदत्तसूरि आगमसम्मत अपने कठोर आचरण के कारण विशेष रूप से विख्यात हुए और इनका शिष्य- समुदाय खरतरगच्छीय कहलाने लगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सुविहितमार्गीय चन्द्रकुलीन आचार्य वर्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि आदि खरतरगच्छीय तो नहीं अपितु इस गच्छ के आदिपुरुष जिनवल्लभसूरि एवं जिनदत्तसूरि के पूर्वज अवश्य थे। चूँकि अभयदेवसूरि के एक शिष्य जिनवल्लभसूरि का समुदाय खरतरगच्छ के नाम से विख्यात हुआ, अतः इस गच्छ की उत्तरकालीन परम्परा द्वारा उनके पूर्वपुरुषों को भी स्वाभाविक रूप से इसी नाम से अभिहित किया जाने लगा। अभयदेवसूरि के तीसरे शिष्य और पट्टधर वर्धमानसूरि हुए । इन्होंने वि०सं० ११४०/ ई०स० १०८४ में मनोरमाकहा, वि०सं० ११६०/ ई०स० ११०४ में आदिनाथचरित और धर्मरत्नकरण्डक की रचना की । २१ वि०सं० ११८७ एवं वि०सं० १२०८ के अभिलेखों में बृहद्गच्छीय चक्रेश्वरसूरि को वर्धमानसूरि का शिष्य कहा गया है। इन लेखों की वाचना निम्नानुसार है सं (वत्) ११८७ (वर्षे) फागु (ल्गुणवदि ४ सोमे रुद्रसिणवाडास्थानीय प्राग्वाटवंसा (शा) वये श्रे० साहिलसंताने पलाद्वंदा ( ? ) श्रे० पासल संतणाग देवचंद्र आसधर आंबा अंबकुमार श्रीकुमार लोयण प्रकृति श्वासिणि शांतीय रामति गुणसिरि प्रडूहि तथा पल्लडीवास्तव्य अंबदेवप्रभृतिसमस्तश्रावकश्राविकासमुदायेन अर्बुदचैत्यतीर्थे श्रीरि - Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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