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________________ अध्याय-७ ११७ से लेकर विक्रम सम्वत् १५७६ तक के हैं एवं उनकी संख्या भी तीस के लगभग है, वहीं साहित्यिक साक्ष्यों की संख्या मात्र दो है। चूँकि उत्तरकालीन अनेक चैत्यवासी मुनिजन प्रायः पाठन-पाठन से दूर रहते हुए स्वयं को चैत्यों की देखरेख और जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आदि कार्यों में ही व्यस्त रखते थे। अतः ऐसे गच्छों से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों का कम होना स्वाभाविक है। यहां उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । साहित्यिक साक्ष्यों की तुलना में अभिलेखीय साक्ष्यों का प्राचीनतर होने और संख्या की दृष्टि से अधिक होने के साथ ही अध्ययन की सुविधा आदि को नज़र में रखते हुए सर्वप्रथम इनका और तत्पश्चात् साहित्यिक साक्ष्यों का विवरण दिया जा रहा है : जीरापल्लीगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम लेख इस गच्छ के आदिम आचार्य रामचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। वर्तमान में यह प्रतिमा शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर में संरक्षित है। श्री पूरनचन्द नाह ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : कुटुम्ब श्रेयोर्थं श्री आदिनाथ बिम्बं सं० १४०६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ९ रवौ सा कारितं प्रतिष्ठितं जीरापल्लीयैः श्रीरामचन्द्रसूरिभिः ।। जैनलेखसंग्रह, भाग-२, लेखांक १०४९ इस गच्छ का उल्लेख करने वाला द्वितीय लेख वि०सं० १४११ का है जो जीरावला स्थित जिनालय में पार्श्वनाथ की देवकुलिका पर उत्कीर्ण है। मुनि जयन्तविजय ने इसकी वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : सं० १४११ वर्षे चैत्र वदि ६ बुधे अनुराधा नक्षत्रे बृहद्गच्छीय श्रीदेवचन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरीणां तपोवन समो.... .प्रभृतिपरिवारपरिवृत्तेन श्रीपार्श्वनाथस्य देवकुलिका सपरिकर जीरापल्लीयैः श्रीरामचन्द्रसूरिभिः कारिता ॥ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ११९ इस गच्छ से सम्बद्ध अन्य लेखों का विवरण इस प्रकार है : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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