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________________ अध्याय-७ १९३ किनके शिष्य थे, यह बात उक्त प्रशस्ति से ज्ञात नहीं होती। चूंकि सार्धपूर्णिमागच्छ से सम्बद्ध यह सबसे प्राचीन उपलब्ध साहित्यिक साक्ष्य है, इसलिए महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। २. रत्नाकरावतारिकाटिप्पण - वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि की प्रसिद्ध कृति प्रमाणनयतत्त्वावलोक (रचनाकाल वि०सं० ११८१/ईस्वी सन् ११२५) पर सार्धपूर्णिमागच्छीय गुणचन्द्रसूरि के शिष्य ज्ञानचन्द्रसूरि ने मलधारगच्छीय राजशेखरसूरि के निर्देश पर रत्नाकरावतारिकाटिप्पण (रचनाकाल वि०सं० की १५वीं शती के प्रथम या द्वितीय दशक के आसपास) की रचना की। यह बात उक्त कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है। ३. न्यायावतारवृत्ति की दाता प्रशस्ति - आचार्य सिद्धसेन दिवाकर प्रणीत न्यायावतारसूत्र पर निर्वृत्तिकुलीन सिद्धर्षि द्वारा रचित वृत्ति (रचनाकाल- विक्रम सम्वत् की १०वीं शती के तृतीय चरण के आस-पास) की वि०सं० १४५३ में लिपिबद्ध की गयी एक प्रति की दाता प्रशस्ति५ में सार्धपूर्णिमागच्छीय अभयचन्द्रसूरि के शिष्य रामचन्द्रसूरि का उल्लेख है। इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि उक्त प्रति रामचन्द्रसूरि के पठनार्थ लिपिबद्ध करायी गयी थी। इन्हीं रामचन्द्रसूरि ने वि०सं० १४९०/ईस्वी सन् १४३४ में विक्रमचरित की रचना की। ४. सम्यक्त्वरत्नमहोदधि वृत्ति की दाता प्रशस्ति - पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक आचार्य चन्द्रप्रभसूरिकृत सम्यक्त्वरत्नमहोदधि अपरनाम दर्शनशुद्धि (रचनाकाल- विक्रम सम्वत् की १२वीं शती के मध्य के आस-पास) पर पूर्णिमागच्छ के ही चक्रेश्वरसूरि और तिलकाचार्य द्वारा रची गयी वृत्ति (रचनाकाल- विक्रम सम्वत् की १३वीं शती के मध्य के आसपास) की वि०सं० १५०४ में लिपिबद्ध की गयी प्रति की दाताप्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छ के पुण्यप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि का उल्लेख है। उक्त प्रशस्ति से इस गच्छ के किन्हीं अन्य मुनिजनों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती । ५. आरामशोभाचौपाई - यह कृति सार्धपूर्णिमागच्छ के विजयचन्द्रसूरि के शिष्य (श्रावक ?) कीरति द्वारा वि०सं० १५३५/ईस्वी सन् १४७९ में रची गयी है। ग्रन्थ की प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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