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बृहद्गच्छ का इतिहास वि०सं० १३९२/ई०स० १३३६ में रत्नदेवगणि को वज्जालग्ग की टीका की रचना के लिए प्रेरणा देने वाले हरिभद्रसूरि के शिष्य धर्मचन्द्र भी इसी गच्छ के थे।८ हरिभद्रसूरि के प्रगुरु का नाम विजयचन्द्रसूरि और गुरु का नाम मानभद्रसूरि था। मानभद्रसूरि के एक अन्य शिष्य विद्याकर गणि ने वि०सं० १३६८ में हैमव्याकरण पर दीपिका की रचना की।९ इसे तालिका के रूप में निम्नप्रकार से रखा जा सकता है :
विजयचन्द्रसूरि
मानभद्रसूरि
हरिभद्रसूरि
विद्याकर गणि
(वि० सं० १३६८ में हैमव्याकरण मुनि धर्मचन्द्र
पर दीपिका के रचनाकार) (इनकी प्रेरणा पर वि०सं० १३९२ में रत्नदेवगणि ने वज्जालग्ग पर टीका . की रचना की)
वि०सं० १४१० में मुनिभद्रसूरि द्वारा रचित शांतिनाथचरित की प्रशस्ति, जिसका ऊपर उल्लेख आ चुका है, में विजयचन्द्रसूरि का वादिदेवसूरि के प्रशिष्य व भद्रेश्वरसूरि के शिष्य के रूप में नाम मिलता है। इस प्रकार भद्रेश्वरसूरि की शिष्य सन्तति की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है :
वादिदेवसूरि
भद्रेश्वरसूरि
विजयचन्द्रसूरि
अभयदेवसूरि
परमानन्दसूरि (वि०सं०१२५० के आस-पास खण्डनमण्डनकाव्यटिप्पण के कर्ता)
मानभद्रसूरि
मदनचन्द्र
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