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अध्याय-४
३९
हरिभद्र गणभद्र
विद्याकरगणि
मुनिदेवसूरि (वि०सं० १३६८ में (वि०सं०१३२२ में
हैमव्याकरणदीपिका के कर्ता) शांतिनाथचरित के कर्ता) धर्मचन्द्र मुनिभद्र (वि०सं० १४१० में शांतिनाथचरित (वि०सं० १३९२ के
के रचनाकार एवं मुहम्मदतुगलक के रत्नदेवगणि ने वज्जालग्ग टीका उत्तराधिकारी फिरोजतुगलक से सम्मानित) की इनकी प्रेरणा से रचना की)
वादिदेवसूरि के दूसरे शिष्य रत्नप्रभसूरि द्वारा वि०सं० १२३३ में रचित नेमिनाथचरित तथा उपदेशमाला पर वि० सं० १२३८ में रची गयी दोघट्टी नामक वृत्ति तथा स्याद्वादरत्नाकर पर रचित लघुटीका नामक कृतियां प्राप्त होती हैं।१० वि०सं० १३३८ के एक प्रतिमालेख में बृहद्गच्छीय परमानन्दसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में नाम मिलता है।११ इस लेख में परमानन्दसूरि के गुरु हरिभद्रसूरि और प्रगुरु रत्नप्रभसूरि का भी नाम मिलता है जिन्हें नामसाम्य और गच्छसाम्य को देखते हुए वादिदेवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि से अभिन्न तो माना जा सकता है; किन्तु इनमें सबसे बड़ी बाधा रत्नप्रभसूरि और परमानन्दसूरि के बीच लगभग १०० वर्षों के दीर्घ समयान्तराल को लेकर है। तीन आचार्यों के मध्य लगभग १०० वर्षों का समयान्तराल होना असम्भव तो नहीं, परन्तु कठिन अवश्य लगता है।
वादिदेवसरि के तीसरे शिष्य माणिक्यसूरि द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न कोई प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमा आदि ही। इसी प्रकार इनके शिष्यों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिल पाती। ठीक यही बात वादिदेवसूरि के चौथे शिष्य अशोकमुनि और पांचवें शिष्य विजयसेन के बारे में कही जा सकती है। ___ वादिदेवसूरि के छठे शिष्य पूर्णदेव द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु इनके शिष्य रामचन्द्र के वि०सं० १२६८ के उत्कीर्ण लेख में इनका नाम मिलता है। मुनि जिनविजय जी ने इस लेख की वाचना दी है,१२ जो निम्नानुसार है : (१) ओं ॥ संवत् १२२१ श्रीजावालिपुरीयकांचन (गि) रिगढस्योपरि
प्रभुश्रीहेमसूरिप्रबोधितश्रीगूजरधराधीश्वरपरमार्हतचौलुक्य
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