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अध्याय-४
३७
भद्रेश्वरसूरि की शिष्य-परम्परा में मुनिदेवसूरि नामक एक विद्वान् आचार्य हुए। इन्होंने वि०सं० १३२२/ई०स० १२६६ में शांतिनाथचरित की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा की चर्चा की है, जो इस प्रकार है :
भद्रेश्वरसूरि
अभयदेवसूरि
मदनचन्द्रसूरि
मुनिदेवसूरि (वि०सं० १३२२/ई०स०१२७६ में
__शांतिनाथचरित के रचनाकार) भद्रेश्वरसूरि की ही शिष्य-परम्परा में ही हुए मुनिभद्रसूरि ने उक्त शांतिनाथचरित के आधार पर वि०सं० १४१०/ई०स० १३५४ में एक अन्य शांतिनाथचरित की रचना की। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है :
भद्रेश्वरसूरि
विजयचन्द्रसूरि
मानभद्रसूरि
गुणभद्रसूरि
मुनिभद्रसूरि (वि०सं० १४१०/ई०स० १३५४ में
शांतिनाथचरित के रचनाकार) । इस प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि रचनाकार के गुरु गुणभद्रसूरि को सुल्तान मुहम्मद तुगलक एवं रचनाकार को उसके उत्तराधिकारी फिरोजशाह तुगलक (ई०स० १३५३-१३८८) ने अपने राजदरबार में सम्मानित किया था। यह प्रशस्ति न केवल बृहद्गच्छ बल्कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त ही महत्त्वपूर्णहै।"
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