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बृहद्गच्छ का इतिहास द्वादशव्रतस्वरूप कुरुकुल्लादेवीस्तुति पार्श्वधरणेन्द्रस्तुति कलिकुण्डपार्श्वजिनस्तवन यतिदिनचर्या जीवाभिगमलघुवृत्ति उपधानस्वरूप प्रभातस्मरणस्तुति उपदेशकुलक संसारोद्विग्नमनोरथकुलक
वि०सं० १२२६में इनका देहान्त हुआ वादिदेवसूरि के विशाल शिष्य परिवार के प्रमुख शिष्यों के नाम निम्नानुसार हैं :४ १- भद्रेश्वरसूरि
८- पद्मचन्द्रगणि २- रत्नप्रभसूरि
९- पद्मप्रभसूरि ३- माणिक्यसूरि
१०- महेश्वरसूरि ४- अशोकमुनि
११- गुणचन्द्र ५- विजयसेन
१२- शालिभद्र ६- पूर्णदेवाचार्य ७- जयप्रभमुनि
वादिदेवसूरि के गृहस्थ शिष्यों में थाहड़, नागदेव, उदयन, वाग्भट्ट आदि श्रीमंत भी थे । भद्रेश्वरसूरि
इनके द्वारा रचित कोई स्वतन्त्र कृति नहीं मिलती। जैसाकि ऊपर कहा जा चुका है। इन्होंने अपने गुरु वादिदेवसूरि को प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार और उस पर स्याद्वादरत्नाकर नामक टीका की रचना में सहायता प्रदान की। भद्रेश्वरसूरि के एक शिष्य परमानन्दसूरि हुए जिन्होंने वि०सं० १२५० के आस-पास खण्डनमण्डनटिप्पण नामक कृति की रचना की।५
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