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________________ बृहद्गच्छ का इतिहास ___ यह उल्लेखनीय है कि रत्नशेखरसूरि ने उक्त प्रशस्ति में अपने गच्छ का निर्देश नहीं किया है। यही बात उनके द्वारा रचित अन्य कृतियों के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। वि० सं० १४२२ के एक प्रतिमालेख में तपागच्छीय? किन्हीं रत्नशेखरसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु उपदेशक के रूप में नाम मिलता है ।१८ यदि हम इस वाचना को सही मानें तो उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित रत्नशेखरसूरि को समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर उक्त प्रसिद्ध रचनाकार रत्नशेखरसूरि से समीकृत किया जा सकता है। एक रचनाकार द्वारा अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में अपने गुरु, प्रगुरु, शिष्य तथा रचनाकाल का उल्लेख करना जितना महत्त्वपूर्ण है, वहीं उनके द्वारा अपने गच्छ का निर्देश न करना उतना ही आश्चर्यजनक भी है। कर्पूरप्रकर नामक कृति की प्रशस्ति १९ में रचनाकार हरिषेण ने स्वयं को वज्रसेन का शिष्य और नेमिनाथचरित्र का कर्ता बतलाया है, किन्तु उन्होंने न तो कृति के रचनाकाल का कोई निर्देश किया है और न ही अपने गच्छ आदि का। ऊपर सिरिवालचरिय (रचनाकाल वि० सं० १४२८/ई०स० १३७२) प्रशस्ति में हेमतिलकसूरि के गुरु का नाम वज्रसेनसूरि आ चुका है, अत: नामसाम्य के आधार पर उक्त दोनों प्रशस्तियों में उल्लेखित वज्रसेनसूरि के एक ही व्यक्ति होने की सम्भावना व्यक्त की जा सकती है। इस संभावना के आधार पर कर्पूरप्रकर, नेमिनाथचरित्र आदि के रचनाकार हरिषेण और सिरिवालचरिय तथा अन्य कई कृतियों के कर्ता हेमतिलकसूरि परस्पर गुरुभ्राता माने जा सकते हैं ।। सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में ऊपर हम देख चुके हैं वज्रसेनसूरि के गुरु का नाम जयशेखरसूरि और प्रगुरु का नाम गुणसमुद्रसूरि तथा उनके गुरु का नाम प्रसन्नचन्द्रसूरि बतलाया गया है जो इस परम्परा के आदिपुरुष पद्मप्रभसूरि के शिष्य थे। छन्दकोश पर रची गयी वृत्ति की प्रशस्ति में रचनाकार चन्द्रकीर्तिसूरि ने पद्मप्रभसूरि को दीपकशास्त्र का रचनाकार बतलाया है :२० वर्षेः चतुःसप्ततियुक्तरुद्र शतै ११४७ रतीतैरथ विक्रमार्कात् । वादीन्द्रमुख्योः गुरु-देवसूरिः सूरीश्चतुर्विंशतिभ्यषिंचत् ॥ तेषां च यो दीपकशास्त्रकर्ता पद्मप्रभः सूरिवरो वभूव । यदिय शाखा प्रथिता क्रमेण ख्याता क्षितौ नागपुरी तपेति ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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