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________________ अध्याय-७ १३५ पूर्णचन्द्रसूरि हेमहंससूरि (वि० सं० १४५३-१५१३) हेमसमुद्रसूरि (वि० सं० १५१७-१५२८) हेमरत्नसूरि (वि० सं० १५३३-१५४२) इस प्रकार तपागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों में न केवल उक्त मुनिजनों के नाम मिलते हैं, बल्कि उनका पट्टक्रम भी ठीक उसी प्रकार का है जैसा कि चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं। सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में पूर्णचन्द्रसूरि के गुरु का नाम रत्नशेखरसूरि और प्रगुरु का नाम हेमतिलकसूरि दिया गया है। रत्नशेखरसूरि द्वारा रचित सिरिवालचरिय (श्रीपालचरित) रचनाकाल वि० सं० १४२८/ई०स० १३७२; लघुक्षेत्रसमास स्वोपज्ञवृत्ति, गुरुगुणद्वात्रिंशिका, छंदकोश, सम्बोधसत्तरीसटीक, लघुक्षेत्रसमास-सटीक आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं।१६ सिरिवालचरिय की प्रशस्ति१७ में उन्होंने अपने गुरु, प्रगुरु, शिष्य तथा रचनाकाल आदि का निर्देश किया है, जो इस प्रकार है: सिरिवज्जसेणगणहर-पट्टप्पहू हेमतिलयसूरीणां। सीसेहिं रयणसेहरसूरीहिं इमा ऊणा संकलिया ।।३८।। तस्सीसहेमचंदेण साहुणा विक्कमस्स वरिसंमि। चउदस अट्ठावीसे, लिहिया गुरुभत्तिकलिएणं ।।३९।। अर्थात् वज्रसेनसूरि हेमतिलकसूरि रत्नशेखरसूरि हेमचन्द्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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