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बृहद्गच्छ का इतिहास अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में उन्होंने अपने को पिप्पलगच्छीय वीरदेवसूरि का प्रशिष्य और वीरप्रभसूरि का शिष्य बतलाया है५ :
वीरदेवसूरि
वीरप्रभसूरि
हीराणंदसूरि (ग्रन्थकार) इस गच्छ के आनन्दमेरुसूरि ने वि०सं० १५१३/ई० सन् १४५७ में कालकसूरिभास की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने खुद को गुणरत्नसूरि का शिष्य बतलाया है :
गुणरत्नसूरि
आनन्दमेरु (वि०सं० १५१३/ई० सन् १४५७ में कालकसूरिभास के रचनाकार) कल्पसूत्रआख्यान के रचनाकार भी यही आनन्दमेरुसूरि माने जाते हैं।
पिप्पलगच्छीय नरशेखरसूरि ने वि०सं० १५८४/ई० सन् १५२८ में पार्श्वनाथपत्नीपद्मावतीहरणरास की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने खुद को शांति (प्रभ) सूरि का शिष्य बतलाया है :
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