________________
१४३
अध्याय-७ धर्मरत्नसूरि
धर्मतिलकसूरि
धर्मसिंहसूरि
धर्मप्रभसूरि
धर्मप्रभसूरिशिष्य (नाम-अज्ञात) (पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति के रचनाकार)
पिप्पलगच्छीय सागरचन्द्रसूरि ने वि०सं० १४८४/ई०सन् १४२८ में सिंहासनद्वात्रिंशिका३ की रचना की। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने स्वयं को जयतिलकसूरि का शिष्य बतलाया है :
.. - -
जयतिलकसूरि
सागरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४८४/ई० सन् १४२८ में सिंहासनद्वात्रिंशिका
के रचनाकार) पिप्पलगच्छीय हीराणंदसूरि की कई कृतियाँ मिलती हैं,४ जैसे - वस्तुपालतेजपालरास - रचनाकाल वि०सं० १४८४ विद्याविलासपवाडो . रचनाकाल वि०सं० १४८५ कलिकालरास - रचनाकाल वि०सं० १४८६ जम्बूस्वामी,विवाहलु - रचनाकाल वि०सं० १४९४ दर्शाणभद्ररास - रचनाकाल अज्ञात। स्थूलभद्रबारहमास - रचनाकाल अज्ञात।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org