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बृहद्गच्छ का इतिहास चर्चा की जा सकती है। ऐसे लेख बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। ये वि०सं० १२०८ से वि०सं० १७७८ तक के हैं। यहां उक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
पिप्पलगच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्य है विक्रम संवत् की पन्द्रहवीं शती के तृतीय चरण के आस-पास इस गच्छ के धर्मप्रभसूरि के किसी शिष्य द्वारा रचित पिप्पलगच्छगुरु- स्तुति २ या पिप्पलगच्छगुर्वावली । संस्कृत भाषा में १८ श्लोकों में निबद्ध इस कृति में रचनाकार ने पिप्पलगच्छ तथा इसकी त्रिभवीया शाखा के अस्तित्व में आने एवं अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार
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शीलभद्रसूरि
परिपूर्णदेवसूरि
महेन्द्रसूरि विजयसिंहसूरि देवचन्द्रसूरि पद्मचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि जयदेवसूरि हेमप्रभसूरि जिनेश्वरसूरि
1
देवभद्रसूरि
I
धर्मघोषसूरि
विजयसेनसूरि
I
धर्मदेवसूरि (त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक)
1
धर्मचन्द्रसूरि
I
सर्वदेवसूरि
1
नेमिचन्द्रसूरि
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I
शांतिसूर
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