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अध्याय- ५
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संवत् १६२० वर्षे, शाके १४८५ कार्तिक सुदि ८ दिने रविदिने श्रवण नक्षत्रे सिद्धिनामयोगे श्रीसरस्वतीपत्तने पातशाह अकब्बर विजयराज्ये श्रीबृहद्गच्छे भट्टारकी ६ पुण्यप्रभसूरि तत्पटेभ० श्री ७ भावदेवसूरि तत्शिष्य पं० पुण्यरत्न लिखितम् । (बीकानेरराजकीयग्रन्थसंग्रहस्थित कत्पान्तर्वाच्यग्रन्थाद् इयं गुर्वावली समुद्धृताऽस्ति)। मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ ५५.
यदि उक्त दृष्टि से हम देखते हैं तो अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर संकलित तालिका क्रमांक-३ का अन्तर्विरोध भी समाप्त हो जाता है और साथ ही मुनिमाल कृत बृहद्गच्छगुर्वावली को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है :
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वादिदेवसूरि
1
विमलचन्द्र उपाध्याय
I
मानदेवसूरि
I
हरिभद्रसूरि
1
पूर्णप्रभसूरि
1
नेमिचन्द्रसूरि
1
नयचन्द्रसूरि
1
मुनिरत्नसूरि
(वि०सं० १३४९ ) प्रतिमालेख
मुनिशेखरसूरि (वि०सं० १३८७-१४१७) प्रतिमालेख
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