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________________ अध्याय- ५ ९७ संवत् १६२० वर्षे, शाके १४८५ कार्तिक सुदि ८ दिने रविदिने श्रवण नक्षत्रे सिद्धिनामयोगे श्रीसरस्वतीपत्तने पातशाह अकब्बर विजयराज्ये श्रीबृहद्गच्छे भट्टारकी ६ पुण्यप्रभसूरि तत्पटेभ० श्री ७ भावदेवसूरि तत्शिष्य पं० पुण्यरत्न लिखितम् । (बीकानेरराजकीयग्रन्थसंग्रहस्थित कत्पान्तर्वाच्यग्रन्थाद् इयं गुर्वावली समुद्धृताऽस्ति)। मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ ५५. यदि उक्त दृष्टि से हम देखते हैं तो अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर संकलित तालिका क्रमांक-३ का अन्तर्विरोध भी समाप्त हो जाता है और साथ ही मुनिमाल कृत बृहद्गच्छगुर्वावली को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है : Jain Education International वादिदेवसूरि 1 विमलचन्द्र उपाध्याय I मानदेवसूरि I हरिभद्रसूरि 1 पूर्णप्रभसूरि 1 नेमिचन्द्रसूरि 1 नयचन्द्रसूरि 1 मुनिरत्नसूरि (वि०सं० १३४९ ) प्रतिमालेख मुनिशेखरसूरि (वि०सं० १३८७-१४१७) प्रतिमालेख I For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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