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बृहद्गच्छ का इतिहास हेमचन्द्रसूरि और सोमप्रसूरि३२ के मध्य लगभग ६० वर्षों के दीर्घ समयान्तराल को देखते हुए मोहनलाल दलीचंद देसाई और लालचन्द भगवानदास गांधी का मत यथार्थ माना जा सकता है। ___सोमप्रभसूरि भी अपने समय के विख्यात और समर्थ विद्वान् थे । उनके द्वारा रचित कुमारपालप्रतिबोध के अतिरिक्त सूक्तिमुक्तावली अपरनाम सिन्दूरप्रकर (जिसका एक नाम सोमशतक भी है) रचनाकाल वि० सं० १२५० के आस-पास, सुमतिनाहचरिय, शतार्थकाव्य और उसपर वृत्ति आदि रचनायें मिलती हैं ।
शंखेश्वर महातीर्थ से प्राप्त वि० सं० १२३८ के एक अभिलेख में किन्ही सोमप्रभसूरि द्वारा मातृपट्टिकास्थापित करने का उल्लेख मिलता है । मुनि जयन्तविजय ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है: पट्टः श्री शं...
.....१२३८ वर्ष माघ सुदि ३शनौ श्रीसोमप्रभसूरिर्जिनमातृपट्टिका प्रतिष्ठिता..............................त्राभ्यां राजदेव । रत्नाभ्यां स्वमातु... ..............।। कल्याणमस्तु श्रीसंघस्य ॥
शंखेश्वरमहातीर्थ, लेखांक ९, पृष्ठ १८४.
उक्त अभिलेख में उल्लिखित सोमप्रभसूरि और बृहदगच्छीय सोमप्रभसूरि को समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मानने में कोई बाधा नहीं आती । वि० सं० १२८४ के आस-पास श्रीमालनगर में इनका देहान्त हुआ । ___ हेमचन्द्रसूरि और सोमप्रभसूरि की शिष्य-संतति आगे चली या नहीं ? यदि आगे चली तो उनमें कौन-कौन से मुनिजन हुए, इस सम्बन्ध में हमारे पास कोई भी विवरण उपलब्ध नहीं है ।
___ साहित्यिक साक्ष्यों से बृहद्गच्छ के कुछ ऐसे भी मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, जिनकी गुरु-परम्परा के एक-दो नामों को छोड़कर अन्य कोई जानकारी ही नहीं मिलती। इनका विवरण निम्नानुसार है : ___ वि०सं० १२४७(८) में नागेन्द्रगच्छीय बालचन्द्रसूरि द्वारा रचित विवेकमंजरीटीका के संशोधक के रूप में उक्त गच्छ के विजयसेनसूरि और बृहद्गच्छ के पद्मसूरि का नाम मिलता है।३३ ये पद्मसूरि बृहद्गच्छ के किस मुनि या आचार्य के शिष्य थे, यह बात साक्ष्यों के अभाव में जान पाना कठिन है।
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