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________________ अध्याय- ४ ४७ वि० सं० १३६८ में हैमव्याकरण बृहद्वृत्तिदीपिका के रचनाकार विद्याकरगणि के गुरु का नाम मानभद्रसूरि और प्रगुरु का नाम वादिदेवसूरिसंतानीय विजयचन्द्रसूरि था ।३४ उक्त विजयचन्द्रसूरि का वादिदेवसूरि के किस शिष्य से सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता । विक्रम संवत् १४२७ में रचित यन्त्रराज की प्रशस्ति ३५ से ज्ञात होता है कि रचनाकार मलयचन्द्र के गुरु का नाम बृहद्गच्छीय महेन्द्रसूरि था, जिनका सुलतान फिरोजतुगलक ने सम्मान किया था। महेन्द्रसूरि के गुरु का नाम मदनसूरि था। महेन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित दो सलेख जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १४२२ और १४२४ की है। ३६ यही समय फिरोजशाह तुगलक (वि०सं०१४०७-१४४४ / ई०स० १३५११३८८) का भी है। महेन्द्रसूरि के गुरु मदनसूरि के गुरु- प्रगुरु आदि के बारे में किन्हीं भी अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी नहीं मिल पाती। महेन्द्रसूरि के शिष्य का नाम मलयचन्द्रसूरि था, जिन्होंने अपने गुरु की कृति पर टीका की रचना की। ? मदनसूरि बृहद्गच्छीय महेन्द्रसूरि (वि० सं० मलयचन्द्र Jain Education International १४२२-२४) प्रतिमालेख; सुल्तान फिरोजतुगलक द्वारा सम्मानित) यन्त्रराज के रचनाकार ( यन्त्रराजटीका- वि० सं० १५वीं शताब्दी - द्वितीय चरण के आस-पास के कर्ता) मदनसूरि तथा उनके शिष्य महेन्द्रसूरि और प्रशिष्य मलयचन्द्र का वादिदेवसूरि की शिष्य सन्तति के बीच परस्पर किस तरह का सम्बन्ध था, इस बारे में हमें आज कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है । मलयचन्द्र की शिष्य संतति में कौन-कौन से मुनिजन हुए, इस सम्बन्ध में भी किसी प्रकार का विवरण उपलब्ध नहीं होता । जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, इस गच्छ की एक पट्टावली मिलती है३७, जो वि० सं० की १७वीं शती के प्रथम चरण के प्रारम्भ में मुनिमाल द्वारा रची गयी है । यह वादिदेवसूरि से प्रारम्भ होती है । इसमें प्राप्त गुरु-परम्परा निम्नानुसार है : For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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