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अध्याय-७
१६३
देवानन्दसूरि (वि०सं० १४५५ / ई० सन् १३९९ में क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार)
श्रीपालचरित
पूर्णिमागच्छीय गुणसमुद्रसूरि के शिष्य सत्यराजगणि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित ५०० श्लोकों की यह कृति वि०सं० १५१४ में रची गयी है। इसकी वि०सं० १५७५/ ई० सन् १५१९ की एक प्रतिलिपि जैसलमेर के ग्रन्थभण्डार में संरक्षित है। रचना के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत परिचय न देते हुए मात्र अपने गुरु का ही नामोल्लेख किया है९:
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गुणसमुद्रसू 1
सत्यराजगणि (वि०सं० १५१४ / ई० सन् १४५८ में श्रीपालचरित के रचनाकार)
पूर्णिमागच्छगुर्वावली
यह गुर्वावली पूर्णिमागच्छ के सुमतिरत्नसूरि के शिष्य उदयसमुद्रसूरि द्वारा वि०सं० १५८० / ई० सन् १५२४ में रची गयी है। १० इसमें उल्लिखित पूर्णिमागच्छ के आचार्यों का क्रम निम्नानुसार है :
चन्द्रगच्छीय चन्द्रप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक)
धर्मघोषसूरि
1
देवप्रभसूर
I
जिनदत्तसूरि
I
शांतिभद्रसूरि
I
भुवनतिलकसूर
I
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