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क्षेत्रसमासवृत्ति
यह कृति पूर्णिमागच्छीय पद्मप्रभसूरि के शिष्य देवानन्दसूरि द्वारा वि०सं० १४५५ / ई० सन् १३९९ में रची गयी है। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी लम्बी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, ८ जो इस प्रकार है :
चन्द्रप्रभसूर
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धर्मघोषसूर
1
भद्रेश्वरसूरि
I
मुनिप्रभसूर
1
सर्वदेवसूरि
I
सोमप्रभसूर
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रत्नप्रभसूर
1
चन्द्रसिंहसूर
बृहद्गच्छ का इतिहास पुण्डरीकचरित के रचनाकार)
1
देवसिंहसूर
1
पद्मतिलकसूरि
1
श्रीतिलकसूरि
I
देवचन्द्रसूरि
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पद्मप्रभसूर
1
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