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________________ २२ बृहद्गच्छ का इतिहास छन्दोलक्षणविकलं, समयोत्तीर्णं च यत् किमपि लिखितम् । तच्छोध्यं विद्वद्भिः, कृताञ्जलि: प्रार्थये भवतः ॥२९॥ अन्यच्च नेमिचन्द्रा गुणाकराः पार्श्वदेवनामानः । एते त्रयोऽपि गणयो विपश्चितो मुख्यनिजशिष्याः ॥३०॥ साहाय्यं कृतवन्तो मम लेखन-शोधनादिकृत्येषु । आधानोद्धरणे च प्रमादविकलाः कलाकुशलाः ॥३१॥ नवत्या युक्तेषु प्रथितयशसो विक्रमनृपा च्छतेषु क्रान्तेषु त्रिनयनसमानेषु शरदाम्। अजय्ये सौराज्ये जयति जयसिंहस्य नृपते रियं स्थानीयेऽगाद् धवलकपुरे सिद्धिपदवीम् ॥३२।। श्रेष्ठियशोनागस्याऽऽरब्धा वसताववस्थितैः सद्भिः । वसतां सम्यगवसिता वसतावच्छुप्तसत्कायाम् ॥३३॥ भुवनानीव चतुर्दश धातुर्मम रम्यवर्ण-पदभाञ्जि । अक्षरगणनाद् ग्रन्थो जातोऽनुष्टुप्सहस्राणि ॥३४॥ मानसगर्भे स्थित्वा, लक्षणयुगयं सपादनवमासैः । आख्यानकमणिकोशः, सुत इव समपाचि सद्वृत्तिः ॥३५।। यावश्चन्द्रश्च सूर्यश्च, यावन्मेरुर्महीतलम् । स्वर्गाऽपवर्गवत् तावन्नन्द्यादेषाऽपि मत्कृतिः ॥३६।। इस प्रशस्ति के प्रारम्भ के १५ पद्यों में वृत्तिकार ने अपने गच्छ के पूर्ववर्ती आचार्यों देवसूरि, अजितदेवसूरि, आनन्दसूरि और सुप्रसिद्ध रचनाकार नेमिचन्द्रसूरि का सादर स्मरण किया है, किन्तु उनके सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं दी है। इस कारण इन आचार्यों का पारस्परिक सम्बन्ध क्या था? इस बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। स्वयं वृत्तिकार के सम्बन्ध में इतना ही ज्ञात होता है कि वे मूल ग्रन्थकार के गुरुभ्राता जिनचन्द्रसूरि के शिष्य और श्रीचन्द्रसूरि के गुरुभ्राता थे। वृत्तिकार आम्रदेवसूरि के तीन शिष्यों – नेमिचन्द्र, गुणाकर और पार्श्वदेव ने इस वृत्ति की रचना में अपने गुरु की सहायता की।२ इसे तालिका के रूप में इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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