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अध्याय-३
द्रष्टव्य तालिका क्रमांक
नेमिचन्द्र
(शिष्य)
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नेमिचन्द्रसूरि (आख्यानकमणिकोश के रचनाकार)
१
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गुणाकर (शिष्य)
आम्रव (वि० सं० १९९१ में आख्यानकमणिकोशवृत्ति के कर्ता)
जिनचन्द्रसूरि
पार्श्वदेव
(शिष्य)
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(आख्यानकमणिकोशवृत्ति की रचना में गुरु को सहायता देने वाले)
आम्रदेवसूरि के उपरोक्त शिष्य नेमिचन्द्रसूरि द्वारा रची गयी अनंतनाहचरिय (रचनाकाल वि०सं० १२१६ / ई०स० ११५०) की प्रशस्ति में उन्होंने अपने गुरु - परम्परा की लम्बी गुर्वावली दी है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ३ इस प्रशस्ति के अनुसार बृहद्गच्छ में देवसूरि के वंश में अजितदेवसूरि हुए, जिनके पट्टधर का नाम आनन्दसूरि था। आनन्दसूरि के तीन पट्टधर हुए १नेमिचन्द्रसूरि; २- प्रद्योतनसूरि और ३- जिनचन्द्रसूरि । जिनचन्द्रसूरि के दो पट्टधर हुए
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श्रीचन्द्रसूरि
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१- आम्रदेवसूरि (आख्यानकमणिकोशवृत्ति के कर्ता) एवं श्रीचन्द्रसूरि । आम्रदेवसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि, नेमिचन्द्रसूरि (वि०सं० १२१६ / ई०स० ११६० में अनंतनाहचरिय के कर्ता), यशोदेवसूरि, गुणाकर और पार्श्वदेव हुए। आम्रदेवसूरि ने अपने पट्ट पर अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि को स्थापित किया। विजयसेनसूरि के शिष्य समन्तभद्रसूरि हुए। यशोदेवसूरि और समन्तभद्रसूरि ने अनंतनाथचरिय का संशोधन किया। इसे तालिका के रूप में निम्न प्रकार रखा जा सकता है :
द्रष्टव्य तालिका क्रमांक - २
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