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________________ १२ बृहद्गच्छ का इतिहास देवसूरि 'विहारुक' नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम' उद्योतनसूरि ‘द्वितीय' यशोदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि (सर्व)देवसूरि अजितदेवसूरि आम्रदेवसूरि 'प्रथम' यशोभद्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि (द्वितीय) आनन्दसूरि देवेन्द्रगणि अपरनाम मुनिचन्द्रसूरि देवेन्द्रगणि नेमिचन्द्रसूरि 'तृतीय' अपरनाम (शिष्य) नेमिचन्द्रसूरि 'तृतीय' (पट्टधर) देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि 'तृतीय' द्वारा रचित महावीरचरियं (रचनाकाल वि०सं० ११४१/ई०स० १०८४) की प्रशस्ति१० में बृहद्गच्छ को चन्द्रकुल से उत्पन्न माना गया है, अत: समसामयिक चन्द्रकुल (जो पीछे चन्द्रगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ) की आचार्य-परम्परा पर भी एक दृष्टि डालना आवश्यक है। चन्द्रकुल में प्रख्यात वर्धमानसूरि, जिनेश्वरसूरि, बुद्धिसागरसूरि, नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि आदि विभिन्न प्रभावक आचार्य हुए हैं। आचार्य जिनेश्वरसूरि, जिन्होंने चौलुक्य नरेश दुर्लभराज (वि०सं० १०६७-१०७८/ई०स० १०१०-१०२१) की राजसभा में चैत्यवासियों को शास्त्रार्थ में परास्त कर गुर्जरधरा में विधिमार्ग का बलतर समर्थन किया था, वर्धमानसूरि के शिष्य थे।११ आबू स्थित विमलवसही के प्रतिष्ठापकों में वर्धमानसूरि का भी नाम लिया जाता है।१२ इनका समय विक्रम सम्वत् की ११वीं शती सुनिश्चित है। ये वर्धमानसूरि कौन थे ? इस प्रश्न का भी उत्तर ढूंढ़ना अत्यन्त आवश्यक है । __ खरतरगच्छीय आचार्य जिनदत्तसूरि द्वारा रचित गणधरसार्धशतक १३ (रचनाकाल वि०सं० बारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध) और जिनपालोध्याय द्वारा रचित खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली१४ (रचनाकाल - विक्रम सम्वत् तेरहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण) से ज्ञात होता है कि वर्धमानसूरि पहले एक चैत्यवासी आचार्य के शिष्य थे, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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