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________________ अध्याय- २ ११ मुनिचन्द्रसूरि ने स्वरचित विभिन्न ग्रन्थों की प्रशस्तियों के अन्तर्गत अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है जिसके अनुसार उनके प्रगुरु का नाम सर्वदेवसूरि और गुरु का नाम यशोभद्रसूरि एवं नेमिचन्द्रसूरि था । ९ यशोभद्रसूरि से उन्होंने दीक्षा ग्रहण की और नेमिचन्द्रसूरि से आचार्य पद प्राप्त किया । सर्वदेवसूरि यशोभद्रसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के दीक्षागुरु) - मुनिचन्द्रसूरि ऊपर उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन जिन ५ आचार्यों का नाम आया है उनमें चौथे आचार्य देवसूरि मुनिचन्द्रसूरि के प्रगुरु सर्वदेवसूरि से अभिन्न मालूम होते हैं। देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि के सम्बन्ध में हम देख चुके हैं कि वे अपने प्रगुरु उद्योतनसूरि 'द्वितीय' के समकालीन ५ आचार्यों में से अन्तिम अजितदेवसूरि के शिष्य आनन्दसूरि के पट्टधर बने। इस प्रकार देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि और मुनिचन्द्रसूरि परस्पर सतीर्थ्य सिद्ध होते हैं, साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित हो जाता है कि बृहद्गच्छ की एक ही शाखा में प्राय: एक साथ ही नेमिचन्द्रसूरि नामक दो आचार्य हुए हैं एक सर्वदेवसूरि के शिष्य और मुनिचन्द्रसूरि को आचार्य पद प्रदान करने वाले और दूसरे मुनिचन्द्रसूरि के कनिष्ठ गुरुभ्राता देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि । इन्हें क्रमश: नेमिचन्द्रसूरि 'द्वितीय' और नेमिचन्द्रसूरि 'तृतीय' कह सकते हैं। इसे तालिका के रूप में निम्न प्रकार से समझा जा सकता है उद्योतनसूरि 'प्रथम' I सर्वदेवसूरि Jain Education International नेमिचन्द्रसूरि (मुनिचन्द्रसूरि को आचार्य पद देने वाले) - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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