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________________ १० बृहद्गच्छ का इतिहास थे। शेष ४ आचार्य हैं - यशोदेवसूरि, प्रद्युम्नसूरि, मानदेवसूरि और सर्वदेवसूरि। इसे तालिका के रूप में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है - उद्योतनसूरि 'प्रथम' सर्वदेवसूरि देवसूरि 'विहारुक' नेमिचन्द्रसूरि 'प्रथम' उद्योतसूरि ‘द्वितिय' के समकालीन ५ आचार्य उद्योतनसूरि 'द्वितीय' यशोदेवसूरि प्रद्युम्नसूरि मानदेवसूरि (सर्व) देवसूरि अजितदेवसूरि आम्रदेवसूरि 'प्रथम' आनन्दसूरि देवेन्द्रगणि अपरनाम देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि नेमिचन्द्रसूरि अब हम देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि के इस वक्तव्य की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे जिसमें उन्होंने कहा है कि उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधावृत्ति की रचना उन्होंने अपने ज्येष्ठ गुरुभ्राता मुनिचन्द्रसूरि के अनुरोध पर की - देवेन्द्रगणिश्चेमामुद्धृतवान् वृत्तिकां तद्विनेयः। गुरुसोदर्यश्रीमन्मुनिचन्द्राचार्यवचनेन ।।११।। शोधयतु बृहनुग्रहबुद्धिं मयि संविधाय विज्ञजनः। तत्र च मिथ्यादुष्कृतमस्तु कृतमसंगतं यदिह ।।१२।। उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति की प्रशस्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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